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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 10
गुलबर्गा अब कलबुर्गी शहर
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मालखेड किला घूमने के बाद मैंने मालखेड़ बस स्टैंड से मैंने कलबुर्गी शहर जाने के लिए कर्नाटक की रोडवेज बस पकड़ी। कलबुर्गी यहाँ से 40 किमी दूर था। कलबुर्गी का पुराना नाम गुलबर्गा है जो कि एक सल्तनतकालीन शहर है। बस, शहर के बाईपास रोड से होती हुई कलबुर्गी के बस स्टैंड पहुंची। दोपहर हो चुकी थी और आज मैं नहाया भी नहीं था इसलिए मैंने यहाँ से रेलवे स्टेशन के लिए एक ऑटो किया और कलबुर्गी रेलवे स्टेशन पहुंचा। कोरोना प्रभाव की वजह से रेलवे स्टेशन पर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश प्रतिबंधित था।
मैंने स्टेशन पर प्रवेश करने की कोशिस की तो मुझे वहां बैठे आरपीएफ के जवान ने मुझे रोका। मैंने उसे बताया कि मेरी शाम को लौटने की ट्रेन है तब तक के लिए मैं अपना बैग क्लॉक रूम में जमा कराना चाहता हूँ। यह सुनकर उसने मुझे क्लॉक रूम का रास्ता बता दिया और मैं स्टेशन पर प्रवेश कर गया।
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KALBURAGI RAILWAY STATION |
बैग जमा करने से पहले मैं नहाना चाहता था, इसलिए स्टेशन पर बने साफसुथरे वेटिंग रूम के बाथरूम में नहा धोकर तैयार हुआ और क्लॉकरूम पर अपना बैग जमा करा दिया। इसके बाद मैं कलबुर्गी अथवा गुलबर्गा शहर घूमने के लिए निकल पड़ा। स्टेशन के बाहर कोई भी शाकाहारी भोजनालय मुझे नहीं मिला इसलिए एक चाट की ठेल से बड़ा सा समोसा खाकर काम चलाया। रेलवे स्टेशन के बाहर ही सिटी बस का स्टैंड है किन्तु अभी यहाँ कोई ऐसी बस नहीं है।
LUNCH TIME AT KALBURAGI
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KALBURAGI SAMOSA |
मैं पैदल ही सिटी घूमता हुआ गुलबर्गा के प्राचीन किले तक पहुंचा जो एक समय में बहमनी सल्तनत की राजधानी थी और बाद में बीदर में स्थानांतरित हो गई थी। राजधानी परिवर्तन के बाद गुलबर्गा शहर का महत्त्व कम होता चला गया। चौदहवीं शताब्दी में जब दिल्ली में तुगलक वंश के सुल्तान फ़िरोज़शाह तुगलक का शासन था, उसी समय बहमनी वंश के शासक गयासुद्दीन बहमनशाह का राज्य स्थापित हुआ जिसने अपनी राजधानी देवगिरि से हटाकर गुलबर्गा को बनाया। बहमनी शासकों का पूरा वर्णन मैंने अपनी पिछली पोस्ट बहमनी सल्तनत की राजधानी - बीदर में किया है। आप लिंक पर क्लिक करके पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं।
गुलबर्गा का किला
गुलबर्गा शहर के मध्य विशाल और मजबूत दीवारों वाला यह किला बहमनी वंश के सुल्तान गयासुद्दीन बहमन शाह ने चौदहवीं शताब्दी में बनवाया था जो हसन गंगू के नाम से ज्यादा विख्यात था। शुरुआत में यह सुल्तान, तुगलक वंश के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में देवगिरि का सूबेदार रह चुका था। जिसने मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद अपनी अधीनता त्याग कर, बहमनी नामक नई सल्तनत की नीव रखी जो भारतीय इतिहास में दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सल्तनत थी।
इस किले के अंदर एक विशाल जामा मस्जिद स्थित है इसके अलावा किले के बीचों बीच एक बड़ा और ऊँचा महल सा देखने को मिलता है जो अभी सुरक्षा की दृष्टि से पुरातत्व विभाग द्वारा पर्यटकों हेतु बंद कर दिया गया है। किले में कुछ बस्तियां भी देखने को मिलती हैं जिनमें प्राचीन काल के किले से सम्बंधित लोगों की प्रजातियां रहती हैं। इस किले में एक विशालकाय तोप भी है जो किले की प्राचीर के नजदीक बने बुर्ज पर आज भी स्थापित है। अष्टधातु के लोहे से बनी इस तोप की मारक क्षमता का अंदाजा इसकी भव्य और विशाल बनावट देखकर लगाया जा सकता है। इस किले के चार दरवाजे थे जिनमें से अब केवल दो ही दरवाजे दिखाई देते हैं। किले के बाहर बहुत ही गहरी खाई के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
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GULBARGA FORT |
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GULBARGA FORT |
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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GULBARGA FORT
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किले की जामा मस्जिद
गुलबर्गा किले के एक भाग में बहुत ही भव्य जामा मस्जिद देखने योग्य है। इस मस्जिद का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में बहमनी वंश के सुल्तान फिरोज शाह बहमनी ने करवाया था।
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
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JAMA MASJID AT GULBARGA FORT |
गुलबर्गा किले की तोप
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CANON AT GULBARGA FORT |
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CANON AT GULBARGA FORT |
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CANON AT GULBARGA FORT |
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CANON AT GULBARGA FORT |
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TURKI LANGUAGE |
श्री शरणा बस्बेश्वर मंदिर
किला घूमकर में बाहर निकला तो ऑटो पकड़कर गुलबर्गा के प्रसिद्ध श्री शरण बसवेश्वर मंदिर पहुंचा। यह गुलबर्गा का अत्यंत प्राचीन मंदिर है जो बारहवीं शताब्दी के महान दार्शनिक संत श्री शरण बस्बेश्वर को समर्पित है। श्री शरण बसवेश्वर, शैव धर्म के एक रूप लिंगायत की प्रसिद्धि के लिए जाने जाते हैं और समस्त कर्नाटक में विशेष पूजनीय हैं। मैंने कर्नाटक की और भी जगहों पर इनके बारे में बहुत देखा और सुना था तथा साथ ही इनके और भी मंदिर और चौराहों पर खड़ी मूर्तियां भी देखी थीं।
गुलबर्गा का यह मंदिर श्री शरण बसवेश्वर जी को समर्पित बहुत बड़ा तीर्थ स्थान है जिसके दर्शन करने अनेकों श्रद्धालु कर्नाटक के अन्य शहरों से यहाँ पहुँचते हैं। यहाँ साल में एक बार भव्य मेले का भी आयोजन होता है जिसमें संत की चाँदी की थाली के दर्शन केवल एक वर्ष में एक बार कराये जाते हैं। मेरे यहाँ आने से पूर्व ही यह मेला यहाँ संपन्न हुआ था। श्री शरण बसवेश्वर के नाम से ही मंदिर के नजदीक एक भव्य झील भी स्थित है।
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SHRI SHARNA BASAVESHWAR TEMPLE |
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SHRI SHARNA BASAVESHWAR TEMPLE |
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SHRI SHARNA BASAVESHWAR TEMPLE |
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SHRI SHARNA BASAVESHWAR TEMPLE |
मंदिर देखने के बाद में सिटी बस के स्टैंड पहुंचा, जो झील के दूसरे किनारे और गुलबर्गा किले के नजदीक स्थित था। यहाँ और भी जगह जाने के लिए बसें खड़ी हुई थीं जो नंबरों से पहचानी जा सकती थीं। किन्तु इन पर लिखी कन्नड़ भाषा मेरी समझ से परे थी इसलिए मैंने बुद्ध विहार जाने वाली बस के बारे में यहाँ के लोगों से पूछा। काफी देर बाद बुद्ध विहार जाने वाली एक मात्र बस आई और मैं इसमें सबसे आगे वाली सीट पर बैठ गया।
बस की कंडक्टर एक लेडीज थी जो मुझे कन्नड़ भाषा में कहाँ जाने के लिए पूछ रही थी। मैं उसकी बातों को समझ नहीं पाया अंत में उसने टूटी फूटी हिंदी भाषा बोलने की कोशिस की तब मैंने उसे बता पाया कि मुझे बुद्ध विहार जाना है जो इस बस का आखिरी स्टॉप है। बस में स्तूप जाने वाला केवल अकेला मैं ही एक यात्री था।
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KALBURAGI CITY BUS |
गुलबर्गा बुद्ध विहार
गुलबर्गा का बुद्ध विहार , गुलबर्गा शहर से मालखेड़ वाले रास्ते पर काफी दूर स्थित है। यहाँ तक केवल एकमात्र सिटी बस आती है जो स्तूप से पहले गुलबर्गा विश्व विद्यालय में चक्कर लगाती हुई स्तूप तक पहुँचती है। बस में केवल मैं, ड्राइवर और कंडक्टर ही शेष बचे थे। घनी जंगल झाड़ियों के बीच से निकलकर बस, विश्व विद्यालय के एक हिस्से में स्थित बौद्ध स्तूप तक पहुंची। मुझे यहाँ उतारते वक़्त ड्राइवर ने मुझसे कहा कि लास्ट बस शाम को पांच बजे है। अभी चार बजे थे यानी इस एक घंटे में मुझे इस स्तूप को घूमना था।
गुलबर्गा का बौद्ध विहार गुलबर्गा विश्वविद्यालय के पास सेदम रोड पर जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर स्थित है। 18 एकड़ में फैला, इसका एक मुख्य भवन, तहखाने में एक ध्यान केंद्र और भूतल पर भगवान बुद्ध चैत्य (पाली में मंदिर) है। बुद्धविहार का गुंबद जो पारंपरिक बौद्ध वास्तुकला पर बनाया गया है, की ऊंचाई 70 फीट और व्यास 59 फीट है। मुख्य गुंबद को भव्य रूप देने के लिए संगमरमर से बनाया गया है। गुंबद में पंचलोहा से बना एक सजावटी गोला है, जिसके ऊपर कलश भी है जो पंचलोहा से बना है। बुद्ध विहार राजा अशोक महान के सम्मान में चारों कोनों में चार 48 फीट ऊंचे अशोक स्तंभों से घिरा हुआ है।
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
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GULBARGA BUDDH VIHAR |
शाम को पांच बजे के लगभग वही बस वापस आई और मैं उसमें सवार हो गया। बस के ड्राइवर महोदय ने मुझसे कहा कि केवल आपको लेने ही हम यहाँ तक आये हैं वर्ना यहाँ हमें कोई अन्य सवारी कभी कभार ही मिलती है। मैं समझ गया कि यह बस सरकार ने बुद्ध विहार तक केवल इसलिए चलाई है ताकि यूनिवर्सिटी के लोगों को इससे सहूलियत मिल सके। इस विश्व विद्यालय में इस बस के अनेकों स्टॉप बने थे जहाँ से इस बस को यात्री मिलने शुरू हैं। स्टेशन के नजदीक वाले चौराहे पर मैं इस बस से उतर गया और पैदल ही स्टेशन की ओर रवाना हो गया।
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KALBURAGI CITY BUS |
स्टेशन वाले रास्ते में मुझे शाम के जाम की दुकान दिखाई दी। अब शाम का समय था, आज मैं काफी थक भी गया था इसलिए मैंने भी इस दुकान से जाम ख़रीदा और कुछ फल लेकर इस दुकान के बराबर में बने मयखाने में जाकर जाम का आनंद लेने लगा। यहाँ मैंने देखा कि लोग शाम को अपना काम समाप्त कर यहाँ आते हैं और दो चार जाम लगाकर अपने पूरे दिन की थकान को कम करने की कोशिश करते हैं। कर्नाटक के इस जाम ने मेरी आज की शाम को बहुत ही खुशनुमा बना दिया था। जाम पीने के बाद मैं उसी चाट वाले की दुकान पर पहुंचा जिससे सुबह मैंने समोसा खाया था। शाम को उसकी दुकान पर काफी भीड़ हो गई थी पर वह मुझे देखते ही पहचान गया और उसने मुझे एक शानदार चाट खिलवाई।
DINNER TIME AT KALBURAGI
चाट खाकर में स्टेशन पहुंचा और पार्सल रूम से बैग उठाकर अपनी ट्रेन आने का इंतज़ार करने लगा। सही समय पर ट्रेन भी आ गई और मैं अपनी अगली मंजिल पर बढ़ चला।
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KALBURAGI RAILWAY STATION |
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BOROTI RAILWAY STATION |
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😎 GULBARGA FORT CANON
कर्नाटक यात्रा से सम्बंधित यात्रा विवरणों के मुख्य भाग :-
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