कदर वन या कुमुद वन
यूँ तो ब्रज का एक एक भाग भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से परिपूर्ण है किन्तु ब्रज में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसी दिव्य लीलाएँ की हैं जिनसे वह स्थान ब्रज के मुख्य धाम कहलाते हैं, इनमें से ही एक हैं ब्रज के द्वादश वन अर्थात बारह वन।
ब्रज के बारह वन निम्न प्रकार हैं -- मधुवन
- तालवन
- कुमुदवन
- बहुलावन
- काम्यवन
- खदिर वन
- वृन्दावन
- भद्रवन
- भांडीर वन
- बेलवन
- लोहवन
- महावन
इन सभी वनों में भगवान श्रीकृष्ण ने अलग अलग दिव्य लीलाएँ की हैं। बहुलावन की यात्रा मैं पहले ही कर चुका था इसलिए अब मुझे तलाश थी कुमुदवन की। मैंने सुन रखा था कि कुमुदवन मथुरा से सौंख जाने वाले रास्ते पर कहीं है, मैं कई बार कुमुदवन की तलाश में वहां गया भी, मगर बड़े ही आश्चर्य की बात है भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े इस स्थान के बारे में ब्रजवासियों को ही नहीं पता था कि उनके आसपास कोई कुमुदवन नाम का स्थान भी है। मैंने कई बार गूगल मैप में इसे खोजने की कोशिश की, परन्तु वहां भी कुमुदवन का कोई जिक्र नहीं था परन्तु मेरा मन नहीं माना, मुझे जितनी असफलताएँ मिलती जा रही थी, उतना ही मेरा कुमुदवन को खोजने विश्वास मजबूत होता जा रहा था और वो कहते हैं ना कि विश्वास मजबूत हो तो ढूँढने से भगवान भी मिल जाते हैं अंत में आखिरकार मैंने कुमुदवन को खोज ही लिया।
कुमुदवन :- कुमुदवन को आज कदरवन के नाम से जाना जाता है और यह मथुरा जिले का एक ग्राम है। प्राचीनकाल में यहाँ कुमुद के फूल बहुतायात मात्रा में पाये जाते थे जिनकी सुगंध के कारण यहाँ का वातावरण काफी रमणीक और सुगन्धित होता था। यह स्थान प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है, भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अपने बड़े भाई दाऊ भैया और ग्वालवालों के साथ गौचारण करते समय नित्य नई नई क्रीड़ाएँ किया करते थे। इस वन के अंदर अनेक तरह के वृक्ष तथा कुंड स्थित थे जिससे यहाँ का वातावरण सदैव हराभरा और रमणीय रहता था। आज भी यहाँ आकर और यहाँ के वातावरण को देखकर मन को असीम आनंद प्राप्त होता है।
यहाँ आज बहुत बड़ा कुंड स्थित है जिसे कुमुदकुण्ड कहा जाता है। ब्रज विकास ट्रस्ट द्वारा इसका शानदार सुंदरीकरण कराया गया है। मैं इस कुंड के किनारे एक नीम के पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा रहा और सोचता रहा कि आज मैं उस स्थान पर हूँ जहाँ कभी मेरे आराध्य भगवान कृष्ण ने अपने ग्वालवालों के साथ नए नए खेल खेले होंगे और शायद आज भी बालरूप में यहाँ आकर अपने उनदिनों की यादों को ताजा कर लेते होंगे। मैं ऐसा सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी मेरे नजदीक आकर रुकी और इसमें से कुछ महिलायें और वृद्ध जन बाहर आये और कुमुदवन को निहारने लगे। यह गुजराती लोग थे जो गुजरात से यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों का भृमण कर रहे थे।
कुमुदकुण्ड के अलावा यहाँ कुमुदबिहारी जी का शानदार मंदिर स्थित है जो कुमुदकुण्ड के नजदीक ही बना हुआ है और इसके ठीक बराबर में कपिलमुनि का मंदिर भी स्थित है। माना जाता है कि कपिल मुनि ने इस स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया था और काफी समय कुमुदवन में रहकर व्यतीत किया था। कहते हैं ब्रज में ही सारे तीर्थ स्थित हैं इसलिए कहा भी जाता है कि 'चारों धामों से निराला ब्रजधाम कि दर्शन करि लेओ जी'। कपिल मुनि के यहाँ तपस्या करने के कारण कुमुदवन को गंगासागर की महत्ता प्राप्त हुई। अगर कोई मनुष्य अपने जीवनकाल में गंगासागर की यात्रा पर नहीं जा पाता और वो अगर ब्रज में आकर कुमुदवन के दर्शन कर ले तो उसे गंगासागर की यात्रा के समान ही पुण्य प्राप्त होता है।
इसके अलावा यहाँ महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक भी है और उसके ठीक सामने चैतन्य महाप्रभु जी की भी बैठक स्थित है। इसप्रकार दोनों महाप्रभुओं के अनुयायी यहाँ आकर अपने अपने महाप्रभुओं की भक्ति में लीन हो सकते हैं और कुछ समय यहाँ रहकर सेवा भी कर सकते हैं।
कुमुदवन की पहली लोकेशन |
कुमुदवन की ओर |
कुमुदकुण्ड |
कुमुदकुण्ड |
कुमुदकुण्ड |
कुमुदकुण्ड |
कपिलमुनि जी का मंदिर |
महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक |
श्री कुमुदबिहारी जी मंदिर |
चैतन्य महाप्रभु जी की बैठक |
* कुमुद का फूल |
धन्यवाद
*विषय उपयोगिता हेतु गूगल से लिया गया।
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