गोवा में एक दिवसीय यात्रा
1 JULY 2023
मडगांव से पोंडा - बस यात्रा
तेज बारिश के बीच गत रात्रि मडगांव स्टेशन पर सोने के बाद, अगली सुबह हम गोवा घूमने के लिए तैयार थे। यह गोवा में हमारी पहली यात्रा थी। मडगाव स्टेशन के क्लॉक रूम में अपना बैग जमा करने के बाद, हम बतौर सामान स्वतंत्र थे, और फिर स्टेशन के बाहर निकले।
कोंकण रेलवे का मडगाव स्टेशन गोवा का एक मुख्य रेलवे जंक्शन स्टेशन है। बारिश के मौसम में स्टेशन के बाहर का दृश्य बहुत ही सुहावना लग रहा था। मुझे जानकारी थी कि यहाँ घूमने के लिए आसानी से बाइक किराये पर मिल जाती हैं। मैं एक ऐसी ही बाइक की तलाश में था, किन्तु स्टेशन के बाहर मुझे कोई बाइक नहीं मिली।
स्टेशन के बाहर ही एक बस स्टॉप था जहाँ हम काफी देर तक खड़े रहे किन्तु कोई भी बस नहीं आई। बस की प्रतीक्षा करते हुए, बारिश अवश्य आ गई, इसलिए बिना देर किये एक ऑटो द्वारा हम गोवा के सेंट्रल बस स्टैंड पहुंचे। बस स्टैंड पहुँचने से पूर्व ऑटो वाले ने हमें दो तीन बाइक रेंट वाली दुकानों पर भी मिलवाया किन्तु वे लोग बतौर एक दिन किराये पर बाइक देने के लिए तैयार नहीं थे। बारिश के मौसम और अनजान शहर को देखकर हमने किराये की बाइक लेने का निर्णय त्याग दिया।
बस स्टैंड पहुंचकर हमने बड़ा पाव नाश्ते स्वरुप लिया और इसे खाने के बाद पोंडा जाने वाली एक बस में बैठ गए। मुझे यहाँ से ताम्बडी सुरला मंदिर जाना था जो एक ऐतिहासिक मंदिर है किन्तु कोई भी बस यहाँ से वहां सीधे जाने के लिए उपलब्ध नहीं थी। किसी ने हमें बताया कि सुरला के लिए गाड़ियां पोंडा से मिलती हैं, इसलिए हम पोंडा की ओर रवाना हो चले। मैंने गोवा के बारे में जैसी कल्पना की थी यह कदापि वैसा नहीं था बल्कि आधुनिक युग में भी यह प्राकृतिक वातावरण से भरपूर था।
पहाड़, नदियां, जंगल और दूसरी तरफ समुद्री किनारा, सब कुछ था गोवा में। अधिकांश लोग यहाँ मौजमस्ती करने के उद्देश्य से आते हैं और हफ़्तों, महीनों यहाँ रहकर अपने घर लौट जाते हैं। लेकिन गोवा की आवोहवा ऐसी है कि जो एकबार यहाँ आ जाता है उसका फिर लौटने का मन बिलकुल भी नहीं करता है और अगर कोई लौटता भी है तो वह यहाँ पुनः आने का विचार करके अवश्य लौटता है। बड़े बड़े हाइवे और नदियों को पार करते हुए हम पोंडा पहुंचे।
पोंडा, गोवा का एक प्रमुख नगर है, यहाँ से गोवा में चारों दिशाओं में जाने के लिए रास्ता गया है। हमारे बस स्टैंड पर उतरते ही जोरदार बारिश शुरू हो गई। हम काफी देर बस स्टैंड पर बने रेन शेल्टर के नीचे खड़े रहे किन्तु हमें यहाँ से सुर्ला जाने के लिए कोई बस या अन्य कोई भी साधन नहीं मिला इसलिए हमने सुर्ला जाने का विचार त्याग दिया और गोवा की राजधानी पणजी जाने का विचार करके एक बस में बैठ गए। बस में से ही हमने यहाँ एक ऐतिहासिक कुंड भी देखा जो अभी पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित था।
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मडगांव रेलवे स्टेशन |
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सेंट फ्रांसिस जेवियर चर्च |
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सेन्ट्रल बस स्टैंड |
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एक पुरातात्विक स्थल |
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पोंडा में हनुमान जी का एक मंदिर |
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पोंडा बस स्टैंड |
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पोंडा |
2 . पोंडा से ओल्ड गोवा का सफर
पोंडा बस स्टैंड से हम अब पणजी जाने के लिए निकल चुके थे। रास्ते में बारिश और हरियाली ने मन को मोह सा लिया था। गोवा के अलग अलग स्थानों पर यहाँ के निवासियों के घर और उनके आसपास के प्राकृतिक वातावरण को देखकर तो एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सबकुछ छोड़छाड़कर यही बस लिया जाए किन्तु यह एकमात्र हमारे मन की कल्पना थी क्योंकि अपने गृहनगर से बढ़कर दुनिया में कोई स्थान सुन्दर नहीं। यह गोवा है और हम आज इसके सैलानी है किन्तु जल्द ही हम आज के बाद कहीं और होंगे, और वह स्थान हमें गोवा की सुंदरता के समान ही लगे।
जल्द ही हम ओल्ड गोवा शहर पहुंचे, यहाँ हर तरफ सिर्फ चर्च ही चर्च दिखाई दे रही थीं। हालांकि मुझे चर्च जैसी जगहें देखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी किन्तु यह ऐतिहासिक थीं और प्राचीन गोवा की धरोहर थीं, इसलिए यहाँ की यात्रा करना, मेरे लिए एक रोमांचकारी अनुभव होगा, यही सोचकर मैं और कल्पना, पणजी जाने बजाए यहीं उतर गए। बस स्टॉप के सामने ही एक बड़ा बाजार लगा था।
इन बड़ी बड़ी दुकानों की तरफ हमने अपना रुख किया और गोवा में मिलने वाली वस्तुओं को देखा। यहाँ मिलने वाली चीजें वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य में मिलती प्रतीत हो रही थीं, इसलिए हमने यहाँ ज्यादा समय नहीं दिया और बाजार से बाहर आये। कल्पना ने यहाँ से एक चश्मा अवश्य खरीदा था।
बाहर का दृश्य अनुपम था। सड़क के दोनों तरफ बड़े बड़े गिरिजाघर दिखाई दे रहे थे जो हमें एक ऐतिहासिक स्थल पर होने का अनुभव करा रहे थे। यह स्थल वास्तव में ऐतिहासिक ही थे, यहाँ बने गिरिजाघरों का निर्माण सोलहवीं और सत्तरहवीं शताब्दी में पुर्तगाली शासनकाल में हुआ था। यह पुराना गोवा शहर है, जो पणजी से दस किमी पूर्व दिशा में स्थित है। इस शहर की स्थापना बीजापुर के आदिलशाही सल्तनत काल के दौरान हुई थी।
ओल्ड गोवा का ऐतिहासिक सफ़र
चौदहवीं शताब्दी के अंत में जब कस्तुनतुनिया ( वर्तमान में इस्तांबुल ) पर तुर्कियों का अधिकार हो गया तो यूरोप और भारत के मध्य स्थलीय मार्ग से आवागमन अवरुद्ध हो गया जिसकारण पुर्तगालियों ने समुद्री मार्ग की खोज की। वास्कोडिगामा प्रथम पुर्तगाली यात्री था जिसने यूरोप से भारत आने का सुलभ समुद्री मार्ग खोज निकाला और उसके बाद व्यापार करने के उद्देश्य से पुर्तगाली भारत आने लगे।
विजय नगर साम्राज्य और आदिलशाही शासकों से भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करने के बाद उन्होंने यहाँ की राजनीती में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया और भारत के कुछ छोटे छोटे भागों पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने इसी पुराने गोवा शहर को पुर्तगाली भारत की राजधानी बनाया और यहाँ के लोगों पर निरंकुश शासन किया।
इतना ही नहीं, उन्होंने यहाँ की प्रजा को जबरन ईसाई धर्म में परवर्तित होने के लिए बाध्य किया और भारतीय लोगों द्वारा ईसाई धर्म को अपनाने के लिए हर प्रयास किया। पुर्तगाली भाषा में ओल्ड गोवा को वेल्हा गोवा के नाम से जाना जाता है। पुर्तगालियों के बाद फ़्रांसिसीयों ने और अंत में अंग्रजों ने ओल्ड गोवा पर शासन किया किन्तु अठाहरवीं शताब्दी में यहाँ भयंकर मारामारी फ़ैल गई, लोग प्लेग रोग से ग्रसित होने लगे और ओल्ड गोवा को छोड़कर जाने लगे।
ओल्ड गोवा के स्थान पर यहाँ से 10 किमी दूर एक नई राजधानी का निर्माण हुआ जो वर्तमान में पणजी के नाम से जाना गया। आज भी वर्तमान में यह गोवा की राजधानी के रूप में प्रख्यात है। महामारी के कारण ओल्ड गोवा शहर वीरान हो गया और लोगों की उपेक्षाओं का शिकार होता गया। वर्तमान में ओल्ड गोवा का अस्तित्व इन गिरिजाघरों के कारण महत्वपूर्ण है, यह ऐतिहासिक नगर यहाँ आने वाले सैलानियों के मन में अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अपनी ऐतिहासिकता के कारण एक अलग ही अविस्मरणीय छवि प्रस्तुत करता है।
ओल्ड गोवा के ऐतिहासिक गिरिजाघर
ओल्ड गोवा के प्रमुख गिरिजाघरों में से एक गिरिजाघर, बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ ईसाई धर्म के प्रमुख संत 'सेंट फ्राँसिस जेवियर' का शव आज भी सुरक्षित रखा है, इस प्रकार यह एक मकबरा भी माना जाता है। हमारे लिए यह बड़े आश्चर्य की बात थी, कि पांच सौ साल पुराने व्यक्ति का शव आज भी संरक्षित कैसे हो सकता है।
इस उत्सुकता के कारण हम इस चर्च को देखने इसके अंदर गए जहाँ हमने सेंट फ्राँसिस जेवियर की काठ से बनी मूर्ति, उनका ताबूत और उनके संरक्षित अवशेष को देखा। दरअसल सेंट फ्रांसिस जेवियर पंद्रहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध कैथोलिक संत थे जिन्होंने विश्व भर में लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा - दीक्षा देकर उनका धर्मान्तरण कराया और साथ ही बीमार लोगों की सेवा की। उन्होंने अपना समस्त जीवन मानव कल्याण के सेवा में समर्पित किया था इसलिए आज भी उनके अनेकों अनुयायी उन्हें ईश्वर के तुल्य समझते और पूजते हैं।
बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस नामक इस गिरिजाघर को देखने के बाद हम सड़क के दूसरी ओर बने अन्य गिरिजाघरों को देखने जा ही रहे थे कि अचानक से मौसम ने अपना रुख बदला और जोरदार बारिश शुरू हो गई। आनन फानन में मैंने कल्पना के लिए 100/- रूपये का एक प्लास्टिक का रेन कोट ख़रीदा।
रैनकोट बेचने वाला उत्तर भारतीय था, उसने हमारी आपसी बातचीत से तुरंत पहचान लिया कि हम आगरा से आये हैं, वह भी अलीगढ का रहने वाला था और गोवा में वह दिल्ली से लाई गई ऐसी वस्तुएं बेचकर अपना जीवन निर्वाह कर रहा था, यहाँ और भी ऐसे अनेको विक्रेता थे जो छाता, रेन कोट, चश्मा और अन्य पर्यटकों की वस्तुएं सड़क पर खड़े होकर सैलानियों को बेच रहे थे।
ये सभी लगभग उत्तर भारतीय ही थे और गोवा में अपना रोजगार कमा रहे थे। मुझे इन लोगो से मिलकर ख़ुशी हुई क्योंकि दुनिया में कोई कार्य छोटा - बड़ा नहीं होता, बस इंसान को मेहनत करके ही अपना जीवन निर्वाह करना चाहिए।
इसी रेन कवर बेचने वाले विक्रेता से हमने यहाँ खाने के किसी शाकाहारी होटल या ढाबे के बारे में पूछा जहाँ हमें उत्तर भारतीय भोजन मतलब रोटी दाल और सब्जी मिल सके, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से हम दक्षिणी व्यंजनों को खा खाकर ऊब चुके थे। विक्रेता ने हमें तुरंत थोड़ी दूर एक रास्ते की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहां एक होटल है जहाँ आपको पसंदीदा खाना मिल जायेगा।
विक्रेता की बताई गई दिशा की तरफ हम तुरंत बढ़ चले क्योंकि अब आगे की यात्रा भोजन करने के बाद ही होगी। लगभग आधा किमी चलने के बाद हमें कृष्णा सागर के नाम से एक रेस्टोरेंट दिखाई दिया। यहाँ हमें वही भोजन मिला जैसा हम खाना चाहते थे, कल्पना ने आज काफी दिन बाद भरपेट भोजन किया था और मैंने भी। रेस्टोरेंट से खाना खाने के बाद हम पणजी जाने के लिए पुनः उसी मुख्य मार्ग की तरफ बढ़ चले, किन्तु उससे पूर्व ही हमें यहाँ एक और चर्च के बारे में जानकारी मिली जो ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।
यह सेंट ऑगस्टिन चर्च थी जो यहाँ से बस थोड़ी सी दूर एक ऊँचे स्थान पर थी, किन्तु जब हम यहाँ पहुँचे तो इस चर्च को देखकर दंग रह गए, क्योंकि यहाँ अब सेंट ऑगस्टिन चर्च नहीं बल्कि उसके खंडहर ही मौजूद थे। इस चर्च के नाम पर वर्तमान में सिर्फ इसका एक कोने का स्तम्भ ही बचा था जो सेंट ऑगस्टिन चर्च की अपने समय की भव्यता का एहसास करा रहा था।
इस चर्च के अवशेषों को देखकर मुझे एक तरफ काफी ख़ुशी मिली क्योंकि प्राचीन धरोहर मेरी यात्रा की प्राथमिकता हैं और मुझे दुःख इस बात का हुआ कि अपने समय की एक पुरानी भव्य चर्च आज प्रकृति के मार और इंसानी उपेक्षाओं की वजह से खंडहरों में सिमटी पड़ी थी। कालांतर में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक चर्च का विस्तृत व्याख्यान हम अगले ब्लॉग में प्रकाशित करेंगे। तब तक हम पणजी की यात्रा पर चलते हैं।
ओल्ड गोवा से पणजी ( पंजिम ) यात्रा
हम ओल्ड गोवा के उसी चौराहे पर पहुंचे जहाँ हम यहाँ आते समय बस से उतरे थे। यहीं से हम एक दूसरी बस में सवार होकर पणजी की तरफ प्रस्थान कर गये। पणजी के बस स्टैंड पहुंचकर हमने यहाँ एक बस कंडक्टर से बीच की तरफ जाने की जानकारी ली, उसने हमें एक और बस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह बस आपको बीच पर उतार देगी। हम पणजी के समुद्री बीच पर जाने के लिए उस बस में सवार हो गए।
गोवा की राजधानी पणजी में यह हमारी पहली यात्रा थी, बस में से हम पणजी शहर को देखते हुए गोवा की इस यात्रा का भरपूर आनंद ले रहे थे। वर्तमान में पणजी को पंजिम भी कहा जाता है, यहाँ के अधिकतर लोग इसे पंजी कहकर ही बुला रहे थे। गोवा यात्रा की शुरुआत से पहले यहाँ के लोगों से जब मैंने पंजी नाम सुना था तब मैं समझ नहीं पाया था कि यह पणजी को ही पंजी या पंजिम कह रहे थे किन्तु मुझे जब दृश्यम मूवी का ध्यान आया तब मैं समझा कि पंजिम, पणजी को ही कहा जाता है।
बस ने हमें एक गोल चक्कर चौराहे पर उतार दिया और वापस बस स्टैंड जाने के लिए तैयार हो गई। इस चौराहे के निकट ही पणजी का प्रसिद्ध बीच था जिसका नाम मीरामार बीच था। यह बहुत सुन्दर स्थान था और साथ ही मौसम भी बेहद सुहावना हो चला था। हम सड़क से बीच की तरफ बढ़ने लगे और पहली बार गोवा के किसी बीच पर पहुंचे। यहाँ अनेकों लोग थे जो इस बीच पर अपने परिवार के साथ मौजमस्ती तथा समुद्री लहरों का आनंद उठा रहे थे।
सूर्यास्त का वक़्त भी नजदीक ही था, किन्तु आसमान में छाए काले बादलों की वजह से हम यहाँ सूर्यास्त का नजारा नहीं देख सके। मैंने और कल्पना ने इस बीच पर थोड़ा समय बिताना चाहा किन्तु बारिश शुरू हो जाने के कारण हमें यहाँ से वापस लौटना पड़ा। हमारे अलावा वो सभी लोग जो इस बीच पर घूमने आये थे, सभी के सभी सड़क और अपनी अपनी गाड़ियों की तरफ दौड़ पड़े। इस बारिश का जो आनंद आज मैंने इस बीच पर देखा था उसे मैं कभी नहीं भुला पाऊंगा।
हम वापस उसी बस स्टॉप की तरफ पहुंचे जहाँ हम यहाँ आते समय उतरे थे। यहाँ बस तैयार खड़ी हुई थी, बारिश में भीगने से अच्छा इस बस में बैठकर ही थोड़ा समय व्यतीत किया जाए, किन्तु हमारे आते ही यह यहाँ से रवाना हो चली। कुछ आगे जाकर हमें मांडवी नदी खड़े में बड़े बड़े कैसिनो के क्रूज दिखाई दिए। हमें यह लोकेशन देखनी थी इसलिए हम यहीं बस से उतर गए और मांडवी नदी के किनारे खड़े बड़े बड़े क्रूज देखने लगे।
यह क्रूज, कैसिनो थे जिन्हें अबतक मैंने फिल्मों में ही देखा था, इन कैसिनो के अंदर बार, रेस्टोरेंट और विभिन्न तरह के गेम देखने को मिलते हैं। यह गेम एक तरह का जुआ ही होते हैं, इसलिए ये कैसिनो हमारे किसी मतलब के नहीं थे किन्तु यही गोवा की शान हैं। लोग गोवा आते ही मौजमस्ती करने के इरादे से हैं। सस्ती शराब, स्मोकिंग, कसीनों, बाइकिंग तथा समुद्री बीचों का आनंद, सब कुछ गोवा में उपलब्ध है। आपकी जैसी प्रवृति होगी, गोवा आपको वैसे ही रंग में देखने को मिलेगा। इसलिए मेरा मानना है कि प्रत्येक भारतीय को अपने जीवन में एकबार तो गोवा की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए।
पणजी बस स्टैंड पहुंचकर हमने सीधे मडगांव रेलवे स्टेशन के लिए बस पकड़ी और देर शाम तलक हम मडगांव रेलवे स्टेशन पर थे।
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बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस |
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चर्च के बाहर सेंट फ्रांसिस जेवियर की क्रॉस के साथ प्रतिमा |
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बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस |
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बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस |
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बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस |
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चाँदी के ताबूत में सेंट फ्राँसिस जेवियर के शरीर के अवशेष |
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ईसा मसीह जी की प्रतिमा और कल्पना |
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जीसस की एक प्रतिमा |
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सेंट फ्राँसिस जेवियर की काष्ठ निर्मित प्रतिमा |
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बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस |
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Church of St. Francis of Assisi |
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Se Cathedral |
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गोवा में एक आम मुसाफिर |
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कल्पना और उसका रेनकोट |
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सेंट ऑगस्टीन गिरिजाघर के अवशेष |
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पणजी में मीरामार बीच के सामने एक मंदिर |
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मीरामार बीच पर एक शाम |
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बीच पर बारिश आते ही सडक की तरफ दौड़ती कल्पना |
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मीरामार बीच, पंजिम |
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मीरामार बीच |
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मीरामार सर्कल - पंजिम |
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मांडवी नदी में खड़ा एक कैसिनो |
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मांडवी के तट पर |
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आज गोवा देख ही लिया |
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स्टेशन पर मैं और कल्पना |
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MADGAON RAILWAY STATION |
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MADGAON RAILWAY STATION |
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ON MADGAON RAILWAY STATION |
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रेलवे स्टेशन पर बारिश के पानी का स्त्रोत |
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कल्पना को सर्दी का एहसास - मडगांव रेलवे स्टेशन |
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धन्यवाद |
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कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा के अन्य भाग
- भाग 1 - मथुरा से पनवेल - तिरूवनंतपुरम सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस
- भाग 2 - कोंकण रेलवे की एक यात्रा ( पनवेल से मंगलुरु )
- भाग 3 - मैंगलोर से तिरुवनंतपुरम - केरला रेल यात्रा
- भाग 4 - शंखुमुखम बीच - तिरुवनंतपुरम का एक सुन्दर समुद्री किनारा
- भाग 5 - श्री अनंत पद्यनाभस्वामी मंदिर - तिरुवनंतपुरम
- भाग 6 - तिरुवनंतपुरम से निलंबूर रोड - केरल में रेल यात्रा
- भाग 7 - निलंबूर रोड से माही - केरला में एक रेल यात्रा
- भाग 8 - माहे - पश्चिमी पुडुचेरी का एक सुन्दर नगर
- भाग 9 - मंगलुरु सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर एक रात
- भाग 10 - मंगलूरु सेन्ट्रल से मुर्देश्वर : कोंकण रेलवे में पैसेंजर रेल यात्रा
- भाग 11 - श्री मुर्देश्वर मंदिर - समुद्री तट पर अलौकिक शिव धाम
- भाग 12 - मत्सयगंधा एक्सप्रेस और मडगांव स्टेशन पर एक रात
- भाग 13 - गोवा में एक दिवसीय यात्रा
- भाग 14 - सेंट ऑगस्टीन गिरिजाघर और उसके खंडहर - ओल्ड गोवा
- भाग 15 - केरला संपर्क क्रांति एक्सप्रेस - मडगांव से मथुरा
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