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Saturday, April 25, 2020

CHANDERI PART 2


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 2




पिछले भाग से जारी। ......

    उसकी नजर पहाड़ चढ़ती एक चींटी पर पड़ी जो बार बार चढ़ने का प्रयास करती और असफल होकर गिर पड़ती, चींटी ने यह प्रयास तब तक किया जब तक वह पहाड़ पर नहीं चढ़ गई। छोटी सी चींटी की इस कार्यविधि और उसके आत्मविश्वास को देखकर बाबर के मन में आई निराशा दूर हो गई और उसे चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग भी सूझ गया। उसने एक ही रात में अपने मार्ग में बाधा बनी पहाड़ी को काट कर रास्ता बनाने का आदेश अपनी सेना को दिया और उसकी सेना ने एक ही रात में पहाड़ी को काटकर चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग बना लिया।

   अगली सुबह बाबर ने अपनी सेना सहित चंदेरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। मेदिनीराय के नेतृत्व में राजपूतों ने अपार वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु वे परास्त हुए, चंदेरी के मुख्य दरवाजे पर भयंकर मारकाट हुई, असंख्य निर्दोषों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया जिसके बाद इस दरवाजे जो खुनी दरवाजा कहा जाने लगा।

Thursday, April 23, 2020

CHANDERI PART - 1


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 1




   मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नजदीक स्थित चंदेरी एक पौराणिक और ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है इसे महाभारतकालीन शासक शिशुपाल ने बसाया था जो भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे और उनकी बुआ के पुत्र थे। यह चंदेरी कालान्तर में बूढ़ी चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसके अवशेष वर्तमान अथवा नई चंदेरी कुछ दूरी पर देखने को मिलते हैं। चारों तरफ से छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी चंदेरी शुरू से ही भारतीय स्थान में अपनी अमिट छाप बनाये हुए है और अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।


Wednesday, March 25, 2020

BHOPAL CITY


भोपाल शहर और घर वापसी 



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भोजपुर से लौटने के बाद दिन ढल चुका था और भोपाल शहर ने काले रंग की शॉल से ओढ़ ली थी परन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी होने के नाते इसकी चमक बरकरार थी जिससे यह लग ही नहीं रहा था कि शाम हो चुकी है और अँधेरा बढ़ने लगा है। जैनसाब, शाम के भोजन के लिए एक आलिशान रेस्टोरेंट में हमें लेकर पहुंचे। यहाँ उज्जैनी के प्रसिद्ध दाल फाफले मिलते हैं जो मैंने जीवन में पहली बार खाये थे। यह खाने में अत्यंत ही स्वादिष्ट थे और हमारे खाने के बाद रेस्टोरेंट की मैनेजर ने हमसे खाने की गुणवत्ता को लेकर फीडबैक भी लिया जो हमारी तरफ से शानदार था। 

Tuesday, March 24, 2020

SANCHI AND CANCER TROPIC


साँची के स्तूप और कर्करेखा 



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    अपनी कलिंग विजय के दौरान जब सम्राट अशोक ने रणभूमि में भयंकर रक्तपात देखा, दोनों ओर की सेनाओं के वीर सैनिकों के शव और चारों ओर मची शोकभरी चीत्कार सुनकर उसका हृदय काँप उठा और मानसिक रूप से विचलित हो उठा। भयंकर रक्तपात और नरसंहार ने उसका सुकून छीन सा लिया था। एक राजा के लिए युद्ध लड़ना आवश्यक नहीं बल्कि उसकी मजबूरी होता है फिर चाहे वो युद्ध साम्राज्य वाद के लिए हो, अपने राज्य की रक्षा के लिए हो या फिर किसी राज्य को लूटने के उद्देश्य से हो परन्तु सम्राट अशोक के लिए इस युद्ध के पीछे क्या कारण था यह अज्ञात है किन्तु इस युद्ध के बाद उसका हृदय परिवर्तित हो गया और उसने हिंसा का मार्ग छोड़कर अहिंसा का मार्ग अपनाया और जिस धर्म ने उसे अहिंसा का मार्ग दिखलाया वह था बौद्ध धर्म। जिसकी शुरआत सम्राट अशोक ने साँची का स्तूप बनवाकर की। 

Sunday, March 22, 2020

UDAIGIRI CAVES


उदयगिरि की गुफाएँ


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 अगला दिन - 22 DEC 2019

  मध्ययुगीन काल से पहले भी भारतभूमि में बाहरी प्रजाति के शासकों ने, भारत की भूमि पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए कई बारआक्रमण किये, जिनमें शक और हूणों का नाम मुख्यता से लिया जा सकता है। शकों के परास्त होने और हूणों को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने से पहले भारत के एक ऐसे काल का उदय हुआ जो भारतीय इतिहास में स्वर्णिम काल के नाम से विख्यात है और यह काल था देश के महानतम और यशस्वी सम्राटों का काल - गुप्तकाल। 

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    गुप्तकाल की स्थापना का श्रेय 'श्रीगुप्त' को जाता है किन्तु इस काल के जिन महान सम्राटों ने भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह थे - चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त। यह सभी शासक हिन्दुधर्म के अनुयायी थे और शैव धर्म तथा वैष्णव धर्म में विशेष आस्था रखते थे। इतिहासकारों के अनुसार इस काल का सबसे प्रतापी सम्राट और प्रजाहितकारी शासक 'चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य' था जिसकी अनेको कहानियां पुराणों में वर्णित हैं।

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Friday, March 6, 2020

Bhojpur Shiv Temple



भोजपुर शिव मंदिर 



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    भीमबेटका से लौटकर अब जैन साब के साथ हम भोजपुर शिव मंदिर की तरफ रवाना हुए। दिन ढलने की कगार पर था और शाम अब करीब आ चली थी। भोपाल से होशंगाबाद वाले इस राजमार्ग पर अभी मार्ग चौड़ीकरण का कार्य चल रहा था, आने वाले समय में यह रास्ता भोपाल से भीमबेटका या होशंगाबाद जाने वाले राहगीरों के लिए बहुत ही सुविधा जनक हो जाएगा। अब्दुल्लागंज आने पर जैनसाब ने गाडी सड़क के बाईं ओर खड़ी करके शुभ भाई को यहाँ की मशहूर दुकान से कचौड़ी लाने के लिए कहा जो कि दाल की बनी बेहद ही स्वादिष्ट और गर्मागर्म थीं जिन्हें शाम की चाय के साथ हमें खाने बहुत ही आनंद आया। 

Saturday, February 29, 2020

Bhimbetka Caves



आदिमानव का आश्रय स्थल - भीमबेटका गुफ़ाएँ



आदिमानव और उसका निवास 
    
     देश के मध्यभाग में स्थित और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 - 50 किमी दूर दक्षिण दिशा में विंध्यांचल पर्वत की विशाल श्रृंखला है जहाँ प्राचीन काल से ही ऋषिमुनियों के आश्रम तथा जीव जंतुओं का निवास रहा है और इसके साथ ही यह स्थान मानव के उस युग से सीधा सम्बन्ध रखता है जब मनुष्य को अपने मनुष्य होने का ज्ञान भी नहीं था, वह कौन था, किसलिए था इन सभी जानकारियों से परे शिकार करके जीवन निर्वाह करना और मौसम की मार से बचने के लिए प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय लेना ही उसकी मानवता को दर्शाती है। यह काल प्रागेतिहासिक काल के नाम से जाना गया और उस समय का मानव 'आदिमानव' के नाम से। 


Bhopal City and Jain Sab



मैं, कुमार और जैनसाहब से एक मुलाकात - झीलों के शहर भोपाल में  





  रूपकजैन साहब से मुलाकात होने के बाद हमारी एक दूसरे से काफी अच्छी मित्रता हो गई। जल्द ही जैन साब ने मुझे अपने शहर भोपाल घूमने के लिए आने को कहा। मेरी लिस्ट में भोपाल व उसके आसपास के दर्शनीय स्थल थे जो मुझे कभी ना कभी तो देखने ही थे इसलिए अब उन जगहों पर जाने का वक़्त आ चुका था। मैंने भोपाल का रिजर्वेशन करा लिया और साथ में कुमार को भी भोपाल घुमाने के लिए राजी कर लिया।

   उसने भी अपनी टिकट अपने पीटीओ पर बुक कर ली और साल के आखिरी माह में हमारी 2019 की आखिरी ट्रिप भोपाल फाइनल हो गई। मैंने और कुमार ने अपना रिजर्वेशन ग्रांडट्रक एक्सप्रेस में कराया था। हालांकि सर्दियों के दिन थे इसलिए ट्रैन का प्रतिदिन भोपाल पहुँचने का स्टेटस रूपकजैन साब मुझे फोन पर देते थे। मैं हैरान था कि भला कोई मेरा अपना भी ऐसा भी हो सकता है जो इतनी बेसब्री से मेरी प्रतीक्षा कर रहा हो।

Friday, March 22, 2019

Bateshwar Temaple Group



बटेश्वर मंदिर समूह - मध्य प्रदेश


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विमल के कहे अनुसार अब हम अपने अपने घरों की तरफ बढ़ रहे थे। दोपहर के तीन बज चुके थे और कुछ ही समय बाद शाम होने वाली थी। विमल और लोकेश को आगरा निकलना था और मुझे मथुरा। पढ़ावली से निकलकर पीछे की ओर एक रास्ता जाता है जो बटेश्वर के प्राचीन मंदिर समूह तक पहुंचाता है। यह हमारा आखिरी पड़ाव था जिसके बाद हमें घर के लिए रवाना होना ही था। पढ़ावली से बटेश्वर मंदिर समूह की दूरी केवल 1 किमी है। हम जल्द ही यहाँ पहुँच गए। अपनी बाइक बाहर ही खड़ी करके हम अंदर पहुंचे तो एक खूबसूरत बगीचा हमारे सामने था और उसके सामने था प्राचीन मंदिरों का वो समूह जिसे देखने के लिए ही हम यहाँ इतनी दूर आये थे। 

Padhavali Fort


पढ़ावली - दशवीं शताब्दी का एक खंडित शिव मंदिर 


ऐतिहासिक शिवमंदिरों की खोजों को शुरू से देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

     मितावली से ही कुछ दूर ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ सी दिखने लगी थीं। किसी ने हमें बताया कि उन पहाड़ियों के उसपार ग्वालियर की सीमा शुरू हो जाती है और मुरैना की समाप्त।  ये सुनते ही विमल मुझपर झर्राया - तू हमें आखिर धीरे धीरे करके ग्वालियर तक ले ही आया, अब बहुत हो चुका अब सीधे घर का रास्ता पकड़ते हैं। मैं जानता था अभी यहाँ बहुत ऐसा है जिसे ढूँढना और देखना बाकी था और मैं किसी भी हालत में इस खोज को अधूरा छोड़कर जाने वाला नहीं था परन्तु अपने दोस्त को विश्वास दिलाना और उसकी चिंता समाप्त करना भी मेरा ही कर्तव्य था, इसलिए मैंने उसे गूगल में हाईवे तक पहुँचने का रास्ता दिखाया जो ठीक उन पहाड़ियों के बराबर से हाईवे तक जा रहा था। घर की तरफ जाने वाले रास्ते को देखकर विमल संतुष्ट हो गया और उसे यकीन हो गया कि हम घर की तरफ ही बढ़ रहे हैं बस रास्ते में जो भी ऐसी जगह मिलेगी उसे देखते हुए जायेंगे। 

Mitaoli


चौंसठ योगिनी - इकत्तरसो महादेव मंदिर 


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      काकनमठ मंदिर की यात्रा करने के बाद अब हमारा अगला लक्ष्य था मुरैना के मितावली स्थित इकत्तरसो महादेव मंदिर को देखना जो चौंसठ योगिनी मंदिर में से एक है तथा इसकी संरचना के आधार पर ही आज हमारे देश की संसद भवन का निर्माण हुआ है। यह मंदिर काकनमठ से दूर पूर्व - दक्षिण दिशा में करीब 20 किमी दूर स्थित है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले हम सिहोनिया वापस लौटे और सिहोनिया से ख़राब से दिखने वाले एक वीरान रास्ते पर चल पड़े। होली का समय था इसलिए रास्तों में आने वाले गाँवों में ग्रामवासी रास्तों में होली खेल रहे थे, इनसे बाल बाल बचते हुए हम अपनी मंजिल  तरफ बढ़ते ही रहे। 

Kankanmath Temple



मैं काकनमठ हूँ 



      चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवों का बसेरा रहा है चाहे ये बीहड़ देखने में कितने  भयावह क्यों ना लगें परन्तु मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जो धरती के  किसी भी भाग में अपने जीवन यापन की राह ढूंढ ही लेता है। सदियों से चम्बल के बीहड़ों में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ, अनेकों शासकों ने अपने किले, अपने महल और अपने राज्य यहाँ स्थापित किये और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने और आने वाली पीढ़ियों को अपने वजूद, अपने काल और अपनी संस्कृति का सन्देश देने के लिए अनेकों मंदिरों, भवनों और इमारतों का निर्माण कराया।

     इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं। 

Sunday, March 4, 2018

Katni Junction


                                                             
                माँ जालपा देवी मंदिर - कटनी एवं रेल यात्रा 




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       रायपुर एक शानदार रेलवे स्टेशन है और हो भी क्यों न, आखिरकार यह छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी भी है। रेलवे स्टेशन पर बने भोजनालय में खाना खाकर मैं भूख से निर्वृत हो गया और प्लेटफॉर्म पर टहलने लगा। मुझे अब मथुरा की तरफ वापसी करनी थी इसलिए अब मैं कटनी की तरफ जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा में था। मोबाइल में ट्रेन का पता किया, रात को सवा बारह बजे एक ट्रेन दिखाई दी गोंदिया - बरौनी एक्सप्रेस जो प्रतिदिन चलती है। इसको यहाँ रात सवा बारह बजे आना चाहिए था, परन्तु यह अपने निर्धारित समय से साढ़े तीन घंटे लेट यानी सुबह पौने चार बजे आई। मेरी पूरी रात ख़राब हो चुकी थी परन्तु सुबह की नींद सबसे ज्यादा अच्छी होती है इसलिए इसके जनरल कोच में खिड़की वाली सीट पर स्थान जमाया और चादर ओढ़ कर सो गया।