विदर्भ की यात्रायें
नागभीड़ से गोंदिया पैसेंजर रेल यात्रा
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इतवारी से आई हुई नेरो गेज पैसेंजर का इंजिन आगे से हटाकर पीछे लगा दिया गया और यह वापस इतवारी जाने के लिए तैयार थी। अब मैं यहाँ से बल्लारशाह से आने वाली ब्रॉड गेज की लाइन की पैसेंजर से गोंदिया तक जाऊँगा, जो यहाँ साढे चार बजे आयेगी और अभी 2 बजे हैं, यानी पूरा ढाई घंटा है अभी मेरे पास। नागभीड स्टेशन शहर से दूर एकांत क्षेत्र में स्थित है यह किसी ज़माने में नेरो गेज लाइन का मुख्य जंक्शन स्टेशन था जहाँ से ट्रेन नागपुर, गोंदिया और राजोली तक जाती थी, बाद में इसे चंदा फोर्ट तक बढ़ा दिया गया। सन 1992 इसे चंदा फोर्ट से लेकर गोंदिया तक नेरो गेज से ब्रॉड गेज में बदल दिया गया परन्तु नागपुर से नागभीड रेल खंड आज भी नेरो गेज ही है। कुछ साल पहले नागपुर से इतवारी बीच नैरो गेज ट्रैक को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया और नागपुर से नागभीड जाने वाली नैरो गेज की ट्रेनों का इतवारी से संचालन किया जाने लगा।
नागभीड के पास घोड़ाझरी नामक लेक और खूबसूरत पिकनिक स्पॉट है, यह मेरे रूट में नहीं था अन्यथा मैं यहाँ जरूर जाता। गोंदिया पैसेंजर आ चुकी है और इसके अधिकांश कोच खाली ही पड़े हैं, मैंने भी एक सीट पर अपना स्थान ग्रहण किया। नागभीड़ से चलने के बाद रास्ते के खूबसूरत नज़ारे शुरू हो गए। एक नदी भी आई, नाम था वैनगंगा। इस पर पुरानी नेरोगेज के पिलर आज भी देखे जा सकते हैं जो साबित करते हैं ये लाइन कभी नैरो गेज थी। काफी सारे स्टेशन निकलने के बाद रात को ये ट्रेन गोंदिया पहुंची। मैं पहले भी छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान यहाँ से गुजर चुका हूँ परन्तु गोंदिया में आज पहली बार मेरे कदम पड़े थे। स्टेशन के बाहर निकलते ही सामने खड़े नेरो गेज के इंजन पर मेरी नजर पड़ी, यह ZDM 54 था जिसने शायद गोंदिया तक कभी अपनी सेवा दी होगी।
गोंदिया के बाहर निकलते ही बाजार है और सबसे पहले सामने जो नजर पड़ती है वो एक शराब की दुकान थी। हालांकि मैं कभी कभी शराब का पूर्ण उपयोग अपने शारीरिक हित के लिए कर लेता हूँ इसलिए मुझे अब इसे उपयोग करने का बड़ा मन हो रहा था, परन्तु यह क्या ये तो देशी शराब थी जो मेरी पसंद से कोसों दूर थी, हमारे उप्र में अंग्रेजी शराब की दुकानें हैं, इसी नाम से मैंने यहाँ पूछा परन्तु कोई नहीं बता पाया पर बाद में अब इसका हिंदी रूपांतरणं करके पुछा तो सभी ने बताया और कहा विदेशी मदिरा की दुकान उधर है।
मैं दुकान पर पहुँचा और एक ब्रांड खरीदा, ब्रांड देने से पहले दुकान दार ने पुछा पीना है या ले जाना है ?मैंने कहाँ जाहिर सी बात है खरीदा है तो पीना है, ब्रांड के बीस रूपये ज्यादा बढ़ गए। मतलब महाराष्ट्र में गर आप जिस दुकान से मदिरा लेते हैं तो वो इसे पीने के लिए आपको सारी चीजे और जगह भी देते हैं ताकि आपको इसका सेवन सार्वजानिक स्थानों पर ना करना पड़े और इसके लिए आप इन्हें बीस रूपये अतिरिक्त देंगे।
वाह क्या बात है, अच्छा लगा ये सिस्टम। हमारे उप्र में ऐसा नहीं होता, वहां लोग जब तक खुले आसमान और ताज़ी हवा में चार दोस्तों के साथ पैग ना लगाएं उन्हें नशा ही नहीं चढ़ता। मैं नशा करने के लिए शराब का सेवन नहीं करता बस सुरूर लिए करता हूँ ताकि मैं यात्रा के दौरान स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त रख सकूँ। कुछ समय बाद वहीँ बने एक होटल में खाना खाकर मैं वापस स्टेशन लौटा और गोंदिया स्टेशन पर पत्नी से बात की, बात करने के दौरान उसे लगा कि मैं उसी के आसपास हूँ किन्तु भला वो क्या जानती थी कि इस समय मैं उससे काफी कोसों दूर उसके शहर, उसके राज्य और उसके आसपास के राज्यों से भी काफी दूर था जहाँ इसवक्त ना मेरी भाषा एक थी, ना मेरा खानपान एक सा था।
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