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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
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शनिवारवाड़ा देखने के बाद दादाजी ने अपनी कार से हमें शिवाजी बस स्टैंड पर छोड़ दिया। उनसे दूर होने का मन तो नहीं कर रहा था परंतु मैं और माँ इस वक़्त सफर पर थे और सफर मंजिल पर पहुँच कर ही पूरा होता है, राह में अपने मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं परंतु मंजिल हमेशा राही का इन्तज़ार करती है। और इसवक्त हमारी अगली मंजिल थी भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की ओर। बस स्टैण्ड पर धीमी धीमी बारिश हो रही थी, काफी बसें यहाँ खड़ी हुई थीं परन्तु भीमाशंकर की ओर कौन सी जाएगी ये पता नहीं चल पा रहा था।
मैं पूछताछ केंद्र पर गया और भीमाशंकर की बस के बारे में पूछा, वहां एक लेडीज बैठी हुई थी जो मेरे सवाल का जवाब मराठी भाषा में ही दे रही थी, मैं समझ नहीं पा रहा था क्या करूँ । फिर अचानक एक बस माँ के पास आकर रुकी, माँ बोली सुधीर ये जाएगी भीमाशंकर इससे पूछ कर आ । मैं बस कंडक्टर के पास गया तो वो बोला भीमाशंकर तक जायेंगे। वाकई माँ, माँ होती है और उनका अनुमान उनसे भी बड़ा।
बस बिलकुल खाली पड़ी थी, एक लेडीज सवारी भी अपनी दो बेटियों के साथ बैठी थी। बस ,स्टैंड से चल दी और एक लेडीज कन्डक्टर हमारे पास आई और भीमाशंकर की दो टिकट काट दी । 180/-पर सवारी किराया था क्योंकि यह एक डिलक्स बस थी अभी हम पुणे शहर को बस में से देखते ही जा रहे थे अचानक एक फ्लाईओवर पर पहुँचकर एक जोरदार झटका लगा। हमारे बस ड्राइवर साहब ने बस के आगे चल रही I10 कार को टक्कर मार दी । हालाँकि इस एक्सीडेंट में कोई हताहत तो नहीं हुआ पर कार वाले भाईसाहब की कार जरूर टूट गई ।
करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद दूसरी बस आई और हम भीमाशंकर की तरफ रवाना हुए । पुणे के बाद से पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया और बस गोल गोल घूमती हुई पहाड़ों पर चढ़ती ही जा रही थी। रास्ते के नज़ारे काफी शानदार थे। गर हार्डडिस्क ख़राब न हुई होती आपको भी दिखाता पर पेन ड्राइव में जो बच गए थे वो आपके सामने दिखाए जायेंगे। मानसून की इस यात्रा का एक अपना ही मज़ा था और डाकिनी पर्वत की यह यात्रा मानसून के मौसम में काफी रोमांचक हो जाती है, हम जैसे जैसे ऊपर चढ़ते जा रहे थे बारिश के साथ साथ अब हम बादलों के बीच पहुँच चुके थे, यहाँ का मौसम आज ऐसा लग रहा था जैसे जनवरी के माह में उत्तर भारत में कोहरे की चादर तन जाती है ।
महाराष्ट्र की रोडवेज़ बस ने हमें भीमाशंकर मंदिर से करीब पांच किमी पहले ही छोड़ दिया यहाँ से मंदिर के लिए दूसरी मिनी बस से जाना पड़ता है। डाकिनी पर्वत एक विशाल पर्वत है इस पर्वत की तलहटी में ही भीमाशंकर का विशाल मंदिर स्थित है पर्वत से मंदिर के लिए सीढिया बनी है। मैं और माँ मंदिर में पहुंचे तो भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के शानदार दर्शन हुए, हालाँकि सावन का महीना था मंदिर में भीड़ होना लाजमी थी पर यहाँ की व्यवस्था कुछ ऐसी थी कि दर्शन भी आराम से हो गए और कोई परेशानी भी नहीं हुई ।
अब दिन ढलने की कगार पर था, सर्दी बढ़ती जा रही थी और कोहरा अब पहले से भी घना हो चला था हम वापस पर्वत पर आ गए, रास्ते में भीमा नदी का उद्गम स्थल भी मैंने देखा, एक छोटे से कुंड से भीमा नदी का उद्गम देख मुझे रास्ते में पड़ी विशाल भीमानदी की याद आ गई जो इस मानसूनी मौसम में अपने पूरे जोरों पर बह रही थी ।
पर्वत पर स्थित बाजार में मैंने एक होटल पर खाना खाया, सौ रुपये की थाली थी। माँ ने चाय पीकर ही काम चला लिया। अब वापसी की दिक्कत थी किसी ने मुझे बताया कि अब वापसी के लिए बस सुबह ही मिलेगी रात में बसें बंद हो जाती हैं और इस पहाड़ पर रुकने का होटल के सिवाय कोई इंतज़ाम नहीं था परंतु मेरा मन बार बार मुझे यही इशारा कर रहा था कि नहीं हम रात को यहाँ नहीं रुक सकते क्योंकि यात्रा के हिसाब से हमें सुबह ही नाशिक पहुंचना था। मिनी बस से हम बस स्टैंड तक तो पहुँच गए पर उस इंसान की बात सही थी यहाँ कोई बस नहीं थी और जो खड़ी थी वो सुबह होने का इंतज़ार कर रही थी ।
परंतु महादेव का आशीर्वाद और हौंसला बढ़ाने के लिए माँ साथ हो तो हर मुश्किल का हल निकल ही आता है। हमारी तरह और भी कई यात्री यहाँ थे जो पुणे या कहीं और जाना चाहते थे, रास्ते का मुख्य पड़ाव पुणे - नाशिक हाइवे पर स्थित मंचर था। हमें मंचर तक के लिए एक मिनी बस मिल गई और करीब दो तीन घंटे बाद हम मंचर बस स्टैंड पर थे। यहाँ दादाजी का फोन आया जो हमारी हर लोकेशन की जानकारी रख रहे थे और आगे के रास्ते के बारे में बता देते थे। करीब आधे पौन घंटे की प्रतीक्षा के बाद हमें नाशिक की बस मिल गई और हम नाशिक की ओर रवाना लिए ।
भीमाशंकर में घने कोहरे के बीच माँ |
BHIMASHANKAR JYOTIRLING |
JAI BHIMASHANKAR |
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Bahut badhiya bhai trayamkeshwar bhagwan ke darshan ka saubhagya 2017 me mujhe bhi mil chuka wakai adbhut hai hamare jyotirling. Jai maha dev
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