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कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 2
कोंकण रेलवे की एक यात्रा
भारत के सुंदर प्राकृतिक क्षेत्रों में कोंकण क्षेत्र का प्रमुख स्थान है। इस क्षेत्र के अंतर्गत महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक कुछ भाग शामिल हैं। कोंकण में एक तरफ अथाह समुद्र है तो वहीँ दूसरी ओर पश्चिमी घाटों के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं, इन पहाड़ों से निकलने वाली नदियाँ और झरने, इसकी प्राकृतिक सुंदरता को एक अविस्मरणीय अनोखा रूप देते हैं।
मुख्यतः कोंकण क्षेत्र के वनों में अनेक किस्मों के पेड़ पौधे देखने को मिलते हैं जिनसे अनेकों प्रकार की दुर्लभ जड़ीबूटियां भी प्राप्त होती हैं। मानसून के समय में कोंकण क्षेत्र की सुंदरता अपने उच्चतम शिखर पर होती है जिसे एकबार देखने वाला, जीवनपर्यन्त उसे भुला नहीं पाता।
प्राचीन समय में कोंकण के घने वनों और पहाड़ों के मध्य आवागमन बहुत ही दुर्लभ था, किन्तु वर्तमान में यहाँ सड़कों के साथ साथ रेल मार्ग भी सुचारु है। यह रेलमार्ग समुद्र और पश्चिमी घाटों के पर्वतों के मध्य से होकर गुजरता है। जिसपर अनेकों सुरंगें और छोटे बड़े पुल दिखाई देते हैं।
इस रेलमार्ग का सञ्चालन भारतीय रेलवे की एक शाखा 'कोंकण रेलवे' करती है जो भारत के 19 रेलवे जोनों में से एक है। कोंकण रेलमार्ग की कुल लम्बाई 756 किमी है और यह महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक तीन राज्यों को आपस में जोड़ता है। यह महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के ठोकूर स्टेशन पर समाप्त होता है।