Wednesday, February 12, 2025

MATHURA TO PANVEL : KERLA TRIP 2023

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 1 

मथुरा से पनवेल - तिरूवनंतपुरम सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस 


    मानसून के समय में देश के पश्चिमी घाट, कोंकण क्षेत्र, गोवा और केरला की प्राकृतिक सुंदरता अपने चरम पर होती है। देश में सबसे पहले मानसून भी केरल में ही अपनी दस्तक देता है। अतः बरसात का यहाँ अनोखा रूप देखने को मिलता है। कोंकण क्षेत्र और पश्चिमी घाटों की सुंदरता की अलग ही छटा देखते बनती है। 

इसके अलावा इन सब नजारों और प्राकृतिक सौंदर्य को दिखाने के लिए कोंकण रेलवे अपनी अहम् भूमिका निभाती है। मानसून में कोंकण रेलवे की यात्रा, हर मनुष्य के जीवन में एक ऐसा यादगार अनुभव छोड़ती है जिसे शायद ही जीवन पर्यन्त भुलाया जा सके।  

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काफी वर्ष पहले मैंने भी कोंकण रेलवे के इन शानदार नजारों के बारे में सुन रखा था तथा इसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी भी एकत्रित की हुई थी। उस समय हम आगरा में रहते थे, और मेरे पिताजी आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर  रेलवे में नौकरी किया करते थे, तब मैंने जाना था कि यहाँ से गुजरने वाली 'मंगला लक्षद्वीप एक्सप्रेस' एक ऐसे मार्ग से होकर अपनी यात्रा करती है जिसके नज़ारे और सुंदरता का एक अलग ही अलौलिक वर्णन है। 

आगरा होकर जाने वाली यह एक मात्र ट्रेन थी जो कोंकण रेलवे से होकर गुजरती थी अतः शुरू से ही इसमें यात्रा करने का मन बना लिया था, कि एक बार तो अवश्य इसमें यात्रा करनी है किन्तु ऐसा अवसर मुझे अबतक प्राप्त ही नहीं हो पाया था। किन्तु अब ईश्वर की कृपा से ऐसा अवसर मिला है कि कोंकण रेलवे की यात्रा करने का स्वपन, साकार होने जा रहा है। 

आगरा के बाद हम लोग मथुरा आ गए और यहीं इस ब्रजभूमि में अपना स्थाई निवास स्थान बनाया। अब ये ब्रजभूमि ही अपना निवास स्थान है और अपनी कर्मभूमि भूमि भी। सम्पूर्ण देश में अनेकों यात्राएं करने के बाद प्रत्येक मानसून में मुझे कोंकण यात्रा याद आती ही अतः इसबार मैंने मथुरा से केरल के तिरुवनंतपुरम नगर की यात्रा का विचार बनाया। 

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मथुरा से मुंबई तक मैंने मध्य और पश्चिमी, दोनों रेलमार्गों से यात्रा की है,  किन्तु अब मैं पश्चिमी घाटों की यात्रा करना चाहता था जो महाराष्ट्र से शुरू होकर केरल तक विस्तृत हैं, इस बीच हमें कोंकण रेलवे के नज़ारे भी देखने को मिलते हैं। इसलिए मैंने एक ऐसी ट्रेन का चयन किया  जो दिन के समय कोंकण क्षेत्र से होकर गुजरती हो। मंगला लक्षद्वीप एक्सप्रेस का अधिकांश समय कोंकण रेलवे से होकर गुजरने का रात्रि में है अतः मंगला एक्सप्रेस से मैंने इस यात्रा करने का विचार रद्द कर दिया। 

काफी खोजबीन के बाद मुझे केरल यात्रा के लिए एक ऐसी ट्रेन मिल गई जो दिन के समय कोंकण के नज़ारे दिखाती हुई गुजरती है। यह ट्रैन 22654 निजामुद्दीन - तिरुवनंतपुरम सुपरफास्ट एक्सप्रेस है। इसी ट्रेन में मैंने अपना और कल्पना का रिजर्वेशन भी करा लिया। 

अपनी ऑफिस में मैंने अपनी इस आगामी यात्रा के बारे में अपने सहकर्मचारियों को भी बताया। उनमें से एक सहकर्मचारी ''सोहन सिंह सोलंकी'' हैं, जिन्होंने मेरे साथ इस यात्रा पर चलने के लिए अपनी सहमति दिखाई और अब सोहन भाई मेरे सहकर्मचारी के साथ साथ, नए सहयात्री भी बनने वाले थे। 

बाद में सोहन भाई ने इस यात्रा में अपने परिवार को भी शामिल कर लिया जिससे अब मेरे साथ इस यात्रा मे मेरी पत्नी कल्पना, सोहन भाई, उनकी पत्नी सपना, बेटी पीहू, उनकी माँ और बहिन शामिल थीं। अतः केरला की इस मानसूनी यात्रा पर जाने वाले हम सात लोग थे। 

26 जून 2023, सोमवार 

अन्ततः यात्रा का दिन आ ही गया और हम सुबह से ही अपनी इस यात्रा की तैयारियों में लग गए। मथुरा से हमारी ट्रेन सुबह साढ़े छ बजे की थी इसलिए मैंने निधि और कल्पना को सुबह तीन बजे ही जगा दिया और दोनों ने मिलकर यात्रा के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया। सुबह सबेरे माँ से आशीर्वाद लेकर मैं और कल्पना स्टेशन की तरफ रवाना हो गए। 

सोहन भाई भी सही समय पर अपने परिवार के साथ स्टेशन पहुँच गए। यहाँ पहली बार मैं सोहन भाई के परिवार से मिला, उनसे मिलकर लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे हैं। कुछ ही समय में ट्रेन भी 3 नंबर प्लेटफार्म पर आ गई और हमने अपनी अपनी सीटों पर अपना स्थान ग्रहण किया। जल्द ही ट्रेन मथुरा से प्रस्थान कर गई।

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इन दिनों 'द केरला स्टोरी' मूवीज का ट्रेंड चल रहा है, फिल्म की कहानी केरला में धर्म परिवर्तन से जुडी कुछ घटनाओं पर आधारित थी। अभी कुछ दिनों पहले ही यह मूवीज मैंने दो बार अलग अलग सोहन भाई और कल्पना के साथ देखी थी, मूवीज में अदा शर्मा ने शानदार अभिनय किया है। 

चूँकि यह मूवीज मैंने अलग अलग दो बार सिनेमा हॉल में देखी थी इसलिए केरला के लोगों का रूप रंग और उनके रहन सहन से मैं थोड़ा सा परिचित हो गया था। इस ट्रेन में मेरी और सोहन भाई की साइड लोअर सीट थी जिसके बराबर वाले कूपे में केरला के कुछ छात्र - छात्राएँ भी  सफर कर रहे थे। उनकी वेशभूषा और भाषा देखकर मुझे इस मूवीज के काल्पनिक पात्र याद आ गए। 

कुछ ही समय में भरतपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन आया, यह राजस्थान का प्रवेश द्वार कहलाता है और मथुरा का  नजदीकी नगर है। इसके बाद ट्रेन राजस्थान में अपनी यात्रा पर बढ़ रही थी। हम सभी की अलग अलग सीटें थीं, सोहन भाई के परिवार का कोच भी अलग था और हमारे कोच से काफी पीछे था, हम एस 7 में थे और वो लोग एस 1 में।

 इसलिए सोहन भाई को इस कोच से उस कोच तक जाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। अन्ततः वो अपनी सीट छोड़कर एस 1 में ही चले गए। उनका जाना उचित भी था क्योंकि अपने परिवार के साथ भी यात्रा करने का एक अलग ही अनुभव होता है जो प्रतिदिन नहीं मिल सकता। 

सवाई माधोपुर निकलने के बाद जल्द ही कोटा जंक्शन आ गया। यह मुंबई - दिल्ली के बीच एक प्रमुख जंक्शन स्टेशन है और राजस्थान का एक मुख्य नगर है। इसके अलावा यहाँ हमारे सोहन भाई की ससुराल भी है इसलिए भाभी जी के भैया दोपहर और शाम का भोजन लेकर स्टेशन पर ही इंतज़ार करते हुए मिले। 

यात्रा के दौरान अपनों से मिलने की एक अलग ही ख़ुशी होती है और यह ख़ुशी इस समय सपना भाभी से ज्यादा कौन अनुभव कर सकता था। कोटा से निकलने के बाद मैं अपनी सीट पर कुछ समय के लिए सो गया क्योंकि गर्मियों का समय है और यहाँ बारिश का अभी दूर दूर तक कोई नाम नहीं था। 

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यात्रा का अगला मुख्य पड़ाव रतलाम जँ. है, गर्मीं अपने चरमोत्कर्ष पर थी। ट्रेन में पानी की ठंडी बोतल भी मिलना लगभग बंद हो चुकी थी। इसलिए रतलाम स्टेशन की एक स्टॉल से दो तीन ठंडी बोतलें लेकर रख लीं। क्योंकि इसके बाद यह ट्रेन वडोदरा जाकर ही रुकने वाली थी। वड़ोदरा पहुँचते ही शाम हो चली थी और दिन भी लगभग ढलने की कगार पर था। 

इससे पूर्व ही चम्पानेर रोड के नाम से एक स्टेशन आया। मध्यकाल में 'चम्पानेर' गुजरात की मुख्य राजधानी थी, महमूद बेगड़ा यहाँ का सुल्तान था जो अपनी लम्बी मूँछों के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। इसके नजदीक ही यहाँ पावागढ़ नामकपर्वत है जो हमें ट्रेन में से दिखाई दे रहा था। आजादी के बाद तक चम्पानेर रोड स्टेशन से एक नेरोगेज लाइन चम्पानेर - पावागढ़ होते हुए पानी माइंस तक जाती थी, वर्तमान में इसके अवशेष दिखाई देते हैं। चम्पानेर के नजदीक पावागढ़ नामक स्टेशन था। 

वड़ोदरा पहुंचते ही मैंने कल्पना को वही पीवीआर मॉल दिखाया जहाँ मैं अपनी पिछली गुजरात यात्रा के दौरान पूरे दिन रुका था, मैं उसदिन पावागढ़ ही जाना चाहता था किन्तु पैर की सूजन और दर्द के कारण चलने में असमर्थ था और इस वजह से पावागढ़ नहीं जा सका था। चम्पानेर - पावागढ़ की यात्रा अभी भी मेरी यात्रा लिस्ट में शामिल है। 

वड़ोदरा स्टेशन पर पहुंचकर पिछली गुजरात यात्रा की यादें पुनः ताजा सी हो गईं, क्योंकि दो तीन माह पूर्व ही मैं यहाँ आया था। वड़ोदरा के निकलने के बाद सूर्यदेव भी अस्त होने की कगार पर थे, और सूरत पहुँचने तक अस्त हो चुके थे। ट्रेन के बाहर अब सिर्फ अंधकार था, बस बीच बीच में आने वाले स्टेशन और गुजरात के छोटे बड़े गाँव नगर ही अपनी रोशनियों की वजह से दिखाई दे जाते थे। 

जल्द ही ट्रेन महाराष्ट्र पहुंची और रात होने तक हम मुंबई के वसई रोड स्टेशन पर थे। यहाँ पहुँचने तक हम खाना खा पीकर फ्री हो गए और जल्द ही हमें नींद ने अपने आगोश में ले लिया। मध्य रात्रि मेरी आँख खुली तो देखा, ट्रेन पनवेल स्टेशन पर खड़ी है। मैं पहली बार इस स्टेशन पर आया था इसलिए ट्रेन से उतरकर स्टेशन के नामपट के साथ एक दो फोटो ले लिए। 

यहाँ हलकी हलकी बारिश हो रही थी, यह हमारी इस यात्रा की पहली बारिश थी। अब इसके बाद ट्रेन कोंकण रेलवे से होकर गुजरेगी और कल हम पूरा दिन कोंकण रेलवे यात्रा का आनंद लेंगे और इसका विवरण अगले भाग में प्रकाशित करेंगे। तब तक के लिए शुभ रात्रि। 

कल्पना उपाध्याय  - मेरी सहयात्री 


मि. एंड मिसेज उपाध्याय केरल यात्रा पर 



रास्ते के नज़ारे 

राजस्थान राज्य 

राजस्थान राज्य की एक नदी 


कोटा में चम्बल नदी 



सूरत में अपनी सूरत 

कल्पना की भी 

पनवेल स्टेशन 

पनवेल में हम 

  🙏

   धन्यवाद 

1 comment:

  1. Dost ISS yatra ka vardhan jald hi pura karo kyoki aapki Kahani padhne m aisa lagta h jaise Munshi premchand ki Kahani padh rhe hai. Aap ek mamuli si yatra ko ek alag hi pehchan de dete ho Jo itihas m jivant ho jati h. M bhut bhagyashali hu Jise aap jaisa sahyatri or dost mila

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