Monday, March 30, 2020

KOTVAN FORT


कोटवन का किला



   यूँ यो भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली ब्रजधाम का प्रसार, उत्तरप्रदेश के मथुरा के जनपद के अलावा राजस्थान और हरियाणा में भी फैला हुआ है। ब्रजधाम केवल पौराणिक स्थल ही नहीं बल्कि यह ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों की धरोहरों को भी अपने आप में संजोये हुए है जिनमें यमुना नदी, यहाँ के हरे भरे वन, सैकड़ों कुंड, पर्वतमालाएं आदि शामिल हैं।

   ब्रजधाम का मथुरा जनपद प्राचीनकाल से ही एक महाजनपद और अनेकों शासकों की राजधानी रहा है। पूरे ब्रज और मथुरा जिले में अनेकों छोटे बड़े ऐतिहासिक कालीन स्मारक और किलों के खंडहर स्थित हैं और आज हम भी एक ऐसे ही किले के खंडहरों को देखने पहुंचे जो उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा पर राष्टीय राजमार्ग 2 पर दूर दे दिखाई देता हुआ अपनी गाथा कहता है और यह किला है कोटवन का किला।


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    आज हमारी कंपनी का कैंप कोसीकलां में लगा, जब कैंप से हम शाम को फ्री हुए तो कोटवन की तरफ निकल गए जिसे मैंने अब तक मथुरा से दिल्ली जाते हुए ट्रेन में से ही देखा था। मैं आज जब कोसी में था और फ्री भी था तो अपने सहकर्मचारी हरी सिंह और कंपनी के ड्राइवर गंगा सिंह के साथ कोटवन को किले को देखने आ पहुँचा। कोटवन मथुरा जनपद का और उत्तर प्रदेश का आखिरी ग्राम है जो हरियाणा बॉर्डर पर स्थित है।

  इस ग्राम के बीचोंबीच एक ऊँचे टीले पर एक पुराने किले के खंडहर दिखाई देते हैं जो मेरे पसंदीदा स्थल में से एक हैं। ऐसे खंडहरों की बनाबट और इनका इतिहास जानने की रूचि मुझे शुरू से ही रही है अतः ऐसी जगह तलाश करना और इनके बारे में जानकारी करना मेरी प्रथम रूचि है।

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   हरी सिंह कोसी का ही रहने वाला है और कई बार वह यहाँ आ चुका है अतः उसे इस किले को देखने में कोई रूचि नहीं थी, वह इसी ग्राम में रहने वाले अपने एक मित्र के यहाँ चला गया और मैं, गंगा सिंह को साथ लेकर किला देखने। इस किले में चारों तरफ कँटीली झाड़ियों ने अपना अतिक्रमण फैला रखा है जिनको बड़ी सावधानी से हटाकर हम किले के खंडहर हो चुके महलों में पहुंचे।

   यह राजसभा स्थल था जो अब शराबियों का अड्डा बना हुआ है हालांकि इसवक्त यहाँ हमारे अलावा कोई भी व्यक्ति नहीं था परन्तु यत्र तत्र बिखरी हुई खाली शराब की बोतलें यह सिद्ध करती हैं। किला एक समय में बहुत ही शानदार रहा होगा यह इसकी पत्थरों पर की गई कारीगरी और बनाबट से साफ़ साफ़ प्रतीत हो रहा था।

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   मैं इस किले की छत पर पहुंचा तो मुझे यहीं पास ही में, झाड़ियों में छुपा हुआ किले का मुख्य महल का द्वार दिखाई दिया, यह महल बाहर से नजर नहीं आ रहे थे। गंगा सिंह ने महलों की ओर जाने से इंकार कर दिया और किले के बाहर चला गया। अब मैं किले में अकेला ही था और महलों की तरफ बढ़ चला। कंटीली झाड़ियों को हटाते हुए जैसे ही मैंने इन महलों के द्वार को खोला तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं, इस किले के ऊँचे ऊँचे परकोटे आज खंडहरों में तब्दील होकर लटकते हुए नजर आ रहे थे। जिन्हें देखकर एक अजीब सा डर लगने लगा था। 

   एक छोटी से आहट ने मुझे यहाँ बहुत बुरी तरह से डरा दिया। इन महलों के अंदर अनायास ही मेरे भीतर एक डर ने जन्म सा ले लिया था। इतना डर तो मुझे भानगढ़ के किले में भी नहीं लगा था। किले में पसरे सन्नाटे के बीच जैसे ही कोई छोटी सी आहट हुई और मैं बुरी तरह से काँप गया और सीधे इन महलों से बाहर निकलने में मैंने देर नहीं की।

  राजसभा के पास आकर मैंने एक लम्बी सांस ली और किले की सैर को यहीं छोड़ मैंने यहाँ से निकलना ही उचित समझा। हालाँकि यह किला गाँव के बीचोंबीच में स्थित है परन्तु इसके राज और यहाँ की ख़ामोशी किसी भी हिम्मतवाले व्यक्ति के रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है। यह किला कोई पर्यटक स्थल नहीं है और नाही यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।

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   गंगा सिंह के पास पहुंचकर मैंने उसे बताया कि उसने कितनी शानदार जगह को अनदेखा कर दिया और मेरी बात सुनकर गंगा सिंह फिर से किले को देखने के लिए तत्पर हो उठा। उसने बीड़ी जलाई और धुंआ देते हुए बोला मैं जा रहा हूँ अंदर और अभी देखकर आता हूँ। जैसे ही वह राजसभा तक पहुंचा, एक कबूतर की उड़ान के कारण हुई आवाज को सुनकर दबे पाँव बाहर आ गया। मैंने उससे कहा यह तेरे वश की बात नहीं है गंगा सिंह, ऐसे खंडहरों को देखने के लिए दूसरों का साथ होना बहुत जरूरी होता है जो तूने छोड़ दिया था।

   बाहर आकर हम हरी सिंह के पास पहुंचे, वह कंपनी की गाडी के साथ हमारा इंतज़ार कर रहा था। गाड़ी के अंदर बैठकर और कोटवन से रवाना होते हुए हमने हरी सिंह ने इस किले के बारे में बताया कि यह किला भरतपुर के महाराजा सूरजमल की ससुराल थी, उनकी रानी कोटवन के किले में रहा करती थीं। किसी समय में यह किला बहुत ही विशाल था और आज भी यह 500 एकड़ भूमि में इसका प्रसार है। 

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    इसमें सैकड़ों महल और तहखाने हैं जो अब खंडहरों के बीच गम हो चुके हैं। गाँव वाले आज तक इस किले की तह का पता नहीं लगा सके हैं। अब इस किले को बमूर की कँटीली झाड़ियों ने चारों ओर से घेर रखा है और किले के अंदर कुछ अनहोनी घटनाएं भी घट चुकीं हैं इसलिए कोई भी अब इस किले में नहीं जाता।

   वैसे कोटवन ग्राम ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा का एक मुख्य धाम है, यहाँ की एक गली में हमने एक शानदार पेंटिंग की कारीगरी देखी जिसपर दोनों तरफ ट्रेन की डिजाइन में बनी दीवारें हैं जिन्हें देखकर लगता है कि हमारे दोनों ओर से दो ट्रेनें गुजर रहीं हों। गांव के बारे ब्रज विकास ट्रस्ट ने इस ग्राम के द्वार का शिलान्यास भी किया है। 

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT & GANGA SINGH

KOTVAN FORT - MATHURA

ANCIENT WELL - KOTVAN FORT 

KOTVAN FORT - MATHURA

RAJ SABHA - KOTVAN FORT

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

राज सिंहासन का स्थान - कोटवन किला 

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA


KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA


KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

KOTVAN FORT - MATHURA

कोटवन ग्राम की गालियाँ 

राष्ट्रीय राजमार्ग और हमारी गाडी 

कोटवन द्वार 
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