उदयगिरि की गुफाएँ
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अगला दिन - 22 DEC 2019
मध्ययुगीन काल से पहले भी भारतभूमि में बाहरी प्रजाति के शासकों ने, भारत की भूमि पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए कई बारआक्रमण किये, जिनमें शक और हूणों का नाम मुख्यता से लिया जा सकता है। शकों के परास्त होने और हूणों को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने से पहले भारत के एक ऐसे काल का उदय हुआ जो भारतीय इतिहास में स्वर्णिम काल के नाम से विख्यात है और यह काल था देश के महानतम और यशस्वी सम्राटों का काल - गुप्तकाल।
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गुप्तकाल की स्थापना का श्रेय 'श्रीगुप्त' को जाता है किन्तु इस काल के जिन महान सम्राटों ने भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह थे - चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त। यह सभी शासक हिन्दुधर्म के अनुयायी थे और शैव धर्म तथा वैष्णव धर्म में विशेष आस्था रखते थे। इतिहासकारों के अनुसार इस काल का सबसे प्रतापी सम्राट और प्रजाहितकारी शासक 'चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य' था जिसकी अनेको कहानियां पुराणों में वर्णित हैं।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने ना सिर्फ भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया बल्कि अनेकों गुफाओं, मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण भी कराया। गुप्तकाल के गुहालेखों और शिलालेखों के अनुसार ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने शासनकाल के दौरान अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया और इस यज्ञ के पूर्ण होने के पश्चात 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की और स्वयं को 'चक्रवर्ती सम्राट' घोषित किया। जिन जिन स्थानों पर यज्ञ का घोड़ा पहुँचा, वहां वहां विजय फलस्वरूप अपनी विजयों का उल्लेखन गुहालेखों, शिलालेखो, मंदिर और मूर्तियों का निर्माण कराकर किया गया और ऐसा ही एक गुहालेख स्थित है उदयगिरि की गुफाओं में।
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उदयगिरि की गुफाएँ विदिशा शहर से 6 किमी दूर बेतवा नदी के किनारे स्थित हैं। प्राचीनकाल की अमूल्य धरोहरों को अपने आप में समेटे इन गुफाओं की खोज 1870 ई. में अलेक्जेंडर कंघिनम ने की और उन्होंने पाया कि उदयगिरि की पहाड़ी पर किसी प्राचीनकाल के साम्राज्य के अभिलेख और मंदिरों के अवशेष इधर उधर बिखरे पड़े थे। अनेकों क्षतिग्रस्त मूर्तियां इस पहाड़ की चट्टानों को काट छाँट कर उकेरी गईं थीं जिनमे सबसे मुख्य मूर्ति वाराह अवतार की थी जो आज भी अपनी सजीव अवस्था में है। यहाँ अनेकों गुफाएँ स्थित हैं जो हिन्दू धर्म के देवी देवता से सम्बंधित हैं और साथ ही एक गुफा 'जैन धर्म' से संबंधित हैं जिसका निर्माणकाल 425 ई. पूर्व माना जाता है।
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 60 किमी और प्रसिद्ध बौद्ध स्थल साँची से 11 किमी दूर उदयगिरि एक छोटा सा परन्तु ऐतिहासिक ग्राम है। यहाँ स्थित पहाड़ में बनी प्राचीन गुफाएं और शिलालेख, दीवारों पर उकेरी हुई मूर्तियां और संस्कृत भाषा में लिखे हुए गुहालेखों को देखकर इसे गुप्तकालीन धरोहर माना गया और यह आज भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। भारत सरकार ने इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में घोषित किया गया जहाँ आज अनेकों पर्यटक दूर दूर से भारत की इस अनमोल विरासत का दर्शन करने यहाँ आते हैं।
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आज भोपाल में हमारा दूसरा और आखिरी दिन था। जैनसाब हमें अपनी गाड़ी में बिठाकर साँची घुमाने के लिए ले चले, आज के सहयात्री के रूप में आज मेरे साथ रूपकजैन साब, मेरा मित्र कुमार और सचिन भाई साथ थे। मैंने जैनसाब से साँची घूमने से पहले उदयगिरि देखने की इच्छा प्रकट की जिसे उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार किया और साँची से रेलवे लाइन पार कर जैन साब ने अपनी गाड़ी का रुख उदयगिरि की तरफ कर दिया।
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थोड़े ही समय पश्चात हम उदयगिरि पहुँच गए हालांकि यह स्थान जैन साब के बनाये यात्रास्थल सूची में दर्ज नहीं था परन्तु यहाँ आकर उन्हें यह स्थान बहुत ही पसंद आया और उन्होंने पाया कि मध्य प्रदेश की भूमि में भी अभी ऐसे अनेकों स्थान हैं जो ऐतिहासिक तो हैं ही साथ ही प्राकृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। यह स्थान प्राकृतिक वातावरण से भरपूर हैं इसीलिए प्राचीनकाल के शासकों ने इन्हें महत्वपूर्ण समझा और इन्हें ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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चूँकि यह स्थान पुरातत्व विभाग की निगरानी में हैं अतः यहाँ प्रवेश करने के लिए शुल्क देना पड़ता है जो भारतीय लोगों के लिए 25/- प्रति व्यक्ति है। सचिन भाई हमसे पहले ही टिकट लेकर उदयगिरि देखने के लिए तैयार थे। हम सबसे पहले उदयगिरि के पहाड़ पर सीधे बनी खड़ी सीढ़ियां चढ़कर पहुंचे और देखा यहाँ से आसपास का नज़ारा बहुत ही मनमोहक था, दूर बहती हुई बेतवा नदी की सहायक नदी 'बेस' यहाँ से बहुत ही छोटी दिखाई दे रही थी। हरे भरे खेतों और मैदानों के अलावा दूर दूर ऐसे ही बिखरे पड़े पहाड़ मन को आनंदित कर देते हैं।
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पर्वत के ऊपर एक खोह में जैन गुफा स्थित है साथ ही यहाँ भूविज्ञान के आधार पर माना जाता है कि लाखों वर्षों पर पूर्व यहाँ समुद्र या नदी का बहाब था, जिसके कारण विंध्यमाला और उदयगिरि के पहाड़ों का जन्म हुआ। पहाड़ के पत्थरों पर आज भी नदी या समुद्र के पानी के कटाव के निशान आसानी से देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहाँ ब्रिटिशकालीन रेस्टहाउस भी बना है जहाँ शायद अंग्रेज उदयगिरि में कुछ समय व्यतीत करते होंगे। यहाँ से कुछ आगे बढ़ते ही एक चबूतरा दिखाई पड़ता है और इसके पास से दो टूटे हुए स्तम्भों के अवशेष भी।
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यहाँ लगे बोर्ड पर जब इसकी जानकारी पढ़ी तो समझ आया कि यह पुराने गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष हैं जहाँ सिर्फ मंदिर का निचला भाग इसका फर्श इस चबूतरे के रूप में ही शेष है। मंदिर किसका था और इसे किसने नष्ट किया यह अभी ज्ञात नहीं हो पाया है। इसके अलावा यहाँ बने स्तम्भ के ऊपरी भाग का हिस्सा आज भी ग्वालियर के गुजरी महल में सुरक्षित है। जब कभी आप ग्वालियर स्थित गुजरी महल में चार सिंहों वाले एक स्तम्भ के अवशेष को देखें तो याद कर लेना यह स्तम्भ किसी समय में उदयगिरि के पहाड़ की शोभा था और इसके निचले अवशेष आज भी उदयगिरि के पहाड़ पर स्थित हैं।
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थोड़ा और आगे चलने पर घास फुसों से घिरा एक बहुत ही बड़ा मैदान दिखाई पड़ता है जहाँ कभी गुप्तकालीन मंदिर के बराबर में आलिशान बगीचा होता होगा। आज यह स्थान बंजर है। यहाँ एक सफ़ेद रंग का वृक्ष भी दिखाई देता है जिसके बारे में प्रचलित है कि यह भूतों का पेड़ है। इसका नाम कुल्लू वृक्ष है जो भारतीय मूल का होने के बाद भी विदेशी वृक्षों से भी सुन्दर नजर आता है। उदयगिरि में ऐसे अनेकों वृक्ष देखे जा सकते हैं।
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उदयगिरि की ज्यादातर गुफाएँ पहाड़ की तलहटी में ही स्थित हैं, यहाँ कुल 20 गुफाएं हैं जिनमें गुफा नंबर पांच सबसे बड़ी मूर्ति के कारण प्रसिद्ध है। यह मूर्ति भगवान विष्णु के पाँचवे अवतार वराह की है जो पृथ्वी को हिरण्याक्ष से बचाकर समुद्र के रसातल से निकलकर बाहर लाये थे। यहाँ की अन्य गुफाएं भी हिन्दू देवी देवता को ही समर्पित हैं। संस्कृत एवं शंख लिपि में लिखे गए शिलालेख भी यहाँ दर्शनीय हैं।
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उदयगिरि की तरफ |
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Welcome to Udaygiri Caves |
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UDAYGIRI VILLAGE |
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उदयगिरि |
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WELCOME TO UDAYGIRI CAVES |
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बुकिंग ऑफिस - उदयगिरि |
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HISTORY BOARD - UDAYGIRI |
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AMRIT CAVE - UDAYGIRI |
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AMRIT CAVE - UDAYGIRI |
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IN AMRIT CAVE - UDAYGIRI |
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यहाँ कोई मूर्ति नहीं है किन्तु एक शिलालेख अवश्य है जिसपर लिखा है महाराज विक्रमादित्य अपनी दिग्विजय के दौरान यहाँ आये थे। |
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शिवलिंग - उदयगिरि गुफाएँ |
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अमृतगुफा के बारे में बताते कुमार भाटिया जी |
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अभी ऊपर चलना है |
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TOP OF UDAIGIRI MOUNTAIN |
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मैं और मेरा दोस्त कुमार |
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मैं और सचिन भाई |
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GEOLOGY OF UDAIGIRI |
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A VIEW FROM UDAIGIRI |
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A VIEW OF BASE RIVER |
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UDAIGIRI |
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JAIN CAVE - UDAIGIRI |
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ENTRY GATE OF JAIN CAVE |
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HISTORICAL MINES - UDAIGIRI |
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ROOPAK JAIN SAAB WITH ME ( SUDHIR UPADHYAY ) |
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LOCATION BOARD - UDAIGIRI CAVES REST HOUSE |
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REST HOUSE - UDAIGIRI CAVES |
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GUPT PERIOD TEMPLE |
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गुप्तकालीन स्तम्भों के अवशेष |
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यहाँ के बारे में |
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भूतिया वृक्ष के साथ रूपक जैन साब |
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GHOST TREE ( KULLU TREE ) - UDAIGIRI CAVES |
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ON TOP OF UDAIGIRI |
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गुप्तकालीन मंदिर - उदयगिरि गुफाएं |
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UDAIGIRI CAVES |
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UDAIGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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KUMAR BHATIYA AT UDAYGIRI |
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ROOPAK JAIN SAB |
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TAWA CAVE - UDAIGIRI |
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चेतावनी - उदयगिरि गुफाएं |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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GANESHA - UDAIGIRI |
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CAVE NO. 5 - UDAIGIRI |
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वराह मूर्ति - उदयगिरि |
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भगवान विष्णु के पाँचवे अवतार - वराह की प्रतिमा |
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SUDHIR UPADHYAY AT CAVE NO. 5 UDAYGIRI |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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भगवान् विष्णु की शेष शैय्या पर लेटे हुए की मूर्ति - उदयगिरि |
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शंखलिपि - उदयगिरि गुफाएँ |
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शंखलिपि शिलालेख - उदयगिरि गुफाएं |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
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UDAIGIRI CAVES |
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UDAYGIRI CAVES |
THANKS YOUR VISIT
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भाई यात्रा तो बडी अच्छी कराई, लेकिन इस कोरोना की बीमारी से थोड़ी सावधानी जरूरी है, यात्रा के बारे में बहुत बढ़िया लिखा है धन्यवाद
ReplyDeleteजी धन्यवाद
DeleteNice post
ReplyDeleteJi Thanks
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