Saturday, April 18, 2020

AIRAKHERA 2020

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 विष्णु भाई का सगाई समारोह और ग्राम आयराखेड़ा की एक यात्रा 



26 जनवरी 2020 मतलब गणतंत्र दिवस पर अवकाश का दिन।

     पिछले वर्ष जब मैं माँ के साथ केदारनाथ गया था तब माँ के अलावा उनके गाँव के रहने विष्णु भाई और अंकित मेरे सहयात्री थे और साथ ही बाँदा के समीप बबेरू के रहने वाले मेरे मित्र गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी भी मेरी इस यात्रा में मेरे सहयात्री रहे थे। 

    आज ग्राम आयराखेड़ा में विष्णु भाई की सगाई का प्रोग्राम था जिसमें शामिल होने के लिए त्रिपाठी बाँदा से सुबह ही उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से मथुरा आ गए थे। सुबह पांच बजे मैं अपनी बाइक से उन्हें अपने घर ले आया और सुबह दस बजे तक आराम करने के बाद हम आयराखेड़ा की तरफ रवाना हो गए। 


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   मथुरा स्टेशन के नजदीक धौलीप्याऊ नाम का बाजार है जहाँ बेहद ही स्वादिष्ट कचौरी और सब्जी नाश्ता स्वरुप मिलती हैं। सबसे पहले मैने और त्रिपाठी जी ने वहां नाश्ता किया और आगे बढ़ चले। त्रिपाठी जी पहली बार मथुरा आये थे, इससे पहले वे एक बार किसी विवाह समारोह शामिल होने मथुरा ने नजदीक मगोर्रा नामक ग्राम आ चुके थे किन्तु मथुरा नगर में उनका आगमन पहली बार ही हुआ था। 

    इसलिए मैं उन्हें द्धारिकाधीश जी के दर्शन करवाने के लिए ले गया किन्तु 11 बजे मंदिर बंद हो जाने के कारण हमें दर्शन ना हो सके। इसके बाद हम यमुना जी के किनारे स्थित विश्राम घाट पहुंचे जहाँ कंस का वध करने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कुछ देर विश्राम किया था। अतः विश्राम घाट मथुरा का प्राचीन और पौराणिक घाट है जिसके दर्शन करने का बहुत ही महत्त्व है। 

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    विश्राम घाट के दर्शन करने के पश्चात हम राया की तरफ बढ़ चुके थे। थोड़ी देर बाद राया होते हुए हम ग्राम आयरा खेड़ा पहुंचे जहाँ अपने मामाजी के यहाँ अपनी बाइक को खड़ी कर हम विष्णु भाई के पास उनके निवास स्थान पर पहुंचे। विष्णु भाई, पेशे से भागवताचार्य हैं और भगवान की बहुत ही सुन्दर कथाओं का वर्णन अपने मुखारबिंदु से करते हैं। 

    ईश्वर के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा है और उनकी संगति में रहने वाला मनुष्य भी ईश्वर की भक्ति से सरावोर हो जाता है। उनके साथ जब मैं अमरकंटक धाम गया था तब मेरे दो दिन उनके साथ कब और कैसे गुजर गए मुझे पता ही नहीं चला। यात्रा समाप्त होने के बाद जब वह मुझसे दूर हुए तो मुझे कई दिन तक उनकी याद आती रही थी। 

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    मैं और त्रिपाठी जी जब विष्णु भाई के पास मिलने गए तो हमें देखकर उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह हमें देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए और त्रिपाठी जी को देखकर तो उनकी ख़ुशी अलग ही दिखने लायक थी आखिर कार त्रिपाठी जी उनके एक निमंत्रण पर उनके इस समारोह पर शामिल होने काफी दूर से जो आये थे। 

   विष्णु भाई ने त्रिपाठी जी का परिचय अपने स्वजनों और मित्रगणों से कराया। त्रिपाठी जी को भी विष्णु भाई से मिलने के बाद बहुत ही ख़ुशी हुई। आज विष्णुभाई के निवास स्थान पर बुंदेलखंड और ब्रज का मिलन जो हुआ था और साथ ही आज काफी समय बाद केदारनाथ के तीनों सहयात्री एक साथ एक छत के नीचे जो थे। 

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    अभी दोपहर का समय था, लगुन - सगाई के कार्यक्रम की तैयारियां जोरो पर चल रही थीं किन्तु उससे पहले इस ग्राम के रामलीला परिसर में समस्त ग्रामवासी और आसपास के लोगों के लिए प्रतिभोज का आयोजन चल रहा था। विष्णु भाई के इस समारोह में शामिल होने के लिए बहुत ही अधिक संख्यां में लोग आये हुए थे। 

   यह ग्राम था इसलिए यहाँ की रीति के अनुसार जमीन पर बैठकर ही लोग भोजन ग्रहण कर रहे थे, इसलिए मैं और त्रिपाठी जी भी भोजन करने के लिए जमीन पर एक कोने में पंक्तिबद्ध बैठ गए। प्रतिभोज में मिला भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था जिसका स्वाद हमें आज भी याद है। 

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    भोजन करने के बाद मैं और त्रिपाठी जी, किशोर मामा जी के साथ उनके खेतों की तरफ घूमने निकल गए। आजकल किशोर मामाजी के खेतों में बैंगन और शलजम की फसल हो रखी थी, जिनमें अलग अलग जगहों पर मूली भी उपजी हुईं थीं। मामाजी ने कुछ बैंगन, मूली और शलजम मुझे घर ले जाने के लिए तोड़कर रख दिए। 

    खेतों के बीच बनी गूलों में से बहकर आता हुआ पानी ग्रामीण जीवन और इसकी प्राकृतिक सुंदरता दिल में एक अलग ही आनंद का एहसास कराती है। शाम के समय जब हम आयराखेड़ा से विदा हुए तो एकबार फिर से मिलने विष्णुभाई के पास गए। उन्होंने अपने विवाह तक रुकने के लिए आज्ञा दी किन्तु पर्याप्त समय न  के कारण हम उनकी आज्ञा का पालन ना कर सके। 

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   शाम को मथुरा पहुंचकर मैं और कुलदीप भाई, त्रिपाठी जी के साथ मथुरा रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहाँ उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में ही उनके लौटने का रिजर्वेशन भी था। अतः जब संपर्क क्रांति का समय हुआ तो त्रिपाठी जी ने हमसे विदा ली और वह अपने घर के लिए वापस लौट गए। 

   त्रिपाठी जी से बिछड़ते वक़्त अनायास ही मेरी आँखों में आँसू आ गए। त्रिपाठी जी इतनी दूर होकर भी हमारे दिल के बहुत ही करीब थे आज अपने बड़ेभाई सामान सहयात्री से दूर होते दुःख के साथ फिर से पुनः मिलने की ख़ुशी भी थी क्योंकि यह यात्रा है इसमें जो आता है वह दूर भी जाता है और अपने पुनः आने की एक उम्मीद छोड़ जाता है। 

II इति शुभम II    

विश्राम घाट पर मैं और त्रिपाठी जी 

श्री यमुना जी - मथुरा 

डूबे हुए बंगाली घाट - मथुरा 

राया के नजदीक 

आयरा खेड़ा मार्ग में प्राचीन हनुमान जी का मंदिर


ग्राम आयराखेड़ा का प्राचीन एवं ऐतिहासिक कुंआ 

 केदारनाथ यात्रा के सहयात्री आज फिर एक साथ - मैं, विष्णुभाई एवं त्रिपाठी जी 

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त्रिपाठी जी को पेड़ पर कुछ दिखा 

त्रिपाठी जी और मैं एवं प्रतिभोज कार्यक्रम 


किशोर मामा जी के खेतों पर 





त्रिपाठी जी और मेरे बड़े मामाजी के साथ मैं 

मैं, त्रिपाठी जी एवं कुलदीप भाई 



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