चौंसठ योगिनी - इकत्तरसो महादेव मंदिर
ऐतिहासिक शिवमंदिरों की खोजों को शुरू से देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
काकनमठ मंदिर की यात्रा करने के बाद अब हमारा अगला लक्ष्य था मुरैना के मितावली स्थित इकत्तरसो महादेव मंदिर को देखना जो चौंसठ योगिनी मंदिर में से एक है तथा इसकी संरचना के आधार पर ही आज हमारे देश की संसद भवन का निर्माण हुआ है। यह मंदिर काकनमठ से दूर पूर्व - दक्षिण दिशा में करीब 20 किमी दूर स्थित है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले हम सिहोनिया वापस लौटे और सिहोनिया से ख़राब से दिखने वाले एक वीरान रास्ते पर चल पड़े। होली का समय था इसलिए रास्तों में आने वाले गाँवों में ग्रामवासी रास्तों में होली खेल रहे थे, इनसे बाल बाल बचते हुए हम अपनी मंजिल तरफ बढ़ते ही रहे।
कुछ दूर पहुँचने के बाद हमें एक चम्बल नदी की कैनाल दिखाई दी, जिसके किनारे किनारे 2 से 3 किमी चलने के बाद मितावली के लिए एक रास्ता जाता मिला। हम कुछ देर इस कैनाल के किनारे खड़े रहे और इसमें हाथ मुँह धोकर बढ़े। मितावली से कुछ दूर पहले ही खेतों के बीचों बीच एक गोलाकार आकृति में एक पहाड़ी दिखाई दी इसके नजदीक पहुंचे तो जाना कि यही चौंसठ योगिनी का इकत्तरसो महादेव मंदिर है। यहाँ पुरातत्व विभाग ने काफी अच्छा संरक्षण किया हुआ है। हमने अपनी बाइक एक किनारे खड़ी की और मंदिर की तरफ बढ़ चले। मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है जिस पर जाने के लिए यहाँ सीढ़ीयां बनी हुईं थीं।
माना जाता है यह स्थान अति प्राचीन ऐतिहासिक कालीन स्थान है। पुरातत्व विभाग की खोजबीन की रिपोर्ट अनुसार कुषाणकालीन राजा कनिष्क के समय में इस स्थान का विशेष महत्व था, हालाँकि कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था परन्तु हो सकता है उससे पहले के कुषाणकालीन वंशजों या बाद के वंशजों ने इस स्थान को विशेष महत्व दिया हो क्योंकि इस पहाड़ की तलहटी में पुरातत्व विभाग को कुषाणकालीन आभूषणों से युक्त अनेकों प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं जो आज भी ग्वालियर किले के संग्रहालय में सुरक्षित हैं साथ ही यह भी सिद्ध करती हैं कुषाणों के समय में यह स्थान कोई साधारण स्थान नहीं रहा होगा।
विशाल दीवार की गोलाई में बना यह मंदिर अपने आप में शिल्प कला का एकमात्र अनूठा उदहारण है जो मुझे भारतवर्ष में अत्यंत्र कहीं भी देखने को नहीं मिला। भारत की संसद भवन की सरंचना इसी मंदिर की संरचना के आधार पर की गई है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर पता चलता है कि इसके अंदर वृत्ताकार रूप छोटे छोटे चौंसठ शिव मंदिर बने हुए हैं जिसकारण इसे चौसठ योगिनी मंदिर भी कहा जाता है। कहते हैं इसका निर्माण महाराजा देवपाल ने 1323 ई. में कराया था।
विमल को स्थान कुछ खास पसंद नहीं आया परन्तु ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह कितना महत्वपूर्ण यह मैं तरह से जानता था परन्तु विमल को यह समझाना अत्यंत ही कठिन था क्योंकि वो आज मतलब वर्तमान जीने वाला इंसान है और ऐसी ऐतिहासिक जगहें उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं। आज मेरी वजह से वो इन पत्थरों में तप रहा था और अत्यधिक बैचैन भी था क्योंकि मैं आज उसे उसके घर से इतनी दूर जो ले आया था वो बाइक से जबकि वो एक ऐसा इंसान है जो बाइक से कभी आगरा से बाहर निकला भी नहीं था। उसे डर था कि कहीं रास्ते में कोई पकड़ ले या बाइक ही ख़राब हो जाए तो वो क्या करेगा ? उसका कहीं तक सोचना भी उचित भी था क्योंकि हम इसवक्त अपने शहर अपने राज्य से दूर चम्बल के किनारे थे जिसके नाम से ही मन में अजीब सा डर बैठने लगता है।
रास्ते में एक गाँव |
चम्बल नहर |
चम्बल नहर के किनारे दो यात्री |
आगे का रास्ता |
चम्बल नहर |
नहर किनारे विमल |
और मैं भी |
एक पुराना मंदिर |
दूर दिखाई देता चौसठ योगिनी |
मितावली में प्रवेश |
मंदिर का द्धार |
बाइक लगाकर आये दो दोस्त |
मंदिर तक जाने के लिए ऊँची सीढ़ीयां |
लोकेश, चढ़ने के बाद |
चौसठ योगिनी - एकत्तरसे महादेव |
मंदिर का वृत्ताकार रूप |
विमल आराम फरमाते हुए |
जय महादेव बाबा |
मंदिर के बाहर |
पुरातत्व की अभी भी जारी है |
संसद भवन इसी शैली में निर्मित है |
मितावली ग्राम का एक दृश्य |
मैं और विमल |
इस बैल की भी कोई ना कोई अवश्य होगी - पर यहाँ बताने वाला कोई नहीं था |
श्री राम मंदिर |
धन्यवाद
No comments:
Post a Comment
Please comment in box your suggestions. Its very Important for us.