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Friday, November 19, 2021

VISHNU VARAH - KARITALAI

 विष्णु वराह मंदिर और कच्छ - मच्छ की प्रतिमा  - कारीतलाई 

यात्रा दिनांक -  12 जुलाई 2021 

सतयुग में जब हिरण्याक्ष नामक एक दैत्य पृथ्वी को पाताललोक के रसातल में ले गया तो भगवान विष्णु को वराह रूपी अवतार धारण करना पड़ा और हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को रसातल से बाहर लेकर आये। उनका यह अवतार वराह भगवान के रूप में पृथ्वी पर पूजा जाने लगा जो कालांतर में भी पूजनीय है। किन्तु पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य, भारतवर्ष में भगवान विष्णु का यह अवतार सबसे मुख्य और सबसे अधिक पूजनीय रहा। 

अनेकों हिन्दू शासकों ने वराह भगवान को अपना ईष्ट देव चुना और वराहरूपी प्रतिमा को अपना राजचिन्ह। इसी समय में मध्य भारत में भगवान वराह की अनेक प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण भी कराया गया। इन्ही में से एक मंदिर मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड प्रान्त के छोटे से गाँव कारीतलाई में भी स्थित था जिसके अवशेष आज भी यहाँ देखने को मिलते हैं। 

Sunday, April 18, 2021

ITTAGI

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 16 

इत्तगि का महादेवी मंदिर 

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लकुण्डी के मंदिर देखने के बाद अपना बैग लेकर मैं बस स्टैंड पर पहुँच गया। अब मेरी अगली यात्रा इत्तगि गाँव की ओर होनी थी जहाँ ऐतिहासिक महादेवी का मंदिर मुझे देखना था, इसके लिए मैंने अपने नजदीक बैठी सवारी से  इत्तगि जाने वाली बस के बारे में पूछा, तो उसने कहा इत्तगि की बस आएगी। काफी देर तक इत्तगि जाने वाली कोई बस नहीं आई तो गुजरते वक़्त को देखकर मेरे मन में शंका उत्पन्न होने लगी और अब बार बार यही ख्याल आने लगा था कि क्या मैं आज इत्तगि पहुँच पाउँगा। मैं कर्नाटक यात्रा का जैसा कार्यक्रम बनाकर चला था क्या उसमें से इत्तगि की यात्रा पूर्ण हो पायेगी। मुझे इस बस स्टैंड पर कोई भी संतोष जनक जवाब नहीं मिल रहा था। 

LAKUNDI

 UPADHYAY TRIPS PRESENT

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 15 

लकुण्डी के ऐतिहासिक मंदिर 


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आज 6 जनवरी है और मैं आज तीन ऐतिहासिक मंदिर घूम चुका हूँ जिनमें अन्निगेरी का अमृतेश्वर मंदिर, गदग का त्रिकुटेश्वर मंदिर और डम्बल का दौड़बासप्पा मंदिर शामिल हैं। अभी आधा दिन गुजर चुका है और मैं वापस डम्बल से गदग पहुँच चुका हूँ। अब मेरी अगली यात्रा लकुण्डी की होनी है जिसके लिए मैं गदग के बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार कर रहा हूँ। दोपहर होने को है और भूख भी लगी है इसलिए यहाँ मैंने पार्लेजी का बिस्कुट का पैकेट ले लिया है। कुछ ही समय में लकुण्डी जाने वाली बस आ गई और लकुण्डी की सवारियां बस में सवार होने लगीं। इन्हीं सवारियों के साथ मैं भी लकुण्डी जाने के लिए इस बस में सवार हो गया। 

Thursday, April 15, 2021

DAMBAL

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 14 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

डम्बल का दौड़बासप्पा शिव मंदिर 

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गदग से डम्बल जाने के लिए मैं बस में बैठ गया। गदग से 25 किमी दूर डम्बल गाँव है जो कि एक ऐतिहासिक गाँव है। यहाँ भगवान शिव का प्राचीन दौड़बासप्पा नामक मंदिर स्थित है। मुझे यही मंदिर देखना था और इसीलिए मैं कर्नाटक के सुदूर में स्थित इस गाँव में जा रहा था। यह बस भी डम्बल तक के लिए ही जा रही थी। इसमें टिकट का एक तरफ से किराया 39 रूपये है। डम्बल की और भी सवारियां गदग बस स्टैंड पर इस बस का इंतज़ार कर रही थीं। जब यह बस आई तो यह पूर्ण रूप से भर गई। मैं पीछे खिड़की वाली सीट पर कंडक्टर के नजदीक बैठ गया। 

Thursday, March 18, 2021

PATTADAKAL GROUP OF TEMPLE

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 7 

विश्व विरासत स्थल - पट्टादाकल मंदिर समूह 


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मालप्रभा नदी के किनारे स्थित पत्तदकल विश्वदाय स्मारक स्थल की सूची में दर्ज है। यहाँ पश्चिमी चालुक्य सम्राटों द्वारा अनेक मंदिर स्थापित हैं। पत्तदकल, बादामी और एहोल के मध्य में स्थित है। प्राचीनकाल में इस स्थान का नाम किषुवोडल मिलता है। एहोल के बाद जब चालुक्यों का राजनीतिक उत्कर्ष हुआ तो उन्होंने अपनी राजधानी एहोल से हटाकर वातापि में स्थापित की जो आज की बादामी कहलाती है। राजधानी का यह परिवर्तन पुलकेशिन प्रथम के समय में हुआ और उसने बादामी में ही किले का निर्माण कराया। चालुक्यों के अंतिम वर्षों में राजधानी पत्तदकल में स्थानांतरित हो गई। पत्तदकल के बारे में कहा जाता है कि चालुक्यों सम्राटों का राज्याभिषेक पत्तदकल में ही पूर्ण होता था। 

Saturday, March 13, 2021

AIHOLE

 

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर - भाग 6 

ऐहोल के मंदिर 


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अब वक़्त आ चुका था अपनी उस मंजिल पर पहुँचने का, जिसे देखने की धारणा अपने दिल में लिए मैं अपने घर से इतनी दूर कर्नाटक आया था और वह मंजिल थी बादामी जो प्राचीन काल की वातापि है और मेरी इस यात्रा का केंद्र बिंदु भी। बादामी, प्राचीन काल में वातापि के चालुक्यों की राजधानी थी जिन्होंने यहाँ अजंता और एलोरा की तरह ही पहाड़ों को काटकर उनमें गुफाओं का निर्माण कराया और इन्हीं गुफाओं के ऊपर अपने किले का निर्माण कराया। बादामी से पूर्व चालुक्यों ने बादामी से कुछ मील दूर ऐहोल नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया था और वहां अनेकों मंदिर और देवालयों का निर्माण कराया था। वर्तमान में ऐहोल कर्नाटक का एक छोटा सा गाँव है मगर इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए पर्यटकों का यहाँ आना जाना लगा रहता है। 

... 

मैं सुबह 6 बजे ही बादामी पहुँच गया था और स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में नहाधोकर तैयार हो गया। चूँकि कोरोना की वजह से रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में ठहरने की सुविधा उपलब्ध नहीं है किन्तु स्टेशन मास्टर साब ने मुझे उत्तर भारतीय होने से और कर्नाटक की यात्रा पर होने से अतिथि देवो भवः का अर्थ सार्थक किया और वेटिंग रूम की चाबी मुझे दे दी। अपने गीले वस्त्रों को मैंने यहीं वेटिंग रूम में सुखा दिया था क्योंकि आज रात को ही मुझे अपनी अगली मंजिल पर भी निकलना था। इसप्रकार स्टेशन का वेटिंग रूम, मेरे लिए एक होटल के कमरे के समान ही बन गया। स्टेशन के बाहर बनी दुकान पर चाय नाश्ता करने के बाद मैंने अपने बैग को भी यहीं रख दिया और कैमरा लेकर बाहर आ गया। यह दुकान प्राचीन काल की काठ से बनी दुकान थी। 

... 

Saturday, February 6, 2021

Trip With Jain sab

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से हाथरस बाइक यात्रा 

रसखान जी की समाधी पर 

NOV 2020,

सहयात्री - रूपक जैन साब 

     आज नवम्बर के महीने की आखिरी तारीख थी मतलब 30 नवम्बर और कल के बाद इस साल का आखिरी माह और शेष रह जायेगा। आज की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी आज मेरे भोपाल वाले मित्र रूपक जैन अपनी आगरा की चम्बल सफारी की यात्रा पूरी कर मथुरा लौट रहे थे। एक लम्बे समय के बाद आज हमारी मुलाकात होनी थी बस सुबह से यही सोचकर कि जैन साब के साथ मुझे कहाँ कहाँ जाना है, अपने सारे काम समाप्त किये। ऑफिस से भी मैंने आज की छुट्टी ले ली थी क्योंकि आज का सारा दिन मुझे जैन साब के साथ घूमने में जो गुजारना था। आज हम कहाँ जाने वाले थे इसका कोई निश्चित नहीं था हालाँकि जैन साब ने मुझसे फोन पर हाथरस घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, मगर हाथरस में ऐसा क्या था जिसे देखने हम वहाँ जाएंगे। 

     अभी रूपक जैन जी आगरा में हैं कुमार के पास और उसके साथ वह मेहताब बाग़ देखने गए हैं जो ताजमहल के विपरीत दिशा में है। नदी के उसपार से ताजमहल को देखने के लिए अनेकों लोग मेहताब बाग़ जाते हैं, अनेकों फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रहती है। मैंने भी जैन साब को मथुरा में दिखाने के लिए गोकुल को चिन्हित किया जो ब्रज में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। गोकुल जाने के इरादे को दिल में लेकर मैं मथुरा के टाउनशिप चौराहे पर पहुँचा और अपने एक मित्र की दुकान पर बैठकर मैं जैन साब का आने का इंतज़ार करने लगा। जैनसाब अभी आगरा से चले नहीं थे, कुमार अपनी स्कूटी पर उन्हें ISBT तक लेकर आया और बस में बैठाकर उसने मुझे फोन कर दिया। इसके बाद मैंने अपनी लोकेशन जैन साब को भेज दी और उन्होंने अपनी लोकेशन मुझे भेज दी। इसप्रकार अब मुझे अपने मोबाइल में ही पता चल रहा था कि वह कहाँ तक पहुँच चुके हैं। 

Saturday, April 18, 2020

AIRAKHERA 2020

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 विष्णु भाई का सगाई समारोह और ग्राम आयराखेड़ा की एक यात्रा 



26 जनवरी 2020 मतलब गणतंत्र दिवस पर अवकाश का दिन।

     पिछले वर्ष जब मैं माँ के साथ केदारनाथ गया था तब माँ के अलावा उनके गाँव के रहने विष्णु भाई और अंकित मेरे सहयात्री थे और साथ ही बाँदा के समीप बबेरू के रहने वाले मेरे मित्र गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी भी मेरी इस यात्रा में मेरे सहयात्री रहे थे। 

    आज ग्राम आयराखेड़ा में विष्णु भाई की सगाई का प्रोग्राम था जिसमें शामिल होने के लिए त्रिपाठी बाँदा से सुबह ही उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से मथुरा आ गए थे। सुबह पांच बजे मैं अपनी बाइक से उन्हें अपने घर ले आया और सुबह दस बजे तक आराम करने के बाद हम आयराखेड़ा की तरफ रवाना हो गए। 

Saturday, February 1, 2020

Chila Mata Temple & Desert Village Jhanjheu

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

चीला माता मंदिर - मरुभूमि ग्राम झंझेऊ 



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श्री डूँगरगढ़ से झंझेऊ बस यात्रा 


     श्री डूंगरगढ़ स्टेशन से एक ऑटो द्वारा मैं राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर पहुंचा। यह आगरा से बीकानेर मार्ग है जो राजस्थान का एक मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग है। मामाजी ने मुझे बताया था कि यहाँ से ग्राम झंझेऊ 12 किमी के आसपास है और बीकानेर 50 किमी के आसपास। इसलिए मुझे यहाँ से बस द्वारा झंझेऊ उतरना है जो की इसी राजमार्ग पर स्थित है। मामाजी फ़िलहाल चूरू में एक रिश्तेदारी में गए हुए थे अतः वे शामतक झंझेऊ पहुंचेंगे इसलिए मैं अकेला ही अपने मामा की ससुराल झंझेऊ की तरफ एक बस द्वारा बढ़ चला। मैं यहाँ काफी सालों बाद आया था इसलिए मैंने अपने पास बैठे एक राजस्थानी सज्जन से झंझेऊ ग्राम आने पर बताने के लिए कह दिया था। 

     राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों और रेत के बड़े बड़े और ऊँचे ऊँचे टीले दिखने शुरू हो चुके थे जो मुझे एहसास करा रहे थे कि मैं अब मरुस्थलीय क्षेत्र में हूँ। यहाँ आबादी बहुत ही कम है इसलिए सड़क दूर दूर तक खाली ही नजर आ रही थी और इस खाली सड़क पर बस बड़ी ही तेज रफ़्तार से दौड़ी जा रही थी। कुछ समय बाद मैं झंझेऊ पहुँच गया। यहाँ रोड पर लगा चीला माता के मंदिर का बोर्ड ही इस ग्राम की पहचान कराता है। यह तंवरों का ग्राम है और चीला माता उनकी कुलदेवी हैं अतः यहाँ चीला माता की विशेष मान्यता है। बोर्ड के कुछ फोटो खींचने के बाद मैं ग्राम में अंदर अपने मामाजी की ससुराल की तरफ बढ़ चला। 

Monday, April 15, 2013

अदभुत ग्राम धौरपुर

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अदभुत ग्राम धौरपुर 




          धौरपुर ग्राम,  दिल्ली - हावड़ा रेल मार्ग पर स्थित हाथरस जंक्शन स्टेशन से 1 किलोमीटर दूर है। यह उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में स्थित है। हाथरस एक छोटा शहर है जिसकी सीमाए आगरा, मथुरा, अलीगढ, एटा तथा कासगंज से छूती हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती ने इसका नाम हाथरस से बदलकर महामाया नगर कर दिया था किन्तु उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद इस जिले का नाम पुनः हाथरस रख दिया गया। पता नहीं क्यों मायावती जी को जिलों के नाम बदलने में बड़ा मजा आता है जैसे कासगंज को कांशीराम नगर बनाकर या अमरोहा को ज्योतिबा फुले नगर। खैर हमारे गाँव का नाम नहीं बदलने वाला वो तो धौरपुर ही रहेगा। फिर चाहे वो हाथरस जिले में आये या अलीगढ जिले में। 

Saturday, March 16, 2013

एक यात्रा मुरसान होकर

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एक यात्रा मुरसान होकर 

     आज मैं और कुमार रतमान गढ़ी के लिए रवाना हुए। यह मेरी छोटी मौसी का गाँव है जो मथुरा कासगंज वाली रेल लाइन पर स्थित मुरसान स्टेशन से पांच किमी दूर है। आज माँ ने कहा जा अपनी मौसी के यहाँ से आलू ले आ । दरअसल मेरे मौसा जी एक किसान हैं और हरबार की तरह उनके खेतों में इसबार भी आलू हुए। इसलिए मैं भी चल दिया एकाध बोरी लेने और साथ मैं कुमार भी। 

     आगरा कैंट से होते हुए हम मथुरा पहुंचे और मथुरा से पैसेंजर पकड़कर सीधे मुरसान। मुरसान पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है जिसका मुख्यालय बड़ा ही इज्ज़तदार है मतलब इज्ज़त नगर, जो बरेली में हैं। मथुरा से कासगंज वाली पैसेंजर ट्रेनों में अधिकतर भीड़ चलती है, कारण है सड़क मार्ग से कम समय और सस्ता किराया। परन्तु हम तो मथुरा से ही सीट पर बैठकर आये थे, बस उतरने में ही थोड़ी परेशानी हुई । 

Friday, March 26, 2010

ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन

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ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन 



   बहटा मेरी मौसी का गांव है जो हाथरस - कासगंज रोड पर सलेमपुर के निकट स्थित है। प्राकृतिक वातावरण से भरपूर इस गाँव का जीवन शहरीय जीवन से बिल्कुल अलग है। यहाँ की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी जो हमें एहसास कराती है कि शहरों की सुबह की मॉर्निंग वॉक इस ग्राम की मॉर्निंग वॉक के सामने कुछ नहीं है। यहाँ कृतिम रूप से बनाये गए पार्क नहीं हैं परन्तु प्रकृति ने यहां की धरती को प्राकृतिक सुंदरता से नवाजा है जो शहरीय पार्कों की तुलना में अत्यंत ही खूबसूरत और खुशबूदार हैं। सुबह सुबह छोटी सी पगडंडियों पर चलना और चारों तरफ से आती हुई धान के खेतों की मनमोहक खुशबू मन को एहसास कराती है कि कुछ ही समय के लिए सही परन्तु मन को सच्चा सुख और ख़ुशी कहीं मिल सकती है तो वह सिर्फ प्रकृति द्वारा ही संभव है। 

   अभी मैं इन धान के खेतों के बीच से होकर आगे बढ़ ही रहा था कि मेरे सामने खेतों के बीच से धुँआ उड़ाती हुई ट्रेन गुजरी, वाकई कितना शानदार नजारा है जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस समय मौसम भी खुशनुमा बना हुआ है, आकाश में छाई काली घटायें सुबह के इस समय को और भी खूबसूरत बना रही थी। कहीं पूरब में दिखाई देने वाला वो सुबह का सूरज, आज आसमान में छाये हुए बादलों के पीछे कहीं गुम सा हो गया था परन्तु उसकी लालिमा आसमान को रंगीन बनाये हुए थी जिसे देखकर लग रहा था कि साक्षात् प्रकृति ने आसमान में एक नई चित्ररेखा तैयार की हो। अभी बस मैं पीछे मुड़ा ही था कि मेरी नजर पत्ते पर बैठे एक कीट पर गई जो देखने में बहुत ही खूबसूरत था, लाल रंग के इस कीट को प्रकृति ने काले काले घेरों से सुंदरता के साथ सजाया है। 
   मैं रेलवे लाइन पार करने के बाद गाँव की तरफ बढ़ चला। बारिश की हल्की हल्की फुहार अब बरसने लगी थीं,लोग ऐसी फुहारों से नहाने के लिए अपने घरों के बाथरूमों में बड़े बड़े शावर लगवाते हैं किन्तु आज प्रकृति ने इस गाँव को ही बिना किसी आकार का शावर प्रदान किया हुआ है जिसमें केवल इंसान ही नहीं ये पेड़ पौधे और जीव जंतु भी इस प्राकृतिक शावर का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। पीपल के पेड़ की नई पत्तियाँ इस बरसाती मौसम में और भी खिल उठी हैं और अपने रंग में जोर जोर से चमकने लगीं हैं। इस पीपल के पेड़ को देखकर लगता है जैसे कि ये अभी अभी उत्पन्न हुआ हो। गाँव की प्राथमिक पाठशाला की दीवारों पर बने चित्र और उनपर लिखी  हुईं बातें मुझे मेरे बचपन में ले जाते हैं। 

   जिस प्रकार शहरों की शान कारें हुआ करती हैं उसी प्रकार गाँव की शान यहाँ अलग अलग घरों में खड़े हुए विभिन्न तरह के ट्रैक्टर होते हैं और इतना ही नहीं इनके साथ इनके उपकरणों की भी उतनी ही विशेषता है जो गाँव के किसी भी कोने में कहीं भी हमें खड़े हुए दिखाई दे जाते हैं और वो भी बिना किसी रखवाली के। लोग शहरों में कुत्तों को पालते हैं और उन्हें अपने साथ मॉर्निंग वाक पर ले जाते हैं वहीँ गाँव में लोग गाय - भैंस अपने घरों में रखते हैं और सुबह सुबह इन्हें अपने साथ नहीं बल्कि इनके ( गाय और भैंस ) साथ मॉर्निंग वॉक पर जातें हैं। फर्क केवल इतना होता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शहरीय लोगों को ना चाहते हुए भी सुबह जल्दी उठाना पड़ता है और मॉर्निंग वॉक पर जाना पड़ता है और वहीं ग्रामीण लोग सुबह सुबह अपने पशुओं को चराने के लिए मॉर्निंग वाक पर निकलते हैं जिससे इनका शरीर स्वतः ही स्वस्थ रहता है। 

   मेरी मौसी मुझे एक बड़े गिलास में ताजा छाछ लाकर देती हैं जिसे मैं बड़ी ही देर में समाप्त कर पाता हूँ वो भी सिर्फ इसलिए कि शायद मुझे प्रतिदिन छाछ पीने का और इतने बड़े गिलास में पीने का अभ्यास नहीं है। मेरे मौसाजी सरकारी हैडपम्प से पानी भर रहे हैं जो मेरे मौसा जी के घर के ठीक बाहर लगा हुआ है। इसे देखकर मुझे याद आया कि हमारे यहाँ तो केवल एक स्विच दबाने की देर होती है और सबंसिरबल स्वतः ही पानी भर देती है जिसके लिए हम प्रत्येक महीने बिजली विभाग को कुछ रूपये भी अदा करते हैं, जबकि यहाँ शरीर की मेहनत जमीन से पानी खींचती है वो बिना किसी शुल्क के, और इसका दूसरा फायदा ये है कि नल चलाने से शरीर मेहनत करता है और स्वतः ही स्वस्थ बना रहता है। 

   गाँव के जीवन से सरावोर होने के बाद मैंने सिर्फ इतना अनुभव किया कि शहरों की तुलना में ग्रामीण लोगों का जीवन काफी सरल, सुखद और सम्पन्न होता है। ये गर्मियों के दिनों में रात को खुले आसमान के नीचे सोते हैं और शुद्ध हवा को ग्रहण करते हैं इनहें एसी और कूलर की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये रात को जल्दी सोते हैं और सुबह पौं फटने से पहले ही जाग जाते हैं जिससे सुबह की शुद्ध वायु इनके शरीर को पूरे दिन ताजा और फुर्तीला रखती है। ये पैक मिल्क नहीं पीते हैं बल्कि शुद्ध और ताजा गाय भैस का दूध पीते हैं। इनके यहाँ रोटियां मिटटी के चूल्हे पर बनाई जाती हैं जो शरीर के लिए गैस की अपेक्षा अत्यधिक लाभदायक होती हैं। ये आसपास की दूरी पैदल ही तय करते हैं जिससे ये जनहित में बाइक या कार ना चलाकर वायु प्रदूषण से बचते हैं और पैदल चलकर अपने शरीर की शारीरिक क्षमता को बढ़ाते हैं। 

   कुल मिलाकर हम कह सकते हैं की ग्रामीण लोग शहरीय लोगों की तुलना में शारीरिक रूप से अधिक मजबूत और ऊर्जावान होते हैं। यह प्रकृति की रखा तहे दिल से करते हैं इसलिए प्रकृति हमेशा इन पर मेहरबान रहती है और इन्हें हमेशा सम्पन्न रखती है।  

मीटरगेज का इंजन जो अपना कार्य और समय पूरा कर चुका है 

मेरा मौसेरा भाई - नीरज उपाध्याय 

ट्रेन में से कुछ देखते हुए 

मेंडू रेलवे स्टेशन 

मीटरगेज का पुराना स्टेशन - हाथरस रोड जहाँ पहले डबल मीटरगेज लाइन थी और आज केवल सिंगल ब्रॉड गेज लाइन है 

हाथरस रोड 

मौसी के गाँव का रेलवे स्टेशन - रति का नगला 

रति का नगला 

रति का नगला स्टेशन की सड़क से लोकेशन 

नानी को दवा देती मौसी 

मेरे मौसाजी - श्री रामकुमार उपाध्याय 

मेरी नानी - महादेवी शर्मा 

मौसाजी और मौसी जी 

पपीता काटती हुई मौसी 

मौसी का पुराना घर जिसके आगे सिर्फ खेत हैं 

रोहित उपाध्याय - मेरी मौसी का सबसे छोटा पुत्र 

मेरी पुरानी  बाइक के साथ मेरा एक फोटो - कोडेक कैमरे से 

   बहुत पुरानी यात्रा है इसलिए केवल संस्मरण ही मुझे याद थे बाकी जो उस समय के कुछ फोटो मैंने अपने कोडेक के कैमरे में और मोबाइल में लिए थे आप सभी के सामने हैं। इस ब्लॉग में अगर कोई कंटेंट ऐसा लिख गया हो जो आपकी नजर से गलत या ना लिखने लायक हो तो कृपया नीचे दिए गए कंमेंट बॉक्स में अवश्य बताइयेगा। बाकी कोई त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए तहे दिल से क्षमा प्रार्थीं हूँ। 
आपका - सुधीर उपाध्याय 


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Wednesday, February 10, 2010

आयराखेड़ा यात्रा

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साधना की शादी में - आयराखेड़ा यात्रा



 

FEB 2010,

    आज दस तारीख थी और आज मेरी प्रिय ममेरी बहिन साधना की शादी है। मैं साधना को प्यार से बहना कहकर बुलाता हूँ,  मुझे अच्छा लगता है और साधना को भी। हालाँकि उसकी शादी आगरा में ही हो रही है और शाम को बारात भी आगरा से ही आयराखेड़ा जायेगी परन्तु मुझे बारात से पहले ही वहां पहुँचना होगा। इसलिए मैं बिना देर किये मंगला एक्सप्रेस से मथुरा पहुंचा। यहाँ कासगंज से मथुरा वाला रेलखंड अभी हाल ही में मीटरगेज से ब्रॉडगेज में बदला गया है इसलिए यहाँ नई गाड़ियों का उदघाटन हो रहा था। पहली थी मथुरा से छपरा तक जाने वाली एक्सप्रेस गाड़ी और दूसरी कासगंज से मथुरा पैसेंजर। 

    मैं इस फूलमाला से लदी नई ट्रेंन से राया पहुँचा और फिर वहाँ से आयरा खेड़ा पहुँचा। जैसा कि अपनी पिछली पोस्ट में बता चुका हूँ कि आयराखेड़ा मेरी माँ का गॉव है और मेरी ननिहाल है। मैं जब यहाँ पहुँचा तो साधना मुझे देखकर बहुत खुश हुई। आज बारात आनी थी इसलिए उसकी तैयारी भी करना जरूरी थी। मैं साधना के बड़े भाई धर्मेंद्र शर्मा जिन्हें मैं हमेशा अपने सगे बड़े भाई के रूप में ही मानता आया हूँ उनके साथ बाइक से मुरसान की तरफ निकल गये और कुछ सामान लेकर वापस आये। रास्ते में मैं सोचता आ रहा था कि जिंदगी में कभी कभी ही ऐसे मौके आते हैं जब हम एक साथ होते हैं और साथ घूमते हैं। इसवक्त ना किसी नौकरी की कोई टेंशन होती है और नाही किसी दूसरी बात की कोई फ़िक्र। 

    मैं जब भी आयराखेड़ा जाता हूँ अपनी सारी टेंशनों को भूलकर दिल से यहाँ भरपूर एंजॉय लेता हूँ। यहाँ रहने  वाला हर शख़्स मुझे बहुत मानता है और मेरी इज़्ज़त भी करते हैं। मैं इन लोगों के साथ अपनी जिंदगी के हर सुखदुख को शेयर करता हूँ। आज तो मेरी प्रिय बहिन की शादी है मुझे इस बात का इतना दुःख नहीं था कि वो आज हमेशा के लिए आयराखेड़ा से अपने घर जाने वाली थी बल्कि ख़ुशी इस बात की थी कि आज वो मेरे शहर आगरा में जा रही थी यानी कि मेरे पास ही आने वाली थी। शाम को बारात आ गई, नोहरे की गली में ही बफर सिस्टम का प्रोग्राम था। बारात ने नाश्ता और दावत खाने के बाद इस गॉव से आगरा के लिए विदाई ली और बाकी लड़के वालों के कुछ गिने चुने सदस्य ही यहाँ रह गए। 

    मेरी प्रिय मीरा मौसी भी यहाँ शादी में अपने पति के साथ आई हुई थी। गोपाल, जीतू और धर्मेंद्र भैया यही तो सब मेरे बचपन के साथी थे। इनमें गोपाल और मुझे छोड़कर सभी की शादी हो चुकी है और यह अब अपनी बचपन की जिंदगी को भूलकर अपने परिवार के लिए जी रहे हैं यही तो जिंदगी है जिसमे भूतकाल के लिए कोई जगह नहीं होती। सिर्फ आगे बढ़ने का ही नाम जिंदगी है। साधना भी अब बचपन की यादों को दिल में लेकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रही है। मैं ईश्वर से कामना करता रहा कि मेरी बहिन को उसके यहाँ वो सारी खुशियाँ मिलें जो उसे नहीं मिल पाईं थीं और फिर वो जहाँ जा रही है वहां हर पल उसके साथ मैं रहूँगा ही। 



बाद रेलवे स्टेशन 

मथुरा जंक्शन पर एक केबिन 


मथुरा छपरा एक्सप्रेस का उदघाटन 

नई मथुरा कासगंज पैसेंजर 

धर्मेंद्र भैया सोनाई रेलवे स्टेशन पर 

सोनई 

अनिल उपाध्याय और धर्मेंद्र भैया 


साधना - शादी से पहले 


भात पहनाते ब्रजेश मामा 

शादी में वीके 

शादी वाली रात साधना 

अपने पुत्र सनी के साथ भाई 

शादी की हार्दिक शुभकामनायें 

बफर सिस्टम 

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Thursday, March 7, 2002

AIRAKHERA : 2002

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आयराखेड़ा ग्राम की एक बारात

MAR 2002,

     काफी पुरानी बात है जब मैं हाई स्कूल में था और मेरी बोर्ड के एग्जाम नजदीक थे। मेरा आज साइंस का प्रेक्टिकल था। लैब में मुझसे एक वीकर और एक केमिकल की बोतल फूट गई जिस कारण सर ने मुझे तोड़ दिया। सजा पाकर थका हारा जब मैं घर पहुंचा तो माँ ने याद दिलाया कि आज मेरी दूर की मौसी की शादी है इसलिए मुझे आयराखेड़ा जाना पड़ेगा मैंने घडी में देखा तो दोपहर के डेढ़ बजे थे यानी आगरा कैंट से मथुरा के किये कोई ट्रेन नहीं थी ।

    आयरा खेड़ा मेरी माँ का गाँव है जो मथुरा कासगंज रेल मार्ग पर स्थित राया स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर है। आयराखेड़ा गाँव का नाम सरकारी कागजों में बिन्दुबुलाकी है, अतः गूगल मैप में भी इसे बिन्दुबुलाकी के नाम से ही खोजा जा सकता है। मुझे याद आया कि आगरा फोर्ट से मथुरा के लिये एक ट्रेन है जिसका नाम है गोकुल एक्सप्रेस ।