Thursday, May 27, 2021

GTL TO MTJ : KARNATAKA SPECIAL 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT 

कर्नाटक यात्रा का अंतिम भाग 

 गुंतकल से मथुरा - कर्नाटका स्पेशल ट्रेन 


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पूरा दिन हम्पी घूमने के बाद अंत में मैंने भगवान विरुपाक्ष जी के दर्शन किये और अपनी कर्नाटक की इस ऐतिहासिक यात्रा को विराम दिया। आज के दिन के मैंने जो किराये पर साइकिल ली थी उसे जमा कराकर मैं बस स्टैंड पर पहुंचा। यहाँ होस्पेट जाने के लिए अभी कोई बस उपलब्ध नहीं थी। होसपेट स्टेशन से मेरी ट्रेन रात को साढ़े आठ बजे थी जिससे मुझे गुंतकल पहुंचना है और वहां से कर्नाटक एक्सप्रेस द्वारा अपने घर मथुरा जंक्शन तक। इसप्रकार मेरी वापसी यात्रा शुरू हो चुकी थी।

 शाम ढलने की कगार पर थी और विजयनगर मतलब हम्पी अब धीरे धीरे अँधेरे के आगोश में समाने लगा था। शाम के साढ़े छ बज चुके थे, बस स्टैंड पर ऑटो वालों का ताँता लगा हुआ था जो हम्पी के नजदीक कमलापुर के लिए सवारियां ढूढ़ने में लगे हुए थे। काफी देर तक जब कोई बस यहाँ नहीं आई, तो मुझे थोड़ी चिंता होने लगी और अब मुझे ट्रेन के निकलने का डर सताने लगा था। मैंने आसपास के दुकानदारों से होस्पेट जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि शाम को सात बजे आखिरी बस आती है जो होस्पेट जाती है। यह सुनकर मुझे थोड़ा सुकून मिल गया, किन्तु कहीं ना कहीं डर अब भी था।

Wednesday, May 26, 2021

VIJAY NAGAR : KARNATAKA 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

विजय नगर साम्राज्य के अवशेष - हम्पी 

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तेरहवीं शताब्दी में भारत वर्ष की अधिकांश भूमि पर इस्लाम के वाशिंदों का राज्य स्थापित हो चुका था, साम्राज्य अब सल्तनतों में तब्दील होने लगे थे। भारतीय हिन्दू सम्राटों की जगह अब देश की बागडोर तुर्की मुसलमानों के हाथों में आ चुकी थी जो स्वयं को सम्राट की बजाय सुल्तान कहलवाना पसंद करते थे। 

भारत का मुख्य केंद्रबिंदु दिल्ली, अब इन्हीं तुर्कों के अधीन थी और ये तुर्क समस्त भारत भूमि को अपने अधीन करने का सपना देखने लगे थे। भारत देश अब नए नाम से जाना जाने लगा था जिसे तुर्की लोग हिंदुस्तान कहकर सम्बोधित करते थे। हर तरफ इस्लामीकरण का जोर चारों ओर था, हिन्दुओं को जबरन तलवार के बल पर इस्लाम कबूल कराया जाने लगा था। हिन्दुओं पर अत्याचार, अब आम बात हो चली थी। 

भारतीय हिन्दू अब वैदिक धर्म को खोने लगे थे, सल्तनत की सीमायें बढ़ती जा रही थीं और अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की सीमायें, दक्षिण भारत को छूने लगी थीं, जहाँ अभी तक हिन्दू अपने धर्म और संस्कृति को बचाये हुए थे। इस्लाम के प्रसार को रोकने और वैदिक धर्म को क्षीणता से बचाने के लिए आखिरकार दक्षिण भारत में एक नए महान साम्राज्य की स्थापना हुई जिसे विजय नगर साम्राज्य के नाम से जाना गया। 

Monday, May 3, 2021

HAMPI : KARNATAKA 2021

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विजय नगर साम्राज्य और होसपेट की एक रात 

7 JAN 2021

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कुकनूर से कोप्पल होते हुए रात साढ़े नौ बजे तक, बस द्वारा मैं होस्पेट पहुँच गया था। बस ने मुझे होसपेट के मुख्य बस स्टैंड पर उतारा था जो कि बहुत बड़ा बस स्टैंड था किन्तु रात्रि व्यतीत करने हेतु मुझे कोई स्थान तो चाहिए था आखिरकार आज मैं सुबह से यात्रा पर था और आज एक ही दिन में अन्निगेरी, गदग, डम्बल, लकुण्डी और इत्तगि की यात्रा करके थक भी चुका था। हालांकि मैंने हम्पी में एक होटल में अपना बिस्तर बुक कर रखा था किन्तु इस वक़्त हम्पी जाने के लिए कोई बस या साधन अभी यहाँ से उपलब्ध नहीं था। मैंने सीधे अपना रुख रेलवे स्टेशन की ओर किया और वहीँ रात बिताने के इरादे से मैं होसपेट रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला। 

होसपेट बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन एक या दो किमी के आसपास है, इसलिए मैं पैदल ही स्टेशन की ओर जा रहा था। रास्ते में एक अच्छा खाने का रेस्टोरेंट मुझे दिखाई दिया जहाँ तंदूरी रोटियां भी सिक रहीं थीं। आज काफी दिनों बाद मुझे उत्तर भारतीय भोजन की महक आई थी, मुझे भूख भी जोरों से लगी थी, इसलिए मैंने बिना देर किये दाल फ्राई और तंदूरी रोटी का आर्डर दिया। खाना महँगा जरूर था किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट था।

 खाना खाने के बाद मैं रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो चला। होसपेट में एक से एक होटल हैं परन्तु मेरे बजट के हिसाब से कोई नहीं था क्योंकि पिछले आठ दिवसीय कर्नाटक यात्रा में अब मेरा बजट भी समाप्त होने की कगार पर था और जो शेष था उससे मुझे अभी घर भी पहुंचना था इसलिए मैंने होसपेट में कोई कमरा लेना उचित नहीं समझा। 

Wednesday, April 21, 2021

KUKNOOR : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 17 

कुकनूर की एक शाम 

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दिन ढलने से पहले ही एक लोडिंग ऑटो, जिसमें पीछे बैठने के लिए लकड़ी के बड़े बड़े तख्ते लगे हुए थे, से मैं इत्तगि से कुकनूर के लिए रवाना हो गया। इत्तगि से कुकनूर की यह दूरी लगभग 10 किमी थी। मेरे कुकनूर पहुँचने तक अँधेरा हो चला था। कुकनूर से पहले, वाड़ी से कोप्पल आने वाली नई रेल लाइन का पुल भी पार किया जहाँ कुकनूर का रेलवे स्टेशन बनाने का काम जोरो पर चल रहा था। इसी पुल के समीप एक ऐतिहासिक मंदिर भी दिखलाई पड़ रहा था जो रात के अँधेरे में मुझे साफ़ नहीं दिखपाया परन्तु इसके बारे में जब बाद में पता किया तो जाना कि यह कालीनतेश्वर मंदिर था जिसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।  

Sunday, April 18, 2021

ITTAGI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 16 

इत्तगि का महादेवी मंदिर 

6 JAN 2021

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लकुण्डी के मंदिर देखने के बाद अपना बैग लेकर मैं बस स्टैंड पर पहुँच गया। अब मेरी अगली यात्रा इत्तगि गाँव की ओर होनी थी जहाँ ऐतिहासिक महादेवी का मंदिर मुझे देखना था, इसके लिए मैंने अपने नजदीक बैठी सवारी से  इत्तगि जाने वाली बस के बारे में पूछा, तो उसने कहा इत्तगि की बस आएगी। काफी देर तक इत्तगि जाने वाली कोई बस नहीं आई तो गुजरते वक़्त को देखकर मेरे मन में शंका उत्पन्न होने लगी और अब बार बार यही ख्याल आने लगा था कि क्या मैं आज इत्तगि पहुँच पाउँगा। मैं कर्नाटक यात्रा का जैसा कार्यक्रम बनाकर चला था क्या उसमें से इत्तगि की यात्रा पूर्ण हो पायेगी। मुझे इस बस स्टैंड पर कोई भी संतोष जनक जवाब नहीं मिल रहा था। 

LAKUNDI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 15 

लकुण्डी के ऐतिहासिक मंदिर 

6 JAN 2021

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आज 6 जनवरी है और मैं आज तीन ऐतिहासिक मंदिर घूम चुका हूँ जिनमें अन्निगेरी का अमृतेश्वर मंदिर, गदग का त्रिकुटेश्वर मंदिर और डम्बल का दौड़बासप्पा मंदिर शामिल हैं। अभी आधा दिन गुजर चुका है और मैं वापस डम्बल से गदग पहुँच चुका हूँ। अब मेरी अगली यात्रा लकुण्डी की होनी है जिसके लिए मैं गदग के बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार कर रहा हूँ। दोपहर होने को है और भूख भी लगी है इसलिए यहाँ मैंने पार्लेजी का बिस्कुट का पैकेट ले लिया है। कुछ ही समय में लकुण्डी जाने वाली बस आ गई और लकुण्डी की सवारियां बस में सवार होने लगीं। इन्हीं सवारियों के साथ मैं भी लकुण्डी जाने के लिए इस बस में सवार हो गया। 

Thursday, April 15, 2021

DAMBAL : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 14 

डम्बल का दौड़बासप्पा शिव मंदिर 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

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गदग से डम्बल जाने के लिए मैं बस में बैठ गया। गदग से 25 किमी दूर डम्बल गाँव है जो कि एक ऐतिहासिक गाँव है। यहाँ भगवान शिव का प्राचीन दौड़बासप्पा नामक मंदिर स्थित है। मुझे यही मंदिर देखना था और इसीलिए मैं कर्नाटक के सुदूर में स्थित इस गाँव में जा रहा था। यह बस भी डम्बल तक के लिए ही जा रही थी। इसमें टिकट का एक तरफ से किराया 39 रूपये है। डम्बल की और भी सवारियां गदग बस स्टैंड पर इस बस का इंतज़ार कर रही थीं। जब यह बस आई तो यह पूर्ण रूप से भर गई। मैं पीछे खिड़की वाली सीट पर कंडक्टर के नजदीक बैठ गया। 

Tuesday, April 13, 2021

GADAG CITY : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर,  भाग - 13 

गदग का त्रिकुटेश्वर शिव मंदिर 

TRIP DATE :- 06 JAN 2021

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सुबह 9 बजे तक मैं बल्लारी पैसेंजर से गदग स्टेशन पहुँच गया था। स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में नहाधोकर तैयार हो गया। आज मेरा कर्नाटक यात्रा का सातवाँ दिन था और अभी दो दिन मेरी इस यात्रा को पूर्ण होने में शेष थे इसलिए ये अगले दो दिन मुझे विजय नगर साम्राज्य मतलब हम्पी और किष्किंधा को देखने में गुजारने थे और आज के पूरे दिन की यात्रा मुझे कर्नाटक के छोटे छोटे गाँवों में स्थित मंदिरों की खोज करने में करनी थी। जिसमें से मैं अन्निगेरी की आज की यात्रा पूर्ण कर चुका था। 

अब मुझे घर की और माँ की याद आने लगी थी इसलिए मैंने अपने अगले दो दिन बाद के रिजर्वेशन को एक दिन बाद का करवा लिया था। अपने घर लौटने की टिकट मैंने गदग स्टेशन पर ही करवा ली। इस प्रकार हम्पी के लिए अब कल का ही दिन मेरे पास शेष बचा था और कल ही रात से मेरी कर्नाटक से वापसी की यात्रा शुरू हो जाएगी। 

Saturday, April 10, 2021

ANNIGERI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर, भाग - 12 

अन्निगेरी का अमृतेश्वर शिव मंदिर 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

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सल्तनतों से बाहर निकलकर अब मैं अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों की ओर रवाना हो चुका था जिन्हें खोजने और देखने की लालसा लिए ही मैं कर्नाटक की इस यात्रा पर आया था। बीजापुर की इस्लामिक छवि देखने के बाद अब मुझे उस महान साम्राज्य की तरफ बढ़ना था जिसे मिटाने के लिए इस्लाम की चार सल्तनतों को मिलकर एकजुट होना पड़ा था, तब जाकर कहीं वह विजय नगर जैसे अकेले महान हिन्दू साम्राज्य का मुकाबला कर सके थे। परन्तु विजय नगर पहुँचने से पूर्व मुझे कुछ मुख्य ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर भी देखने थे जिनमें सर्वप्रथम मैंने धारवाड़ जिले में अन्निगेरी के अमृतेश्वर शिव मंदिर को चुना। 

मेरी ट्रेन सुबह चार बजे ही गदग स्टेशन पहुँच चुकी थी। इस ट्रेन के सामान्य श्रेणी के सभी कोच लगभग खाली से ही पड़े थे। यह ट्रेन गदग से अब अपने आखिरी गंतव्य हुबली की तरफ जाने को तैयार थी। गदग से हुबली की तरफ जाने पर अगला स्टेशन अन्निगेरी ही था, जहाँ के लिए मेरा रिजर्वेशन इस ट्रेन में था। जनवरी के माह की इस खुशनुमा सुबह में, मैं इस ट्रेन के जरिये गदग को पीछे छोड़ चुका था और जल्द ही अन्निगेरी के छोटे से स्टेशन पर उतर गया। 

Monday, April 5, 2021

VIJYAPUR : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर  भाग - 11 

आदिलशाही राज्य बीजापुर 

TRIP DATE :- 05 JAN 2021

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     दक्षिण भारत में मुहम्मद बिन तुगलक के लौट जाने के बाद बहमनी सल्तनत की शुरुआत हुई थी, यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सल्तनत थी किन्तु सल्तनत चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, उसके शासक कितने भी शक्तिशाली क्यों ना हो, हमेशा स्थिर नहीं रहती। एक ना एक दिन उसे इतिहास के पन्नों में समाना ही होता है और ऐसा ही बहमनी सल्तनत के साथ हुआ। बहमनी सल्तनत का, महमूद गँवा की मृत्यु के बाद से ही पतन होना प्रारम्भ हो गया था और जब इस सल्तनत को कोई योग्य सुल्तान नहीं मिला तो यह पांच अलग अलग प्रांतों में विभाजित हो गई। इनमें से ही एक बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत थी जिसके दमन का प्रमुख कारण मराठा और मुग़ल थे। 

Saturday, March 27, 2021

GULBARGA CITY : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 10 

गुलबर्गा अब कलबुर्गी शहर 


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मालखेड किला घूमने के बाद मैंने मालखेड़ बस स्टैंड से मैंने कलबुर्गी शहर जाने के लिए कर्नाटक की रोडवेज बस पकड़ी। कलबुर्गी यहाँ से 40 किमी दूर था। कलबुर्गी का पुराना नाम गुलबर्गा है जो कि एक सल्तनतकालीन शहर है। बस, शहर के बाईपास रोड से होती हुई कलबुर्गी के बस स्टैंड पहुंची। दोपहर हो चुकी थी और आज मैं नहाया भी नहीं था इसलिए मैंने यहाँ से रेलवे स्टेशन के लिए एक ऑटो किया और कलबुर्गी रेलवे स्टेशन पहुंचा। कोरोना प्रभाव की वजह से रेलवे स्टेशन पर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश प्रतिबंधित था। 

मैंने स्टेशन पर प्रवेश करने की कोशिस की तो मुझे वहां बैठे आरपीएफ के जवान ने मुझे रोका। मैंने उसे बताया कि मेरी शाम को लौटने की ट्रेन है तब तक के लिए मैं अपना बैग क्लॉक रूम में जमा कराना चाहता हूँ। यह सुनकर उसने मुझे क्लॉक रूम का रास्ता बता दिया और मैं स्टेशन पर प्रवेश कर गया। 

Monday, March 22, 2021

MALKHED FORT : KARNAKATA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 9 

राष्ट्रकूटों की राजधानी - मालखेड़ 

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चालुक्यों की बादामी देखने बाद अब मैं राष्ट्रकूटों की राजधानी मालखेड़ पहुंचा। मालखेड़, राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में मालखेड़ कर्नाटक के गुलबर्गा शहर से 40 किमी दूर कागिना नदी के किनारे स्थित है जहाँ उनके किले के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। इन्हीं खंडहरों को देखने के लिए मैं बादामी से रात को ट्रेन में बैठा और अगली सुबह चित्तापुर नामक रेलवे स्टेशन उतरा। हालांकि इससे अगला स्टेशन मालखेड़ रोड ही था, किन्तु इस ट्रेन का यहाँ स्टॉप ना होने के कारण मुझे चित्तापुर ही उतरना पड़ा। 

... 

मैं सुबह आठ बजे के लगभग चित्तापुर पहुँच गया था। सुबह सुबह मेरे चोट वाले पैर में बहुत दर्द हुआ और मैं  थोड़ी देर स्टेशन के बाहर एक चाय वाले की दुकान पर बैठा रहा। मुझे यहाँ से बस द्वारा मालखेड पहुंचना था इसलिए मैंने दुकानदार से बस स्टैंड का पता पूछा जो लगभग 1 किमी दूर था। आज पैर में बहुत तेज दर्द था जिससे मुझे चलने में काफी दिक्कत भी हो रही थी। एक बाइक वाले भाई ने अपनी बाइक से मुझे बस स्टैंड छोड़ दिया। यह बस स्टैंड काफी साफ़ सुथरा था, दो चार बसें यहाँ खड़ी भी हुईं थी परन्तु मालखेड जाने वाली बस थोड़ी देर बाद आई और मैं मालखेड के लिए रवाना हो गया। 

Sunday, March 21, 2021

BADAMI : KARANATAKA 2021

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                                                कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 8                                                  

चालुक्यों की वातापि - हमारी बादामी 


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TRIP DATE - 3 JAN 2021 

समस्त भारतवर्ष पर राज करने वाले गुप्त सम्राटों का युग जब समाप्ति की ओर था और देश पर बाहरी शक्तियाँ अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगी हुईं थी उस समय उत्तर भारत में पुष्यमित्र वंश की स्थापना हुई और भारत वर्ष में गुप्तशासकों के बाद हर्षवर्धन नामक एक योग्य और कुशल शासक उभर कर सामने आया जिसने अपनी बिना इच्छा के राजसिंहासन ग्रहण किया था क्योंकि उसके हाथों की लकीरों में एक महान सम्राट के संकेत जो छिपे थे। उसके सामने परिस्थितियाँ ऐसी उत्पन्न हुईं कि ना चाहते हुए भी वह भारत का सम्राट बना और देश को बाहरी शक्तियों के प्रभाव से रोका। 

… 

वहीं दक्षिण भारत में गुप्त सम्राटों द्वारा स्थापित अखंड भारत अब अलग अलग प्रांतों में विभाजित हो गया और यहाँ के शासक एक दूसरे से निरंतर युद्धों में लगे रहते थे। गुप्त काल के दौरान दक्षिण में वाकाटक शासकों का राज्य स्थापित था जिसके पतन के पश्चात दक्षिण में अनेक राजवंशों ने जन्म लिया। इन्हीं में से एक राजवंश था पश्चिमी चालुक्यों का, जिन्होंने एहोल को अपनी राजधानी बनाया और अपना शासन प्रारम्भ किया किन्तु कुछ समय बाद जब उनका साम्राज्य विस्तृत होने लगा तो उन्होंने अपनी नई राजधानी वातापी को चुना। उनकी यह प्राचीन वातापि ही आज आधुनिक बादामी है। 

… 

जैसा कि पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं बेंगलुरु से शाम को गोलगुम्बज स्पेशल से सुबह छः बजे ही बादामी पहुँच गया था। रेलवे स्टेशन पर सुबह नहा धोकर तैयार हो गया। मुझे यहाँ बादामी के रहने वाले मित्र नागराज मिलने आये और मैं उनके साथ बादामी के बस स्टैंड पहुँचा। उन्होंने मुझे यहाँ से एहोल की बस में बैठा दिया। दोपहर तक मैं एहोल और पत्तदकल घूमकर वापस बादामी आया। 

एहोल और पत्तदकल के मंदिर समूह देखने के बाद उतरती दोपहर तक मैं बादामी पहुँच गया। बादामी पहुंचकर मैंने नागराज को कॉल किया तो उन्होंने बताया कि वह किसी आवश्यक कार्य से अभी बादामी से बाहर हैं। उन्होंने मुझे बादामी घुमाने के लिए किसी दोस्त को भेजने के लिए कहा जिसके लिए मैंने उनसे मना कर दिया। अब दोपहर हो चुकी थी, मैं थोड़ा थक भी गया था और मुझे भूख भी लग रही थी। मैंने पैदल पैदल ही बादामी के बाजार को घूमना शुरू कर दिया किन्तु मुझे कोई शुद्ध शाकाहारी भोजनालय हिंदी या अंग्रेजी में लिखा कहीं नहीं दिखा। एक दो जगह मुझे कुछ रेस्टोरेंट से नजर आये भी जिनके बाहर लगे बोर्डों पर बढ़िया खाने की थाली छपी हुई थी, परन्तु लिखा कन्नड़ भाषा में था जो मेरी समझ से परे थी। कुछ देर बाद अंग्रेजी भाषा के जरिये मुझे एक शाकाहारी भोजनालय मिला गया।

… 

यहाँ आलू और गेँहू के आटे की रोटी का मिलना अत्यंत ही दुर्लभ है या मानिये कि ना के बराबर है। मैं इस शाकाहारी भोजनालय पर गया तो यहाँ भी वही चावल, इडली, डोसा और साँभर। अब पेट भरने के लिए कुछ तो खाना ही था इसलिए अपने पसंदीदा चावल ही लिए और दाल के साथ नहीं, बल्कि साम्भर के साथ। क्योंकि कि यह दक्षिण है यहाँ साम्भर को उतनी ही इज़्ज़त प्राप्त है जितनी उत्तर भारत में दालों को है। साम्भर और चावल खाकर कुछ देर के लिए पेट तो भर गया मगर जो पर्याप्त भूख मुझे लगी थी वह पूरी ना हो सकी क्योंकि पिछले तीन चार दिन से मैं ऐसा ही कुछ खाता आ रहा था। खाना खाकर मैं बादामी की गुफाओं की तरफ बढ़ चला जिनका निर्माण चालुक्य राजाओं ने करवाया था। 


 

 स्टेशन के बाहर चाय की दुकान 

मेरे बादामी के मित्र नागराजा 

स्टेशन से बादामी शहर की ओर 

बादामी बस स्टैंड 


 

Thursday, March 18, 2021

PATTADAKAL : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 7 

विश्व विरासत स्थल - पट्टादाकल मंदिर समूह 


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मालप्रभा नदी के किनारे स्थित पत्तदकल विश्वदाय स्मारक स्थल की सूची में दर्ज है। यहाँ पश्चिमी चालुक्य सम्राटों द्वारा अनेक मंदिर स्थापित हैं। पत्तदकल, बादामी और एहोल के मध्य में स्थित है। प्राचीनकाल में इस स्थान का नाम किषुवोडल मिलता है। एहोल के बाद जब चालुक्यों का राजनीतिक उत्कर्ष हुआ तो उन्होंने अपनी राजधानी एहोल से हटाकर वातापि में स्थापित की जो आज की बादामी कहलाती है। राजधानी का यह परिवर्तन पुलकेशिन प्रथम के समय में हुआ और उसने बादामी में ही किले का निर्माण कराया। चालुक्यों के अंतिम वर्षों में राजधानी पत्तदकल में स्थानांतरित हो गई। पत्तदकल के बारे में कहा जाता है कि चालुक्यों सम्राटों का राज्याभिषेक पत्तदकल में ही पूर्ण होता था। 

Saturday, March 13, 2021

AIHOLE : KARNATAKA 2021

 

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 6 

ऐहोल के मंदिर 


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अब वक़्त आ चुका था अपनी उस मंजिल पर पहुँचने का, जिसे देखने की धारणा अपने दिल में लिए मैं अपने घर से इतनी दूर कर्नाटक आया था और वह मंजिल थी बादामी जो प्राचीन काल की वातापि है और मेरी इस यात्रा का केंद्र बिंदु भी। बादामी, प्राचीन काल में वातापि के चालुक्यों की राजधानी थी जिन्होंने यहाँ अजंता और एलोरा की तरह ही पहाड़ों को काटकर उनमें गुफाओं का निर्माण कराया और इन्हीं गुफाओं के ऊपर अपने किले का निर्माण कराया। बादामी से पूर्व चालुक्यों ने बादामी से कुछ मील दूर ऐहोल नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया था और वहां अनेकों मंदिर और देवालयों का निर्माण कराया था। वर्तमान में ऐहोल कर्नाटक का एक छोटा सा गाँव है मगर इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए पर्यटकों का यहाँ आना जाना लगा रहता है। 

... 

मैं सुबह 6 बजे ही बादामी पहुँच गया था और स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में नहाधोकर तैयार हो गया। चूँकि कोरोना की वजह से रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में ठहरने की सुविधा उपलब्ध नहीं है किन्तु स्टेशन मास्टर साब ने मुझे उत्तर भारतीय होने से और कर्नाटक की यात्रा पर होने से अतिथि देवो भवः का अर्थ सार्थक किया और वेटिंग रूम की चाबी मुझे दे दी। अपने गीले वस्त्रों को मैंने यहीं वेटिंग रूम में सुखा दिया था क्योंकि आज रात को ही मुझे अपनी अगली मंजिल पर भी निकलना था। इसप्रकार स्टेशन का वेटिंग रूम, मेरे लिए एक होटल के कमरे के समान ही बन गया। स्टेशन के बाहर बनी दुकान पर चाय नाश्ता करने के बाद मैंने अपने बैग को भी यहीं रख दिया और कैमरा लेकर बाहर आ गया। यह दुकान प्राचीन काल की काठ से बनी दुकान थी। 

... 

Wednesday, March 3, 2021

BENGALURU : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 5,                                                        यात्रा दिनांक -  02 JAN 2021 

बेंगलूर शहर में इतिहास की खोज 



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पूरा दिन बीदर शहर साइकिल चलाकर घूमने के बाद जब शाम को मैं बीदर स्टेशन पहुंचा, तो बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर तैयार खड़ी थी। हालाँकि मेरी यात्रा का उद्देश्य केवल उत्तर कर्नाटक की यात्रा का था किन्तु रात व्यतीत करने के लिए कोई स्थान तो चाहिए इसलिए मैंने होटल के स्थान पर ट्रेन को पसंद किया जिसमें मैं रात को आराम से सो भी जाऊँगा और सुबह बेंगलुरु भी पहुँच जाऊँगा। सही समय के साथ ट्रेन बीदर से रवाना हो चली, और मैंने ऊपर वाली सीट पर अपना बिस्तर लगाया और सो गया।  सुबह जब मेरी आँख खुली तो ट्रेन बेंगलोर पहुँच चुकी थी। ट्रेन में से बेंगलोर शहर की ऊँची ऊँची इमारतें और बड़ी बड़ी सड़कें दिखाई दे रही थीं। कर्नाटक के एक छोटे से शहर से मैं अब कर्नाटक की राजधानी बेंगलोर पहुँच चुका था। 

बीदर से आने वाली यह ट्रेन बेंगलोर के यशवंतपुर स्टेशन पहुंची। बहुत नाम सुना था मैंने इस स्टेशन का, आज देख भी लिया। बहुत ही साफ़ सुथरा और बड़ा स्टेशन है। यहीं बने एक जन सुविधा केंद्र में नहा धोकर मैं तैयार हो गया और स्टेशन के बाहर निकला। बेंगलोर का मौसम मुझे बीदर की अपेक्षा बहुत अलग मिला। ना ज्यादा यहाँ सर्दी थी और ना ही गर्मी। आसमान में बादल से हो रहे थे इसलिए सूर्य भी दिखाई नहीं दे रहा था। स्टेशन के ठीक सामने बेंगलोर मेट्रो का यशवंतपुर नाम से स्टेशन है। बेंगलोर की मेट्रो नम्मा मेट्रो के नाम से प्रसिद्ध है। कन्नड़ भाषा में नम्मा का मतलबा हमारी या हमारा होता है इसलिए बेंगलोर वासियों के लिए यह उनकी मेट्रो है। मैंने मेट्रो का कार्ड लिया और प्लेटफार्म पर पहुंचा। 

Monday, February 22, 2021

BIDAR : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 4, 

01 JAN 2021

     बीदर - क्राउन ऑफ़ कर्नाटक 


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बीदर का सल्तनतकालीन इतिहास 

   दिल्ली सल्तनतकाल के दौरान तुगलक वंश के संस्थापक ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र जूना खां, मुहम्मद बिन तुगलकशाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। अपने शासनकाल के दौरान उसने साम्राज्यवादी नीति को अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। दिल्ली सल्तनत की सीमायें भारत के उत्तर और पश्चिम में अब कांधार और करजाल, पूर्व में बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों को छूने लगीं थीं। मुहम्मद बिन तुगलक निसंदेह एक दूर की सोच रखने वाला सुल्तान था, उसने अपने साम्राज्य का काफी हद तक विस्तार किया किन्तु उसने अपने शासनकाल के दौरान जो योजनाएँ लागू कीं, वह विफल रहीं। इन्हीं में से एक योजना थी राजधानी परिवर्तन की। उसने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरि स्थानांतरित की जो पूर्ण रूप से असफल रही और इस योजना के विफल हो जाने के बाद उसका राज्य छिन्न भिन्न हो गया। 

   हालांकि उसने देवगिरि को राजधानी के तौर पर इसलिए चुना ताकि देवगिरि से साम्राज्य की चारों दिशाओं में नियंत्रण स्थापित किया जा सके। उसका मुख्य उद्देश्य उत्तर भारत के साथ साथ दक्षिण भारत पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित रखना था किन्तु दिल्ली की जनता, देवगिरि जैसे सुदूर प्रदेश में नहीं ढल सकी और मजबूरन सुल्तान को फिर से राजधानी दिल्ली स्थानांतरित करनी पड़ी। देवगिरि से दिल्ली राजधानी परिवर्तन होने के बाद दक्षिण भारत के सामंतों ने विद्रोह कर दिया और स्वयं को तुगलक वंश का उत्तराधिकारी मानकर अपने नवीन वंशों की स्थापना की और स्वयं को सम्राट या सुल्तान घोषित किया। इन्हीं में से एक सामंत था हसन, जिसने दक्षिण भारत में बहमनी वंश की नींव रखी और देवगिरि के सिंहासन पर आसीन हुआ। 

   देवगिरि पर कुछ समय शासन करने के बाद उसने अपनी नई राजधानी गुलबर्गा को बनाया। 1422 ई. में अहमदशाह ने बहमनी सल्तनत की राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर में स्थानांतरित की और बीदर से ही राज्य का सञ्चालन आरम्भ किया। 1526 ई. में एक अमीर अलीबरीद ने आखिरी अयोग्य बहमनी सुल्तान को अपदस्थ कर स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और बीदर में फिर एक नए वंश बरीदशाही की स्थापना कर सुल्तान बन गया। बरीदशाही वंश के बाद बीदर पर मराठाओं का साम्राज्य स्थापित हो गया और बाद में चलकर यहाँ ब्रिटिश हुकूमत का राज रहा। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में लोकतंत्र स्थापित हुआ और बीदर की रियासत अब भारत का अभिन्न हिस्सा बन गई। बीदर महाराष्ट्र और तेलंगाना राज्यों का सीमावर्ती शहर है और कर्णाटक के सबसे शीर्ष पर स्थित होने के कारण यह कर्नाटक का मुकुट या ताज भी कहलाता है।  

Saturday, February 13, 2021

CHARMINAR : TELANGANA 2020

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग-3, 31 DEC 2020

नववर्ष पर हैदराबाद की एक शाम 


यात्रा दिनाँक  - 31 DEC 2020 

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अपने सही समय पर तेलांगना स्पेशल ने मुझे हैदराबाद पहुँचा दिया और स्टेशन बाहर निकलकर सबसे पहले मैंने उस वेटिंग रूम को देखा जहाँ पिछली बार मैं और माँ पूरी रात यहाँ रुके थे और सुबह होने पर तेलांगना एक्सप्रेस से ही अपने मथुरा को रवाना हुए थे। शाम हो चुकी थी और हैदराबाद का स्टेशन इस शाम के अँधेरे में अलग अलग रोशनी के रंगों से जगमगा रहा था। स्टेशन के ऐसे दृश्य को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने स्टेशन के बाहर ड्यूटी कर रहे एक हैदराबाद पुलिस के सिपाही से अपना फोटो लेने के लिए कहा, उसने बिना हिचक मेरे दो तीन फोटो दिए, जब उसे लगा कि फोटो में अँधेरा ज्यादा आ रहा है, तो उसने मुझे थोड़ा हटकर खड़े होने को कहा और फिर से फोटो खींच दिया, वो बात अलग है कि वो फोटो खींचते समय बीच बीच में अपने सीनियर की ओर भी देख रहा था जो हमसे थोड़ी दूर अलग कुर्सी पर बैठा था और अपने काम में मशगूल था। 

फोटो खिंचवाकर मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो पहलीबार हैदराबाद की मेट्रो और स्टेशन पर नजर पहुँची। पिछली बार जब मैं और माँ यहाँ आये थे तब इसके निर्माण का कार्य चल रहा था। मुझे चारमीनार जाना था इसलिए मैंने मेट्रो की बजाय सिटी बस से जाना उचित समझा और रोड क्रॉस करके दूसरी साइड पहुँचा, यहाँ जितनी भी बसें आ रही थी सभी पर उसके स्थान  नाम तेलगु भाषा में लिखा था जो मेरी समझ से बहुत दूर थी इसलिए यहाँ बस का इंतज़ार कर रहे एक यात्री से मैंने चारमीनार जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उसने बताया कि चारमीनार के लिए 9c नंबर की बस जाती है। करीब आधा घंटे इंतज़ार करने के बाद 9c नंबर की बस आई और मैं चारमीनार के लिए रवाना हो गया। बस में से हैदराबाद शहर की इस शाम का नजारा देखने लायक था, यहाँ की सड़कें और बाज़ार सचमुच एहसास कराते हैं कि हम देश के एक बड़े शहर में हैं। 

Tuesday, February 9, 2021

TELANGANA SPECIAL : MTJ TO HYD

 UPADHYAY TRIPS PRESENT

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग-2

मथुरा से हैदराबाद - तेलांगना स्पेशल से एक यात्रा 



यात्रा दिनाँक  - 30 DEC 2020 से 31 DEC 2020 

यात्रा की शुरुआत के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

   अभी हाल ही में रेलवे ने तेलांगना एक्सप्रेस का स्पेशल ट्रेन के रूप में संचालन किया है, जिसके कोचों को भी रेलवे ने नया रूप दिया है। इन सबके अलावा इस ट्रेन का समय भी रेलवे ने बदल दिया है जिसकारण मैंने जब से इस ट्रेन में अपना आरक्षण करवाया तब से प्रतिदिन रेलवे की तरफ से मुझे बदले हुए समय को लेकर एक एलर्ट सन्देश प्राप्त होता रहता था और यह तब तक आता रहा जब तक मेरी यात्रा का दिन नहीं आ गया।

   तेलांगना एक्सप्रेस नई दिल्ली से हैदराबाद के बीच चलती है और यह एक सुपरफ़ास्ट ट्रेन है जो अपना सफर 25 घंटे में पूरा कर लेती है। इस ट्रेन का नाम पहले आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस था जिसे जन भाषा में  ए.पी. एक्सप्रेस ज्यादा कहा जाता था। आंध्रप्रदेश के विभाजन के बाद जब 2014 में तेलांगना नामक नया राज्य बना तो इस ट्रेन का नाम बदलकर तेलांगना एक्सप्रेस कर दिया गया। 

   तेलांगना एक्सप्रेस का समय अब मथुरा जंक्शन पर शाम को साढ़े पाँच बजे का हो गया है, मैं ऑफिस से 3 बजे ही छुट्टी लेकर घर आ गया और अपनी यात्रा की समुचित तैयारी को एक बार फिर से भली भाँति जाँचा। कल्पना ने मेरी यात्रा के लिए गर्मागर्म पूड़ियाँ और आलू की सूखी सब्जी बनाकर यात्रा भोजन का प्रबंध कर दिया। माँ ने मुझे एकबार फिर से अपने बैग को भली भाँति देखने की सलाह दी कि कहीं मैं कुछ भूल तो नहीं रहा हूँ। 

Monday, February 8, 2021

KARNATAKA TRIP 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

उत्तरी कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा 

1 जनवरी 2021 से 7 जनवरी 2021 


कर्नाटक का यात्रा प्लान 

कोरोनाकाल के बाद जब यह साल 2020 अपने अंतिम कगार पर थी तब मैंने उत्तर भारत में बढ़ती हुई सर्दी को देखते हुए, दक्षिण भारत की यात्रा के बारे में सोचा। दक्षिण भारत के तमिलनाडू और आंध्रप्रदेश की यात्रा करने के बाद अब मेरा मन दक्षिण भारत के सुन्दर राज्य कर्नाटक की और अग्रसर हुआ। भारतीय इतिहास के हिसाब से कर्नाटक की धरती बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

यहाँ की धरती पर अनेक राजवंश हुए जिन्होंने अपने अपने धर्मों के अनुसार यहाँ अनेकों मंदिरों, मठों, गुफाओं और चैत्य विहारों का निर्माण करवाया। इसके अलावा कर्नाटक की धरती पर पुलकेशिन और कृष्णदेव राय जैसे हिन्दू सम्राटों ने हिन्दू धर्म की उन्नति का प्रचार किया। टीपू सुल्तान जैसे वीर योद्धाओं ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से बचाने के लिए वीरगति प्राप्त की। 

 इन सबके अलावा पौराणिक दृष्टि से भी कर्नाटक की भूमि पवित्र है जहाँ भगवान श्रीराम के चरण पड़े और उनकी हनुमान जी से प्रथम भेंट भी यहीं हुई। किंष्किन्धा नगरी, ऋषिमूक पर्वत, पम्पा सरोवर, मातंग ऋषि का आश्रम आदि स्थान कर्नाटक की भूमि पर ही स्थित हैं। इसलिए कर्नाटक पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य है। 

चूँकि मेरी कर्नाटक की यह यात्रा ऐतिहासिक स्थलों और यहाँ के प्रमुख राजवंशों की राजधानियों के भ्रमण पर आधारित थी, इसलिए मैंने अपनी यात्रा का कार्यक्रम अपने हिसाब से तैयार किया और अनेकों मित्रों को अपने साथ इस यात्रा पर चलने को आमंत्रित किया, परन्तु यात्रा बहुत दूर और कई दिनों की होने के कारण किसी मित्र ने इस यात्रा पर चलने के लिए सहमति नहीं जताई, इसलिए मुझे यह यात्रा अकेले ही पूरी करनी पड़ी और यकीन मानिये मैंने अकेले होने के बाबजूद भी इस यात्रा को बहुत ही शानदार तरीके से पूर्ण किया और अपने जीवन की यादगार यात्रा बनाया। 

Saturday, February 6, 2021

Trip With Jain sab

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से हाथरस बाइक यात्रा 

रसखान जी की समाधी पर 

NOV 2020,

सहयात्री - रूपक जैन साब 

     आज नवम्बर के महीने की आखिरी तारीख थी मतलब 30 नवम्बर और कल के बाद इस साल का आखिरी माह और शेष रह जायेगा। आज की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी आज मेरे भोपाल वाले मित्र रूपक जैन अपनी आगरा की चम्बल सफारी की यात्रा पूरी कर मथुरा लौट रहे थे। एक लम्बे समय के बाद आज हमारी मुलाकात होनी थी बस सुबह से यही सोचकर कि जैन साब के साथ मुझे कहाँ कहाँ जाना है, अपने सारे काम समाप्त किये। ऑफिस से भी मैंने आज की छुट्टी ले ली थी क्योंकि आज का सारा दिन मुझे जैन साब के साथ घूमने में जो गुजारना था। आज हम कहाँ जाने वाले थे इसका कोई निश्चित नहीं था हालाँकि जैन साब ने मुझसे फोन पर हाथरस घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, मगर हाथरस में ऐसा क्या था जिसे देखने हम वहाँ जाएंगे। 

     अभी रूपक जैन जी आगरा में हैं कुमार के पास और उसके साथ वह मेहताब बाग़ देखने गए हैं जो ताजमहल के विपरीत दिशा में है। नदी के उसपार से ताजमहल को देखने के लिए अनेकों लोग मेहताब बाग़ जाते हैं, अनेकों फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रहती है। मैंने भी जैन साब को मथुरा में दिखाने के लिए गोकुल को चिन्हित किया जो ब्रज में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। गोकुल जाने के इरादे को दिल में लेकर मैं मथुरा के टाउनशिप चौराहे पर पहुँचा और अपने एक मित्र की दुकान पर बैठकर मैं जैन साब का आने का इंतज़ार करने लगा। जैनसाब अभी आगरा से चले नहीं थे, कुमार अपनी स्कूटी पर उन्हें ISBT तक लेकर आया और बस में बैठाकर उसने मुझे फोन कर दिया। इसके बाद मैंने अपनी लोकेशन जैन साब को भेज दी और उन्होंने अपनी लोकेशन मुझे भेज दी। इसप्रकार अब मुझे अपने मोबाइल में ही पता चल रहा था कि वह कहाँ तक पहुँच चुके हैं। 

Tuesday, January 26, 2021

RANEH WATER FALL

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 खजुराहो के आसपास के दर्शनीय स्थल 



विश्व धरोहर के रूप खजुराहो पूर्ण रूप से पर्यटन स्थल तो है ही, इसके आसपास के दर्शनीय स्थल भी पर्यटकों को खजुराहो में रुकने के लिए बाध्य करने में कम नहीं हैं। खजुराहो के निकट अनेकों ऐसे स्थल हैं जो यहाँ आने वाले सैलानियों को हर तरह के रोमांच से अवगत कराते हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है -

  • रानेह जल प्रपात 
  • केन घड़ियाल अभ्यारण्य 
  • पांडव जलप्रपात 
  • पन्ना टाइगर रिज़र्व 
  • कूटनी बाँध 
  • छतरपुर के राजमहल 
  • मस्तानी का महल 

खजुराहो के पूर्वी समूह के मंदिर देखने के बाद मैं और कुमार खजुराहो से लगभग 20 किमी दूर, रानेह जलप्रपात को देखने के लिए निकल पड़े। मुख्य रास्ते को छोड़कर आज हम इस किराये की प्लेज़र को लेकर बुंदेलखंड के दूरगामी ग्रामों में से होकर गुजर रहे थे। रास्ते के मनोहारी दृश्यों को देखने में एक अलग ही आनंद आ रहा था। कुछ समय बाद जब गाँव का संकीर्ण रास्ता समाप्त हो गया और रास्ते की जगह खेतों की ओर जाने वाली छोटी छोटी पगडंडियों ने ले ली तो कुमार के मन में शंका उत्पन्न होने लगी। उसने मुझसे कहा कि हम रास्ता भटक चुके हैं और मुझे नहीं लगता कि आगे कोई रास्ता रानेह जलप्रपात की ओर जायेगा, परन्तु मुझे अपने गूगल मैप पर पूरा भरोसा था जो अब भी हमें आगे बढ़ने का इशारा देते हुए रास्ता दिखाता चल रहा था। 

काफी देर बाद जब हम एक गाँव को पार करके पगडंडियों को भी खो बैठे तो अब मेरे मन में भी शंका उत्पन्न होने लगी क्योंकि रास्ता और पगडंडियां लगभग समाप्त चुकी थीं और अब हमारी गाडी खेतों में होकर गुजर रही थी जो कि कई बार चलते चलते स्लिप होकर गिर भी जाती थी। रास्ता तो अब कहीं हमें दिखाई नहीं दे रहा था, रास्ता पूछने के लिए दूर दूर तक कोई मानव भी हमें दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु गूगल अब भी हमें रास्ता दिखाते हुए आगे बढ़ने पर विवश करने पर लगा हुआ था और गूगल की बात मानने के सिवा हमारे पास कोई रास्ता भी नहीं था। हम आगे बढ़ते रहे और आखिरकार हम खेतों में से होकर मुख्य रास्ते तक पहुँच ही गए। 

Saturday, January 23, 2021

KHAJURAHO

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खजुराहो के पर्यटन स्थल  - अनमोल भारतीय विरासत 



कोरोनाकाल और घुमक्कड़ी 

    इस वर्ष जब पूरे देश में लॉक डाउन लगा, तो इतिहास में पहली बार भारतीय रेलों के पहिये थम गए। सभी शहर और गाँव, बाजार एवं यातायात तक बंद हो चुका था। लोग कोरोना जैसे वायरस से बचने के लिए अपने ही घरों में कैद हो चुके थे। देश की आर्थिक व्यवस्था पूर्ण रूप से डूबने लगी थी। परन्तु इस सबका पर्यावरण पर बेहद गहरा प्रभाव पड़ा था, नदियों का जल एक दम स्वच्छ होने लगा था। अब शुद्ध वायु का प्रभाव साफ़ दिखलाई पड़ता था। इस बीच हम जैसे घुमक्कड़ लोगों की यात्रायें भी स्थगित हो गईं क्योंकि घर से बाहर निकलना, सरकार के आदेशों का उल्लंघन करना था।  

   सभी यातायात के साधन बंद थे, तीर्थ स्थान अनिश्चितकालीन बंद कर दिए गए थे। सभी ऐतिहासिक स्मारक भी पूर्ण रूप से बंद हो चुके थे और इसके अलावा गैर राज्य में जाना तो दूर अपने नजदीकी शहर में भी जाने पर सख्त प्रतिबन्ध था। इसलिए 24 मार्च 2020 से जून 2020 तक हम सभी अपने अपने घरों में बंद रहे। जून के बाद से सरकार ने देश में अनलॉक जारी कर दिया और भारत की अर्थव्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी। यह हमारे समय का कोरोना काल था जो काफी तबाही मचाकर भी अभी तक शांत नहीं हुआ है।   

रेल संचालन और यात्रा प्लान 

    अभी हाल ही में भारतीय रेलों का पुनः संचालन धीरे धीरे शुरू होने लगा था, दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लिए ट्रेनें स्पेशल नंबर के साथ शुरू हो चुकी थीं। इस बार रेल के सामान्य श्रेणी के कोच में भी आरक्षण की सुविधा उपलब्ध थी और ग़ैर आरक्षित टिकट अभी भी प्रतिबंधित थी। रेलवे ने कुरुक्षेत्र से मथुरा आने वाली ट्रेन को खजुराहो तक बढ़ा दिया था जो कि मध्य प्रदेश का एक मुख्य ऐतिहासिक स्थल है और यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में दर्ज है। 

    मैं पहले भी कई बार यहाँ जाने के रिजर्वेशन करवा चुका था किन्तु कभी जाने का मौका नहीं मिला पाया। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जो सरकारी अवकाश रहता है उसी अवकाश को मैंने खजुराहो जाने के लिए चुना और अपने दोस्त कुमार भाटिया जो कि आगरा में ही रेलवे में जॉब करता है, अपने साथ जाने को सहयात्री के रूप में चुना। रेलवे से मिलने वाली सुविधा के अंतर्गत उसने अपना और मेरा रिजर्वेशन दोनों तरफ से इसी ट्रेन में करवा लिया और यात्रा की तारीख आने पर हम खजुराहो की तरफ रवाना हो चले। 


Sunday, May 24, 2020

CHANDERI PART - 3

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

चंदेरी - एक ऐतिहासिक शहर,  भाग - 3



यात्रा को शुरू से ज़ारी करने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।

    अब हम चंदेरी शहर से बाहर आ चुके थे। चंदेरी से कटी घाटी जाने वाले मार्ग पर एक बार फिर हम एक जैन मंदिर पहुंचे। यह जैन अतिशय क्षेत्र श्री खंदारगिरी कहलाता है जो पहाड़ की तलहटी में बसा, हरे भरे पेड़ पौधों के साथ एक शांत एवं स्वच्छ वातावरण से परिपूर्ण स्थान है। यहाँ जैन धर्म के चौबीसबें और आखिरी प्रवर्तक भगवान महावीर स्वामी का दिव्य मंदिर है और साथ ही पहाड़ की तलहटी में ही चट्टान काटकर उकेरी गई उनकी बहुत बड़ी मूर्ति दर्शनीय है। इसके अलावा यहाँ पहाड़ की तलहटी में और भी ऐसे अन्य मंदिर स्थापित हैं। जैन धर्म का एक स्तम्भ भी यहाँ स्थित है जिसपर महावीर स्वामी से जुडी उनकी जीवन चक्र की घटनाएं चित्रों के माध्यम से उल्लेखित हैं।

Saturday, April 25, 2020

CHANDERI PART 2


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 2




पिछले भाग से जारी। ......

    उसकी नजर पहाड़ चढ़ती एक चींटी पर पड़ी जो बार बार चढ़ने का प्रयास करती और असफल होकर गिर पड़ती, चींटी ने यह प्रयास तब तक किया जब तक वह पहाड़ पर नहीं चढ़ गई। छोटी सी चींटी की इस कार्यविधि और उसके आत्मविश्वास को देखकर बाबर के मन में आई निराशा दूर हो गई और उसे चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग भी सूझ गया। उसने एक ही रात में अपने मार्ग में बाधा बनी पहाड़ी को काट कर रास्ता बनाने का आदेश अपनी सेना को दिया और उसकी सेना ने एक ही रात में पहाड़ी को काटकर चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग बना लिया।

   अगली सुबह बाबर ने अपनी सेना सहित चंदेरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। मेदिनीराय के नेतृत्व में राजपूतों ने अपार वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु वे परास्त हुए, चंदेरी के मुख्य दरवाजे पर भयंकर मारकाट हुई, असंख्य निर्दोषों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया जिसके बाद इस दरवाजे जो खुनी दरवाजा कहा जाने लगा।

Thursday, April 23, 2020

CHANDERI PART - 1


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 1




   मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नजदीक स्थित चंदेरी एक पौराणिक और ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है इसे महाभारतकालीन शासक शिशुपाल ने बसाया था जो भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे और उनकी बुआ के पुत्र थे। यह चंदेरी कालान्तर में बूढ़ी चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसके अवशेष वर्तमान अथवा नई चंदेरी कुछ दूरी पर देखने को मिलते हैं। चारों तरफ से छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी चंदेरी शुरू से ही भारतीय स्थान में अपनी अमिट छाप बनाये हुए है और अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।


Saturday, April 18, 2020

AIRAKHERA 2020

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 विष्णु भाई का सगाई समारोह और ग्राम आयराखेड़ा की एक यात्रा 



26 जनवरी 2020 मतलब गणतंत्र दिवस पर अवकाश का दिन।

     पिछले वर्ष जब मैं माँ के साथ केदारनाथ गया था तब माँ के अलावा उनके गाँव के रहने विष्णु भाई और अंकित मेरे सहयात्री थे और साथ ही बाँदा के समीप बबेरू के रहने वाले मेरे मित्र गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी भी मेरी इस यात्रा में मेरे सहयात्री रहे थे। 

    आज ग्राम आयराखेड़ा में विष्णु भाई की सगाई का प्रोग्राम था जिसमें शामिल होने के लिए त्रिपाठी बाँदा से सुबह ही उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से मथुरा आ गए थे। सुबह पांच बजे मैं अपनी बाइक से उन्हें अपने घर ले आया और सुबह दस बजे तक आराम करने के बाद हम आयराखेड़ा की तरफ रवाना हो गए। 

Friday, April 17, 2020

SAI NAGAR SHIRDI



साईं नगर शिरडी 



6 जनवरी 2020                                                               इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

    हम करीब साढ़े नौ बजे शिरडी पहुँच गए थे, एक प्रसाद वाले की दुकान पर अपने बैग रखकर हम साईं बाबा के दर्शन करने लाइन में लग गए और दर्शन पर्ची लेकर साईं बाबा के दर्शन हेतु अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे। आज काफी सालों बाद मेरी और साधना की मुलाकात बाबा से होने वाली थी। बहुत दिन हो गए थे बाबा से बिना मिले इसलिए अब जब हमारी यह यात्रा अंतिम चरण में थी तो दिल ने सोचा क्यों ना बाबा के दर्शन कर चलें। आखिर कार हमारी यह यात्रा धार्मिक यात्रा भी तो थी। 

    महाराष्ट्र प्रान्त के गोदावरी नदी के समीप शिरडी नामक ग्राम स्थित है जहाँ 18 वीं सदी में साईंबाबा का प्रार्दुभाव एक वृक्ष के नीचे हुआ था। साईंबाबा के बारे में प्रचलित है कि इनका जन्म और इनकी बाल्यकाल अवस्था अज्ञात है। इनका सबसे प्रथम दर्शन शिरडी वासियों को ही हुआ था, जब उन्होंने एक वृक्ष के नीचे एक दिव्यतेज युवा को ध्यानमग्न अवस्था में देखा। 

Tuesday, April 14, 2020

AURANGABAD TO SHIRDI


औरंगाबाद से शिरडी रेल यात्रा 




5 - 6 जनवरी 2020                                                             इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

    श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद ऑटो वाले भाई ने हमें शाम को औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। अब हमारी यात्रा की अगली मंजिल शिरडी की तरफ थी जिसके लिए हमारा रिजर्वेशन औरंगाबाद पर रात को ढाई बजे आने वाली पैसेंजर ट्रेन में था जो सुबह 6 बजे के करीब हमें शिरडी के नजदीकी रेलवे स्टेशन कोपरगाँव उतार देगी। 

    अभी ढ़ाई बजने में बहुत वक़्त था, इसलिए स्टेशन के क्लॉक रूम पर रखे अपने बैगों को लेकर हम वेटिंग रूम पहुंचे। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम बहुत ही शानदार और साफ़ सुथरा था, अधिकतर यात्री यहाँ बेंचों पर बैठकर अपनी अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने यहाँ एक कोने में अपनी दरी और चटाई बिछाकर अपना बिस्तर लगाया और थोड़ी देर के लिए हम यहाँ आराम करने लेट गए। 

Monday, April 13, 2020

SHRI GHRISHNESHWAR JYOTIRLING


श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 2020




5 जनवरी 2020                                                        इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

     एलोरा से थोड़ा सा आगे ही श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मैं पहले भी एकबार माँ के साथ यहाँ आ चुका हूँ और आज दूसरी बार अपनी पत्नी को लेकर आया हूँ। ऑटो से उतरते ही मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर पूजा सामग्री की दुकानें लाइन से बनी हुई हैं। हमने सबसे पहली दुकान से ही पूजा सामग्री ले ली और जब थोड़ा सा आगे बढे तो पता चला सबसे शुरुआती दुकानदार अंदर वाले दुकानदारों की अपेक्षा काफी महँगा लगाकर सामान बेचते हैं इनमें अधिकतर सब महिलाएं ही थीं। मैंने मंदिर से लौटकर उस दुकानदार महिला को अपनी भाषा में अच्छी खासी सुनाई जिससे हमारे बाद आने वाले अन्य यात्रियों से वो इसप्रकार बेईमानी से सामान महँगा लगाकर न बेचे, और फिर भी बेचे तो वह उसका पाप ही होगा।