Thursday, April 15, 2021

DAMBAL

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 14 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

डम्बल का दौड़बासप्पा शिव मंदिर 

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

गदग से डम्बल जाने के लिए मैं बस में बैठ गया। गदग से 25 किमी दूर डम्बल गाँव है जो कि एक ऐतिहासिक गाँव है। यहाँ भगवान शिव का प्राचीन दौड़बासप्पा नामक मंदिर स्थित है। मुझे यही मंदिर देखना था और इसीलिए मैं कर्नाटक के सुदूर में स्थित इस गाँव में जा रहा था। यह बस भी डम्बल तक के लिए ही जा रही थी। इसमें टिकट का एक तरफ से किराया 39 रूपये है। डम्बल की और भी सवारियां गदग बस स्टैंड पर इस बस का इंतज़ार कर रही थीं। जब यह बस आई तो यह पूर्ण रूप से भर गई। मैं पीछे खिड़की वाली सीट पर कंडक्टर के नजदीक बैठ गया। 


गदग से पूर्व - दक्षिण दिशा की ओर बस रवाना हो चुकी थी। अब रास्ते में पवनचक्कियों का जाल शुरू हो चुका था, यहाँ अनेकों पवनचक्कियाँ लगी हुईं थी । ऐसी पवनचक्कियाँ उत्तर भारत में देखने को नहीं मिलती हैं और कहीं गर हैं तो मैंने नहीं देखी हैं। बस में से मैं बस इन्हीं पवनचक्कियों को देखते हुए ही जा रहा था। 

कुछ समय बाद बस मैंन रोड से हटकर एक गाँव की तरफ मुड़ गई और थोड़ा आगे जाने पर मुझे यह प्राचीन मंदिर भी दिख गया। बस ने मुझे गाँव के बस स्टैंड पर उतारा और मैं वहां से पैदल ही वापस मंदिर की तरफ लौटा। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। डम्बल गाँव के कुछ बच्चे यहाँ खेल रहे थे, मैं जब मंदिर के फोटो ले रहा था तो मेरे हाथ में कैमरा देखकर उनकी भी कैमरा चलाने की इच्छा हुई। मैंने बिना देर किये उन्हें कैमरा देते हुए उसे चलाने का तरीका बताया और उन्हीं से अपनी कुछ फोटो भी खिंचवाई। इन छोटे छोटे बच्चों से मेरी मित्रता हो गई परन्तु दुःख सिर्फ इसबात का था कि ना तो यह मेरी भाषा समझते थे और ना ही मैं इनकी। 

डम्बल का दौड़बासप्पा का मंदिर बहुत ही सुन्दर है और यह भगवान् शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित है और मंदिर के ठीक सामने नंदी की विशाल प्रतिमा जिसपर भगवा रंग का वस्त्र भी डाला हुआ था। मंदिर के चारों तरफ पुरातत्व विभाग ने काफी साफ़ सफाई करके इसे हरी घास से सजाया है। इस मंदिर की सुंदरता और भव्यता देखकर यहाँ आने वाले प्रत्येक सैलानी का मन अवश्य ही खुश हो जायेगा।  

नागर शैली में बने इस भव्य मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में कल्याणी के चालुक्य राजाओं ने करवाया था। यहाँ भी उन्होंने काले पत्थर को बहुत ही सुंदरता से तराश कर इसका निर्माण किया है। मेरे द्वारा देखे गए अब तक के ऐतिहासिक मंदिरों में यह मुझे सबसे अधिक सुन्दर और शानदार लगा। प्राकृतिक वातावरण के बीच शहरों की भीड़भाड़ से दूर एकांत में बना यह मंदिर ध्यान और योग करने के लिए एक उचित स्थान है। यहाँ भगवान शिव का शिवलिंग भी अन्य मंदिरों की अपेक्षा में थोड़ा अलग सा प्रतीत होता है। 

दौड़बासप्पा मंदिर के ठीक दूसरी तरफ, प्राचीन काल का बना हुआ सोमेश्वर मंदिर है। यह द्रविड़ की मिश्रित शैली में बना हुआ प्रतीत होता है। फ़िलहाल यह पुरातत्व विभाग के अधीन है और पूजा अर्चना के लिए बंद है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग अभी भी विराजमान है। इस मंदिर के चारों ओर भी काफी शानदार फुलवारी पुरातत्व विभाग की ओर से की गई है। 

दोनों मंदिरों को देखने के बाद अब मैं डम्बल से वापस गदग जाने के लिए तैयार था। इसके लिए मुझे डम्बल गाँव के उसी चौराहे पर पहुँचना पड़ा जहाँ से मैं बस से उतरा था। क्योंकि बिना स्टॉप के यहाँ की बसें किसी भी सवारी के लिए नहीं रूकती हैं। चूँकि डम्बल एक ऐतिहासिक गाँव है, दौड़बासप्पा मंदिर के अलावा यहाँ और भी ऐतिहासिक इमारतें स्थित हैं किन्तु समयाभाव के कारण जो मुख्य स्थान थे मुझे केवल आज वही देखने थे और डम्बल में दौड़बासप्पा का मंदिर ही सबसे प्रमुख है। 

कुछ समय बाद गदग जाने के लिए एक बस आई और मैं इसमें सवार हो गया। 






























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