UPADHYAY TRIPS PRESENT'
कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 11
श्री मुर्देश्वर मंदिर - समुद्री तट पर अलौकिक शिव धाम
30 जून 2023
कर्नाटक के उत्तरी कन्नड़ जिले में, अरब सागर के तट पर कंडूका नामक पहाड़ी है जहाँ आज वर्तमान में भगवान शिव का एक शानदार मंदिर बना हुआ है। यहाँ 123 फ़ीट ऊँची भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा है जो बहुत दूर से ही दिखाई देती है। यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शिव प्रतिमा है, इसी प्रतिमा के नीचे भगवान का प्राचीन मंदिर है जहाँ शिव लिंग रूप में धरती से 2 फ़ीट नीचे विराजमान हैं। मंदिर परिसर के प्रमुख द्वार के समीप ही बहुत ऊँचा राजगोपुरम बना हुआ है जिसके सबसे ऊपरी शिखर से मंदिर, समुद्र और आसपास का विहंगम नजारा देखा जा सकता है।
मैं और कल्पना आज एक पैसेंजर ट्रेन से सुबह मंगलौर से चलकर मुर्देश्वर पहुँचे। मुर्देश्वर स्टेशन पर पहुंचकर हमने यहाँ क्लॉक रूम देखा जो उपलब्ध तो था किन्तु इसका चार्ज हमें समय की अपेक्षा ज्यादा ही लगा इसलिए हमने अपना बैग यहाँ जमा नहीं किया। रेलवे स्टेशन से मुर्देश्वर मंदिर के बीच की दूरी लगभग तीन किमी है, स्टेशन के बाहर ही मंदिर जाने के लिए ऑटो तैयार मिलते हैं और समय अंतराल पर बसें भी चलती हैं। हम एक ऑटो द्वारा मंदिर के लिए रेलवे स्टेशन से प्रस्थान कर गए। जल्द ही हम मंदिर के सामने थे।
हम मंगलुरु स्टेशन से नहाधोकर तैयार होकर निकले थे, इसलिए हमनें यहाँ रुकने की कोई व्यवस्था नहीं देखी। मंदिर के सामने एक प्रसाद की दुकान से प्रसाद लिया और यहीं अपना बैग भी कुछ घंटों के लिए रख दिया। यहीं पास में ही कर्नाटक की कुछ महिलाएं दक्षिण भारत का प्रसिद्ध सुगन्धित फूलों का गजरा बेच रहीं थीं। मैंने भी यहाँ पहलीबार कल्पना के लिए यह गजरा ख़रीदा और कल्पना के बालों में लगाया। गजरा लगने के बाद कल्पना सुन्दर तो लग ही रही थी साथ ही वह अब उत्तर भारतीय से ज्यादा दक्षिण भारतीय महिला लग रही थी।
हम मंदिर के विशाल राजगोपुरम के पास पहुंचे। यह मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार है और 40 मंजिल ऊँचा है। इसका निर्माण अभी हाल ही में वर्ष 2008 में हुआ है। इस गोपुरम के बाहर सुन्दर हाथियों की भी प्रतिमा है साथ ही इस गोपुरम की सबसे ऊँची मंजिल पर जाने के लिए लिफ्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। हमें जब इस लिफ्ट की जानकारी हुई तो हमने भी इसकी सबसे ऊपरी मंजिल तक जाने का विचार बनाया। इसकी जानकारी की तो पता चला कि एक लम्बी लाइन लगी हुई है और यह लाइन लिफ्ट में जाने वालों की है। लिफ्ट से ऊपरी मंजिल तक जाने की टिकट लगती है प्रति व्यक्ति बीस रूपये।
मैं भी दो टिकट लेकर लाइन में लग गया क्योंकि मुझे इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर जाकर, यहाँ के आसपास का पूरा व्यू देखना था। कुछ ही देर में हमारा लिफ्ट में जाने का नंबर आ गया और हम जल्द ही इस गोपुरम के सबसे ऊँचे शीर्ष पर पहुंचे। प्रथमतया तो मुझे यहाँ से नीचे देखने पर थोड़ा डर सा लगा किन्तु यहाँ से दिखाई देने वाले उस सुन्दर और आकर्षक नज़ारे ने मेरे अंदर का सारा डर खत्म सा कर दिया, जिसका विवरण शब्दों में भी लिखा जाए तो भी बहुत ही कम होगा। एक तरफ समुद्र और दूसरी तरफ पश्चिमी घाटों के पर्वतों की श्रृंखला के दृश्य यहाँ से देखने में बहुत ही विहंगम दिखाई दे रहे थे।
इस गोपुरम के शीर्ष से, समुद्र में उठने वाली लहरों का दृश्य आजीवन ना भूलने वाला प्रतीत होता है। इन लहरों का एक अलग ही स्वरूप यहाँ से दिखाई दे रहा था जो धरती पर रहकर नहीं दिखाई देता। यह लहरें समुद्र में किसी उड़ते हुए पक्षी के समान तैरती हुई सी दिखाईं दे रही थीं। मैंने इन लहरों के इस विचित्र स्वरूप को अपने कैमरे में भी सुरक्षित कर लिया था। गोपुरम के इस सबसे ऊँचे शिखर की खिड़की से देखने पर मंदिर का अद्भुत दृश्य भी दिखाई दे रहा था। भगवान शिव की प्रतिमा यहाँ से थोड़ी छोटी दिख रही थी किन्तु बहुत ही भव्य दिखाई दे रही थी।
यहाँ से थोड़ी दूर रेलवे स्टेशन और वहां से गुजरती हुई एक ट्रेन भी बहुत छोटी सी दिखाई दे रही थी। साथ ही यहाँ हवा का वेग बहुत ही तीव्र था, यदि हम इस गोपुरम के बंद कमरे में ना होते तो यह हवा मनुष्य को उड़ा ले जाने में पूरी तरह से सक्षम थी। जल्द ही हमारा यहाँ रुकने का समय पूरा हो गया और हम वापस लिफ्ट के द्वारा पुनः धरती पर आ गए। सचमुच मैं पहली बार किसी मंदिर के गोपुरम के शीर्ष तक पहुंचा था जिसका अनुभव शायद ही मैं जीवनपर्यन्त भुला सकूंगा। इस राजगोपुरम की एक विशिष्टता है जो प्रतिदिन अस्त होते सूर्य के अलग अलग दृश्यों को दिखलाती है।
गोपुरम को देखने के बाद हम मंदिर को देखने के लिए मंदिर के अंदर गए। मंदिर का गर्भ गृह अब दर्शनार्थियों के लिए खुल चुका था। हमने भी मंदिर के मध्य भाग से गर्भ गृह के दर्शन किये क्योंकि गर्भ गृह में किसी को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। भगवान शिव के यहाँ लिंगस्वरूप दर्शन हैं जो धरती से दो फ़ीट नीचे स्थित हैं इस लिंग पौराणिक कथा भी हमें यहाँ जल्द ही देखने को मिली जब हम मंदिर में घूमते हुए भगवान शिव की उस ऊँची प्रतिमा के नजदीक पहुंचे।
भगवान शिव की इस विशाल प्रतिमा के नीचे एक हॉल बना है जिसमें इस मंदिर की कथा का अनुपम उदाहरण इस हॉल में बनी कृत्रिम मूर्तियों से स्पष्ट दिखाई देता है। इस हॉल में इन मूर्तियों के माध्यम से मंदिर के पौराणिक महत्त्व से जुडी सभी कथाओं का सजीव चित्रण दिया गया है।
इस स्थान और इस मंदिर में स्थित भगवान शिव के शिवलिंग की कथा त्रेतायुग से जुडी है, जब लंका नरेश रावण ने अपने बल के अहंकार में पूरी पृथ्वी और स्वर्गलोक को जीतने के बाद भगवान शिव को जीतने के लिए निकल पड़ा। सभी देवता अमर थे इसलिए रावण भी अमरता प्राप्त करना चाहता था इसलिए उसने भगवान् शिव की घोर तपस्या की और वरदान स्वरूप भगवान शिव को अपने साथ लंका में रहने को मनाने लगा क्योंकि वह जानता था जिसके रक्षक स्वयं महाकाल हों उसका काल भी क्या बिगाड़ सकता है।
भगवान् शिव ने उसे अपने स्वरुप का एक आत्मलिंग वरदान स्वरूप दिया और इसे लंका में स्थापित करने को कहा। भगवान् ने कहा कि जब तक यह आत्मलिंग तुम्हारे पास रहेगा तबतक कोई तुम्हारा विनाश नहीं कर पायेगा किन्तु लंका पहुँचने से पूर्व इस आत्मलिंग को कहीं भी धरती पर ना रखना वर्ना यह सदा के लिए वहीँ स्थापित हो जायेगा।
भगवान शिव से रावण को यह वरदान प्राप्त होते ही सभी देवता चिंतित हो गए और वह देवर्षि नारद जी सहित भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और भगवान् विष्णु से प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु जानते थे कि रावण ने इस आत्मलिंग को अगर लंका में स्थापित कर लिया तो वह अजेय हो जायेगा और सम्पूर्ण पृथ्वी का विनाश कर देगा इसलिए वह स्वयं श्री गणेश जी के पास गए और उन्हें रावण को उसके उद्देश्य में सफल होने से रोकने को कहा।
रावण प्रतिदिन सायंकाल सूर्यास्त के समय विधि विधान से पूजा पाठ करता था, भगवान् विष्णु ने उस दिन सूर्य को बादलों में ढक दिया और रावण को सायंकाल होने का भ्रम हुआ। वह अपनी पूजा को छोड़ना नहीं चाहता था किन्तु उसके हाथ में जो आत्मलिंग था वह उसे भी धरती पर नहीं रख सकता था। जल्द ही उसे ब्राह्मण वेषधारी श्री गणेश जी दिखाई दिए और उसने उन्हें कुछ समय तक आत्मलिंग को हाथ में धारण रखने को कहा। श्री गणेश जी ने भी उससे कहा कि वह तीन बार उसे आवाज देंगे और तीन बार तक अगर रावण उनके पास नही आया तो वह इस आत्मलिंग को धरती पर रख देंगे।
जल्द ही रावण पूजा करके वापस लौटा तो उसने आत्मलिंग को धरती पर रखा हुआ पाया और इधर सूर्य भी बादलों से निकलकर अभी सांयकाल ना होने का संकेत दे रहे थे। रावण जल्द ही समझ गया कि उसके साथ छल हुआ है और क्रोध में आकर उसने आत्मलिंग पर प्रहार कर दिया।
आत्मलिंग, प्रहार होने की वजह से पाँच भागों में बँट गया। रावण ने इसके चार भागों को यहाँ से थोड़ी थोड़ी दूरी पर फेंक दिया किन्तु मूल लिंग को धरती से उठाने में असमर्थ रहा। यही मूल लिंग आज भगवान मुर्देश्वर के रूप में पूजित हैं और साथ ही अन्य चार भाग गोकर्णेश्वर, सज्जेश्वर, धारेश्वर और गुणकेश्वर ने नाम से विख्यात हुए। यह सभी मंदिर, मुर्देश्वर मंदिर के निकट पचास किमी के दायरे में स्थित हैं।
मंदिर परिसर में ही एक प्रसादालय भी स्थित है जहाँ दोपहर और शाम को यहाँ आने वाले भक्तों और सैलानियों के लिए निःशुल्क भोजन प्रसाद स्वरूप दिया जाता है। यह दोपहर साढ़े बारह बजे से दो बजे तक चलता है, हमने भी इसका कूपन लेकर प्रसादालय में प्रवेश किया और यहाँ बनी स्टील की बेंच पर अपना स्थान ग्रहण किया। यहाँ के सेवार्थी थाली और गिलास भक्तो के सामने रखते जा रहे थे और इसके बाद अन्य सेवार्थी सभी को प्रसाद प्रेषित कर रहे थे। प्रसाद स्वरूप हमें यहाँ चावलों की बनी खीर और कुछ यहाँ के अन्य व्यंजन भोजन में मिले जो खाने में बहुत ही स्वादिष्ट थे।
प्रसाद पाने के बाद हम यहाँ बने अन्य मंदिर भी घूमने गए जिनमें यहाँ श्री शनिदेव जी का मंदिर भी मुख्य दर्शनीय था। मंदिर के शीर्ष पर काग की सवारी किये श्री शनिदेव जी भव्य मूर्ति दिखाई देती है। मंदिर का गर्भगृह अभी बंद था इसलिए हम यहाँ बनी अन्य सुन्दर मूर्तियों को देखने गए। एक पार्क के किनारे सूर्य रथ की मूर्तियाँ, एक तालाब, भगवान कृष्ण से गीतोपदेशम प्राप्त करते हुए अर्जुन को दर्शाती मूर्तियाँ, भेष बदलकर गणेश द्वारा रावण को धोखा दिया जाना, शिव का भगीरथ के रूप में प्रकट होना, गंगा को नीचे उतारना, पहाड़ी के चारों ओर खुदी हुई मूर्तियाँ हैं।
सम्पूर्ण मंदिर देखने के बाद हम मंदिर प्रांगण से बाहर आ गए। मैंने इस मंदिर के समुद्र के किनारे जाकर अलग अलग कोणों से फोटो लिए और उस दुकान से आकर अपना बैग उठाया और यहाँ से प्रस्थान किया। मन्दिर प्रांगण के सामने बाजार है, जहाँ अनेकों होटल, धर्मशालाएं और दुकानें हैं। यहीं पास ही में एक कुंड भी बना है जिसके बारे मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है किन्तु इतना अवश्य ज्ञात है कि दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रसिद्ध मंदिरों नजदीक एक जलकुंड अवश्य होता है। माना जाता है कि या पुष्करिणी, मंदिर में विराजमान देवता का जलाभिषेक करने हेतु निर्मित किये जाते हैं।
इसके साथ ही यहाँ के सबसे विशेष पुरुष श्री आर एन शेट्टी जी की प्रतिमा भी दिखाई देती है जो इस क्षेत्र के सबसे बड़े समाजसेवी और परोपकारी व्यक्ति थे। कालांतर में इस मंदिर का संचालन इनके ट्रस्ट की देखरेख में होता है। इनकी अनेकों तस्वीरें हमने मंदिर के प्रांगण में भी लगी देखी थीं। इन्हीं के नाम से इस क्षेत्र में अस्पताल और अन्य सामाजिक सेवाएं देखने को मिलती हैं।
एक बस द्वारा हम रेलवे स्टेशन के निकट राजमार्ग पर पहुँच गए और जल्दी बाजी में स्टेशन परिसर में गलत मार्ग से प्रवेश किया। यहाँ से आगे हमें मडगांव पहुँचना था जिसके लिए यहाँ से हमारा रिजर्वेशन मत्सयगंधा एक्सप्रेस में था जो शाम को पांच बजे आसपास यहाँ आएगी। अभी तीन बजे हैं इसलिए मैंने तब तक इस स्टेशन के परिसर को घूमना शुरू किया।
मैं स्टेशन पर बने फुटओवर ब्रिज पर चढ़ने लगा, मुझे यहाँ आकर सोहन भाई की याद आ गई क्योंकि केरल जाते समय जब हमारी ट्रेन कुछ देर के लिए यहाँ खड़ी हुई थी तब इसी ब्रिज पर सोहन भाई ने यात्रा का बहुत लुफ्त उठाया था। अब वह अपने परिवार सहित तमिलनाडू में हैं और वह वहीँ से मथुरा वापस लौटेंगे जबकि मैं और कल्पना घर वापसी की राह पर हैं।
कल हम माहे में थे, आज मुर्देश्वर में हैं और कल गोवा में होंगे। गोवा घूमने के बाद हम सीधे घर की ओर प्रस्थान करेंगे। स्टेशन पर काठ की बनी बेंच कोंकण रेलवे में होने का एहसास करा रही थी। एक छोटा सा रेलवे स्टेशन और आने वाली ट्रेनों के इंतज़ार में बैठे यात्री, एक अलग ही आनंद था आज की इस यात्रा का।
मैं सामने प्लेटफॉर्म न 2 की तरफ देख रहा था, उसके पीछे एक विशाल चट्टानी मैदान और दूर दिखाई देते पश्चिमी घाटों के पर्वत जिनपर मड़राते बादलों के टुकड़े प्रकृति का एक अलग ही रूप दिखला रहे थे कि तभी उस प्लेटफॉर्म पर एक पैसेंजर ट्रेन आ गई।
यह वही पैसेंजर थी जिससे सुबह हम मंगलोर से यहाँ मुर्देश्वर आये थे। यह मडगाव - मंगलुरु सेंट्रल पैसेंजर है और अब यह मंगलुरु सेंट्रल जा रही है। यह यहाँ काफी देर रुकी, फिर पता चला कि ये, हमारी ट्रेन मतलब मत्सय गंधा एक्सप्रेस की प्रतीक्षा में खड़ी है। जल्द ही प्लेटफॉर्म न एक पर मत्सय गंधा एक्सप्रेस आ गई और हम अपने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए।
 |
श्री मुर्देश्वर मंदिर |
 |
राजगोपुरम
|
 |
गोपुरम के ऊपरी शीर्ष से |
 |
मुर्देश्वर का विहंगम दृश्य |
 |
उड़ते पक्षी के जैसा एक समुद्री दृश्य |
 |
गोपुरम के ऊपरी शीर्ष से भगवान शिव की प्रतिमा और समुद्र का एक दृश्य |
 |
अरब सागर |
 |
मुर्देश्वर मंदिर |
 |
हमारी भेंट |
 |
मंदिर गर्भ गृह |
 |
मंदिर के नजदीक |
 |
श्री मुर्देश्वर मंदिर |
 |
प्रसादालय की पर्ची |
 |
प्रसादालय में |
 |
भगवान शिव की प्रतिमा |
 |
मुर्देश्वर का एक दृश्य |
 |
हॉल में मंदिर की कथा कहती कृत्रिम मूर्तियां |
 |
कैलाश पर्वत उठता रावण |
 |
शिव तपस्या में लीन रावण |
 |
ब्राह्मण वेषधारी गणेश जी को रावण सूर्यास्त पूजा के लिए शिवलिंग देते हुए |
 |
गणेश जी आवाज लगाते हुए |
 |
शिवलिंग धरती पर रखने से रोकते हुए रावण |
 |
स्थापित शिवलिंग उठाते हुए रावण |
 |
मुर्देश्वर की प्रतिकृति |
 |
आत्मलिंग के पांच भाग |
 |
श्रीकृष्ण अर्जुन रथ |
 |
शनिदेव मंदिर |
 |
श्री शनिदेव |
 |
गणेश जी को शिवलिंग देते हुए रावण |
 |
राजगोपुरम |
 |
मुर्देश्वर से प्रस्थान |
 |
डॉ. आर.एन.शेटटी जी की प्रतिमा |
 |
मुर्देश्वर मंदिर के समीप कुंड ( पुष्करिणी ) |
 |
पुष्करिणी के मध्य एक मंदिर |
 |
श्री मुर्देश्वर बस स्टैंड |
 |
श्री मुर्देश्वर प्रवेश द्वार |
 |
मुर्देश्वर रेलवे स्टेशन पर फुट ओवर ब्रिज |
 |
फुट ओवर ब्रिज से मुर्देश्वर स्टेशन का दृश्य |
 |
मडगाव - मंगलुरु पैसेंजर |
 |
धन्यवाद |
🙏
कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा के अन्य भाग