Saturday, March 28, 2020

AWAGARH FORT

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

अवागढ़ किला - एटा यात्रा




यात्रा दिनाँक :- 20 फरवरी 2018

इस फरवरी में जब शादियों का सीजन चल ही रहा है तो एक शादी का निमंत्रण हमारे पास भी आया और यह निमंत्रण था एटा में रहने वाली हमारी बुआजी की लड़की की शादी का। कुछ साल पहले मैं अपनी बहिन निधि के साथ उनके यहाँ एटा गया था तब से अब मुझे दुबारा एटा जाने का मौका मिला, परन्तु इसबार मेरे साथ मेरी बहिन नहीं बल्कि मेरी पत्नी कल्पना मेरी सहयात्री रही और यह यात्रा ट्रेन या बस ना होकर केवल बाइक से ही पूरी की गई। मथुरा से एटा की कुल दुरी 115 किमी के आसपास है और शानदार यात्रा में हमने बहुत ही एन्जॉय किया और इसे यादगार बनाया। 

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20 फरवरी मैं और मेरी पत्नी कल्पना अपनी बाइक द्वारा एटा के लिए रवाना हुए। मथुरा से निकलकर हमने अपना पहला स्टॉप बलदेव में लिया। बलदेव, ब्रजभूमि का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम और उनकी पत्नी रेवती जी का शानदार मंदिर स्थापित है। बलदेव से निकलकर हमारा दूसरा स्टॉप सादाबाद था। सादाबाद, हाथरस जनपद की प्रमुख तहसील है और हाथरस - आगरा मार्ग पर बहुत ही बड़ा क़स्बा है। यह एक जंक्शन पॉइंट है जहाँ से पाँच अलग अलग दिशाओं में रास्ते जाते हैं। यहाँ कुछ समय रूककर और एक प्रसिद्ध भल्ले की दुकान से भल्ला खाकर हम आगे बढ़ चले। 


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अगला स्टॉप सहपऊ था, यह हाथरस जनपद का आखिरी क़स्बा है और इसके बाद एटा जनपद की सीमा प्रारम्भ हो जाती है। यहाँ से आगे एटा  की मुख्य तहसील और बाजार जलेसर पड़ता है। जहाँ पहुंचकर मैंने कल्पना को शादी में पहनने हेतु एक साड़ी दिलाई जो उसने अपनी इच्छानुसार घंटों में पसंद की। वैसे लेडीजों को बाजार अकेले ही भेजना चाहिए अन्यथा बहुत सारा समय लेकर ही उनको बाजार ले जाना चाहिए क्योंकि उन्हें क्या खरीदना है यह तय करने में ही बहुत वक़्त लग जाता है। जलेसर, एटा की मुख्य तहसील है और बहुत ही बड़ा जंक्शन पॉइंट है जहाँ से कई दिशाओं में अनेकों रास्ते अलग अलग स्थानों को गए हैं। 

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जलेसर से आगे निकलते ही अवागढ़ किला पड़ता है। यह बहुत बड़ा किला है और आज भी इस किले में इसके वंशज निवास करते हैं। यह किला पूर्णतः व्यक्तिगत है और पर्यटन हेतु नहीं है।  इसे हमने सिर्फ बाहर से देखा, मैं बचपन से ही आगरा में रहा हूँ और वहां इस किले के नाम पर एक स्थान भी है जिसे अवागढ़ हाउस के नाम से जाना जाता है। जितना मैंने इस किले के बारे में सुना है उसके अनुसार यह किला राजा बलबंत सिंह का है जिनके नाम पर आज आगरा में  प्रमुख कालेज भी बने हैं। राजा बलबंत सिंह के वंशज आज भी इस किले में निवास करते हैं। किले के चारों तरफ बहुत ही बड़ी खाई है जिसे पार करना आमजन के वश की बात नहीं है। 

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अवागढ़ से आगे निकलते ही गंगा की निचली नहर पड़ती है जिसे हजारा नहर भी कहते हैं।  इस नहर के बारे में भी अनेकों चर्चाएँ सुनने को मिलती हैं। इस नहर को देखकर ही इसकी भयावता का अनुमान लगाया जा सकता है यह अत्यंत ही गहरी है और जो इसमें एक बार उतर गया वह कभी वापस नहीं लौट पता। कहा जाता है कि इस नहर में मगरमच्छ भी पाए जाते हैं परन्तु मैंने कभी यहाँ मगर नहीं देखे। हाँ इतना अवश्य है कि इसे देखकर सचमुच डर अवश्य लगता है। 

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हजारा नहर पार करके हम एटा जिले में पहुंचे और कुछ ही समय में हम उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ हमारे फूफाजी ने शादी का कार्यक्रम रखा हुआ था।  यह सत्यम मैरिज होम के नाम आगरा रोड पर स्थित है। कल्पना को यहाँ उतारकर मैं बाजार घूमने चला गया। एटा की सड़कों पर आज मेरी बाइक पहली बार घूम रही थी। एटा उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है जो आगरा से पूर्व की ओर 85 किमी दूर है। शाम को मैंने और कल्पना ने शादी में काफी एन्जॉय किया। सुबह दीदी के विदा होते ही हम भी विदा हो लिए। 

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फूफाजी के यहाँ से निकलकर हम एटा के रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहाँ केवल टूंडला से एटा के बीच केवल एक ट्रेन चलती है, एटा का रेलवे स्टेशन अंग्रेजों के समय में एक मुख्य स्टेशन था जहाँ से अधिकतर मालगाड़ियां राशन का सामान लेकर बड़े बड़े शहरों को जाया  करती थीं। आज एटा एक अंतिम या टर्मिनल स्टेशन है जो अब किसी भी बड़े शहर नहीं जुड़ा हुआ है। यहाँ के स्थानीय लोगों की माँग है कि यहाँ की रेलवे लाइन को आगे बढ़ाकर कासगंज से जोड़ दिया जाये जो आज एक प्रमुख जंक्शन स्टेशन है और किसी समय एटा जनपद की मुख्य तहसील था। 

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एटा से निकलकर हम वापस जलेसर पहुँचे। मेरा मन यहाँ से कुछ दूर स्थित पटना पक्षी विहार देखने का था परन्तु वक़्त की कमी के चलते हम वहां नहीं जा पाए। जलेसर से एक रास्ता मेरे गाँव धौरपुर के लिए भी गया है, मैंने अपनी बाइक इसी रास्ते पर मोड़ दी। इस रास्ते पर मैं पहले भी यात्रा कर चुका हूँ, छोटा रास्ता है परन्तु प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है। यहाँ अलग अलग छोटे छोटे ग्राम पड़ते हैं जहाँ इत्र ( परफ्युम ) बनाने के कारखाने स्थित हैं।  बड़ी बड़ी भट्टियों पर यहाँ इत्र बनते हुए देखा जा सकता है। 

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कुछ समय पश्चात हम महो नामक ग्राम में पहुंचे। यहाँ एक विशाल टीला स्थित है जिसपर किसी ज़माने के किले के अवशेष साफ़ साफ़ देखे जा सकते हैं। इस किले की तुलना महाभारतकालीन शासक जरासंध से की जाती है जब वह मगध स्थित राजगीर से मथुरा पर आक्रमण करने आया तो उसने महो के शासक को हराकर उसे अपनी छावनी बनाया और सत्रह बार उसने मथुरा के घेराबंदी की तब तब महो उसका मुख्य केंद्र रहा। यहाँ से कुछ ही दूर मेरा गाँव आ जाता है। अपने गाँव में अपने चाचा - चाची से मिलकर हम मथुरा की तरफ रवाना हो गए। 

सादाबाद में दूसरा स्टॉप - मेरी बाइक और वाइफ 

जलेसर चौराहा 

अवागढ़ किले का एक दृश्य 

अवागढ़ - एटा 

मेरी पत्नी कल्पना - अवागढ़ 

अवागढ़ किला 

अवागढ़ किला 



किले के चारों ओर की खाई जो अब सूख चुकी है 

एटा यात्रा 

आगरा - एटा रोड 

हजारा नहर - एटा 






मेरी बुआ और फूफाजी 

एटा रेलवे स्टेशन 

ETAH RAILWAY STATION 

ETAH RAILWAY STATION 

ETAH RAILWAY STATION 

ETAH RAILWAY STATION 

ETAH RAILWAY STATION 

ETAH RAILWAY STATION 

ENDING POINT - ETAH RAILWAY STATION 

WELCOME TO NIDHOULI KALAN 



JALESAR CROSSING 

मेरे गाँव का रास्ता - जलेसर से हाथरस जंक्शन 

गाँव में कल्पना 

धौरपुर ग्राम 


मेरी चाची जी 
  धन्यवाद 

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