पढ़ावली - दशवीं शताब्दी का एक खंडित शिव मंदिर
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मितावली से ही कुछ दूर ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ सी दिखने लगी थीं। किसी ने हमें बताया कि उन पहाड़ियों के उसपार ग्वालियर की सीमा शुरू हो जाती है और मुरैना की समाप्त। ये सुनते ही विमल मुझपर झर्राया - तू हमें आखिर धीरे धीरे करके ग्वालियर तक ले ही आया, अब बहुत हो चुका अब सीधे घर का रास्ता पकड़ते हैं। मैं जानता था अभी यहाँ बहुत ऐसा है जिसे ढूँढना और देखना बाकी था और मैं किसी भी हालत में इस खोज को अधूरा छोड़कर जाने वाला नहीं था परन्तु अपने दोस्त को विश्वास दिलाना और उसकी चिंता समाप्त करना भी मेरा ही कर्तव्य था, इसलिए मैंने उसे गूगल में हाईवे तक पहुँचने का रास्ता दिखाया जो ठीक उन पहाड़ियों के बराबर से हाईवे तक जा रहा था। घर की तरफ जाने वाले रास्ते को देखकर विमल संतुष्ट हो गया और उसे यकीन हो गया कि हम घर की तरफ ही बढ़ रहे हैं बस रास्ते में जो भी ऐसी जगह मिलेगी उसे देखते हुए जायेंगे।