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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 7
विश्व विरासत स्थल - पट्टादाकल मंदिर समूह
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मालप्रभा नदी के किनारे स्थित पत्तदकल विश्वदाय स्मारक स्थल की सूची में दर्ज है। यहाँ पश्चिमी चालुक्य सम्राटों द्वारा अनेक मंदिर स्थापित हैं। पत्तदकल, बादामी और एहोल के मध्य में स्थित है। प्राचीनकाल में इस स्थान का नाम किषुवोडल मिलता है। एहोल के बाद जब चालुक्यों का राजनीतिक उत्कर्ष हुआ तो उन्होंने अपनी राजधानी एहोल से हटाकर वातापि में स्थापित की जो आज की बादामी कहलाती है। राजधानी का यह परिवर्तन पुलकेशिन प्रथम के समय में हुआ और उसने बादामी में ही किले का निर्माण कराया। चालुक्यों के अंतिम वर्षों में राजधानी पत्तदकल में स्थानांतरित हो गई। पत्तदकल के बारे में कहा जाता है कि चालुक्यों सम्राटों का राज्याभिषेक पत्तदकल में ही पूर्ण होता था।
कर्नाटक के बागलकोट जिले में बादामी के नजदीक पत्तदकल ग्राम स्थित है। यहाँ अनेक प्राचीनकाल के मंदिर बने हुए हैं जो लगभग छटवीं शताब्दी के आसपास के हैं। मंदिरों का यह समूह आज यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में दर्ज है। उत्तर भारत के खजुराहो के बाद दक्षिण भारत का यह दूसरा मंदिर समूह है जिसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल होने का दर्जा दिया है। इसलिए यहाँ दूर दूर से अनेकों पर्यटक इस स्थान को देखने के लिए यहाँ आते हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसे देखने के लिए यहाँ उचित टिकट लेकर ही प्रवेश करना होता है। समस्त कर्नाटक में रोजवेज बस की अच्छी सुविधा उपलब्ध है, बादामी से यहाँ आने के लिए निरंतर बसें मिलती रहती हैं।
पत्तदकल मंदिर समूह में कुल 10 मंदिर बने हुए हैं जिनमें 5 नागर शैली के हैं और बाकी 5 द्रविड़ शैली में निर्मित हैं। नागर शैली में निर्मित मंदिर क्रमशः पापनाथ मंदिर, कालसिद्धेश्वर मंदिर, काशी- विश्वनाथ मंदिर, गगलनाथ और जम्बूलिंग मंदिर हैं। वहीँ द्रविड़ शैली में निर्मित मंदिरों के श्रंखला में सबसे मुख्य विरुपाक्ष मंदिर, संगमेश्वर मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, सुमेश्वर मंदिर तथा जैन मंदिर प्रमुख हैं।
1. कादसिद्धेश्वर मंदिर
मंदिर समूह में प्रवेश करते ही दिखने वाला सबसे पहला मंदिर कादसिद्धेश्वर मंदिर है जो उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित है।
2. गलगनाथ मंदिर
आठवीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर पूर्णतः उत्तर भारत की नागर शैली में निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान् शिव के द्वारा अंधकासुर को मारने की लीला का वर्णन है।
3. चंद्र शेखर मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में सबसे छोटा अथवा अधूरा निर्मित है। यह वर्गाकार है इसके ऊपर कोई गुम्बद नहीं है अतः यह किस शैली में निर्मित है इसकी पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है किन्तु गौर से देखने पर ज्ञात होता है कि यह दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली में ही बना हुआ है।
4. संगमेश्वर मंदिर
संगमेश्वर मंदिर पत्तदकल का सबसे प्रथम निर्मित मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य सम्राट विजयादित्य ने अपने शासनकाल में करवाया था। द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर में शिखरयुक्त गर्भगृह तथा मंडप स्थापित हैं। यहाँ गर्भगृह के दोनों ओर दुर्गा तथा गणेश जी के मंदिर बने हुए हैं और यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित हैं। मंदिर के पार्श्व में गंगा और यमुना की मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं।
5. पापनाथ मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर थोड़ा आगे जाने पर मंदिर समूह से थोड़ी दूर मालप्रभा नदी के सम्मुख पापनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर का शिखर उत्तर भारतीय शैली में निर्मित है इसलिए इसे नागर शैली में निर्मित मंदिर कहा जाता है। पत्तदकल में सर्वप्रथम नागर - द्रविड़ शैली का प्रयोग पापनाथ मंदिर में ही देखने को मिलता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
6. विरुपाक्ष मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर, पत्तदकल का सबसे विशालतम, सर्वाधिक अलंकृत और सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। यही एक मात्र मंदिर भी है जिसके गर्भगृह में भगवान शिव की पूजा आज भी की जाती है। मंदिर के ठीक सामने नंदी मंडप बना हुआ है जिसमें ग्रेनाइट के पत्थरों से बनी नंदी की शानदार मूर्ति स्थापित है। विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी लोकमहादेवी ने पल्लवों पर उसके तीन बार विजय के उपलक्ष्य में 740 ई. में करवाया था। भगवान शिव का एक नाम विरुपाक्ष भी है जो दक्षिण भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है अतः यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
विरुपाक्ष मंदिर पूर्णतः द्रविड़ शैली में निर्मित है। इस मंदिर में मंडप की दीवारों और स्तम्भों पर रामायण के दृश्यों को शानदार तरीके से दर्शाया गया है। इन दृश्यों का दर्शाने वाला महान शिल्पकार और वास्तुकार गण्ड था। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार गण्ड के ही कहने पर इस मंदिर के शिल्पकारों को करों से मुक्त कर दिया गया था। चालुक्यकाल में सर्वप्रथम विरुपाक्ष मंदिर में गोपुरम देखने को मिलता है। इस मंदिर के अभिलेख को उत्तर भारतीय ज्ञानशुभाचार्य ने लिखा था और यही इस मंदिर के प्रथम पुजारी भी थे। कुलमिलाकर विरुपाक्ष मंदिर के दर्शन करने मात्र से हमें हमारी प्राचीन संस्कृति और संस्कारों का बोध होता है।
7. महानंदी मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर के सम्मुख एक वर्गाकार मंडप में विशाल नंदी की मूर्ति स्थापित है। यह नई मूर्ति है इससे पहले की मूर्ति का चित्र मैंने नीचे लगाया है।
8. मल्लिकार्जुन मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर के निकट स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर का निर्माण चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वितीय की कनिष्ठ रानी तथा लोकमहादेवी की बहिन त्रिलोक महादेवी द्वारा हुआ था। उनके नाम पर इस मंदिर के देवता त्रिलोकेश्वर कहलाये। इस मंदिर में कृष्ण लीला से संबंधित चित्र दीवारों और स्तम्भों पर देखने को मिलते हैं।
9. काशी विश्वेश्वर मंदिर
सुन्दर अलंकृत साजसज्जा से सुसज्जित भगवान शिव का यह मंदिर उत्तर भारत की नागर शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण ८वीं से नौवीं शताब्दी के मध्य निर्मित होने का अनुमान है। इस मंदिर को देखकर चालुक्यों की नागर शैली पर प्रवीणता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
10. जम्बूलिंगेश्वर मंदिर
पत्तदकल मंदिर समूह के अन्य चित्र
MALPRABHA RIVER |
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