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Sunday, May 18, 2025

KERLA SAMPARK KRANTI EXP : MAO TO MTJ

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 15 

केरला संपर्क क्रांति एक्सप्रेस - मडगांव से मथुरा 

1 जुलाई 2023 

हम शाम होने तक मडगांव रेलवे स्टेशन आ गए थे। यहाँ से हमारा रिजर्वेशन मंगला लक्षद्वीप एक्सप्रेस में था, जो रात को दो बजे के लगभग यहाँ आएगी। अभी रात के नौ बजे हैं, हम प्लेटफॉर्म पर बने खानपीन की स्टॉल पर गए और यहाँ कुछ इडली और डोसा खाकर हमने अपने रात्रिभोज को पूर्ण किया, इसके बाद क्लॉक रूम से अपना बैग लेकर अब घर लौटने की तैयारी करने लगे। अब हम अपनी यात्रा के अंतिम चरण में थे, और गोवा आकर हमारी यात्रा पूर्ण हो चुकी थी, अब वापसी यात्रा की बारी थी। 

तभी रेलवे से सन्देश प्राप्त हुआ कि मंगला एक्सप्रेस में हमारी सीट आरएसी में ही रह गई थी। अब ट्रेन बदलने की प्लानिंग मेरे दिमाग में और तेज हो गई। दरअसल मंगला एक्सप्रेस में मुझे RAC सीट मिली जो मेरे लिए पर्याप्त नहीं थी, मंगला एक्सप्रेस वाया भुसावल, भोपाल होकर मथुरा आती है, इस वजह से यह एक लम्बी यात्रा करती है जिसमें समय भी बहुत अधिक लगता है। 

मैंने मोबाइल में रेलवे ऍप्स क्रिस पर यहाँ से दिल्ली जाने वाली गाड़ियों के बारे में जानकारी ली जिसमें मुझे पता चला रात को साढ़े बारह बजे तक केरला संपर्क क्रांति एक्सप्रेस आ रही है जो सीधे दिल्ली जाने के लिए एक सुपरफास्ट ट्रेन है। इसका चार्ट बन चुका था, इसलिए इसमें तत्काल में भी रिजर्वेशन करना संभव नहीं था। 

अतः एप्प में मैने ट्रेन की कोच पोजीशन देखी, जिसमें ट्रेन के अंत में अनेकों सामान्य कोच थे, और इसके बाद इस ट्रेन का शेडूअल देखा। मैंने दो सामान्य टिकट कोटा स्टेशन तक के लिए ले ली, क्योंकि कि इस ट्रेन का स्टॉप कोटा के बाद सीधे निजामुद्दीन ही था, यह मथुरा नहीं रुकने वाली ट्रेन है। इसलिए मैंने इस ट्रेन से कोटा तक आने का विचार किया था, उसके बाद वहाँ से तो मथुरा की अनेकों ट्रेनें हैं, कोई न कोई तो मिल ही जाएगी। मंगला एक्सप्रेस की टिकट कैंसल कर दी और अब केरल संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से हमारी यात्रा निश्चित हो गई। 

हम गोवा के मडगांव स्टेशन पर बैठे थे, बारिश बहुत तेज हो रही थी। गर्मियों के इन दिनों में, हमें स्टेशन पर इस अर्धरात्रि में सर्दी का एहसास सा होने लगा था। प्लेटफॉर्म पर I LOVE GOA के नाम से एक सेल्फी पॉइंट भी बना हुआ था, यहाँ हमने काफी फोटो लिए और गोवा की इस यात्रा को यादगार बनाया। इडली - डोसा वाली दुकान पर ही मैंने अपना मोबाइल भी चार्ज करने के लिए लगा दिया था, क्योंकि यह दुकानदार हमारे ही शहर आगरा का निवासी था, इसलिए थोड़ी सी मित्रता हो गई और बिना किसी भुगतान के मोबाइल चार्ज करने की सुविधा मिल गई। 

गोवा के इस मडगांव स्टेशन पर भी हमें गोवा की शाही यात्रा का अनुभव हो रहा था क्योंकि स्टेशन पर बना यह बाजार किसी शानदार मॉल में बनी दुकानों से कम ना था। यहाँ खाने पीने की चीजों के अलावा, और भी अन्य तरह की दुकानें भी थी जैसे गारमेंट्स, शूज और भी अन्य। प्राइवेट वातानुकूलित प्रतीक्षालय आज भी फुल था और इसमें ठहरने के लिए जगह आज भी उपलब्ध नहीं थी। बारिश अपने जोरों पर थी और तेज ठंडी हवाएं चल रही थीं। मौसम का मिजाज इस वक़्त बहुत खतरनाक प्रतीत हो रहा था। 

जल्द ही रात के बारह बज गए और हम अपनी ट्रेन के आने की राह देखने लगे। आज पूरे छः दिन हो गए थे हमें अपने घर से निकले हुए, माँ की भी बहुत याद आ रही थी, अब एक पल का भी सब्र नहीं था, बस ऐसा लग रहा था जैसे अभी ट्रेन आये और हम उसमें बैठकर जल्द ही अपने घर पहुंचें। एप्प में मैंने ट्रेन की लोकेशन देखी तो यह लोलेम से निकल चुकी थी और शीघ्र ही मडगांव पहुँचने वाली थी। 

ट्रेन आने का समय अब हो चुका था, किन्तु ट्रेन का अभी कोई अता पता नहीं था, मैं बार बार कारवार की दिशा में देख रहा था कि कब ट्रेन के इंजन की रौशनी दिखाई दे और कब हम अपने घर की ओर प्रस्थान करें। एप्प से जो  जानकारी मिली, इसके हिसाब से ट्रेन मडगांव के पास ही थी और शायद आउटर पर खड़ी हुई थी। निर्धारित समय से बीस मिनट देरी से ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुँची। हमने तुरंत इसके जनरल कोच में अपने लिए दो सीटें घेर लीं। यह विंडो साइड वाली सिंगल सीट थीं। कोच लगभग खाली सा ही था लोग ऊपर और नीचे की सीटों पर सोते हुए यात्रा कर रहे थे। 

कल्पना को नींद आ रही थी और वह बैठे बैठे यात्रा करने में असमर्थ थी, इसलिए मैंने एक ऊपर वाली सीट पर उसके सोने की व्यवस्था कर दी, क्योंकि हमारे कोच में बैठे सहयात्रिओं ने हमारी परेशानी समझी और हमें ऊपर की एक सीट दे दी। कल्पना को लेटने के लिए सीट मिल गई तो मुझे भी थोड़ी सी राहत मिल गई। मुझे चलती ट्रेन में नींद बहुत कम आती है इसलिए मैं विंडो सीट पर बैठे बैठे ही कोंकण की इस रेल यात्रा के आनंद लेने लगा। बारिश और अँधेरा होने की वजह से बाहर का कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था किन्तु घर लौटने की ख़ुशी और माँ से मिलने की शीघ्रता में कब समय बीत गया, पता ही नहीं चला। 

रत्नागिरी निकलने के बाद दिन भी निकल आया था, कोंकण रेलवे के नज़ारे अब पुनः दिखने शुरू हो चुके थे और वापसी की यह यात्रा भी हमें बेहद खुशनुमा लग रही थी। कोंकण प्रान्त के ये ऊँचे ऊँचे पहाड़ आज मानसून में एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे, इन पहाड़ों के आसपास मंडराते बादल और इनसे बहते हुए ऊँचे ऊँचे झरने प्रकृति की सुंदरता की अनुपम छटा बिखेर रहे थे। शीघ्र ही हम रोहा रेलवे स्टेशन पहुंचे। हालांकि इस स्टेशन पर इस ट्रेन का स्टॉपेज नहीं है किन्तु आगे शायद लाइन व्यस्त होने के कारण यह यहाँ काफी देर खड़ी रही। 

रोहा, कोंकण रेलवे का उत्तरी दिशा में पहला रेलवे स्टेशन है और हम जिस दिशा से आ रहे हैं उसके हिसाब से अंतिम स्टेशन है। इसके बाद कोंकण रेलवे का क्षेत्र समाप्त हो जायेगा और फिर ट्रेन मुंबई की तरफ बढ़ेगी। मैं स्टेशन पर उतरा, स्टेशन पर लगे बोर्ड के साथ कुछ फोटो लिए और रोहा स्टेशन के परिसर को देखा। यह स्टेशन मुख्यतः मालगाड़ियों के लिए अधिक प्रयोग में आता है, यहाँ मेल एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव नहीं है कुछ चुनिंदा ट्रेनें यहाँ रूकती हैं। जल्द ही ट्रेन यहाँ से रवाना चली और हमारी कोंकण यात्रा यहाँ समाप्त हो गई। 

अब हम मुंबई क्षेत्र में थे, मुंबई शहर के इस रूट के नज़ारे अब दिन में दिखाई दे रहे थे क्योंकि यहाँ आते वक़्त रात का समय था और हम कुछ देख नहीं पाए थे। मुंबई का पनवेल स्टेशन आया और यहाँ से अधिकतर यात्री हमारे कोच में सवार हो गए। कोच की खाली जगह अब भरी हुई दिखाई दे रही थी। पनवेल के बाद पूरी मुंबई को पार करते हुए वसई रोड स्टेशन पहुंची। इसके बाद सूरत, वड़ोदरा और रतलाम होते हुए यह मध्य रात्रि कोटा स्टेशन पहुंची। 

कोटा पहुँचने से पूर्व ही कल्पना तो सो चुकी थी और मेरी भी आँख लग गई और कोटा कब निकल गया पता ही नहीं चला। तड़के सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा साढ़े तीन बज चुके थे, और हम मथुरा ने नजदीक ही थे। मैंने खिड़की से झाँक कर देखा तो ट्रेन भरतपुर स्टेशन से गुजर रही थी, मैंने तुरंत कल्पना को जगाया और हमने ट्रेन से उतरने की तैयारी पूरी की। 

मुझे उम्मीद थी कि भले ही ट्रेन का स्टॉपेज मथुरा में ना हो किन्तु इस समय मथुरा में दिल्ली जाने वाली गाड़ियों का ट्रैफिक बहुत होता है, हो ना हो यह थोड़ी देर के लिए मथुरा स्टेशन पर अवश्य रुक सकती है और अगर ना भी रुकेगी तो दिल्ली से पहले जहाँ भी रुकेगी हम वहीँ उतर जायेंगे किन्तु दिल्ली जाने की हमारी कोई इच्छा नहीं थी। शीघ्र ही यह मुडेसी रामपुर स्टेशन को पार करने के बाद थोड़ी स्लो हो गई और अंततः आउटर पर रुक गई। हम बिना देर किये इस आउटर पर उतर गए। 

हमारा घर इस आउटर के नजदीक ही था, एक तरह से ट्रेन ने हमें हमारे घर के पास ही उतारा था। हम मॉर्निंग वॉक करते पैदल पैदल शीघ्र ही अपने घर पहुँच गए, और इस प्रकार हमारी यह मानसूनी यात्रा जिसमें हमने कोंकण, मालाबार और केरला तक की यात्रा की थी, सकुशल पूर्ण हो गई। आज पूरे आठ दिन बाद मुझे देखकर माँ बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया। 

करमाली रेलवे स्टेशन - गोवा 





कोंकण के नज़ारे 






विन्हेरे रेलवे स्टेशन 








मुंबई प्रथम दर्शन 


वसई रोड रेलवे स्टेशन 


वैतरणा रेलवे स्टेशन 


THANKS FOR VISIT 

🙏


कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा के अन्य भाग 

Wednesday, April 1, 2020

KANHERI CAVES


कान्हेरी गुफाएँ


यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

    भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का उदय होने के बाद, भारतीय लोगों की इस धर्म के प्रति आस्था को देखते हुए अनेकों मठ, विहार स्थल, स्तूप और पर्वतों को काट छाँट कर गुफाओं का निर्माण हुआ। यह स्थल बौद्ध लोगों और भिक्षुयों के लिए रहने और महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार प्रचार हेतु बनाये गए थे। प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्य, मगध में मौर्य वंश के दौरान से ही इन सभी का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। मौर्य वंश के पतन के पश्चात भी अनेकों राजवंशों ने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी आस्था बनाये रखी तथा इसे राजधर्म तक घोषित किया और ऐसे ही स्मारकों और गुफाओं का निर्माण होता रहा, जिनमें कुषाण और हर्षवर्धन का काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा। 

Tuesday, March 31, 2020

MUMBAI : 2020


मुंबई 2020 - नए साल की सैर


1 जनवरी 2020
 
   अपनी ऐतिहासिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए और भीमबेटकाउदयगिरि की गुफाओं के देखने के बाद अब मन में अन्य गुफाओं को देखने ललक जाग उठी थी। भारत की समस्त ऐतिहासिक गुफाओं की एक लिस्ट तैयार की गई और पाया कि ऐसी अधिकतर गुफाएँ महाराष्ट्र प्रान्त में है जो यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में भी दर्ज हैं जिनमें मुख्यतः एलिफेंटा, अजन्ता और एलोरा का मुख्य स्थान है। 

   इन गुफाओं को देखने के लिए यात्रा कार्यक्रम तैयार हुआ और हमने इस यात्रा कार्यक्रम को इस प्रकार बनाया कि यह ऐतिहासिक होने साथ साथ तीर्थ और पर्यटन यात्रा भी साबित हुई। इस यात्रा में रेलमार्ग को मुख्यता के रूप में चुना गया और इस यात्रा की शुरुआत हुई देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से।

Wednesday, August 10, 2016

Mumbai CST

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मुम्बई - मेरी पहली यात्रा

 इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

      एक बार मुम्बई देखने का हर किसी का सपना होता है, मेरा भी सपना था और साथ में मेरी माँ का भी । ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के पश्चात् हम सुबह मनमाड पहुंचे और राज्य रानी एक्सप्रेस पकड़कर मुम्बई सीएसटी ।
पहली बार मुम्बई देखने की एक अलग ही ख़ुशी थी आज मेरे मन में और इससे भी ज्यादा ख़ुशी थी अपनी माँ को मुम्बई दिखाने की। यूँ तो मैंने अपनी माँ को दिल्ली, कलकत्ता और चेन्नई तीनो महानगर दिखा रखे हैं पर  हर किसी के दिल में बचपन से ही जिस शहर को देखने का सपना होता है वो है मुम्बई । सीएसटी स्टेशन पर पहले मैंने और माँ ने भोजन किया और उसके बाद हम सीएसटी के बाहर निकले ।

     अंग्रेजों के समय में बना यह स्टेशन आज भी कितना खूबसूरत लगता है इसीलिए ये विश्व विरासत सूचि में दर्ज है। यहाँ हमने दोमंजिला बस भी पहली बार ही देखी थी। इसी बस द्वारा हम गेट वे ऑफ़ इंडिया पहुंचे। समुद्र तट पर स्थित यह ईमारत भी मुझे ताजमहल से कम नहीं लगी और साथ ही ताज होटल जिसे हम बचपन से टीवी अख़बारों में देखते आ रहे थे आज आँखों के सामने था ।