सफदरजंग का मक़बरा
नवंबर 2018 .
मैं आज दिल्ली में हूँ और दिल्ली के पुराने अतीत के जीवन को वर्तमान में पहचानने की कोशिश में हूँ। मैं निकला था दिल्ली के प्राचीन शहर महरौली की तरफ जहाँ आज भी दिल्ली का सल्तनतकालीन और उसके वंशजों द्वारा बनवाये गए किले, मकबरे और महल अपने भव्य समय की याद दिलाते हैं जिनमे सबसे मुख्य तो विश्व प्रसिद्ध कुतुबमीनार है जो आज दिल्ली की ही नहीं पूरे भारतवर्ष की शान है। इससे पहले दिल्ली की सरकारी बस में बैठकर मैं सफ़दरजंग के मकबरे पर पहुंचा। आज सफदरजंग केवल एक व्यक्ति का नाम ही नहीं रह गया है बल्कि यह नाम दिल्ली में एक जाना माना स्थान बन चुका है और इसी नाम पर दिल्ली का रेलवे स्टेशन और अस्पताल भी मुख्य हैं।
सफदरजंग यूँ तो अवध के नवाब थे परन्तु अपने योग्य सैन्य संचालन और सक्षम प्रशासक होने के कारण वह मुग़ल दरबार में मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह के प्रधानमंत्री के पद पर तैनात हुए। सफदरजंग का पूरा नाम अबुल मंसूर मिर्ज़ा मुहम्मद मुकीम अली खान था जिनका जन्म 1708 ई. में खुरासान फारस में हुआ था। मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह द्वारा ही उन्हें सफदरजंग की उपाधि प्रदान की गई थी। अवध पर नियंत्रण रखने के साथ साथ वह कमजोर हो चुके मुग़ल साम्राज्य और मुग़ल शासक मुहम्मद शाह को बहुमूल्य सहायता पहुँचाने में कभी पीछे नहीं रहे।
मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद भी उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के नियंत्रण को बनाये रखा और अहमद शाह बहादुर के मुग़ल शासक बनने के बाद उन्हें वजीर ए हिंदुस्तान की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। सन 1754 में सुल्तानपुर के पास उनकी मृत्यु हो गई। उनके मुग़ल साम्राज्य के प्रति समर्पण भाव और योगदान को देखते हुए उनका मकबरा अन्य मुग़ल शासकों की तर्ज पर दिल्ली में ही बनाया गया जो आज भी अपनी शानदार भव्यता के कारण समूचे विश्व भर में प्रसिद्ध है।
यह मकबरा देखने में ताजमहल और अकबर के मकबरे से मिलता जुलता सा लगता है। पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी अच्छी देख रेख और साफ़ सफाई निरंतर होती रहती है। कुछ समय यहाँ गुजरने और इसे देखने के बाद मैं यहाँ से दिल्ली के अगले इतिहास की तरफ बढ़ चूका था।
SAFDARJUNG TOMB |
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