UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
अदभुत ग्राम धौरपुर
धौरपुर ग्राम, दिल्ली - हावड़ा रेल मार्ग पर स्थित हाथरस जंक्शन स्टेशन से 1 किलोमीटर दूर है। यह उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में स्थित है। हाथरस एक छोटा शहर है जिसकी सीमाए आगरा, मथुरा, अलीगढ, एटा तथा कासगंज से छूती हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती ने इसका नाम हाथरस से बदलकर महामाया नगर कर दिया था किन्तु उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद इस जिले का नाम पुनः हाथरस रख दिया गया। पता नहीं क्यों मायावती जी को जिलों के नाम बदलने में बड़ा मजा आता है जैसे कासगंज को कांशीराम नगर बनाकर या अमरोहा को ज्योतिबा फुले नगर। खैर हमारे गाँव का नाम नहीं बदलने वाला वो तो धौरपुर ही रहेगा। फिर चाहे वो हाथरस जिले में आये या अलीगढ जिले में।
मैं जब भी कहीं जाता हूँ तो वहां के रंग में मिल जाता हूँ, हर जगह की अपनी एक खाशियत होती है और गर आप उस खाशियत को पहचान ले तो आपके लिए वो जगह हमेशा के लिए यादगार बन सकती है ऐसी ही यादगार है मेरी यह धौरपुर यात्रा जहाँ मैं अपनी माँ के साथ गया था और मैंने देखी वो खाशियतें जो मुझे आगरा में नहीं मिल सकती थी।
आगरा कैंट स्टेशन से सुबह आठ बजकर दस मिनट पर एक लोकल शटल चलती है जो राजा की मंडी , आगरा सिटी, जमुना ब्रिज, टूंडला, हाथरस जंक्शन, अलीगढ होते हुए दिल्ली तक जाती है। चूँकि ट्रेन आगरा कैंट स्टेशन से ही बनकर चलती है इसलिए गाड़ी तक़रीबन खाली ही थी। हम सबसे आगे बाले डिब्बे में जाकर बैठ गए जब कि हाथरस जंक्शन पर उतरने के लिए हमारे लिए पीछे का डिब्बा ही उचित रहता क्योंकि हमारा गाँव स्टेशन से 1 किमी पहले ही पड़ जाता है। हम जानबूझकर आगे के डिब्बे में बैठे क्योँकि टूंडला से ये शटल दूसरी साइड से चलती है। मतलब वापस अलीगढ की तरफ मुड़ जाती है। अब तक तो हमारा सफ़र आसान था।
किन्तु टूंडला स्टेशन आते ही ट्रेन लबालब भर गई दो की सीट पर तीन लोग और तीन की सीट पर चार बैठ गए। ट्रेन का फर्स तो नजर ही नहीं आ रहा था और नहीं कोई दरवाजा। बड़ी मुश्किल से बाहर निकलकर में एक स्टाल पर गया और एक थमप्सअप ले के आया। रास्ते में कई सारे स्टेशन मुझे देखने को मिले जैसे मितावली, बरहन जंक्शन, चमरोला, जलेसर रोड, पोरा और हाथरस जंक्शन। हाथरस एक जंक्शन इसलिए है क्योंकि इस स्टेशन के उपर एक और स्टेशन है जिसका नाम हाथरस रोड है यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है जो मथुरा कासगंज रेलमार्ग पर है। अभी लौट के हम इसी मार्ग से जायेंगे।
बरहन भी एक जंक्शन स्टेशन है जहाँ से एक रेल लाइन एटा के लिए गई है। मैं अभी तक इस रेल लाइन पर नहीं गया, कभी कभी यह शटल मेरे गाँव के किनारे खड़ी हो जाती है, परन्तु आज खड़ी नहीं हुई, सीधे स्टेशन पर जाकर के ही रुकी, यहाँ से हमें वापस पैदल अपने गाँव तक आना पड़ा।
इस गाँव में एक बहुत पुराना काली माँ का मंदिर है जहाँ हर साल मेला लगता है, मैं और नीटू इस मेले का भरपूर आनंद लेते थे लेकिन बचपन में, अब तो बड़े हो गए मैंने यह मंदिर ही नहीं देखा, नवरात्रि में यहाँ से काली माँ का प्रतिरूप भी निकलता है और पूरे गाँव की परिक्रमा करते हैं, इसे गाँव में काली का निकलना कहते हैं, हाथ में तलवार लिए, मुख पर काली माँ का मुखौटा लगाये यह पूरे गाँव में घुमते हैं।
इसी तरह यहाँ एक दुर्गा माँ का मंदिर भी बना है जहाँ हर साल एक विशाल मेला लगता है, दुर्गा माँ के मंदिर पर प्रतिदिन सुबह शाम लाउडस्पीकर में आरती और अमृतवाणी बजती है,जिसकी आवाज पूरे गाँव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवो तक भी जाती है, मुझे यह बहुत पसंद है ।
हम रहते तो आगरा में हैं परन्तु हमारे खेत गाँव में ही हैं, जिनमे फिलहाल गेंहू खड़े हैं और जिन्हें कटवाने के लिए ही मैं आज आगरा से अपने गाँव आया हूँ। मेरे चाचा चाची गाँव में ही रहते हैं, इनका यहाँ काफी बड़ा घर है, मेरी एक बड़ी भाभी हैं जिनका नाम नीलम है, मेरे लिए तुरंत चाय बना लाती हैं, अगर मेरा पीने का मन भी नहीं होता तो जबरदस्ती पीनी ही पड़ती है, बड़ी भाभी जो हैं।
मैं अपने खेतों की तरफ गया, यहाँ एक बम्बा भी बहता है, बम्बा गाँव में नहर को कहते हैं। बम्बा के किनारे आम के बड़े बड़े पेड़ लगे हुए हैं, कभी इन्ही आम के नीचे बम्बा किनारे मेरे दादाजी भी बैठा करते थे। मेरे दादाजी भी रेलवे में ही नौकरी करते थे, इस गाँव के सत्तर फीसदी लोग रेलवे में नौकरी करते हैं, बीस फीसदी सरकारी अध्यापक हैं और शेष दस फीसदी लोग गाँव में या आसपास के शहरों में नौकरी करते हैं।
बम्बा के किनारे और मेरे खेत के नजदीक से ही दिल्ली - हावड़ा रेलवे लाइन है, जहाँ हर मिनट पर एक ट्रेन गुजरती है।
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हाथरस जंक्शन रेलवे स्टेशन |
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धौरपुर गाँव की स्टेशन से दूरी |
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मेरी दादी - किरन देवी |
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कोडेक के कैमरे से खींचा गया मेरा एक पुराना फोटो |
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गांव में खेती करते हुए सुधीर उपाध्याय |
गेंहूं के खेतों में खाद देते हुए |
नल |
नीलम उपाध्याय , धौरपुर |
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सर्दियों में अलाव का ही सहारा है |
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यतेश उपाध्याय, मेरा भाई |
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हाथरस रोड स्टेशन |
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