आदिमानव का आश्रय स्थल - भीमबेटका गुफ़ाएँ
आदिमानव और उसका निवास
देश के मध्यभाग में स्थित और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 - 50 किमी दूर दक्षिण दिशा में विंध्यांचल पर्वत की विशाल श्रृंखला है जहाँ प्राचीन काल से ही ऋषिमुनियों के आश्रम तथा जीव जंतुओं का निवास रहा है और इसके साथ ही यह स्थान मानव के उस युग से सीधा सम्बन्ध रखता है जब मनुष्य को अपने मनुष्य होने का ज्ञान भी नहीं था, वह कौन था, किसलिए था इन सभी जानकारियों से परे शिकार करके जीवन निर्वाह करना और मौसम की मार से बचने के लिए प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय लेना ही उसकी मानवता को दर्शाती है। यह काल प्रागेतिहासिक काल के नाम से जाना गया और उस समय का मानव 'आदिमानव' के नाम से।
आग की खोज
सर्वप्रथम उसने पत्थरों की रगड़ से लगने वाली आग को पहचाना और इसे पत्थर को रगड़ कर जलाना सीखा और इसके बाद उसने शिकार को पकाकर खाना शुरू किया। यही आज के इंसान की सबसे पहली सीख या खोज थी जिसे उसने आदिमानव से मानव बनने की कला सिखाई। प्रागेतिहासिक काल का यह काल पुरापाषाण काल था जिसमे आग की खोज मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। आग की खोज के बाद आदिमानव के जीवन में अनेक परिवर्तन आये। वह आग का प्रयोग भोजन पकाने के अलावा जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा के लिए भी करने लगा। गुफाओं में भी वह अब प्रकाश में रहना सीख गया था।
औजार और उनका प्रयोग :-
मध्य पाषाण काल के आते आते उसने अब शिकार के लिए उसने हथियार बनाना भी शुरू कर दिया था, सर्वप्रथम पत्थरों के औजारों का प्रयोग करने के बाद जब उसे धातु का ज्ञान हुआ यो उसने धातुओं के औजारों का प्रयोग किया। धातुओं के औजार, पत्थरों के औज़ारों की तुलना अधिक सुगम और हल्के थे जिससे आदिमानव को शिकार करने में आसानी हुई। धीरे - धीरे उसने जीव जंतुओं को समझना भी शुरू कर दिया था, उसे अब यह ज्ञात हो गया था कि कौन सा जीव शाकाहारी है और कौन सा माँसाहारी। शाकाहारी पशुओं से मिलने वाले लाभों का भी उसे धीरे धीरे ज्ञान होने लगा।
नव पाषाणकाल और शैलाकृतियाँ
नवपाषाण काल में मनुष्य ने खेती करना और जीवों को पालना शुरू कर दिया था। इसीकाल के साथ मनुष्य में जीवों को देखकर पत्थरों पर उनकी चित्रकारी बनाने की कला का भी विकास हुआ। गुफाओं में रहते हुए उसने वहां अनेकों चित्रकारियाँ बनाई जो आज भी हमें मनुष्य के प्रारंभिक जीवन से अवगत कराती हैं और उसके होने का वजूद देती हैं। बस इन्हीं चित्रकारियों और उन गुफाओं को देखने के लिए आज मैं और कुमार, रूपक जैन जी के साथ भोपाल से भीमबेटका की गुफाओं की तरफ रवाना हुए।
भीमबेटका गुफाओं की तरफ
भोपाल से होशंगाबाद रोड पर 46 किमी दूर रेल लाइन पार करने के बाद भीमबेटका की गुफाएं आती हैं। रूपक जैन जी बहुत ही शानदार तरीके से गाड़ी ड्राइव करते हैं, उन्होंने मुझे गाड़ी से सुरक्षित उतरने का एक शानदार सुझाव भी दिया और ये सुझाव था कि आप जब कभी भी ड्राइविंग करने के बाद गाड़ी का दरवाजा खोलो तो हमेशा बाँय हाथ से खोलो जिससे आपको पीछे से आने वाला कोई भी वाहन दिख जायेगा और आपको गाड़ी के आउट साइड शीशे पर निर्भर भी नहीं रहना पड़ेगा। रास्ते में एक शानदार रेस्टोरेंट में खाना खाकर हम भीमबेटका की तरफ बढ़ चले।
कुछ ही समय बाद हम भीमबेटका गुफाओं की सरहद पर बनी एंट्री चौकी पर पहुंचे। गाड़ी को यहीं खड़ी कर और एंट्री टिकट लेकर हम भीमबेटका की ओर पैदल रवाना हो चले। रास्ता पहाड़ी था और खाली भी पड़ा था। इस सफर में मेरे साथ मेरा दोस्त कुमार, रूपक जैन जी और उनके बेटे शुभ जैन भी साथ थे, हम चारों ही पैदल पैदल आपस में बात करते हुए गुफाओं की तरफ बढ़ते जा रहे थे। यह क्षेत्र रातापानी वन्य जीव विचरण क्षेत्र के अंतर्गत आता है इसलिए यहाँ जगह जगह मार्ग से इधर उधर ना जाने की सख़्त चेतावनी भी लिखी हुईं थीं।
जब मैंने भीमबेटका की गुफाओं को दूर से देखा तो एक बार को मुझे लगा की इस जंगल में प्रकृति ने ना जाने क्यों इस शानदार प्राकृतिक ऐतिहासिक धरोहरों को छुपा कर रखा है। यह सचमुच एक ऐसा स्थान था जो इसे एक बार देखले तो बस देखता ही रह जाए। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और मुख्य प्रागैतिहासिक कालीन स्थल होने की वजह से यह गुफाएं यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है। यहाँ अनेकों को गुफाएं हैं जो क्रमानुसार अलग अलग मगर एक दूसरे के नजदीक ही स्थित हैं। पुरातत्व विभाग ने इनकी पहचान के लिए इन्हें अलग अलग अंकों की संख्या दी है।
यहाँ अधिकतर गुफाओं में शैलकृतियाँ और चित्रकारी देखने को मिलती है। जो कि नवपाषाण काल दौरान अथवा 12000 वर्ष पूर्व की हैं।
आदिमानव के एकजुट होकर रहने वाले इस स्थान ने हमें सचमुच यह एहसास दिला दिया था कि क्यों उसने इसी स्थान को अपने आश्रय स्थल के रूप में चुना और यहाँ भविष्य को अपने होने का वजूद दिया। काफी देर यहाँ घूमने के बाद हम गाडी की तरफ वापस लौट चले।
1. भोपाल से भीमबेटका की तरफ एक सफर
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रास्ते में एक शानदार रेस्टोरेंट में |
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भीमबेटका मोड़ |
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भीमबेटका रोड |
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प्रवेश शुल्क की दरें |
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रूपक जैन जी की गाडी |
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भीमबेटका की प्रवेश चौकी |
2. भीमबेटका पैदल मार्ग
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भीम बैठिका या भीमबेटका |
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दूर दिखाई देती एक ट्रैन |
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शुभ भाई पानी की बोतल लेकर सबसे आगे रहे। |
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भीमबेटका रोड और दूर दिखाई देते शुभ भाई |
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रास्ते में एक दृश्य |
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दूरी अब एक किमी |
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एक चेतावनी |
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रूपक जैन साब पहाड़ चढ़ते हुए |
3. भीमबैठका की गुफाएँ
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भीमबेटका प्रवेश द्वार |
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जैन साब का हार्दिक आभार जो भीमबेटका हमें घुमाने लाये |
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अद्भुत दृश्य, भीमबेटका |
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प्रथम शैलचित्र, भीमबेटका |
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आदिमानव के जीवन पर बनी एक शिल्पकला |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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सभागार, भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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कुमार और भीमबेटका की गुफाएँ |
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शैलचित्र और आकृतियाँ |
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श्री रूपक जैन साहब |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ और शैलाकृतियाँ |
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शैलाकृतियाँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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आकृतियाँ |
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शैलाकृतियाँ |
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शैलाकृतियाँ |
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शैलाकृतियाँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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भीमबेटका की गुफाएँ |
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गुफाओं में आनंद लेता कुमार |
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आकृतियाँ |
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प्रसन्न मुद्रा में जैन साब |
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शुभ भाई और एंट्री चौकी |
अगली यात्रा :-
भोजेश्वर महादेव, भोजपुर।
पिछली यात्रायें :-
अगली यात्रायें :-
बहुत सुंदर मौका मिला तो जाना चाहूँगा
ReplyDeleteJI BHAI
DeleteBahut acchi jagah hai ghumne layak
ReplyDelete, kabhi mauka mila to jarur jayenge
Ji bilkul
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