Saturday, March 22, 2025

NIL TO MAHE : MANSOON RAILWAY TRIP 2023

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 7 

 निलंबूर रोड से माही - केरला में एक रेल यात्रा 


सन 1840 में, अंग्रेजों ने  लकड़ी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए नीलांबुर में सागौन का बागान बनाया। 1923 में, साउथ इंडियन रेलवे कंपनी, जो मद्रास-शोरानूर-मैंगलोर लाइन का संचालन करती थी, को मद्रास प्रेसीडेंसी द्वारा नीलांबुर से शोरानूर तक रेलमार्ग बनाने का अनुबंध दिया गया था ताकि इन जंगलों से मैदानी इलाकों तक और  बंदरगाहों  के लिए लकड़ी का आसान परिवहन सुनिश्चित किया जा सके। 

कंपनी ने तीन चरणों में इस रेलमार्ग का निर्माण पूर्ण किया। शोरानूर से अंगदिप्पुरम रेल खंड 3 फरवरी 1927 को, अंगदिप्पुरम से वानियम्बलम 3 अगस्त 1927 को खोला गया और शोरानूर से नीलांबुर तक का पूरा खंड 26 अक्टूबर 1927 को खोला गया। 1941 में इस लाइन का अस्तित्व समाप्त हो गया। देश की स्वतंत्रता पश्चात, जनता के दबाव के बाद, भारतीय रेलवे ने रेलवे लाइन का पुनर्निर्माण इसके मूल संरेखण के अनुसार किया। शोरनूर-अंगदिपुरम लाइन 1953 में फिर से खोली गई और अंगदिपुरम-नीलांबुर 1954 में। यह कुल 66 किमी का रेल खंड है। 

नीलांबुर रोड केरला का एकमात्र टर्मिनल रेलवे स्टेशन है।  


 

सागौन के बागान आज भी एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण के रूप में खड़े हैं। निलंबूर रोड से शोरानूर जंक्शन के मध्य का रेल मार्ग सुन्दर प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है। इस रेल मार्ग के मध्य में जितने भी रेलवे स्टेशन हैं वो सभी हरे भरे बड़े बड़े वृक्षों से घिरे हुए हैं। यहाँ मात्र एक रेल लाइन है और कुछ चुनिंदा रेलगाड़ियां ही इस रेलमार्ग पर चलती हैं। प्रकृति और भारतीय रेलवे के इस अनोखे दृश्य को देखने के लिए ही मैंने इस रेल यात्रा का चुना था। 

 निलंबूर रोड इस रेल मार्ग का अंतिम रेलवे स्टेशन है और जैसा कि नाम से ज्ञात होता है कि यहाँ से नीलंबूर के लिए एक रास्ता गया है जो कि यहाँ से लगभग 2 से 3 किमी दूर है। यह पूरा स्थान घने जंगलों से घिरा है और नीलगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित है। नीलांबुर से ऊंटी हिल स्टेशन की भी दूरी ज्यादा नहीं है और 2 से 3 घंटे की दूरीतय करने के बाद यहाँ से आसानी से ऊंटी पहुंचा जा सकता है। 

किन्तु ना तो हम नीलांबुर गए और ना ही ऊंटी, क्योंकि हम वापसी यात्रा पर थे और हमारा आज का अगला पड़ाव यहाँ से कही आगे था। हमारा यहाँ आने का एक मात्र लक्ष्य इस रेल मार्ग को देखना था जिसे मैंने कई बार अपने फोन में फेसबुक की पोस्टों में देखा था और मैं इसकी प्राकृतिक सुंदरता से इतना प्रभावित हुआ कि मैंने मन ही मन इस रेल मार्ग पर यात्रा करने का निश्चय कर लिया था। 

हम कल कोच्चुवेली से जिस ट्रेन से निलंबूर रोड स्टेशन आये थे, अब वही ट्रेन पैसेंजर गाड़ी के रूप में यहाँ से शोरानूर जंक्शन के लिए प्रस्थान करेगी। सुबह सबेरे ही मैं स्टेशन से शोरानूर तक जाने के लिए दो टिकट ले आया और दो कप चाय भी। मैं स्टेशन के बाहर तक घूम आया था यहाँ से नीलांबुर जाने के लिए ऑटो और टैक्सियाँ तैयार खड़े थे। किन्तु हमें तो इसी ट्रैन से वापस लौटना था इसलिए यह हमारे किसी काम के नहीं थे। 

चूँकि हम गत रात्रि कोचुवेली से चलकर अभी जल्दी सुबह ही नीलांबुर रोड स्टेशन पहुंचे थे इसलिए रात के अंधेरे और सोने की वजह से हम इस रेल मार्ग को नहीं देख पाए थे किन्तु अब वापसी की राह पर हम इस रेल मार्ग के सभी नज़ारे देखने के लिए एक दम से तत्पर थे। इधर मैंने सोहन भाई को फोन किया तो उन्होंने बताया कि वह भी कन्याकुमारी पहुँच चुके हैं किन्तु वह वहां जाने में थोड़ा लेट होगये इस वजह से वह वहां का सूर्योदय नहीं देख पाए। 

हमारी ट्रेन अपने निर्धारित समय सुबह सात बजकर पांच मिनट पर नीलांबुर रोड से रवाना हो गई। नीलांबुर रोड से शोरानूर के मध्य यहाँ कुल दस स्टेशन आते हैं और नीलांबुर रोड के बाद अगला स्टेशन वाणियाम्बलम आया। इस स्टेशन के बाद से ही घने जंगलों की शुरुआत हो गई और ट्रेन अब नीलगिरि पर्वत के तराई में स्थित जंगलों से होकर गुजरने लगी। तीसरा स्टेशन तोड़ियापुलम था जहाँ इकहरी रेल लाइन थी और स्टेशन का प्लेटफॉर्म घने वृक्षों  आच्छादित था। प्रकृति का यह सुन्दर नजारा यहाँ देखने योग्य था किन्तु मैंने फेसबुक पर जिस स्टेशन को देखा था वो ये नहीं था। 

इस स्टेशन के निकलने के बाद नारियल के वृक्षों की खेती और पक्तियां दिखाई देने लगीं। यहाँ अधिकतर नारियल के खेत थे और इन खेतों से दूर कहीं नीलगिरि पर्वतमाला भी दिखाई दे रही थी। इस यात्रा को करने के दौरान मेरी   नीलगिरि रेल यात्रा की यादें ताजा हो उठीं जो मैंने अपनी तमिलनाडू की यात्रा के दौरान की थी। वहां भी मुझे मेट्टुपलायम से निकलने के बाद कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला था और हो भी क्यों ना, बेशक आज स्थान भिन्न हों किन्तु प्रकृति और नीलगिरि के पर्वत तो वही थे। 

जल्द ही तव्वुर रेलवे स्टेशन आया। यहाँ धीमी धीमी बारिश हो रही थी जोकि मानसून के मौसम की शोभा बढ़ा रही थी, रेल यात्रा के दौरान मुझे बारिश बहुत पसंद है इसलिए इस बारिश ने मेरी इस यात्रा को अब और भी रोमांचक बना दिया था।  मैंने जल्दी से स्टेशन के कुछ फोटो लिए और ट्रेन में चढ़ लिया। यहाँ के स्टेशनों पर यह ट्रेन मुश्किल से एक मिनट रूकती थी और चल पड़ती थी। कल्पना अपनी सीट पर ही बैठी रहती और खिड़की से ही इस क्षेत्र  नजारों को देख रही थी। 

अगला स्टेशन मेलाटूर था, यहाँ प्लेटफार्म पर काफी घने और बड़े वृक्ष देखने को मिले, नजारा बहुत ही शानदार था, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर। किन्तु यहाँ बारिश नहीं थी।  इसके बाद अगला स्टेशन पट्टीक्कड़ था, हमारे कोच के अनेक यात्री इस स्टेशन पर उतर गए।  यह स्टेशन भी प्राकृतिक वातावरण से भरपूर था किन्तु अभी भी वह स्टेशन नहीं आया था जिसे मैं देखने के लिए ही मैं इस रेल मार्ग की यात्रा पर आया था। 

जल्द ही इस रेल मार्ग का मुख्य स्टेशन अंगादिपुरम आया। यहाँ अत्यधिक बारिश थी और सवारियां अपने अपने छातों को तान कर उनके नीचे खड़े इस ट्रेन की प्रतीक्षा करते हुए हमें मिले।  यह इस रेलमार्ग का कोई मुख्य उपनगरीय क्षेत्र था, अधिकतर यात्री यहीं उतर गए और कोच लगभग खाली सा हो गया। यहाँ शोरानूर से आने वाली दूसरी ट्रेन की प्रतीक्षा में हमारी ट्रैन काफी देर खड़ी रही।जल्द ही वह ट्रेन दूसरे प्लेटफॉर्म पर आई और हमारी ट्रेन को हरे सिग्नल प्राप्त हो गए। तेज बरसती बारिश के मध्य हमारी ट्रेन आगे की तरफ रवाना हो चली। 

अगला स्टेशन चेरुकरा था। अरे हाँ यही तो वो स्टेशन था जिसे मैंने सर्वप्रथम फेसबुक की एक पोस्ट में देखा था और इस स्टेशन की प्राकृतिक सुंदरता से मैं इतना प्रभावित हुआ था कि आज मैं सचमुच यहाँ आ ही गया हूँ। घने वृक्षों से आच्छादित प्लेटफार्म और हरे भरे वृक्षों की डालियों और टहनियों के नीचे से गुजरती हुई रेल। सचमुच मनमोहक दृश्य था। यहाँ गर्मियों के मौसम में बहुत शीतलता रहती होगी। मैंने इस रेलमार्ग पर प्रतिदिन यात्रा करने वाले उन यात्रियों के बारे में सोचने लगा कि ये लोग कितने भाग्यशाली हैं कि ये शहरों की भीड़भाड़ और भागदौड़ की जिंदगी से दूर प्रकृति के शांत वातावरण के बीच अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं।  

चेरुकरा के बाद घने वृक्षों के वन लगभग समाप्त हो गए और अब ट्रेन सामान्य क्षेत्र में दौड़ रही थी। कुलुक्कलूर, वल्लपुषा, वदानंकुरुषि आदि स्टेशन निकलने के बाद एर्नाकुलम से आने वाली रेल लाइन भी हमारे साथ हो ली, इसका मतलब था कि अगला स्टेशन शोरानूर जंक्शन है। जल्द ही हम शोरानूर स्टेशन पहुंचे। 

शोरानूर,  केरला का एक मुख्य जंक्शन रेलवे स्टेशन है। यह मंगलौर से चेन्नई और तिरुवनंतपुरम जाने वाले प्रमुख रेल मार्ग पर स्थित है। स्टेशन परिसर बहुत ही साफ़ सुथरा और सुविधजनक है। स्टेशन पर बने वेटिंगरूम में ही हम नहा धोकर अगली यात्रा के लिए तैयार हो गए। अब यहाँ से हमारा रिजर्वेशन माहे तक  एरनाड एक्सप्रेस में है जो लगभग साढ़े दस बजे तक यहाँ पहुँचने वाली है। सभी सुबह  के साढ़े नौ बजे है और हम एक यात्रा पूरी कर चुके हैं। 

स्टेशन पर बनी एक दुकान से हमने जब खाने के लिए कुछ माँगा तो उसने नाश्ते स्वरूप हमें इडली सांभर की एक बड़ी सी प्लेट दे दी।  मुझे तो यह नाश्ता पसंद  मेरी पत्नी कल्पना को कदापि नहीं क्योंकि वो चावल और चावल से बानी चीजों को काम ही पसंद करती है। जल्द ही हमारी ट्रैन आ गई और हम माहे के लिए रवाना हो चले। 


NILAMBUR ROAD RAILWAY STATION 





VANIYAMBALAM RAILWAY STATION

TODIYAPULAM RLY STN



COCONUT 


TAVVUR RLY STN




MELATTUR RAILWAY STATION



PATTIKKAD RAILWAY STATION















































शोरानूर पर सुबह का नाश्ता 














कोझिकोडे रेलवे स्टेशन 





VADKARA RAILWAY STATION 

🙏

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