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Monday, August 2, 2021

BHARHUT STUP RUINS


भरहुत स्तूप और उसके अवशेष 




मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 2      यात्रा  दिनाँक - 10 Jul 2021 
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मैहर धाम से अब रवाना होने का वक़्त था, मैहर मंदिर के दर्शन करने के पश्चात मैं मंदिर से नीचे उतर आया और एक ऑटो से बस स्टैंड पहुंचा। सतना के नजदीक चौमुखनाथ और भूमरा के ऐतिहासिक मंदिर हैं। चौमुखनाथ का मंदिर वाकाटक शासकों की पूर्ववर्ती राजधानी नचना कुठार में स्थित हैं। मेरा इस स्थान को देखने का बड़ा ही मन था। यह स्थान पन्ना और सतना के मध्य कहीं स्थित था। चौमुखनाथ का मंदिर बड़ा ही भव्य मंदिर है, मैं जानता था कि इस मंदिर की यात्रा, फेसबुक पर हमारे परम मित्र मुकेश पांडेय चन्दन जी कर आये हैं, इसलिए मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया और यहाँ तक पहुँचने का मार्ग जाना। उन्होंने मुझे मार्ग तो बतला दिया किन्तु इस मंदिर तक पहुँचने के लिए मुझे आज पूरा दिन लगाना पड़ता इसलिए इस मंदिर को भविष्य पर छोड़ मैं भरहुत स्तूप के लिए बस में बैठ गया। 

Saturday, March 27, 2021

GULBARGA CITY

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 10 

गुलबर्गा अब कलबुर्गी शहर 


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मालखेड किला घूमने के बाद मैंने मालखेड़ बस स्टैंड से मैंने कलबुर्गी शहर जाने के लिए कर्नाटक की रोडवेज बस पकड़ी। कलबुर्गी यहाँ से 40 किमी दूर था। कलबुर्गी का पुराना नाम गुलबर्गा है जो कि एक सल्तनतकालीन शहर है। बस, शहर के बाईपास रोड से होती हुई कलबुर्गी के बस स्टैंड पहुंची। दोपहर हो चुकी थी और आज मैं नहाया भी नहीं था इसलिए मैंने यहाँ से रेलवे स्टेशन के लिए एक ऑटो किया और कलबुर्गी रेलवे स्टेशन पहुंचा। कोरोना प्रभाव की वजह से रेलवे स्टेशन पर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश प्रतिबंधित था। 

मैंने स्टेशन पर प्रवेश करने की कोशिस की तो मुझे वहां बैठे आरपीएफ के जवान ने मुझे रोका। मैंने उसे बताया कि मेरी शाम को लौटने की ट्रेन है तब तक के लिए मैं अपना बैग क्लॉक रूम में जमा कराना चाहता हूँ। यह सुनकर उसने मुझे क्लॉक रूम का रास्ता बता दिया और मैं स्टेशन पर प्रवेश कर गया। 

Saturday, March 13, 2021

AIHOLE

 

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 6 

ऐहोल के मंदिर 


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अब वक़्त आ चुका था अपनी उस मंजिल पर पहुँचने का, जिसे देखने की धारणा अपने दिल में लिए मैं अपने घर से इतनी दूर कर्नाटक आया था और वह मंजिल थी बादामी जो प्राचीन काल की वातापि है और मेरी इस यात्रा का केंद्र बिंदु भी। बादामी, प्राचीन काल में वातापि के चालुक्यों की राजधानी थी जिन्होंने यहाँ अजंता और एलोरा की तरह ही पहाड़ों को काटकर उनमें गुफाओं का निर्माण कराया और इन्हीं गुफाओं के ऊपर अपने किले का निर्माण कराया। बादामी से पूर्व चालुक्यों ने बादामी से कुछ मील दूर ऐहोल नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया था और वहां अनेकों मंदिर और देवालयों का निर्माण कराया था। वर्तमान में ऐहोल कर्नाटक का एक छोटा सा गाँव है मगर इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए पर्यटकों का यहाँ आना जाना लगा रहता है। 

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मैं सुबह 6 बजे ही बादामी पहुँच गया था और स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में नहाधोकर तैयार हो गया। चूँकि कोरोना की वजह से रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में ठहरने की सुविधा उपलब्ध नहीं है किन्तु स्टेशन मास्टर साब ने मुझे उत्तर भारतीय होने से और कर्नाटक की यात्रा पर होने से अतिथि देवो भवः का अर्थ सार्थक किया और वेटिंग रूम की चाबी मुझे दे दी। अपने गीले वस्त्रों को मैंने यहीं वेटिंग रूम में सुखा दिया था क्योंकि आज रात को ही मुझे अपनी अगली मंजिल पर भी निकलना था। इसप्रकार स्टेशन का वेटिंग रूम, मेरे लिए एक होटल के कमरे के समान ही बन गया। स्टेशन के बाहर बनी दुकान पर चाय नाश्ता करने के बाद मैंने अपने बैग को भी यहीं रख दिया और कैमरा लेकर बाहर आ गया। यह दुकान प्राचीन काल की काठ से बनी दुकान थी। 

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Friday, April 3, 2020

AJANTA CAVES


अजंता की गुफाएँ 



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यात्रा दिनाँक - 4 जनवरी 2020 
बौद्ध धर्म का उदय

भारतभूमि का इतिहास संसार की दृष्टि में अत्यंत ही गौरवशाली रहा है और अनेकों देशों ने भारत की संस्कृति, कला और धर्मक्षेत्र को अपनाया है। यह एक ऐसी भूमि है जहाँ विभिन्न तरह के परिधान, भाषा - बोली, संस्कृतियां और धर्म अवतरित होते रहे हैं। इसी भूमि पर भगवान विष्णु ने राम और कृष्ण के रूप में अवतरित होकर संसार को धर्म और मर्यादा का ज्ञान कराया, साथ ही महावीर जैन ने भी सत्य, अहिंसा और त्याग का ज्ञान देते हुए जैन धर्म का प्रसार किया। जैन धर्म के बाद एक ऐसे धर्म का उदय भारत भूमि पर हुआ जिसका ज्ञान लगभग जैन धर्म  के ही समान था और इसके प्रवर्तक विष्णु के ही अवतार माने गए और यह धर्म था - बौद्ध धर्म, जिसका ज्ञान गौतम बुद्ध ने संसार को दिया। 

Wednesday, April 1, 2020

KANHERI CAVES


कान्हेरी गुफाएँ


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    भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का उदय होने के बाद, भारतीय लोगों की इस धर्म के प्रति आस्था को देखते हुए अनेकों मठ, विहार स्थल, स्तूप और पर्वतों को काट छाँट कर गुफाओं का निर्माण हुआ। यह स्थल बौद्ध लोगों और भिक्षुयों के लिए रहने और महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार प्रचार हेतु बनाये गए थे। प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्य, मगध में मौर्य वंश के दौरान से ही इन सभी का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। मौर्य वंश के पतन के पश्चात भी अनेकों राजवंशों ने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी आस्था बनाये रखी तथा इसे राजधर्म तक घोषित किया और ऐसे ही स्मारकों और गुफाओं का निर्माण होता रहा, जिनमें कुषाण और हर्षवर्धन का काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा। 

Friday, April 27, 2018

MACLOADGANJ : 2018

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


मैक्लोडगंज की वादियों में 


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        आज का प्लान हमारा मैक्लोडगंज जाने का था, कुमार इसके लिए पूर्णत: तैयार था, मैं, कल्पना और कुमार की फेमिली मैक्लोडगंज के लिए निकल लिए और साथ ही बुआजी, गौरव और रितु मामी जी भी हमारे साथ थे। हम काँगड़ा के बसस्टैंड पहुंचे, यहाँ एक बस धर्मशाला जाने के लिए तैयार खड़ी हुई थी,  बस खाली पड़ी थी तो हम इसी में सवार हो लिए और कुछ ही समय बाद हम धर्मशाला में थे, यहाँ बने एक रेस्टोरेंट में भोजन करने के बाद हम धर्मशाला के बस स्टैंड की तरफ रवाना हुए, मुख्य सड़क से बस स्टैंड काफी नीचे बना हुआ है, सीढ़ियों के रास्ते हम बस स्टैंड पहुंचे, एक मार्कोपोलो मिनी बस मैक्लोडगंज जाने को तैयार खड़ी थी। टेड़े मेढे रास्तों से होकर हम कांगड़ा घाटी में बहुत ऊपर तक आ चुके थे, यहाँ का मौसम काँगड़ा के मौसम की तुलना में बहुत अलग था, चारोंतरफ चीड़ के वृक्ष और सुहावना मौसम मन को मोह लेने वाला था।

Monday, October 23, 2017

RAJGIR STOOP

UPADHYAY TRIPS PRESENTS


विश्व शांति स्तूप - राजगीर




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      जीवक का दवाखाना देखने के बाद हमारी घोड़ागाड़ी राजगीर के गिद्धकूट पर्वत की तरफ बढ़ चली।  कहा जाता है कि यही वो पर्वत है जिस पर बैठकर महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था। उन्ही की याद में यहाँ एक विशाल स्तूप का निर्माण कराया गया है जो राजगीर स्तूप के नाम से जाना जाता है, इसे विश्व शांति स्तूप भी कहते हैं। यह पिकनिक के लिए बेहद खूबसूरत स्थान है यहाँ स्तूप तक जाने के लिए रोपवे की व्यवस्था है यह रोपवे एक सीट का है इसलिए यह अन्य रोपवे से थोड़ा अलग और एडवेंचर लगता है। स्तूप के चारों तरफ महात्मा बुद्ध की मूर्तियां स्वर्णिम रूप में व्यवस्थित हैं। 

SAPTPARNI CAVE

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

वैभारगिरि पर्वत और सप्तपर्णी गुफा 

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     ब्रह्मकुंड में स्नान करने के बाद मैं इसके पीछे बने पहाड़ पर चढ़ने लगा, यह राजगीर की पांच पहाड़ियों में से एक वैभारगिरि पर्वत है जिसे राजगीर पर्वत भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी पर्वत पर वह ऐतिहासिक गुफा स्थित है जहाँ अजातशत्रु के समय प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। इसे सप्तपर्णी गुफा कहते हैं। माना जाता है प्रथम बौद्ध संगीति महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के अगले वर्ष मगध सम्राट अजातशत्रु द्वारा राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में आहूत की गई जिसमे 500 से भी अधिक बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया था तथा जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप द्वारा की गई।

     इसी के साथ ही यहाँ जैन सम्प्रदाय के कुछ पूजनीय मंदिर भी स्थित हैं। और इनके अलावा एक महादेव का मंदिर भी इस पर्वत स्थित है। इसप्रकार यह पर्वत तीनों धर्मो के लिए विशेष महत्त्व रखता है।

Thursday, October 10, 2013

SARNATH 2013

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

सारनाथ दर्शन 

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     माँ को वाराणसी स्टेशन पर छोड़कर मैं एक पैसेंजर ट्रेन के जरिये सारनाथ पहुँच गया, सबसे पहले स्टेशन के शाइन बोर्ड को देखा, यह और स्टेशनों की अपेक्षा कुछ अलग लगा फिर ध्यान आया कि मैं महात्मा बुद्ध की भूमि में हूँ और उन्ही के धम्म के अनुसार रेलवे ने इस स्टेशन का बोर्ड भी बनाया है। सारनाथ पूर्वोत्तर रेलवे का एक छोटा सा स्टेशन है परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण भी है।

Friday, June 21, 2013

MCLEODGANJ : 2013

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 मैक्लोडगंज की ओर


हिमाचल परिवहन की एक बस 



                 जाने वाले यात्री -  सुधीर उपाध्याय , कुमार भाटिया , सुभाष चंद गर्ग , मंजू  एवं  खुशी । 

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     मैंने घड़ी में देखा दोपहर के डेढ़ बजे थे, अचानक मन कर गया कि धर्मशाला और मैक्लोडगंज घूम के आया जाय, कौनसा यहाँ रोज रोज आते हैं, मैंने सभी से पुछा पहले तो कोई राजी नहीं हुआ, मैंने प्लान कैंसिल कर दिया, बाद में कुमार और मंजू का मन आ गया, अनके साथ बाबा और ख़ुशी भी राजी हो गए। सो चल दिए आज एक नई यात्रा पर काँगड़ा से धर्मशाला। धर्मशाला, काँगड़ा से करीब अठारह किमी है ऊपर पहाड़ो में और उससे भी आगे चार किमी ऊपर है मैक्लोडगंज।