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Saturday, February 15, 2020

Bikaner Fort - Junagarh



जूनागढ़ - बीकानेर का किला



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आज शाम को ही मुझे और किशोर मामा जी को मथुरा निकलना था जिसके लिए मैंने पहले ही बीकानेर से हावड़ा जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन में रिजर्वेशन करवा रखा था। झंझेऊ से दोपहर में विदा होकर मैं बीकानेर आया और आज मेरा मकसद बीकानेर का प्रसिद्ध किला जूनागढ़ देखना था। बस से उतारकर एक ऑटो द्वारा मैं जूनागढ़ किला पहुंचा।

राजस्थान के अधिकांश किले किसी ना किसी पहाड़ी पर स्थित होते हैं परन्तु यह राजस्थान का एक ऐसा किला है जो किसी पहाड़ी पर स्थित ना होकर शहर के बीचोंबीच स्थित है। इसकी बाहरी दीवारें मुझे ऐसा एहसास करा रही थी कि यह हूबहू आगरा किले के समान है।

Thursday, February 6, 2020

Bikaner Museum



बीकानेर संग्रहालय 


इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 


    झंझेऊ से जब मैं बस द्वारा बीकानेर आया तो बस ने मुझे गंगानगर चौक पर उतारा, यह चौक बीकानेर संग्रहालय के ठीक सामने है। जब मैं संग्रहालय के सामने खड़ा था तो मैंने सोचा चलो पहले इसे ही देख लिया जाय। यह राजकीय संग्रहालय है जो महाराजा गंगा सिंह जी के नाम से विख्यात है।  आज तापमान बहुत ज्यादा ही गर्म था इसलिए मैंने कुछ समय इस संग्रहालय में ही बिताना उचित समझा। एक दुकान से पानी की एक बोतल लेकर मैं टिकट खिड़की पर पहुंचा और 20 रूपये की एक टिकट लेकर मैं संग्रहालय देखने चल दिया।  आप भी देखिये क्या क्या था इस संग्रहालय में चित्रों के माध्यम से। ...

बीकानेर संग्रहालय 

Wednesday, January 29, 2020

Sri Dungargarh Railway Station



मरुभूमि बीकानेर की तरफ़ - मथुरा से श्री डूँगरगढ़ 



यात्रा दिनाँक - 30 अगस्त 2019

      कभी कभी कुछ यात्रायें बिना किसी पूर्व विचार के भी बन जाया करती हैं और बिना किसी तैयारी के पूर्ण भी हो जाती हैं। ऐसी ही एक यात्रा मैंने भी की मरुभूमि बीकानेर की। दरअसल बीकानेर से कुछ पहले मेरे मामाजी की ससुराल एक ग्राम में है जिसका नाम है झंझेऊ। यह ग्राम मरुभूमि में रेगिस्तान के टीलों के बीच आगरा से बीकानेर मार्ग पर स्थित है। आजकल मामाजी यहीं थे और उन्होंने मुझे वहां बुलाया। आज से दस साल पहले भी यानी सन 2009 में भी मैं वहां उनके साथ जा चुका था और कई दिन वहां रहकर आया था। आज दस साल बाद मुझे फिर से वहां जाने का मौका मिल रहा था। प्लान गोगामेड़ी जाने का था कल्पना को लेकर, परन्तु अत्यधिक भीड़ के चलते कल्पना का प्लान कैंसिल हो गया और मुझे अकेले ही इस यात्रा पर निकलना पड़ा।

Saturday, November 17, 2018

Bala Fort



अलवर के ऐतिहासिक स्थल और बाला किला



      करीब 2 महीने पैर में चोट लगने और प्लास्टर चढ़ा रहने के कारण मैं कहीं की यात्रा करना तो दूर अपने घर से बाहर निकल भी नहीं पा रहा था, पर आज जब दो महीने बाद मुझे प्लास्टर से मुक्ति मिली तो मैं खुद को यात्रा पर जाने से नहीं रोक पाया। दीपावली निकल चुकी थी, पिछले दिनों अपनी ननिहाल आयराखेड़ा से लौटा था और आज जब शनिवार की छुट्टी हुई तो सर्दियों में सुबह की इस सुनहरी धुप में मैंने अपनी बाइक राजस्थान की तरफ दौड़ा दी। आज संग में जाने के लिए कोई भी सहयात्री मुझे अपने साथ नहीं मिला तो मैं अकेला ही रवाना हो गया।

Saturday, September 8, 2018

Lohagarh Fort




लोहागढ़ दुर्ग की एक यात्रा

लोहिया गेट, भरतपुर 


     मथुरा शहर से थोड़ी दूरी पर राजस्थान में भरतपुर शहर है जिसे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, इसका प्रमुख कारण है यहाँ स्थित मजबूत दीवारों वाला किला जो हमेशा ही अजेय रहा। दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला और हमेशा ही उनकी पहुँच दूर रहने के कारण ही इसे अजेय कहा जाता है। भरतपुर रियासत जाट राजाओं का प्रमुख गढ़ है और यहाँ बना हुआ यह किला उनकी सुरक्षा और विजय का मुख्य कारण रहा है।

     कहा जाता है इस किले की दीवारें लोहे के समान मजबूत हैं इसी वजह से इसे लोहागढ़ कहा जाता है। भरतपुर जाने वाली सरकारी बसें भी लोहागढ़ आगार के नाम से ही चलती हैं। अनेकों आक्रमण सहने के बाद भी यह किला आज भी अपनी उचित अवस्था में खड़ा हुआ है। भरतपुर को राजस्थान का पूर्वी सिंह द्धार  या प्रवेश द्धार भी कहा जाता है। 

     भरतपुर की स्थापना रुस्तम जाट द्वारा की गई थी, सन 1733 में महाराजा सूरजमल ने इस पर अधिकार कर लिया और नगर के चारों ओर एक सुरक्षित चारदीवारी का निर्माण करवाया। इसलिए भरतपुर का मुख्य संस्थापक महाराजा सूरजमल को माना जाता है और लोहागढ़ दुर्ग का निर्माणकर्ता भी। चूँकि भरतपुर का अधिकांश क्षेत्र ब्रजभूमि के अंतर्गत शामिल है इसलिए ब्रज और उसके आसपास के क्षेत्र पर महाराज सूरजमल का राज होने कारण शत्रुओं ने कभी इसतरफ अपना रुख करना उचित नहीं समझा और जिन्होंने इस तरफ रुख किया वो कहीं और रुख करने लायक ही नहीं रहे इसलिए महाराजा सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो या अफलातून भी कहा जाता है।

Saturday, September 1, 2018

Ranthambhore Fort


रणथंभौर किला 

किला  ए रणथम्भौर 

पिछली यात्रा - शिवाड़ दुर्ग और बारहवाँ ज्योतिर्लिंग 

      शिवाड़ से लौटने के बाद मैं सवाई माधोपुर स्टेशन पहुंचा और यहाँ से बाहर निकलकर मैंने तलाश की  रणथम्भौर जाने वाले किसी साधन की। एक दुकान पर मैंने अपनी शेव बनवाई और उसी दुकानदार से रणथम्भौर जाने वाली बस के बारे में पूछा तो दुकानदार ने थोड़ा आगे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वो सामने जीपें खड़ी हैं वही रणथम्भौर जाती हैं। मैं इन जीपों तक पहुँचा तो जीप वाले ने कहा जैसे ही कुछ सवारियाँ और आजायेंगी तभी हम चल पड़ेंगे। जबतक मैं अपनी प्रिय कोल्ड्रिंक थम्सअप लेने गया तब तक काफी सवारियां जीप वाले के पास आ चुकी थी। मैंने अपना बैग पहले ही जीप की आगे वाली सीट पर रख दिया था इसलिए वहां कोई नहीं बैठा और हम रवाना हो गए ऐतिहासिक महादुर्ग रणथम्भौर की ओर। 

Shiwar Fort



शिवाड़ किला और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग



       मानसून बीतता ही जा रहा था और इस वर्ष मेरी राजस्थान की यात्रा अभी भी अधूरी ही थी इसलिए पहले यात्रा के लिए उपयुक्त दिन निश्चित किया गया और फिर स्थान।  परन्तु इस बार मैं घर से ज्यादा दूर जाना नहीं चाहता था, बस यूँ समझ लीजिये मेरे पास समय का काफी अभाव था। यात्रा भी आवश्यक थी इसलिए इसबार रणथम्भौर जाने का प्लान बनाया मतलब सवाई माधोपुर की तरफ। यहाँ काफी ऐसी जगह थीं जो मेरे पर्यटन स्थलों की सैर की सूची में दर्ज थे। इसबार उनपर घूमने का समय आ चुका था इसलिए मैं रात को एक बजे घर से मथुरा स्टेशन के लिए निकल गया। बाइक को स्टैंड पर जमा कर मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। कुछ ही समय में निजामुद्दीन से तिरुवनंतपुरम जाने वाली एक एक्सप्रेस आ गई जिससे मैं सुबह पांच बजे सवाई माधोपुर पहुँच गया।

Monday, July 23, 2018

MT. ABU


आबू पर्वत की एक सैर



     महीना मानसून का चल रहा था और ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि मानसून आ चुका हो और हम यात्रा पर ना निकलें हों। जुलाई के इस पहले मानसून में मैंने राजस्थान के सबसे बड़े और ऊँचे पर्वत, आबू की सैर करने का मन बनाया। इस यात्रा में अपने सहयात्री के रूप में कुमार को फिर से अपने साथ लिया और आगरा से अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में दोनों तरफ से मतलब आने और जाने का टिकट भी बुक करा लिया। 23 जुलाई को कुमार आगरा फोर्ट से ट्रेन में बैठा और मैं अपनी बाइक लेकर भरतपुर पहुंचा और वहीँ से मैं भी इस ट्रेन में सवार हो लिया और हम दोनों आबू पर्वत की तरफ निकल पड़े।

Saturday, July 16, 2016

ऊषा मंदिर और वैर का किला


 DATE :- 16 JULY 2016

ऊषा मंदिर और वैर का किला 

       यात्रा एक साल पुरानी है परन्तु पब्लिश होने में एक साल लग गई, इसका एक अहम् कारण था इस यात्रा के फोटोग्राफ का गुम हो जाना परन्तु भला हो फेसबुक वालों का जिन्होंने मूमेंट एप्प बनाया और उसी से मुझे मेरी एक साल पुरानी राजस्थान की मानसूनी यात्रा के फोटो प्राप्त हो सके। यह यात्रा मैंने अपनी बाइक से बरसात में अकेले ही की थी। मैं मथुरा से भरतपुर पहुंचा जहाँ पहली बार मैंने केवलादेव घाना पक्षी विहार देखा परन्तु केवल बाहर से ही क्योंकि इसबार मेरा लक्ष्य कुछ और ही था और मुझे हर हाल में अपनी मंजिल तक पहुंचना ही था, मेरे पास केवल आज का ही समय था शाम तक मुझे मथुरा वापस भी लौटना था।