मैं काकनमठ हूँ
चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवों का बसेरा रहा है चाहे ये बीहड़ देखने में कितने भयावह क्यों ना लगें परन्तु मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जो धरती के किसी भी भाग में अपने जीवन यापन की राह ढूंढ ही लेता है। सदियों से चम्बल के बीहड़ों में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ, अनेकों शासकों ने अपने किले, अपने महल और अपने राज्य यहाँ स्थापित किये और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने और आने वाली पीढ़ियों को अपने वजूद, अपने काल और अपनी संस्कृति का सन्देश देने के लिए अनेकों मंदिरों, भवनों और इमारतों का निर्माण कराया।
इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं।
इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं।