चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 1
मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नजदीक स्थित चंदेरी एक पौराणिक और ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है इसे महाभारतकालीन शासक शिशुपाल ने बसाया था जो भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे और उनकी बुआ के पुत्र थे। यह चंदेरी कालान्तर में बूढ़ी चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसके अवशेष वर्तमान अथवा नई चंदेरी कुछ दूरी पर देखने को मिलते हैं। चारों तरफ से छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी चंदेरी शुरू से ही भारतीय स्थान में अपनी अमिट छाप बनाये हुए है और अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
1 . चंदेरी यात्रा का प्लान और मेरे सहयात्री
बहुत लम्बे समय से मेरे मन में ललितपुर जाने का विचार बनता आ रहा था, एक बार तो मैंने ललितपुर के लिए ट्रेन में रिजर्वेशन भी करवा लिया था किन्तु किन्हीं कारणवश मैं यह यात्रा न कर सका और ललितपुर जाने का विचार, विचार ही बनकर रह गया। किन्तु इसबार मैंने ठान लिया था कि मुझे ललितपुर जाना है और देवगढ़ व् चंदेरी घूमकर आना ही है। मैंने दादर- अमृतसर एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवाया और ठीक उसी दिन लौटने का भी रिजर्वेशन जबलपुर- निजामुद्दीन एक्सप्रेस में करवा लिया था। पिछले दिनों भोपाल से घूमकर आने के बाद मध्यप्रदेश की तरफ यह मेरी दूसरी ऐतिहासिक यात्रा थी जिसका विचार मैंने अपने परम मित्र रूपक जैन जी को भी बताया और वह ख़ुशी ख़ुशी मेरे साथ इस यात्रा में मेरे सहयात्री बनने के लिए तैयार हो गए।
2. मथुरा से ललितपुर रेल यात्रा
शुक्रवार की रात मैं घर से मथुरा स्टेशन के लिए पैदल ही निकल पड़ा, सर्दियों का समय था इसलिए हरतरफ सन्नाटा सा था, एक गली में सिर्फ कुछ कुत्ते ही मुझपर भौंकते रहे जिनमें से एक ने तो मुझे काटने की भी कोशिश की किन्तु मैं सावधान था और उससे बच गया। इसके बाद मैंने एक डंडी उठाकर साथ में रख ली और मैंने स्टेशन तक अपने सफर को पूरा किया। इधर जैन साब ने भी मुझे ट्रेन का समय नजदीक आने पर फोन किया कि मैं ट्रैन में बैठ गया हूँ या नहीं। ट्रेन आने पर मैं अपनी ऊपर वाली सीट पर जाकर सो गया और जब सुबह उठा तो ट्रेन ललितपुर स्टेशन ही पहुँच रही थी। जैन साब भी सुबह सुबह भोपाल से महामना एक्सप्रेस से ललितपुर के लिए रवाना हो चुके थे।
3 . जाखलौन ग्राम की यात्रा
मेरा रिजर्वेशन ललितपुर तक ही था और मुझे यहाँ से पहले देवगढ़ पहुंचना था। गूगल मैप में मैंने देखा कि देवगढ़ का नजदीकी स्टेशन जाखलौन था जो ललितपुर से आगे दूसरा स्टेशन था और इस स्टेशन पर इस ट्रेन का स्टॉप भी था इसलिए मैंने ललितपुर पर उतरने का प्लान कैंसिल कर दिया और इसी ट्रैन से जाखलौन पहुंचा। जाखलौन स्टेशन पर झाड़ियों में एक बोर्ड मुझे दिखाई दिया जिसपर देवगढ़ के दर्शनीय स्थल और उसकी दूरी के बारे में लिखा हुआ था। जाखलौन एक छोटा स्टेशन है जो उत्तरप्रदेश का आखिरी ग्राम भी है इसके बाद मध्य प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। स्टेशन के बाहर से ही मुझे एक ऑटो मिल गया जिसके द्वारा मैं स्टेशन से 4 किमी दूर बसे जाखलौन ग्राम पहुंचा।
4. जाखलौन ग्राम और देवगढ़ रोड
जाखलौन से ही सीधा रास्ता देवगढ़ के लिए जाता है जो यहाँ से लगभग 10 किमी दूर स्थित है। देवगढ़ में गुप्तकालीन दशावतार भगवान् विष्णु का ऐतिहासिक मंदिर है जिसका निर्माण आठवीं शताब्दी में गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने करवाया था इसके अलावा यहां अनेकों जैन मंदिर एवं बौद्ध मंदिर स्थित हैं। अभी सुबह सुबह का समय था इसलिए अभी यहाँ से कोई भी साधन देवगढ़ जाने के लिए उपलब्ध नहीं था। यहाँ से देवगढ़ के लिए प्राइवेट डग्गेमार गाड़ियां ही चलती हैं जो अभी शुरू नहीं हुई थीं। मैंने काफी देर यहाँ देवगढ़ जाने वाले साधन का इंतज़ार किया किन्तु काफी देर इंतज़ार करने के बाद भी जब मुझे कुछ नहीं मिला तो मैं वापस स्टेशन की तरफ बढ़ चला क्योंकि जैन साब भी ललितपुर पहुँचने वाले थे और मुझे उनके साथ आज चंदेरी तो जाना ही था।
5. जाखलौन से ललितपुर वापसी रेल यात्रा
जाखलौन स्टेशन पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का स्टॉप है और उसका टाइम भी अब हो चला था। मैं ऑटो द्वारा स्टेशन पहुँच गया। अभी ट्रेन आई नहीं था इसलिए मैं स्टेशन परिसर में ही घूमता रहा थोड़ी देर बाद ललितपुर की तरफ एक ट्रेन मेरे सामने से गुजरी जो महामना एक्सप्रेस थी, इसी ट्रेन से जैन साब भोपाल से आये हैं किन्तु यहाँ इसका स्टॉप ना हो पाने के कारण यह यहाँ नहीं रुकी और जैनसाब सीधे ललितपुर पहुँच चुके थे। इसके पीछे ही छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस भी आ गई किन्तु इसने यहाँ अपने बाद आने वाली तीन ट्रेनों को पहले निकाला इसलिए यह ललित पुर पहुँचने में थोड़ी लेट हो गई।
6. ललितपुर से चंदेरी बस यात्रा
ललितपुर पहुँचने पर मेरी मुलाकात जैन साब से हुई और मैंने अपना बैग यहीं क्लॉकरूम में जमा करा दिया। इसके बाद हम एक ऑटो द्वारा ललितपुर के बस स्टैंड पहुंचें जहाँ एक शानदार चाय पीने के बाद हम एक प्राइवेट बस द्वारा चंदेरी की तरफ रवाना हो गए। जैनसाब के साथ बातों ही बातों में सफर कब कट जाता है पता ही नहीं चलता, उनकी बातें किसी भी बोर होते इंसान में एक नई ताजगी जगा देती हैं और एक नई स्फूर्ति सी पैदा कर देती हैं। बेतवा नदी पार करने के बाद अब बस मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर चुकी थी। यहाँ बेतवा नदी पर एक बड़ा बाँध बना हुआ है जो राजगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है।
7. चंदेरी और बस स्टैंड
चंदेरी की सीमा शुरू होते ही बस, घाट सेक्शन में गोल गोल एक पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर देती है हुए इस पहाड़ को पार करने बाद यह सीधे चंदेरी नगर में ही नीचे उतरती है। एक बाईपास रोड द्वारा हम चंदेरी बस स्टैंड पहुंचे और बस से उतरते ही जैन साब ने मुझे याद दिलाया की हम बस वाले को उसका किराया देना भूल गए थे जबतक मुझे यह याद आया तब तक बस चंदेरी से निकल चुकी थी। बस स्टैंड के नजदीक एक जनरल स्टोर की दुकान वाले भाई से जैन साब ने बातों ही बातों में मित्रता कर ली और चंदेरी को एक दिन में पूरा घूमने का उपाय पुछा। दुकान वाले ने अपने जानकार एक ऑटो वाले को फोन करके बुलाया और वह हमें चंदेरी घुमाने को तैयार हो गया।
8. चंदेरी का इतिहास और उसकी भौगोलिक स्थिति
ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार चंदेरी के दुर्ग का निर्माण गुप्तकालीन सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने करवाया था और इसे चंद्र नगर के नाम से जाना गया। कालांतर में यही चंद्र नगर, चंदेरी के नाम से प्रख्यात है। चंदेरी नगर, मालवा और बुंदेलखंड की सीमा रेखा पर स्थित है और यहीं से मालवा से बुंदेलखंड के लिए प्राचीन व्यापारिक मार्ग भी होकर गुजरता था इसलिए चंदेरी इतिहास के प्रमुख शासकों का मुख्य केंद्र बिंदु रहा है। चंदेरी की जलवायु भी विषम है और प्राकृतिक वातावरण तथा भौगोलिक रूप से यहाँ पहाड़ी, जंगल, झीलें और नदियां हैं इसलिए इतिहास के अधिकाँश शासकों ने इसे अपने राज्य में मिलाने के लिए अनेकों युद्ध इसकी धरती पर लड़े।
9. दिल्ली सल्तनतकाल में चंदेरी
13 वीं शताब्दी में जब दिल्ली सल्तनतकाल के दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने यहाँ आक्रमण किया और चंदेरी के संपन्न राज्य को जी भर कर लूटा। चंदेरी को लूटने के बाद ही उसे यहाँ देवगिरि की धन सम्पदा का ज्ञान हुआ था और उसने अपना अगला अभियान दक्षिण भारत की तरफ देवगिरि को लूटने के इरादे से किया। देवगिरि से लौटने के बाद जब वह दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ और सुल्तान बना तब उसने चंदेरी सहित मालवा को अपने राज्य अधिकार में ले लिया। इसप्रकार चंदेरी अब दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गई और इस पर खिलजियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
10. चंदेरी पर मुग़ल साम्राज्य
15वीं शताब्दी में जब बाबर ने भारत पर आक्रमण किया तब भारत में एक नए विशाल राजवंश का उदय हुआ जिसे भारतीय इतिहास में मुग़ल वंश के नाम से जाना गया। खानवा के युद्ध में जब बाबर का सामना मेवाड़ के राणा सांगा से हुआ तब उसे राजपूती सेना से भारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था जिसका प्रमुख कारण था कि राणा सांगा की सेना के साथ आस पास के राज्यों के हिन्दू शासक भी इस युद्ध में शामिल हुए थे जिसमें चंदेरी के राजा मेदिनी राय भी अपनी सेना सहित वीरता पूर्वक लड़े थे।
बाबर की सेना जब खानवा के युद्ध में परास्त होती दिखी तो बाबर ने अपनी सेना को ऐसा भाषण दिया जिससे निराश होती मुग़ल सेना में फिर से नए जोश की लहर दौड़ सी गई और अंत में उन्होंने राणा साँगा को खानवा के युद्ध में परास्त किया क्योंकि बाबर शुरू से ही एक कुशल सेनानायक रहा था और उसे सेना का नेतृत्व करने का अच्छा अभ्यास भी था।
11. चंदेरी पर बाबर का आक्रमण
बाबर ने खानवा का युद्ध जीत तो लिया किन्तु वह शत्रु पक्ष को ओर से लड़े चंदेरी के शासक मेदिनीराय को नहीं भूल पाया था क्योंकि उसकी सेना की जो भारी क्षति हुई थी उसके लिए वह चंदेरी के शासक को सबसे बड़ा जिम्मेवार मानने लगा था और और वह उनकी प्रतिष्ठा एवं योग्यता से भली भाँति परिचित भी था इसलिए उसने मेदिनीराय के पास एक संधि प्रस्ताव भेजा और वचन दिया कि वह चंदेरी के बदले उन्हें शमशाबाद क जागीर देगा किन्तु मेदिनीराय ने उसके संधि प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसलिए अगले ही वर्ष दिसंबर 152७ ई. में उसने अपनी सेना का रुख चंदेरी की तरफ कर दिया और शीघ्र ही उसने चंदेरी के बाहर अपना डेरा डाल दिया।
चंदेरी का दुर्ग एक ऊँचे पहाड़ पर था जिसे चारों तरफ से विंध्य की पहाड़ियों का संरक्षण प्राप्त था अतः चंदेरी के दुर्ग तक पहुँचने के लिए इन पहाड़ियों को पार करना आवश्यक था जो कि बाबर की सेना और उसकी तोपों को दुर्ग तक पहुँचाने के लिए एक असंभव कार्य था। बाकी चंदेरी नगर में प्रवेश के जो मुख्य मार्ग थे वह हिन्दू सेना द्वारा बंद कर दिए गए थे और सुरक्षित थे अतः चंदेरी बाहरी आक्रमण से पूर्णतः सुरक्षित थी।
मेदिनीराय को जब यह पता चला कि मुग़ल सेना ने चंदेरी को चारों तरफ से घेर लिया है और नगर के बाहर अपना डेरा डाल दिया है, यह जानकर भी वह निश्चिन्त रहा क्योंकि उसे भरोसा था कि बिना मुख्य प्रवेश द्वार के चंदेरी में घुसने का शत्रु के पास कोई विकल्प नहीं है और वह शीघ्र ही यहाँ से अपनी सेना लेकर वापस लौट जाएगा। किन्तु बाबर के आत्मविश्वास और दृढ़शक्ति को यह वीर हिन्दू शासक न समझ सका और चंदेरी को शत्रुओं से बचाने का कोई ठोस कदम भी नहीं उठाया गया। कई दिन डेरा डाले रहने के बाद भी जब बाबर को चंदेरी में प्रवेश करने का कोई उपाय नहीं सुझा और उसकी सेना भी भूख प्यास से व्याकुल होने लगी तो उसने चंदेरी से लौटने का निर्णय लिया किन्तु। ..
JAKHLAUN RAILWAY STATION |
TOURISM BOARD ON JAKHLAUN RAILWAY STATION |
DEVGARH ROAD - JAKHLAUN |
MORNING TEA AT JAKHLAUN VILLAGE |
JAKHLAUN VILLAGE |
JAKHLAUN CROSSING |
JAKHLAUN RAILWAY STATION |
ME AND ROOPAK JAIN SAAB IN BUS TO CHANDERI |
CHANDERI ROAD |
CHANDERI ROAD |
CHANDERI ROAD |
RAJGARH DAM - LALITPUR CHANDERI ROAD |
BETAWA BRIDGE AT CHANDERI ROAD |
BETAWA RIVER |
WELCOME TO CHANDERI |
THANK YOU
No comments:
Post a Comment
Please comment in box your suggestions. Its very Important for us.