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चीला माता मंदिर - मरुभूमि ग्राम झंझेऊ 
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श्री डूँगरगढ़ से झंझेऊ बस यात्रा 
     श्री डूंगरगढ़ स्टेशन से एक ऑटो द्वारा मैं राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर पहुंचा। यह आगरा से बीकानेर मार्ग है जो राजस्थान का एक मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग है। मामाजी ने मुझे बताया था कि यहाँ से ग्राम झंझेऊ 12 किमी के आसपास है और बीकानेर 50 किमी के आसपास। इसलिए मुझे यहाँ से बस द्वारा झंझेऊ उतरना है जो की इसी राजमार्ग पर स्थित है। मामाजी फ़िलहाल चूरू में एक रिश्तेदारी में गए हुए थे अतः वे शामतक झंझेऊ पहुंचेंगे इसलिए मैं अकेला ही अपने मामा की ससुराल झंझेऊ की तरफ एक बस द्वारा बढ़ चला। मैं यहाँ काफी सालों बाद आया था इसलिए मैंने अपने पास बैठे एक राजस्थानी सज्जन से झंझेऊ ग्राम आने पर बताने के लिए कह दिया था। 
     राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों और रेत के बड़े बड़े और ऊँचे ऊँचे टीले दिखने शुरू हो चुके थे जो मुझे एहसास करा रहे थे कि मैं अब मरुस्थलीय क्षेत्र में हूँ। यहाँ आबादी बहुत ही कम है इसलिए सड़क दूर दूर तक खाली ही नजर आ रही थी और इस खाली सड़क पर बस बड़ी ही तेज रफ़्तार से दौड़ी जा रही थी। कुछ समय बाद मैं झंझेऊ पहुँच गया। यहाँ रोड पर लगा चीला माता के मंदिर का बोर्ड ही इस ग्राम की पहचान कराता है। यह तंवरों का ग्राम है और चीला माता उनकी कुलदेवी हैं अतः यहाँ चीला माता की विशेष मान्यता है। बोर्ड के कुछ फोटो खींचने के बाद मैं ग्राम में अंदर अपने मामाजी की ससुराल की तरफ बढ़ चला। 
झंझेऊ ग्राम और कुंदन मामा 
     इस ग्राम में मेरे मामाजी के साले साहब जिनका नाम कुंदन शर्मा है, रहते हैं। वह इस ग्राम में ही नहीं बल्कि इस ग्राम के आसपास और दूरस्थ ग्रामों में भी केवल अकेले पंडित और पुरोहित हैं जिसकारण यहाँ के अधिकांश क्षेत्र में उनका नाम काफी विख्यात और सम्मानिय है। जब ग्राम में मुझे उनका घर नहीं मिला तो ग्राम में चौपाल पर बैठे कुछ लोगों से मैंने उनका नाम बता कर पता पुछा तो उनमे से एक ग्रामीण खुश होकर और सम्मान सहित मुझे मेरे कुंदन मामाजी के घर तक लेकर आया। जब वो घर पर नहीं मिले तो वो नजदीकी एक विद्यालय में मुझे ले गया जहाँ मेरी मुलाकात आज काफी सालों बाद कुंदन मामाजी से हुई। 
     मुझे देखकर वो बहुत ही खुश हुए और मुझे अपने घर लेकर आये। मैं घर आकर नहा धोकर तैयार हो गया और मेरी रातभर की सारी थकान दूर हो गई। कुछ ही देर में मामीजी खाना बनाकर ले आईं। यह राजस्थानी भोजन था जिसमे पापड़ की सब्जी मुख्य थी। खाना खाने के बाद मैं बिलकुल फ्री था इसलिए मैंने कहीं घूमने जाने का प्लान बनाया। तापमान तेज था और गर्मी अत्यधिक थी परन्तु मुझे कहीं ना कहीं जाना तो था ही इसलिए मैं बीकानेर के लिए रवाना हो गया। 
झंझेऊ से बीकानेर बस यात्रा 
    बीकानेर ही यहाँ का मुख्य शहर है, बस वाले ने मुझे बीकानेर में 
गंगा सिंह संग्रहालय के सामने उतारा।  इसलिए मैंने सबसे पहले इस 
संग्रहालय को देखा जिसमें बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी से जुडी आवश्यक वस्तुएं, उनके समय के औजार और हथियार एवं उनकी सेवादारों के साथ दरबार में बैठी हुई सजीव दिखने वाली मूर्ति मुख्य है। 
बीकानेर में सूरज टॉकीज 
     संग्रहालय घूमने के बाद मैं एक ऑटो द्वारा बीकानेर स्थित सूरज टॉकीज पहुंचा जहाँ हाल ही में रिलीज़ हुई मूवीज चल रही थी जिसका नाम था साहू। घूमना और मूवीज देखना शुरू से ही मेरे प्रिय शौक रहे हैं अतः बीकानेर के इस थियेटर में मैंने प्रभास और श्रद्धा कपूर की यह फिल्म देखी। फिल्म देखने के बाद मैं पैदल ही बीकानेर रेलवे स्टेशन पहुँचा, जहाँ से श्री डूँगरगढ़ के लिए पांच बजे चलने वाली डीएमयू तैयार खड़ी हुई थी। मुझे झंझेऊ ही जाना था जहाँ बस द्वारा मेरे लिए पहुँचना काफी आसान था किन्तु मैं इस रेलवे लाइन पर पूरी यात्रा करना चाहता था जो मैंने सुबह श्री डूँगरगढ़ पर अधूरी छोड़ दी थी। इसलिए मैंने ट्रेन द्वारा ही श्री डूँगरगढ़ जाने का फैसला किया और ट्रेन में बैठ गया। 
बीकानेर से श्री डूँगरगढ़ डीएमयू ट्रेन यात्रा 
     अपने सही समय पर ट्रेन बीकानेर से चल दी और इस लाइन पर बीकानेर के बाद पहला स्टेशन बीकानेर पूर्व आया जहाँ इस डीएमयू का स्टॉप नहीं था इसके बाद गढवाला, नापासर, बेलासर, सुदसर और बेनीसर होते हुए ट्रेन श्री डूँगरगढ़ पहुंची। रास्ते में किशोरमामा जी का फोन आया और उन्होंने बताया कि वो झंझेऊ पहुँच चुके हैं। मैंने जब उन्हें अपने ट्रेन से आने के बारे बताया तो वो चौंक गए और बोले ऐसा क्यों ? तुझे बस द्वारा ही आना चाहिए थे अब श्री डूँगरगढ़ से कोई बस भी नहीं मिलेगी क्योंकि बस रात में बन हो जाती है और अब आठ भी बज रहे हैं। मामाजी की बात सुनकर मैं थोड़ा घबरा सा गया कि बस नहीं मिली तो क्या होगा ?मगर बाद में सोचा वो राष्ट्रीय राजमार्ग है और राजस्थान में है कोई ना कोई साधन तो मिल ही जायेगा। 
श्री डूँगरगढ़ से झंझेऊ एम्बुलेंस में एक यात्रा 
   मैं डूंगरगढ़ चौराहे पर पहुंचा यह वही चौराहा था जहाँ मैं सुबह आया था और यहीं से झंझेऊ के लिए बस से गया था। परन्तु अब यहाँ कोई बस नहीं थी और नाही किसी बस की आने की कोई सम्भावना थी। हां स्लीपर कोच की बीकानेर जाने वाली बस जरूर आई पर इसके ड्राइवर ने कहा यह बस सीधे बीकानेर रुकेगी, बीच में कोई स्टॉप नहीं है। ड्राइवर की बात सुनकर थोड़ी सी निराशा हुई परन्तु कोई नहीं थोड़ी देर बाद एक बोलेरो एम्बुलेंस वाला बीकानेर के लिए सवारी खोजने लगा, मैं उसी एम्बुलेंस में झंझेऊ तक आया और थोड़ी देर बाद घर पहुंचा जहाँ किशोर मामा जी और कुंदन मामा घर के बाहर बगीचे में खुले आसमान के नीचे चारपाई पर आराम करते हुए मुझे मिले।  मेरे लिए भी उन्हीं के बराबर में एक चारपाई बिछी हुई थी जिस पर जाकर मैं भी लेट गया। 
चीला माता मंदिर और रेत के टीले 
     यहाँ तापमान दिन में जितना गर्म होता है रात को उतना ही ठंडा भी हो जाता है मैं खाना खाकर बस लेटा ही था की अचानक हलकी हलकी बूँदाबाँदी शुरू हो गई इसलिए हमें अपनी अपनी चारपाई बरामदे में ले जानी पड़ी। अगली सुबह उठकर और यहाँ घर में बने एक कुँए या कुंड से पानी लेकर मैं नहाधोकर तैयार हो गया और अपने मामाजी के बेटे यतेंद्र के साथ चीला माता के दर्शन करने गया। चीला माता के दर्शन के पश्चात मैं और यतेंद्र रेतीले टीले भी देखने गए जहां उनपर चढ़कर फिसलने का अलग ही आनंद आता है। काफी देर रेत के टीलों में खेलकूद करने के बाद हम वापस घर आ गए और मैं बीकानेर घूमने के लिए बस द्वारा निकल पड़ा।  
     आज हमारा लौटने का रिजर्वेशन भी बीकानेर हावड़ा एक्सप्रेस में थे इसलिए किशोरमामा शाम तक बीकानेर पहुँचने वाले थे और मैं बीकानेर के लिए रवाना हो चूका था। 
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| ग्राम झंझेऊ और चीला माता का बोर्ड | 
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| बीकानेर - आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग ग्राम झंझेऊ 
 
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| बीकानेर - आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग ग्राम झंझेऊ | 
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| ग्राम झंझेऊ | 
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| ग्राम झंझेऊ में सुधीर उपाध्याय | 
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| प्राथमिक विद्यालय - झंझेऊ | 
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| ग्राम - झंझेऊ | 
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| मरुस्थलीय भूमि बीकानेर | 
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| आगरा से बीकानेर राष्ट्रिय राजमार्ग संख्या 11 | 
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| बीकानेर क्लॉक टावर | 
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| सूरज टॉकीज बीकानेर | 
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| सूरज टाकीज और सुधीर उपाध्याय | 
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| बीकानेर जं. रेलवे स्टेशन | 
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| अणुव्रत ऐसी एक्सप्रेस | 
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| बीकानेर रेलवे स्टेशन | 
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| बीकानेर रेलवे स्टेशन | 
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| बीकानेर रेलवे स्टेशन और सुधीर उपाध्याय साथ में डीएमयू ट्रेन | 
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| नापासर रेलवे स्टेशन | 
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| झंझेऊ ग्राम में सूर्योदय | 
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| मैं और कुंदनमामा का बेटा | 
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| घर में बना कुंआ | 
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| मेरी मामी जी | 
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| कुंदन मामा अपने बगीचे में | 
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| कुंदन प्रसाद शर्मा निवास | 
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| किसी पक्षी का अंडा | 
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| चीला माता मंदिर की तरफ | 
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| झंझेऊ ग्राम | 
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| चीला माता मंदिर | 
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| चीला माता मंदिर | 
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| चीला माता मंदिर | 
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| श्री चीला माता | 
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| श्री चीला माता | 
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| श्री चीला माता | 
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| मंदिर में नगाड़े | 
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| बाबा रामदेव | 
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| तंवरों की वंशावली | 
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| गोरा भेरुनाथ मंदिर | 
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| यतेंद्र शर्मा, किशोर मामाजी का बेटा | 
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| रेतीली जमीन | 
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| मरुस्थलीय ग्राम झंझेऊ | 
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| गाँव में राष्ट्रीय पक्षी मोर का नृत्य दिखना आम बात है | 
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| अपना राष्ट्रीय पक्षी | 
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| मरुस्थलीय पानी की गाडी | 
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| रेतीले टीलों पर चढ़ने का आनंद कुछ और ही है | 
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| मरुस्थलीय भूमि | 
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| मरुस्थलीय भूमि में ऐसे जीवाश्म मिलना भी बहुत आम बात है | 
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| राजस्थान में उत्तर प्रदेश वाला भोजन | 
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| मैं और कुंदन मामाजी | 
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| मैं और किशोर मामाजी | 
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| बीकानेर की तरफ | 
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| मेरे मामाजी किशोर भारद्वाज | 
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| मेरी राजस्थान वाली मामाजी | 
 
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THANKS FOR VISIT 
🙏
 
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी दि
ReplyDeleteThanks