Showing posts with label उत्तर प्रदेश. Show all posts
Showing posts with label उत्तर प्रदेश. Show all posts

Thursday, April 23, 2020

CHANDERI PART - 1


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 1




   मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नजदीक स्थित चंदेरी एक पौराणिक और ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है इसे महाभारतकालीन शासक शिशुपाल ने बसाया था जो भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे और उनकी बुआ के पुत्र थे। यह चंदेरी कालान्तर में बूढ़ी चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसके अवशेष वर्तमान अथवा नई चंदेरी कुछ दूरी पर देखने को मिलते हैं। चारों तरफ से छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी चंदेरी शुरू से ही भारतीय स्थान में अपनी अमिट छाप बनाये हुए है और अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।


Monday, March 30, 2020

KOTVAN FORT


कोटवन का किला



   यूँ यो भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली ब्रजधाम का प्रसार, उत्तरप्रदेश के मथुरा के जनपद के अलावा राजस्थान और हरियाणा में भी फैला हुआ है। ब्रजधाम केवल पौराणिक स्थल ही नहीं बल्कि यह ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों की धरोहरों को भी अपने आप में संजोये हुए है जिनमें यमुना नदी, यहाँ के हरे भरे वन, सैकड़ों कुंड, पर्वतमालाएं आदि शामिल हैं।

   ब्रजधाम का मथुरा जनपद प्राचीनकाल से ही एक महाजनपद और अनेकों शासकों की राजधानी रहा है। पूरे ब्रज और मथुरा जिले में अनेकों छोटे बड़े ऐतिहासिक कालीन स्मारक और किलों के खंडहर स्थित हैं और आज हम भी एक ऐसे ही किले के खंडहरों को देखने पहुंचे जो उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा पर राष्टीय राजमार्ग 2 पर दूर दे दिखाई देता हुआ अपनी गाथा कहता है और यह किला है कोटवन का किला।

Friday, March 27, 2020

RAWAL


राधारानी का जन्मस्थल - ग्राम रावल 



 गोकुल से 6 किमी दूर यमुना नदी के किनारे रावल ग्राम स्थित है जिसके बारे में प्रचलित है कि यह ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्री राधा रानी जन्म स्थल है। यह स्थान राधारानी का ननिहाल है जहाँ महाराज वृषभान की पत्नी कीर्ति प्रतिदिन यमुना स्नान करने के बाद सूर्यदेव की आराधना करती और एक पुत्री होने कामना करतीं। एक दिन यमुना में खिलने वाले कमल पर उन्हें एक सुन्दर कन्या की प्राप्ति हुई। यही कन्या आगे चलकर राधारानी के नाम से जानी गई और भगवान श्री कृष्ण की प्रिय बनी।

Thursday, March 26, 2020

RAMAN RETI - GOKUL


रमणरेती - गोकुल 



    भाद्रपद की अष्टमी की रात जब महाराज बसुदेव, भगवान कृष्ण को लेकर मथुरा से दूर यमुना पार करके बाबा नन्द के यहाँ गोकुल ग्राम पहुंचे और वहाँ बच्चे को जन्म देते ही गहरी नींद में सो जाने वाली यशोदा के बगल में छोड़ उनकी पुत्री योगमाया को वहाँ से उठा लाये और कारागार में वापस आ गए। अगली सुबह बाबा नन्द और यशोदा को अपने पुत्र होने का ज्ञान हुआ और तभी से भगवान श्री कृष्ण नन्दलाल और यशोदा नंदन कहलाने लगे।

... 
   भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन में जिस मिट्टी पर घुटुअन चलना सीखा, विभिन्न तरह के खेल खेले आज वह भूमि खेलनवन के नाम से जानी जाती है और इसे रमणरेती भी कहते हैं। इसी भूमि पर रहकर कान्हा ने अनेकों लीलाएँ की, अनेकों दैत्यों जैसे पूतना, तृणावर्त, कागासुर आदि का संहार किया और इसके साथ ही माखन की चोरी करना, गाय चराने जाना और रेतीली मिट्टी को खाकर इस ब्रज की रज को पूजनीय बना दिया। जिनका कभी धरती पर प्रार्दुभाव नहीं हुआ वे भोलेनाथ भगवान शिव भी कान्हा के बालस्वरूप के दर्शन करने कैलाश से यहाँ इस भूमि पर पधारे और अपने चरण रज से इसको पवित्र किया। 

Sunday, February 16, 2020

SOUNKH


कुषाण कालीन मथुरा - सौंख का टीला 



    ब्रजभूमि मथुरा केवल एक पौराणिक स्थान ही नहीं बल्कि पौराणिक होने की वजह से यह भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा पर अनेकों शाशकों ने शासन किया है और मध्ययुगीन काल से पहले यह जैन और बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र भी रहा है जिसकी पुष्टि यहाँ खुदाई में मिली बौद्ध मूर्ति और जैन धर्म की वस्तुएं से होती है।  मथुरा जिले के आसपास अनेकों मिट्टी के टीले पाए गए और जब इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की निगरानी में इनकी खुदाई हुई तो इनमें से एक टीले के नीचे कुषाण कालीन अवशेषों की प्राप्ति हुई और आज टीला स्थित है मथुरा से 21 किमी दूर राजस्थान की सीमा पर स्थित सौंख में। 

   मथुरा से राजस्थान की तरफ चलने पर सौंख नामक क़स्बा पड़ता है जहाँ दूर से ही एक ऊँचे टीले के अवशेष दिखाई देते हैं। यह टीला भारतीय इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है जहाँ से खुदाई के दौरान ज्ञात हुआ कि प्राचीन काल में यहाँ तक कुषाण वंशीय सम्राट कनिष्क का साम्राज्य स्थापित था और उसके समय में मथुरा बौद्ध धर्म का एक मुख्य नगर था। सन 1969- 70 के आसपास प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता हर्बर्ट हर्टल के नेतृत्व की गई खुदाई के दौरान यहाँ कई प्राचीन काल की मूर्तियां और कलाकृतियां प्राप्त हुईं जो आज मथुरा के राजकीय संग्रहालय में देखने के लिए रखी हुईं हैं। 

   आज कंपनी के इवेंट के दौरान जब मैंने यहाँ कैंप लगाया, तो यह स्थान मेरे कैंप से कुछ ही दूरी पर स्थित था इसलिए मुझे आज यहाँ घूमने का मौका मिला और मैं इसे देखने गया तो मैंने पाया कि यह ऐतिहासिक स्थान आज अतिक्रमण का शिकार है परन्तु अतिक्रमण को बढ़ने से रोकने हेतु उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा यह पूर्णतः संरक्षण में ले लिया गया है। यहाँ प्राचीन अवशेष और उनकी दीवारें टीलों में दबी हुई दिखाई पड़ती हैं। इसके अलावा यहाँ एक ऊँचे टीले पर एक दरगाह या मजार भी बनी हुई है। 

   ब्रज की पौराणिक दृष्टि से देखा जाए तो यह स्थान गोवर्धन से 10 किमी दूर दक्षिण में स्थित है जहाँ भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी किसी भी लीलास्थली का वर्णन पुराणों में नहीं मिलता है। 


SONKH ROAD


PROTECT SITE SONKH

SONKH HISTORICAL TEELA

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH


MAZAAR AT SOUNKH

PROTECT SITE SONKH

SONKH


PROTECT SITE SONKH

PROTECT SITE SONKH


WAY TO ARCHAEOLOGICAL SITE SONKH

THANKS FOR VISIT



Wednesday, January 23, 2019

Kumud Van



कदर वन या कुमुद वन 

यूँ तो ब्रज का एक एक भाग भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से परिपूर्ण है किन्तु ब्रज में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसी दिव्य लीलाएँ की हैं जिनसे वह स्थान ब्रज के मुख्य धाम कहलाते हैं, इनमें से ही एक हैं ब्रज के द्वादश वन अर्थात बारह वन। 
ब्रज के बारह वन निम्न प्रकार हैं -

  1. मधुवन   
  2. तालवन 
  3. कुमुदवन 
  4. बहुलावन 
  5. काम्यवन 
  6. खदिर वन 
  7. वृन्दावन 
  8. भद्रवन 
  9. भांडीर वन 
  10. बेलवन 
  11. लोहवन 
  12. महावन 
इन सभी वनों में भगवान श्रीकृष्ण ने अलग अलग दिव्य लीलाएँ की हैं। बहुलावन की यात्रा मैं पहले ही कर चुका  था इसलिए अब मुझे तलाश थी कुमुदवन की। मैंने सुन रखा था कि कुमुदवन मथुरा से सौंख जाने वाले रास्ते पर कहीं है, मैं कई बार कुमुदवन की तलाश में वहां गया भी, मगर बड़े ही आश्चर्य की बात है भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े इस स्थान के बारे में ब्रजवासियों को ही नहीं पता था कि उनके आसपास कोई कुमुदवन नाम का स्थान भी है। मैंने कई बार गूगल मैप में इसे खोजने की कोशिश की, परन्तु वहां भी कुमुदवन का कोई जिक्र नहीं था परन्तु मेरा मन नहीं माना, मुझे जितनी असफलताएँ मिलती जा रही थी, उतना ही मेरा कुमुदवन को खोजने विश्वास मजबूत होता जा रहा था और वो कहते हैं ना कि विश्वास मजबूत हो तो ढूँढने से भगवान भी मिल जाते हैं अंत में आखिरकार मैंने कुमुदवन को खोज ही लिया। 

कुमुदवन :- कुमुदवन को आज कदरवन के नाम से जाना जाता है और यह मथुरा जिले का एक ग्राम है। प्राचीनकाल में यहाँ कुमुद के फूल बहुतायात मात्रा में पाये जाते थे जिनकी सुगंध के कारण यहाँ का वातावरण काफी रमणीक और सुगन्धित होता था। यह स्थान प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है, भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अपने बड़े भाई दाऊ भैया और ग्वालवालों के साथ गौचारण करते समय नित्य नई नई क्रीड़ाएँ किया करते थे। इस वन के अंदर अनेक तरह के वृक्ष तथा कुंड स्थित थे जिससे यहाँ का वातावरण सदैव हराभरा और रमणीय रहता था। आज भी यहाँ आकर और यहाँ के वातावरण को देखकर मन को असीम आनंद प्राप्त होता है। 

यहाँ आज बहुत बड़ा कुंड स्थित है जिसे कुमुदकुण्ड कहा जाता है। ब्रज विकास ट्रस्ट द्वारा इसका शानदार  सुंदरीकरण कराया गया है।  मैं इस कुंड के किनारे एक नीम के पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा रहा और सोचता रहा कि आज मैं उस स्थान पर हूँ जहाँ कभी मेरे आराध्य भगवान कृष्ण ने अपने ग्वालवालों के साथ नए नए खेल खेले होंगे और शायद आज भी बालरूप में यहाँ आकर अपने उनदिनों की यादों को ताजा कर लेते होंगे। मैं ऐसा सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी मेरे नजदीक आकर रुकी और इसमें से कुछ महिलायें और वृद्ध जन बाहर आये और कुमुदवन को निहारने लगे। यह गुजराती लोग थे जो गुजरात से यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों का भृमण कर रहे थे। 

कुमुदकुण्ड के अलावा यहाँ कुमुदबिहारी जी का शानदार मंदिर स्थित है जो कुमुदकुण्ड के नजदीक ही बना हुआ है और इसके ठीक बराबर में कपिलमुनि का मंदिर भी स्थित है। माना जाता है कि कपिल मुनि ने इस स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया था और काफी समय कुमुदवन में रहकर व्यतीत किया था। कहते हैं ब्रज में ही सारे तीर्थ स्थित हैं इसलिए कहा भी जाता है कि 'चारों धामों से निराला ब्रजधाम कि दर्शन करि लेओ जी'। कपिल मुनि के यहाँ तपस्या करने के कारण कुमुदवन को गंगासागर की महत्ता प्राप्त हुई। अगर कोई मनुष्य अपने जीवनकाल में गंगासागर की यात्रा पर नहीं जा पाता और वो अगर ब्रज में आकर कुमुदवन के दर्शन कर ले तो उसे गंगासागर की यात्रा के समान ही पुण्य प्राप्त होता है। 

इसके अलावा यहाँ महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक भी है और उसके ठीक सामने चैतन्य महाप्रभु जी की भी बैठक स्थित है। इसप्रकार दोनों महाप्रभुओं के अनुयायी यहाँ आकर अपने अपने महाप्रभुओं की भक्ति में लीन  हो सकते हैं और कुछ समय यहाँ रहकर सेवा भी कर सकते हैं। 

कुमुदवन की पहली लोकेशन 

कुमुदवन की ओर 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 


कुमुदकुण्ड 

कपिलमुनि जी का मंदिर 

महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक 



श्री कुमुदबिहारी जी मंदिर 

चैतन्य महाप्रभु जी की बैठक 

* कुमुद का फूल 


  

धन्यवाद 

*विषय उपयोगिता हेतु गूगल से लिया गया। 


ब्रज के अन्य दार्शनिक स्थल 


Monday, December 17, 2018

Jait

                                                                                              

अघासुर का वधस्थल - जय कुण्ड   
नाग मंदिर 

       वृन्दावन के नजदीक हाइवे पर स्थित जैंत ग्राम, ब्रज के चौरासी कोस की परिक्रमा में आने वाला एक प्रमुख ग्राम है। यहाँ प्राचीन समय का जयकुंड स्थित है। कहा जाता है यही वो स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस ने अघासुर नाम के दैत्य को भेजा था जो रिश्ते में पूतना राक्षसी का भाई भी था। अघासुर एक विशालकाय अजगर था जो इस इस स्थान पर आकर छुप गया और जब श्री कृष्ण गाय चराते हुए अपने ग्वाल वालों के साथ यहाँ पहुँचे तो अघासुर ने समस्त ग्वालवालों को निगलना शुरू कर दिया। भगवान श्री कृष्ण, अघासुर की इस चतुराई को समझ गए और अघासुर का निवाला बनने के लिए उसके सम्मुख आ गए। अघासुर ने बिना कोई पल गंवाए श्री कृष्ण को निगलना शुरू कर दिया। 

Tuesday, December 4, 2018

Kalinger Fort



कालिंजर किले की तरफ एक सफर





सहयात्री - गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी

       पिछली साल जब सासाराम गया था तब वहां मैंने शेरशाह सूरी के शानदार मकबरे को देखा था और वहीँ से मुझे यह जानकारी भी प्राप्त हुई थी कि उसने अपना यह शानदार मक़बरा अपने जीवनकाल के दौरान ही बनबा लिया था। सम्पूर्ण भारत पर जब मुग़ल साम्राज्य का वर्चस्व कायम हो रहा था उनदिनों मुग़ल सिंहासन पर हुमाँयु का शासनकाल चल रहा था और उन्हीं दिनों हूमाँयु के पिता और मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने बिहार में एक आम सैनिक को अपनी सेना में भर्ती किया, इस सैनिक की युद्ध नीति और कुशलता को देखते हुए बाबर ने इसे अपना सेनापति और बिहार का सूबेदार नियुक्त कर दिया था। तब बाबर ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि यही आम सैनिक आगे चलकर बाबर द्वारा स्थापित किये गए मुग़ल साम्राज्य को समाप्त कर अपना राज्य स्थापित करेगा और उसके बेटे हूमाँयु को हिंदुस्तान छोड़ने पर मजबूर कर देगा।

Saturday, September 8, 2018

Fatehpur Sikari



फतेहपुर सीकरी और सलीम चिश्ती की दरग़ाह




पिछली यात्रा - लोहागढ़ दुर्ग 

     पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान की सीमा पर स्थित आगरा शहर दुनियाभर में ताजमहल के कारण जाना जाता है परन्तु भारतीय इतिहास के अनुसार गौर किया जाये तो पता चलता है कि आगरा का अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व मुग़ल सम्राट अक़बर की वजह से है जिन्होंने ना सिर्फ यहाँ एक मजबूत किले का निर्माण कराया बल्कि इसे अपनी राजधानी भी बनाया, साथ ही अपनी मृत्यु के बाद भी उन्होंने आगरा की ही धरती को पसंद किया और अपने मरने से पूर्व ही अपना मकबरा बनवा लिया। चूँकि आगरा शहर की स्थापना सिकंदर लोदी ने की थी परन्तु आगरा का मुख्य संस्थापक सम्राट अकबर को माना गया है।

Sunday, August 5, 2018

Bateshwar


तीर्थराज भांजा बटेश्वर धाम - आगरा 


बटेश्वर रेलवे स्टेशन 


यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

       अब शाम करीब ही थी और मैं अभी भी आगरा से 72 किमी दूर बाह में ही था। नौगांवा किले से लौटने के बाद अब हम भदावर की प्राचीन राजधानी बाह में थे। मैंने सुना था कि यहाँ भी एक विशाल किला है परन्तु कहाँ है यह पता नहीं था। बस स्टैंड के पास पहुंचकर राजकुमार भाई को भूख लग आई पर उनका एक उसूल था कि वो जब तक मुझे कुछ नहीं खिलाएंगे खुद भी नहीं खाएंगे इसलिए मजबूरन मुझे भी कुछ न कुछ खाना ही पड़ता था। रक्षा बंधन का त्यौहार नजदीक था इसलिए मिठाइयों की दुकानें घेवरों से सजी हुई थीं। मैंने अपने लिए घेवर लिया और भाई ने वही पुरानी समोसा और कचौड़ी। दुकानदार से ही हमने किले के बारे में और बटेश्वर के लिए रास्ता पूछा। उसने हमें बाजार के अंदर से होकर जाती हुई एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये रास्ता सीधे बटेश्वर के लिए गया है इसी रास्ते पर आपको बाह का किला भी देखने को मिल जायेगा। 

Noungawa Fort


नौगँवा किला - एक पुश्तैनी रियासत




पिछली यात्रा - पिनाहट किला 
   
     अटेर किला न जा पाने के कारण अब हमने बाह की तरफ अपना रुख किया। पिनाहट से एक रास्ता सीधे भिलावटी होते हुए बाह के लिए जाता है। इस क्षेत्र में अभी हाल ही में रेल सेवा शुरू हुई है जो आगरा से इटावा के लिए नया रेलमार्ग है। इस रेल लाइन का उद्घाटन भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई के समय में हुआ था किन्तु कुछ साल केंद्र में विपक्ष की सरकार आने की वजह से इस रेल मार्ग को बनाने का काम अधूरा ही रहा। अभी हाल ही में ही रेल लाइन पर रेल सेवा शुरू हुई है। यह रेल मार्ग अब हमारे सामने था, जिसे पार करना हमें मुश्किल दिखाई दे रहा था। रेलवे लाइन के नीचे से सड़क एक पुलिया के जरिये निकलती है जिसमे अभी बहुत अत्यधिक ऊंचाई तक पानी भरा हुआ था इसलिए मजबूरन हमें बाइक पटरियों के ऊपर से उठाकर निकालनी  पड़ी और हम भिलावटी गांव पार करते हुए बाह के रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

Pinahat Fort


चम्बल किनारे स्थित -  पिनाहट किला

पिनाहट किला 


    आज मेरा जन्मदिन था और आज सुबह से बारिश भी खूब अच्छी हो रही थी इसलिए आज मैं कहीं घूमने जाना चाहता था इसलिए मैंने भिंड में स्थित अटेर दुर्ग को देखने का प्लान बनाया। परन्तु मैं वहाँ अकेला नहीं जाना चाहता था इसलिए मैंने अपने साथ किसी मित्र को ले जाने के बारे में सोचा। आगरा में मेरे एक मित्र भाई है जिनका नाम है राजकुमार चौहान, मैंने आज कई सालों बाद उन्हें फोन किया तो मेरा फोन आने पर उन्हें कितनी ख़ुशी हुई ये मैं बयां नहीं कर सकता। उनके पास मेरा नंबर नहीं था और आगरा से मथुरा आने के बाद मैंने उनके पास कभी फोन नहीं किया, आज अचानक मेरा फोन आने से वो बहुत खुश हुए।