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Friday, May 23, 2025

UJJAIN CITY AND KSHIPRA RIVER

 अवंतिका से मालवा की एक मानसूनी यात्रा - भाग 1 

उज्जैन में रामघाट पर क्षिप्रा स्नान 

यात्रा दिनाँक : - 29 जुलाई 2023 

    मानसून का मौसम यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त और बेहद सुहावना मौसम होता है। मानसून के दौरान किसी भी स्थान की सुंदरता अपने पूर्ण चरम पर होती है और यही सुंदरता एक सैलानी के मन को यात्रा के दौरान उत्साह और आनंद से भर देती है। हम इसी मानसून में गत माह कोंकण और मालाबार की यात्रा पर गए थे जहाँ हमने केरला की राजधानी तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा पूर्ण की थी, 

इसी यात्रा में वापसी के दौरान हम केरल के मालाबार तट, पुडुचेरी के माहे नगर, कर्नाटक के मुरुदेश्वर, गोवा की राजधानी पणजी और ओल्ड गोवा एवं कोंकण रेलवे की यात्रा पूर्ण करके घर वापस लौटे थे। किन्तु मानसून अभी भी बरक़रार था और यह हमें फिर से उत्साहित कर रहा था एक और नई यात्रा करने के लिए। 

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   मैं पिछले कई वर्षों से मानसून के दौरान प्राचीन राज्य मालवा और इसकी मध्यकालीन राजधानी मांडू की यात्रा करना चाहता था। ऑफिस में बैठे बैठे मैंने इस यात्रा का प्लान तैयार किया और अपने सहकर्मी सोहन भाई को इस यात्रा में अपना सहयात्री चुना। सोहन भाई इस यात्रा के लिए तुरंत तैयार हो गए और हमारा यात्रा प्लान अब कन्फर्म हो गया। 

मैंने इस यात्रा को प्राचीन अवन्ति, अर्थात उज्जैन से शुरू करके इंदौर, महेश्वर और मांडू तक पूरा करने का निर्णंय लिया जिसमें अधिकांश मालवा का भाग शामिल था। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश कहलाता है, और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण एवं  अनुपम दृश्यों से भरपूर है। 

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    यूँ तो मध्य प्रदेश बहुत ही शांत और सुन्दर प्रदेश है किन्तु यहाँ आवागमन के लिए साधन पर्याप्त सुलभ नहीं हैं अतः यहाँ घूमने के लिए अपना वाहन ही सर्वोत्तम है। इसलिए हमें एक बाइक की आवश्यकता थी जिससे हम अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा को सुगम और सरल बना सकते थे। मैंने उज्जैन में किराये पर मिलने वाली बाइक के बारे में पता किया, किन्तु कोई भी संतुष्टिजनक उत्तर नहीं मिला ,अन्ततः मैंने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाले अपने परम मित्र रूपक जैन जी से अपनी इस यात्रा को साझा किया और उन्हें अपनी यात्रा परेशानी का कारण बताया। 

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   रूपक जैन जी एक उच्च स्तर के घुमक्क्ड़ हैं, उन्होंने देश के विभिन्न स्थलों और अनेकों दुर्गम स्थानों की यात्रायें की हैं। मेरे ऐतिहासिक यात्रा पटल को वह बहुत अच्छे तरीके से समझते और जानते हैं और उन्हें पता है कि यात्रा दौरान मेरे लिए क्या सही और उचित रहेगा। रूपक जैन जी ने मेरी परेशानी का तुरंत निदान किया और उज्जैन में हमारे लिए एक बाइक की व्यवस्था करा दी। 

जैन साब ने हमारी इस यात्रा की सबसे बड़ी परेशानी को सिद्ध कर दिया था अतः अब हमारी इस यात्रा में कोई बाधा शेष न बची थी। मालवा घूमने के लिए मेरे साथ सहयात्री के रूप में सोहन भाई थे, सुलभ आवागमन के लिए जैन साब ने बाइक उपलब्ध होने का आश्वासन दे ही दिया था और मथुरा से उज्जैन के लिए ट्रेन में हमारी सीट भी कन्फर्म थी अतः अब हमारी यह यात्रा पूर्ण रूप से पक्की हो चुकी थी। 

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    जल्द ही यात्रा की तारीख आ गई और मैं शाम को माँ से आशीर्वाद लेकर अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा के लिए रवाना हो चला। हमारे घर किराये पर रह रहे साहिल ने मुझे अपनी बाइक से रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया और थोड़ी देर बाद सोहन भाई भी,अपने दो मित्रों मानवेन्द्र और नंदू कुंतल के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच गए। सचमुच सोहन भाई बहुत ही भाग्यशाली हैं जिनके पास ऐसे मित्र हैं जो आधी रात को भी अपने मित्र को यात्रा के दौरान रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये और ट्रेन के रवाना होने तक साथ रहे। रात को 11 बजे के आसपास नईदिल्ली - इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से मैं और सोहन भाई मालवा के लिए रवाना हो चले। 

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   अगली सुबह हम मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन पर थे। यहाँ से ट्रेन का इंजन आगे से हटकर पीछे लगता है और ट्रेन पुनः विपरीत दिशा में जाने के लिए तैयार होती है इसलिए यह यहाँ काफी देर ठहरती है। इस बीच ट्रेन के मुसाफिरों को रेलवे स्टेशन पर चाय पीने और नाश्ता करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। 

मैंने और सोहन भाई ने इस समय का भरपूर उपयोग किया और चाय नाश्ता करके आगे की यात्रा के लिए अपने उत्साह को बनाये रखा। शीघ्र ही ट्रेन नागदा से रवाना हो चली। अब यह उज्जैन की तरफ बढ़ रही थी, मध्य प्रदेश की इस ठंडी सुबह में   तरोताजा हवा की महक हमारे मन को प्रफुल्लित कर रही थी। जल्द ही हम उज्जैन रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

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   रेलवे स्टेशन के बाहर ही हमें महाकाल मंदिर जाने के लिए एक ई रिक्शा मिल गया जिसने उज्जैन की गलियों में से होकर जल्द ही हमें महाकाल मंदिर के समीप छोड़ दिया। हालांकि आज इस्लामिक पर्व बारावफात था जिसकी तैयारी अनेकों स्थानों पर चल रही थी और हमें कई स्थानों पर रास्ते बंद भी मिले किन्तु ई रिक्शा चालक होशियार था उसने गलियों से होकर हमें महाकाल मंदिर तक पहुंचा दिया था। सावन का महीना चल रहा है, भगवान शिव के अनेकों भक्त अपने आराध्य महाकाल जी के दर्शन हेतु उज्जैन आये हुए थे और उज्जैन की प्रत्येक गली भगवा ध्वजों से सजी हुई दिखाई दे रही थीं। हर तरफ बम बम भोले के जयकारे गूंजते सुनाई पड़ रहे थे। 

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   हमें जैन साब के बताये गए पते पर पहुँचना था जो रामघाट के नजदीक था, इसलिए हम अब पैदल पैदल ही रामघाट की ओर बढ़ चले। मार्ग में एक प्राचीन मंदिर दिखाई दिया जो कालांतर में भी पूजनीय है। यह चौबीस खंभा माता का मंदिर है, अनेकों झंडे माता के इस मंदिर पर लहरा रहे थे और मंदिर का भवन प्राचीन अवंतिका की शोभा को प्रदर्शित कर रहा था। 

इस मंदिर में प्राचीन चौबीस खम्भे लगे हैं इसलिए इसे चौबीस खम्भा मंदिर बोलते हैं। माता के दर्शनों के पश्चात हम शीघ्र ही उस पते पर पहुँच गए जो हमें रूपक जैन जी ने बताया था किन्तु यहाँ जाने से पूर्व हम, इससे थोड़ा सा आगे रामघाट पर पहुंचे जो क्षिप्रा नदी का एक प्रमुख घाट है। 

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   उज्जैन में यह मेरी दूसरी यात्रा थी, इससे पूर्व आज से 10 वर्ष पहले मैं यहाँ अपनी माँ के साथ आया था और तब मैंने माँ के साथ उज्जैन के समस्त दर्शनीय स्थलों को देखा था जिनमें से एक यह रामघाट भी था। तब उस समय क्षिप्रा नदी में इतना जल और साफ़ सफाई यहाँ देखने को नहीं मिली थी जो आज यहाँ दिखाई दे रही थी। आज क्षिप्रा नदी, माँ गंगा के समान और रामघाट, हरिद्वार की हरि की पैड़ी के समान प्रतीत हो रहा था। 

क्योंकि यह मानसून का मौसम है, सावन का महीना चल रहा है अतः यहाँ नदी के जल का प्रवाह भी खूब था और घाट पर भक्तों की भीड़ भी खूब थी। यहाँ अनेकों प्राचीन मंदिर और धर्मशालाएँ थीं, नदी के दूसरी तरफ गुरुद्वारा भी दिखलाई पड़ रहा था, साथ ही यहाँ क्षिप्रा आरती स्थल के साथ साथ नदी के दोनों तरफ पक्के घाट बने हुए थे। 

हमने यहीं एक घाट पर उचित स्थान देखकर क्षिप्रा नदी में स्नान किया और स्नान्न पश्चात दूसरे वस्त्र पहनकर, घाट पर बनी चाय की दुकान पर चाय नाश्ता किया। 

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   स्नान करने के पश्चात हम जैन साब के बताये गए पते पर पहुंचे। रामघाट रोड पर ही हमें यह पता मिल गया था, दरअसल यह पता निवासी, रूपक जैन जी के रिश्तेदार थे और उन्होंने हमारे आने की सुचना इन्हें पहले से ही दे दी थी अतः जब हम यहाँ पहुंचे तो वह हमसे मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हमारा आतिथ्य सत्कार बहुत अच्छे और प्रभावशाली ढंग से किया। 

हमें भी उनके व्यवहार और आतिथ्य सत्कार को देखकर बहुत प्रसन्नता हुई और अब हमें एक पल के लिए भी यह आभास नहीं हो रहा था कि हम अपने घर से दूर किसी पराये नगर में थे। हमें यहाँ अपने घर में होने जैसा ही अनुभव हो रहा था। 

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   हमने उन्हें अपने आने का कारण बताया और उनसे अपनी आगामी यात्रा के लिए बाइक की मांग की। प्रथमतया उन्होंने हमें बाइक से इतनी लम्बी दूरी की यात्रा ना करने के हिदायत दी किन्तु हमारा यात्रा कार्यक्रम बिना बाइक के अधूरा था इसलिए हमने उनकी हिदायत को नहीं माना और उन्हें आश्वासन दिया कि हम अपनी यात्रा अपने अनुभव  पर बहुत ही सरल और सुगम तरीके से पूर्ण करते हैं। लम्बी दूरी को बाइक से तय करना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है और हम शीघ्र ही बाइक लेकर वापस लौट आएंगे। 

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   उन्होंने हमें बाइक तो दे दी किन्तु मैं उनकी अनबन को भलीभाँति समझता रहा था इसलिए मैंने रूपक जैन जी से इस बारे में फोन पर बात की। जैन साब की तरफ से मुझे संतोषजनक उत्तर मिला, उन्होंने कहा कि आप और हम एक घुमक्कड़ हैं किन्तु वह लोग हमारी तरह नहीं हैं अतः निःसंकोच आप अपनी यात्रा पूर्ण करो। रूपक जैन जी की बात सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई और हम अपनी यात्रा पर बढ़ चले। 

हालांकि सोहन भाई अभी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे, वह इस बाइक से चल अवश्य रहे थे किन्तु अब भी वह यही चाह रहे थे कि हमें कोई बाइक किराये पर ले लेनी चाहिए और इसलिए हम बाइक रेंट वाली दुकान की लोकेशन की तरफ गए जिससे हम बिना संकोच किराये की बाइक से हम कहीं भी घूम सकते थे। जब हम रेंटल बाइक की लोकेशन पर पहुंचे तो यहाँ हमें ऐसी कोई दुकान नहीं दिखी जहाँ हमें बाइक किराये पर मिल जाती। अब अंततः हमने इसी बाइक से अपनी मंजिलों पर पहुँचने का निर्णय लिया। 

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   महाकाल मंदिर में विशेष भीड़ थी अतः महाकाल बाबा को बाहर से ही प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेकर हम इंदौर की तरफ रवाना हो चले। अब हम अवंतिका से मालवा की तरफ बढ़ रहे थे, उज्जैन नगर पीछे छूट गया था और लगभग एक दो घंटे के अंतराल के पश्चात हम इंदौर नगर के नजदीक पहुंचे।


 यहाँ हमारी बाइक में पहला पंचर हुआ और इसे ठीक कराने के पश्चात हम इंदौर के एक रेस्टोरेंट पर रुके जिसका नाम था रशियन ढ़ाबा। यह नाम से ढ़ाबा अवश्य था किन्तु यहाँ का वातावरण किसी शाही रेस्टोरेंट से कम नहीं था। हमने यहाँ अपना मोबाइल चार्जिंग में लगाया और आज के भोजन का आनंद प्राप्त किया। 

यात्रा क्रमशः .....      


मथुरा रेलवे स्टेशन पर मैं, नंदू कुंतल, बीच में सोहन भाई और मानवेंद्र सिंह 

नागदा पर आगमन 

नागदा पर सुबह का चाय नाश्ता 

मैं और इंटरसिटी एक्सप्रेस 

श्री चौबीस खम्भा माता का प्राचीन मंदिर 




रामघाट पर जाट देवता सोहन सिंह 

रामघाट पर भक्तों की भीड़ 



एक प्राचीन मंदिर 

क्षिप्रा आरती स्थल और मैं 

जाट मुसाफिर सोहन सिंह और रूपक जी द्वारा उपलब्ध बाइक 

रशिया ढ़ाबा पर मैं और सोहन भाई 

इंदौर स्थित रशिया ढ़ाबा और मैं 

अगले भाग में :- पातालपानी झरना और रेलवे स्टेशन 

धन्यवाद 

🙏

Sunday, May 18, 2025

KERLA SAMPARK KRANTI EXP : MAO TO MTJ

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 15 

केरला संपर्क क्रांति एक्सप्रेस - मडगांव से मथुरा 

1 जुलाई 2023 

हम शाम होने तक मडगांव रेलवे स्टेशन आ गए थे। यहाँ से हमारा रिजर्वेशन मंगला लक्षद्वीप एक्सप्रेस में था, जो रात को दो बजे के लगभग यहाँ आएगी। अभी रात के नौ बजे हैं, हम प्लेटफॉर्म पर बने खानपीन की स्टॉल पर गए और यहाँ कुछ इडली और डोसा खाकर हमने अपने रात्रिभोज को पूर्ण किया, इसके बाद क्लॉक रूम से अपना बैग लेकर अब घर लौटने की तैयारी करने लगे। अब हम अपनी यात्रा के अंतिम चरण में थे, और गोवा आकर हमारी यात्रा पूर्ण हो चुकी थी, अब वापसी यात्रा की बारी थी। 

तभी रेलवे से सन्देश प्राप्त हुआ कि मंगला एक्सप्रेस में हमारी सीट आरएसी में ही रह गई थी। अब ट्रेन बदलने की प्लानिंग मेरे दिमाग में और तेज हो गई। दरअसल मंगला एक्सप्रेस में मुझे RAC सीट मिली जो मेरे लिए पर्याप्त नहीं थी, मंगला एक्सप्रेस वाया भुसावल, भोपाल होकर मथुरा आती है, इस वजह से यह एक लम्बी यात्रा करती है जिसमें समय भी बहुत अधिक लगता है। 

मैंने मोबाइल में रेलवे ऍप्स क्रिस पर यहाँ से दिल्ली जाने वाली गाड़ियों के बारे में जानकारी ली जिसमें मुझे पता चला रात को साढ़े बारह बजे तक केरला संपर्क क्रांति एक्सप्रेस आ रही है जो सीधे दिल्ली जाने के लिए एक सुपरफास्ट ट्रेन है। इसका चार्ट बन चुका था, इसलिए इसमें तत्काल में भी रिजर्वेशन करना संभव नहीं था। 

अतः एप्प में मैने ट्रेन की कोच पोजीशन देखी, जिसमें ट्रेन के अंत में अनेकों सामान्य कोच थे, और इसके बाद इस ट्रेन का शेडूअल देखा। मैंने दो सामान्य टिकट कोटा स्टेशन तक के लिए ले ली, क्योंकि कि इस ट्रेन का स्टॉप कोटा के बाद सीधे निजामुद्दीन ही था, यह मथुरा नहीं रुकने वाली ट्रेन है। इसलिए मैंने इस ट्रेन से कोटा तक आने का विचार किया था, उसके बाद वहाँ से तो मथुरा की अनेकों ट्रेनें हैं, कोई न कोई तो मिल ही जाएगी। मंगला एक्सप्रेस की टिकट कैंसल कर दी और अब केरल संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से हमारी यात्रा निश्चित हो गई। 

हम गोवा के मडगांव स्टेशन पर बैठे थे, बारिश बहुत तेज हो रही थी। गर्मियों के इन दिनों में, हमें स्टेशन पर इस अर्धरात्रि में सर्दी का एहसास सा होने लगा था। प्लेटफॉर्म पर I LOVE GOA के नाम से एक सेल्फी पॉइंट भी बना हुआ था, यहाँ हमने काफी फोटो लिए और गोवा की इस यात्रा को यादगार बनाया। इडली - डोसा वाली दुकान पर ही मैंने अपना मोबाइल भी चार्ज करने के लिए लगा दिया था, क्योंकि यह दुकानदार हमारे ही शहर आगरा का निवासी था, इसलिए थोड़ी सी मित्रता हो गई और बिना किसी भुगतान के मोबाइल चार्ज करने की सुविधा मिल गई। 

गोवा के इस मडगांव स्टेशन पर भी हमें गोवा की शाही यात्रा का अनुभव हो रहा था क्योंकि स्टेशन पर बना यह बाजार किसी शानदार मॉल में बनी दुकानों से कम ना था। यहाँ खाने पीने की चीजों के अलावा, और भी अन्य तरह की दुकानें भी थी जैसे गारमेंट्स, शूज और भी अन्य। प्राइवेट वातानुकूलित प्रतीक्षालय आज भी फुल था और इसमें ठहरने के लिए जगह आज भी उपलब्ध नहीं थी। बारिश अपने जोरों पर थी और तेज ठंडी हवाएं चल रही थीं। मौसम का मिजाज इस वक़्त बहुत खतरनाक प्रतीत हो रहा था। 

जल्द ही रात के बारह बज गए और हम अपनी ट्रेन के आने की राह देखने लगे। आज पूरे छः दिन हो गए थे हमें अपने घर से निकले हुए, माँ की भी बहुत याद आ रही थी, अब एक पल का भी सब्र नहीं था, बस ऐसा लग रहा था जैसे अभी ट्रेन आये और हम उसमें बैठकर जल्द ही अपने घर पहुंचें। एप्प में मैंने ट्रेन की लोकेशन देखी तो यह लोलेम से निकल चुकी थी और शीघ्र ही मडगांव पहुँचने वाली थी। 

ट्रेन आने का समय अब हो चुका था, किन्तु ट्रेन का अभी कोई अता पता नहीं था, मैं बार बार कारवार की दिशा में देख रहा था कि कब ट्रेन के इंजन की रौशनी दिखाई दे और कब हम अपने घर की ओर प्रस्थान करें। एप्प से जो  जानकारी मिली, इसके हिसाब से ट्रेन मडगांव के पास ही थी और शायद आउटर पर खड़ी हुई थी। निर्धारित समय से बीस मिनट देरी से ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुँची। हमने तुरंत इसके जनरल कोच में अपने लिए दो सीटें घेर लीं। यह विंडो साइड वाली सिंगल सीट थीं। कोच लगभग खाली सा ही था लोग ऊपर और नीचे की सीटों पर सोते हुए यात्रा कर रहे थे। 

कल्पना को नींद आ रही थी और वह बैठे बैठे यात्रा करने में असमर्थ थी, इसलिए मैंने एक ऊपर वाली सीट पर उसके सोने की व्यवस्था कर दी, क्योंकि हमारे कोच में बैठे सहयात्रिओं ने हमारी परेशानी समझी और हमें ऊपर की एक सीट दे दी। कल्पना को लेटने के लिए सीट मिल गई तो मुझे भी थोड़ी सी राहत मिल गई। मुझे चलती ट्रेन में नींद बहुत कम आती है इसलिए मैं विंडो सीट पर बैठे बैठे ही कोंकण की इस रेल यात्रा के आनंद लेने लगा। बारिश और अँधेरा होने की वजह से बाहर का कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था किन्तु घर लौटने की ख़ुशी और माँ से मिलने की शीघ्रता में कब समय बीत गया, पता ही नहीं चला। 

रत्नागिरी निकलने के बाद दिन भी निकल आया था, कोंकण रेलवे के नज़ारे अब पुनः दिखने शुरू हो चुके थे और वापसी की यह यात्रा भी हमें बेहद खुशनुमा लग रही थी। कोंकण प्रान्त के ये ऊँचे ऊँचे पहाड़ आज मानसून में एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे, इन पहाड़ों के आसपास मंडराते बादल और इनसे बहते हुए ऊँचे ऊँचे झरने प्रकृति की सुंदरता की अनुपम छटा बिखेर रहे थे। शीघ्र ही हम रोहा रेलवे स्टेशन पहुंचे। हालांकि इस स्टेशन पर इस ट्रेन का स्टॉपेज नहीं है किन्तु आगे शायद लाइन व्यस्त होने के कारण यह यहाँ काफी देर खड़ी रही। 

रोहा, कोंकण रेलवे का उत्तरी दिशा में पहला रेलवे स्टेशन है और हम जिस दिशा से आ रहे हैं उसके हिसाब से अंतिम स्टेशन है। इसके बाद कोंकण रेलवे का क्षेत्र समाप्त हो जायेगा और फिर ट्रेन मुंबई की तरफ बढ़ेगी। मैं स्टेशन पर उतरा, स्टेशन पर लगे बोर्ड के साथ कुछ फोटो लिए और रोहा स्टेशन के परिसर को देखा। यह स्टेशन मुख्यतः मालगाड़ियों के लिए अधिक प्रयोग में आता है, यहाँ मेल एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव नहीं है कुछ चुनिंदा ट्रेनें यहाँ रूकती हैं। जल्द ही ट्रेन यहाँ से रवाना चली और हमारी कोंकण यात्रा यहाँ समाप्त हो गई। 

अब हम मुंबई क्षेत्र में थे, मुंबई शहर के इस रूट के नज़ारे अब दिन में दिखाई दे रहे थे क्योंकि यहाँ आते वक़्त रात का समय था और हम कुछ देख नहीं पाए थे। मुंबई का पनवेल स्टेशन आया और यहाँ से अधिकतर यात्री हमारे कोच में सवार हो गए। कोच की खाली जगह अब भरी हुई दिखाई दे रही थी। पनवेल के बाद पूरी मुंबई को पार करते हुए वसई रोड स्टेशन पहुंची। इसके बाद सूरत, वड़ोदरा और रतलाम होते हुए यह मध्य रात्रि कोटा स्टेशन पहुंची। 

कोटा पहुँचने से पूर्व ही कल्पना तो सो चुकी थी और मेरी भी आँख लग गई और कोटा कब निकल गया पता ही नहीं चला। तड़के सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा साढ़े तीन बज चुके थे, और हम मथुरा ने नजदीक ही थे। मैंने खिड़की से झाँक कर देखा तो ट्रेन भरतपुर स्टेशन से गुजर रही थी, मैंने तुरंत कल्पना को जगाया और हमने ट्रेन से उतरने की तैयारी पूरी की। 

मुझे उम्मीद थी कि भले ही ट्रेन का स्टॉपेज मथुरा में ना हो किन्तु इस समय मथुरा में दिल्ली जाने वाली गाड़ियों का ट्रैफिक बहुत होता है, हो ना हो यह थोड़ी देर के लिए मथुरा स्टेशन पर अवश्य रुक सकती है और अगर ना भी रुकेगी तो दिल्ली से पहले जहाँ भी रुकेगी हम वहीँ उतर जायेंगे किन्तु दिल्ली जाने की हमारी कोई इच्छा नहीं थी। शीघ्र ही यह मुडेसी रामपुर स्टेशन को पार करने के बाद थोड़ी स्लो हो गई और अंततः आउटर पर रुक गई। हम बिना देर किये इस आउटर पर उतर गए। 

हमारा घर इस आउटर के नजदीक ही था, एक तरह से ट्रेन ने हमें हमारे घर के पास ही उतारा था। हम मॉर्निंग वॉक करते पैदल पैदल शीघ्र ही अपने घर पहुँच गए, और इस प्रकार हमारी यह मानसूनी यात्रा जिसमें हमने कोंकण, मालाबार और केरला तक की यात्रा की थी, सकुशल पूर्ण हो गई। आज पूरे आठ दिन बाद मुझे देखकर माँ बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया। 

करमाली रेलवे स्टेशन - गोवा 





कोंकण के नज़ारे 






विन्हेरे रेलवे स्टेशन 








मुंबई प्रथम दर्शन 


वसई रोड रेलवे स्टेशन 


वैतरणा रेलवे स्टेशन 


THANKS FOR VISIT 

🙏


कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा के अन्य भाग 

Monday, May 5, 2025

MATSAYGANDHA EXPRESS : MRDW TO MAO

UPADHYAY TRIPS PRESENT'

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 12  

मत्सयगंधा एक्सप्रेस और मडगांव स्टेशन पर एक रात  

30 जून 2023 

मैंने मत्सयगंधा एक्सप्रेस में मुर्देश्वर से मडगांव तक शयनयान कोच में आरक्षण करा रखा था। मुर्देश्वर स्टेशन शाम को साढ़े पांच बजे हम इस ट्रेन में सवार हुए, हमारी सीट साइड लोअर और साइड उपर थी, जोकि हमारे आगमन तक हमें खाली ही मिली। यह पहलीबार था जब मुझे मेरी साइड लोअर सीट खाली मिली हो अन्यथा अधिकतर यात्रियों में मुझे मेरी सीट पर कोई ना कोई बैठा अवश्य मिलता है। यह ट्रेन मंगलुरु सेंट्रल से चलकर मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल जा रही थी, हमारे आसपास बैठी सभी सवारियां मुंबई ही जा रही थीं। 

मुर्देश्वर से निकलने के बाद मौसम में भी काफी परिवर्तन हो गया। यहां काफी तेज बारिश थी और बाहर का सबकुछ दिखना लगभग बंद सा हो गया था। शाम का समय और उसपर जोरदार बारिश हो उस समय एक कप चाय मिल जाये तो उसके आनंद ही अलग होते हैं। ट्रेन में ही एक वेंडर से मैंने दो कप चाय लीं, एक कल्पना को दी और एक मैंने पी। आज के इस मत्सयगंधा एक्सप्रेस की यात्रा के एक अलग ही आनंद थे। 

Wednesday, April 30, 2025

KONKAN RAILWAY : MANGALURU CENTRAL TO MURDESHWAR

  UPADHYAY TRIPS PRESENT'

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 10

मंगलूरु सेन्ट्रल से मुर्देश्वर : कोंकण रेलवे में पैसेंजर रेल यात्रा 


30 JUN 2023

मंगलुरु सेंट्रल स्टेशन पर रात्रि विश्राम के बाद हम अगली सुबह प्लेटफॉर्म न 2 पर पहुंचे। यहाँ मंगलुरु - मडगांव पैसेंजर तैयार खड़ी हुई थी। यह सुबह साढ़े पांच बजे यहाँ से प्रस्थान करेगी। इस ट्रेन से यात्रा करने का हमारा एक मुख्य कारण था क्योंकि यह मंगलुरु से निकलने के बाद कोंकण रेलवे क्षेत्र से होकर गुजरती है, और यह कोंकण का वह क्षेत्र है जो रात के अँधेरे की वजह से इसे हम यहाँ आते समय नहीं देख सके थे। 

सही साढ़े पांच बजे ट्रेन मंगलुरु सेंट्रल से रवाना हो गई, अभी दिन निकला नहीं था और अभी बहार अँधेरा ही था। हम जिस कोच में बैठे थे वो पूरी तरह से खाली पड़ा हुआ था। फ़िलहाल इस कोच में यात्रा करने वाले केवल हम दो ही यात्री थे। मंगलुरु नगर के मध्य से गु जरती हुई यह ट्रेन मेंगलुरु जंक्शन रेलवे स्टेशन पहुंची। 

मंगलुरु जंक्शन, मंगलुरु नगर का एक मुख्य जंक्शन रेलवे स्टेशन है। अधिकतर ट्रेनें यहीं होकर गुजरती हैं, यह केरल से दिल्ली रेलवे लाइन पर स्थित है और यहाँ से एक रेलवे लाइन पश्चिमी घाटों के पर्वतों को पार करती हुई मैसूर निकट हासन जंक्शन के लिए भी जाती है। मैंने अभी इस रेल लाइन पर यात्रा नहीं की है किन्तु इस रेल लाइन मुझे एकबार अवश्य ही यात्रा करनी है। इस स्टेशन से कुछ सवारियां हमारे कोच में सवार हुईं किन्तु अभी भी हमारा वाला कूपा खाली ही पड़ा था। कल्पना ने यहाँ चाय की इच्छा व्यक्त की तो मैं स्टेशन की स्टाल से दो चाय ले आया। जल्द ट्रेन यहाँ से रवाना हो चली। 

अब दिन भी निकल आया था और हम मालाबार रेलवे क्षेत्र से निकलकर, कोंकण रेलवे क्षेत्र में यात्रा कर रहे थे। कोंकण रेलवे का पहला रेलवे स्टेशन आया - थोकुर। यह कोंकण रेलवे की दक्षिण दिशा में पहला रेलवे स्टेशन है और यदि कोंकण रेलवे की उत्तर दिशा से गिना जाए तो यह अंतिम रेलवे स्टेशन है। अर्थात कोंकण रेलवे यहाँ समाप्त हो जाती है। हम केरल आते समय रात  हो जाने की वजह से कोंकण रेलवे के इस क्षेत्र को नहीं देख सके थे किन्तु आज सुबह सबेरे हमारी यात्रा यहाँ से पैसेंजर ट्रेन के द्वारा शुरू हुई है जिसका मुख्य उद्देश्य है कोंकण के इस क्षेत्र के नजारो को देखना। 

हम मंगलुरु - मडगांव पैसेंजर ट्रेन में हैं, हमारा कोच लगभग खाली पड़ा है, इस समय जिस सीट पर चाहो बैठ सकते हो, क्योंकि सारी सीटें अनारक्षित हैं और खाली पड़ी हैं। मैं आपातकालीन खिड़की वाली सीट पर बैठा हूँ क्योंकि यह सीट यात्रा  के दौरान किसी वीआईपी से कम नहीं होती। अब जब इस समय इस कोच की सारी सीटें खाली ही पड़ी थीं तो हमने अपने गीले वस्त्र, इन पर सूखने के लिए टांग दिए और एक दो स्टेशन निकलने के बाद यह सूख भी गए। 

मुल्की नाम से एक स्टेशन आया जिसका कोड था मुल्क। मुल्की के बाद नंदीकूर, पुडुबिद्री, इनंजे और अंत में उडुपि। उडुपी, मंगलुरु के बाद इस रेल लाइन पर एक बड़ा नगर है। अधिकतर सवारियां यहाँ उतर गईं। चूँकि यह क्षेत्र तो कोंकण रेलवे का  किन्तु अभी हम कर्नाटक राज्य में ही थे। कोंकण रेलवे के साथ साथ यह हमारी उत्तरी कर्नाटक की रेल यात्रा भी थी। मैंने पहली बार उडुपि नगर के रेलवे स्टेशन  को देखा था और इस नगर के बारे में काफी सुना भी था। यहाँ अनेकों दर्शनीय स्थल  हैं और साथ ही यहाँ बी भगवान श्री कृष्ण का एक विशाल मंदिर भी है। भविष्य में इस नगर की यात्रा करने का विचार लेकर मैं ट्रेन में बैठा ही रहा और जल्द ही ट्रेन इस स्टेशन से रवाना हो चली। 

कुंदापुरा, सेनापुरा और बिजूर जैसे रेलवे स्टेशन निकलने के बाद एक स्टेशन आया जिसका नाम था बेंदुर मूकाम्बिका रोड। इस स्टेशन का परिसर काफी बड़ा और विशाल था किन्तु यह एक छोटा रेलवे स्टेशन ही है। आज हम कोंकण रेलवे की यात्रा पर अवश्य थे किन्तु आज यहाँ दूर दूर तक मानसून का प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा था। ना ही कोई बारिश थी और नाही मानसून का मौसम। हर तरफ खिलखिलाती धूप थी और पश्चिमी घाट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे और साथ ही उनके आसपास रुई समान बिखरे हुए बादल। 

शिरूर निकलने के बाद जल्द ही हम मुर्देश्वर रेलवे स्टेशन पहुंचे और हमारा आज का गंतव्य यही स्थल था। यहाँ समुद्र किनारे भगवान शिव का एक विशाल प्राचीन मंदिर है, इसके साथ ही यहाँ भगवान् शिव की विशाल प्रतिमा स्थापित है जो कोसों दूर से ही दिखाई देती है। मुर्देश्वर मंदिर की यात्रा का वर्णन हम अगले भाग में करेंगे तब तक आज की कोंकण यात्रा के चित्र देखिये। 


MANGALURU CENTRAL RAILWAY STATION

MANGALURU JUNCTION RAILWAY STATION

DEPARTCH FROM MANGALURU

FIRST KONKAN RAILWAY STATION - THOKUR


CCTV CAMARA'S ON KONKAN RAILWAY STATION

MULKI RAILWAY STATION


OUR TRAIN AND COACH

MULKI RAILWAY STATION

PADUBIDRI RAILWAY STATION

INNANJE RAILWAY STATION


A RAILWAY MAN OF KONKAN RAILWAY

UDUPI RAILWAY STATION

PASSANGER STANDING ON UDUPI RAILWAY STATION




BARKUR RAILWAY STATION

SITA RIVER

A VIEW OF SITA RIVER

SENAPURA RAILWAY STATION





BIJOOR RAILWAY STATION



BYNDOOR MOOKAMBIKA ROAD RAILWAY STATION




BHATKAL RAILWAY STATION

CHITRAPUR RAILWAY STATION

MURDESHWAR RAILWAY STATION

A TRAIN DEPART FROM MURDESHWAR RAILWAY STATION


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कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा के अन्य भाग