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Thursday, June 28, 2018

Bhimtal & Noukuchiyatal



भीमताल और नौकुचियाताल



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    भुवाली से निकलकर मैं वापस पहाड़ों की तरफ चढ़ने लगा था, तभी अचानक मेरी नजर एक स्टीम इंजन पर पड़ी जो सड़क के किनारे खड़ा हुआ था, आश्चर्य की बात थी इतनी ऊंचाई पर रेलवे का स्टीम इंजन। फिर मेरी नजर उसके पास लगे एक बोर्ड पर पड़ी जिसपर लिखा था "WELCOME TO COUNTRY INN". ये वही होटल है जो मथुरा के पास कोसीकलां से कुछ आगे भी हाईवे पर स्थित है और वहां पर भी इसी प्रकार का एक स्टीम इंजन खड़ा हुआ है।  मतलब यह इंजन इस होटल की खास पहचान है, जहाँ कहीं भी ऐसा इंजन आपको ऐसे टूरिस्ट स्थलों पर देखने को मिले तो समझ जाना यह रेलवे की संपत्ति नहीं, कंट्री इन होटल की संपत्ति है।  हालाँकि इस होटल में बड़े बड़े लोगो का ही आना जाना होता है, हम जैसे मुसाफिरों का यहाँ क्या काम।  इसलिए इस इंजन के फोटो खींचे और आगे बढ़ चला।

Kainchi Dham



पर्वतीय फल बाजार भुवाली और कैंची धाम


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     श्री नैना देवी जी के दर्शन करने के पश्चात् दोपहर करीब दो बजे हम खाना खाकर नैनीताल से कैंचीधाम की तरफ निकल पड़े। कैंची धाम से पहले हम नैनीताल से कुछ दूर स्थित भुवाली पहुंचे।  भुवाली समुद्र तल से 1106 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बहुत बड़ा पर्वतीय फल बाजार है। यहाँ से एक रास्ता अल्मोड़ा और रानीखेत के लिए गया है दूसरा मुक्तेश्वर की ओर , तीसरा भीमताल की तरफ और चौथा नैनीताल की तरफ जिस पर से हम अभी होकर आये हैं। सबसे पहले मैंने अपनी बाइक को अल्मोड़ा की तरफ मोड़ दिया जहाँ से मैं रानीखेत जाना चाहता था परन्तु समय की कम उपलब्धता की वजह से कैंची धाम तक ही सफर पूरा किया। भुवाली में पर्यटन दृष्टि से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु यहाँ की सुंदरता और प्राकृतिक वातावरण हर सैलानी को यहाँ आने के लिए विवश कर देते हैं।  

Nainital



नैनीताल की सैर



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       उत्तराखंड राज्य के कुमाँयू मंडल में समुद्र तल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नैनीताल विश्व पर्यटन के मानचित्र पर एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहाँ सबसे अधिक झीलें हैं। नैनीताल उत्तराखंड का एक काफी बड़ा जिला है जिसकी स्थापना 1891 ईसवी में हुई। नैनीताल नगर तीन ओर से टिफिन टॉप, चाइनापीक, स्नोव्यू आदि ऊँची इंची पहाड़ियों से घिरा है। नैनीताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है।  वर्ष 1990 में नैनीताल के मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई जिसका उत्तर प्रदेश की ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद 9 नवंबर 2000 को इस भवन को उत्तराखंड के उच्च न्यायालय के रूप में परवर्तित कर दिया गया।