रमणरेती - गोकुल
भाद्रपद की अष्टमी की रात जब महाराज बसुदेव, भगवान कृष्ण को लेकर मथुरा से दूर यमुना पार करके बाबा नन्द के यहाँ गोकुल ग्राम पहुंचे और वहाँ बच्चे को जन्म देते ही गहरी नींद में सो जाने वाली यशोदा के बगल में छोड़ उनकी पुत्री योगमाया को वहाँ से उठा लाये और कारागार में वापस आ गए। अगली सुबह बाबा नन्द और यशोदा को अपने पुत्र होने का ज्ञान हुआ और तभी से भगवान श्री कृष्ण नन्दलाल और यशोदा नंदन कहलाने लगे।
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भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन में जिस मिट्टी पर घुटुअन चलना सीखा, विभिन्न तरह के खेल खेले आज वह भूमि खेलनवन के नाम से जानी जाती है और इसे रमणरेती भी कहते हैं। इसी भूमि पर रहकर कान्हा ने अनेकों लीलाएँ की, अनेकों दैत्यों जैसे पूतना, तृणावर्त, कागासुर आदि का संहार किया और इसके साथ ही माखन की चोरी करना, गाय चराने जाना और रेतीली मिट्टी को खाकर इस ब्रज की रज को पूजनीय बना दिया। जिनका कभी धरती पर प्रार्दुभाव नहीं हुआ वे भोलेनाथ भगवान शिव भी कान्हा के बालस्वरूप के दर्शन करने कैलाश से यहाँ इस भूमि पर पधारे और अपने चरण रज से इसको पवित्र किया।
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ऐसी पूजनीय भूमि में गुरु कार्ष्णि ने अपना आश्रम बनाकर भगवान कृष्ण की आराधना में स्वयं को लीन किया। उनकी भक्ति को देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें अपने साक्षात दर्शन दिए। यह भूमि पुरानी रमणरेती कहलाती है जो वक़्त के अंतराल के साथ यमुना की बाढ़ में कहीं खो गई और फिर बाद में उस स्थान से थोड़ी दूर एक नये उदासीन आश्रम की स्थापना हुई जो आज गोकुल की नई रमणरेती कहलाती है।
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इस नई रमणरेती में रमणबिहारी जी का शानदार मंदिर बना है जिनकी साँयकालीन आरती एक हाथी द्वारा की जाती है। इस आश्रम में भक्तगण ब्रज की रज में लोटते - खेलते हुए बहुत आनंद प्राप्त करते हैं। यहाँ भक्तों के रहने के लिए अनेकों झोंपड़ियाँ और कुटिया बनी हुई हैं जिनमें रहकर भक्तगण प्रतिदिन भगवान की भक्ति में खोये रहते हैं और अपना जीवन सफल बनाते हैं।
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प्राकृतिक हरे भरे वातावरण से भरपूर यह स्थान बहुत ही रमणीय है और प्राचीन काल की तर्ज पर बसा हुआ है यहाँ आकर हमें लगता है कि आप आधुनिक युग से निकलकर साक्षात द्वापर में आ गये हों। यहीं इसी आश्रम में एक बहुत बड़ा कुंड रमन सरोवर भी है जिसमें स्नान करने से सारी थकान दूर हो जाती है और मन यहीं रम जाता है।
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जहाँ की रेती में मन रम जाये वही रमणरेती कहलाती है। यहाँ बच्चों के मनोरंजन हेतु झूले और पार्क भी हैं। भारतीय इतिहास की शिल्पकला और मूर्तिकला का एहसास कराती मूर्तियां भी जगह जगह स्थापित हैं जिनमें कोणार्क स्थित सूर्यमंदिर के रथ के पहिये की प्रति मुख्य है। अनेकों जीवजंतु और हरे भरे पेड़पौधों के बीच ऐसा शांत और प्राकृतिक वातावरण अतयंत कहीं नहीं मिलता। यहाँ जो एकबार आ गया बस यहीं रम जाता है फिर उसे दुनियादारी और कामकाज की कोई चिंता नहीं रहती।
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मैं भी अपने साथ काम करने वाले अपने मित्र हेमंत के साथ कंपनी का काम ख़त्म करके रमणरेती देखने पहुँचा। मथुरा में निवास करने के दौरान पहली बार में यहाँ आया था और पहलीबार में ही यह स्थान मुझे बहुत पसंद आया। ब्रज की प्राकृतिक धरोहर तो यहीं समाई हुई है फिर भगवान को अत्यंत कहीं और ढूँढ़ने की आवश्यकता ही क्या है।
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भगवान श्री रमनबिहारी के दर्शन करने के पश्चात् मैं और हेमंत रमन सरोवर की तरफ बढ़ चले। शाम का समय था और हम ड्यूटी पर भी थे इसलिए इस सरोवर में स्नान करने लुफ्त तो नहीं उठा पाए परन्तु यहाँ पार्क में लगे झूलों का खूब आनंद लिया जिनमें सबसे यादगार वो फिसलनी रही जिसपर चढ़ने के बाद फिसलने में अब डर सा लगा जो बचपन में कभी नहीं लगा था। आज हम भी अपने अपने बचपन में खोकर बच्चे बन गए और खूब देर खेलने के बाद हम वापस लौट चले।
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यहां की रेतीली मिटटी में लेटकर और घंटों बैठकर भक्तगण अपने आराध्य की भक्ति में खोये रहते हैं। राष्ट्रीय पक्षी मोर की गूँज और उसका नृत्य देखकर बहुत ही आनंदित होते हैं। यहाँ केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी कृष्ण भक्तों को भी बहुतायात संख्या में देखा जा सकता है। यह स्थान गोकुल ग्राम में यमुना नदी के नजदीक ही स्थित है और यहीं कृष्ण भक्त कवि रसख़ान की समाधी भी दर्शनीय है और साथ ही मुग़ल सामाग्री ताजबीवी का मक़बरा भी जिन्होंने एक मुसलमान होने के बाबजूद भी अपनी कृष्ण भक्ति की अमिट छाप, भारतीय इतिहास में छोड़ी और अपना नाम इतिहास में अमर किया इसलिए भारतीय पुरातत्व विभाग ने इन समाधियों को अपने संरक्षण में ले लिया और इन्हें पर्यटकों के निःशुल्क दर्शन के लिए पर्यटन स्थल बनाया।
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यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन है जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। मथुरा से गोकुल आसानी से ऑटो या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। मथुरा से गोकुल कुल 10 किमी दूर है।
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रमणरेती - गोकुल |
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रमणरेती - गोकुल |
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श्री रमणबिहारी मंदिर - रमणरेती, गोकुल |
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श्री बलदेव मंदिर - रमणरेती, गोकुल |
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रमणरेती - गोकुल |
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श्री रमणबिहारी दर्शन - गोकुल |
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श्री उदासीन कार्ष्णि आश्रम रमणरेती - गोकुल |
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मेरा मित्र हेमंत |
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श्री उदासीन कार्ष्णि आश्रम रमणरेती - गोकुल |
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श्री उदासीन कार्ष्णि आश्रम रमणरेती - गोकुल |
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महात्मा बुद्ध का सिर - रमणरेती, गोकुल |
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भगवान वाराह की मूर्ति - रमणरेती, गोकुल |
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भगवान नर्सिंह की मूर्ति - रमणरेती, गोकुल |
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झूले का आनंद लेते हुए - रमणरेती, गोकुल |
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फिसलने में पहली बार तो डर लगा था। |
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रमन सरोवर - रमणरेती, गोकुल |
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रमणरेती - गोकुल |
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रमण सरोवर - रमणरेती, गोकुल |
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महात्मा बुद्ध - रमणरेती, |
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रमनरेती - गोकुल |
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भगवान वामनावतार मूर्ति - रमणरेती, गोकुल |
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कान्हा को गोदी में खिलाती यशोदा मैया - रमणरेती, गोकुल |
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राजस्थान शैली - ऊँट गाड़ी |
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पधारो म्हारे देश - राजस्थानी ऊंटगाड़ी |
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गोकुल की गाय - रमणरेती, गोकुल |
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रमणरेती - गोकुल |
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रमणरेती - गोकुल |
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ब्रज की रज का आनंद लेते भक्त - रमणरेती, गोकुल |
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श्री उदासीन कार्ष्णि आश्रम - गोकुल |
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गोकुल बैराज पर आज का सूर्यास्त |
एक बार अवश्य पधारें, धन्यवाद
बहुत संतुलित, सधी हुई भाषा में रमणरेती का आपके द्वारा दिया गया परिचय मन को बहुत भाया। बस, आप अपना कैमरा बदल लें या लेस गन्दी हो गयी है तो उसे साफ कर लें।
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