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Monday, April 13, 2020

SHRI GHRISHNESHWAR JYOTIRLING


श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 2020




5 जनवरी 2020                                                        इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

     एलोरा से थोड़ा सा आगे ही श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मैं पहले भी एकबार माँ के साथ यहाँ आ चुका हूँ और आज दूसरी बार अपनी पत्नी को लेकर आया हूँ। ऑटो से उतरते ही मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर पूजा सामग्री की दुकानें लाइन से बनी हुई हैं। हमने सबसे पहली दुकान से ही पूजा सामग्री ले ली और जब थोड़ा सा आगे बढे तो पता चला सबसे शुरुआती दुकानदार अंदर वाले दुकानदारों की अपेक्षा काफी महँगा लगाकर सामान बेचते हैं इनमें अधिकतर सब महिलाएं ही थीं। मैंने मंदिर से लौटकर उस दुकानदार महिला को अपनी भाषा में अच्छी खासी सुनाई जिससे हमारे बाद आने वाले अन्य यात्रियों से वो इसप्रकार बेईमानी से सामान महँगा लगाकर न बेचे, और फिर भी बेचे तो वह उसका पाप ही होगा। 

Wednesday, April 8, 2020

KAILASH TEMPLE : ELLORA



कैलाश मंदिर : एलोरा गुफाएँ 




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5 जनवरी 2020 

    एलोरा गुफाओं का निर्माण राष्टकूट शासक कृष्ण प्रथम के शासनकाल में अजंता की गुफाओं को बनाने वाले कारीगरों के वंशजों ने किया था। एलोरा गुफाओं में के केवल बौद्ध ही नहीं अपितु हिन्दू और जैन धर्म से सम्बंधित अनेकों गुफाएं स्थित हैं। यह सभी गुफाएं अजंता की तरह ही चट्टानों को काटकर बनाई गईं हैं। 8वीं शताब्दी के मध्य एलोरा राष्ट्रकूट शासकों की राजधानी का मुख्य केंद्र रहा है जहाँ राष्ट्रकूट शासकों ने अनेकों गुफाओं का निर्माण कराया और हिन्दू होने के कारण उन्होंने यहाँ पहाड़ को काटकर एक ऐसे मंदिर का निर्माण कराया जिसका वर्णन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से युक्त है। इस मंदिर की शिल्पकारी और मूर्तिकारी को देखकर ही इसकी भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है और यह मंदिर है एलोरा का कैलाश मंदिर। 

Tuesday, April 7, 2020

AURANGZEB TOMB



खुलदाबाद - औरंगजेब का मक़बरा



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5 जनवरी 2020 

     दौलताबाद का किला देखने के बाद हम एलोरा गुफाओं की तरफ आगे बढ़ गए। यहाँ रास्ता बेहद ही शानदार था, रास्ते के दोनों तरफ बड़े बड़े छायादार घने वृक्ष लम्बी श्रृंखला में लगे हुए थे। दौलताबाद की सीमा समाप्त होते ही, घाट सेक्शन शुरू हो जाता है और ऑटो अब अपनी पूरी ताकत से इन पहाड़ियों पर गोल गोल घूमकर चढ़ता ही जा रहा था। कुछ समय बाद हम एक मुसलमानों की बस्ती में पहुंचे। यह नगर खुलदाबाद कहलाता है जिसे मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने बसाया था। यहां औरंगजेब का मकबरा एक साधारण सी मजार के रूप में स्थित है। इस स्थान के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए हम अपने धर्म के विपरीत इस स्थान को देखने गए।

Monday, April 6, 2020

DOULTABAD FORT


दौलताबाद का किला 


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5 जनवरी 2020 


   महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले से वेलूर स्थित एलोरा गुफाएं जाते समय रास्ते में एक शंक्वाकार आकार की पहाड़ी पर एक दुर्ग दिखाई देता है, यह दौलताबाद का किला है जिसे हिन्दू शासनकाल के दौरान देवगिरि के नाम से जाना जाता था। देवगिरि के इतिहास के अनुसार इस किले का निर्माण आठवीँ शताब्दी में यादव कुल के राजा भीमल ने कराया था। 8 वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक इस दुर्ग पर यादववंशीय शासकों का अधिकार रहा और उसके पश्चात् यह दिल्ली के सुल्तानों के अधीन आ गया। इस मजबूत किले से जुड़ा इतिहास काफी दुःखद और दयनीय है। 

Sunday, April 5, 2020

BIBI KA MAQBARA


बीबी का मक़बरा 



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यात्रा दिनाँक :- 5 जनवरी 2020

    विश्व प्रसिद्ध मुगलकालीन ईमारत ताजमहल की तर्ज पर बना बीबी का मकबरा, असल में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी महान शासक औरंगजेब की पत्नी, दिलरस बानो बेग़म का मक़बरा है जिनका देहांत मुमताज़ महल की ही तरह जज्चा संक्रमण की वजह से सन 1657 में हो गया था। इनके मरणोपरांत इन्हें राबिया उदौरानी के नाम से जाना गया जिसका हिंदी अनुवाद 'उस युग की राबिया' है। 

    कई लोग इसे सम्राट औरंगजेब का मकबरा भी समझ लेते हैं किन्तु यह गलत है। बेग़म की मृत्यु के पश्चाय सम्राट औरंगजेब ने यहाँ एक सादा कब्र का निर्माण कराया और बाद में औरंगजेब के पुत्र शहजादा आज़मशाह ने इसे ताजमहल से भी सुन्दर बनवाने की कोशिश की किन्तु अत्यधिक व्यय के चलते औरंगजेब ने ऐसा नहीं होने दिया। 

Saturday, April 4, 2020

PANCHAKKI : AURANGABAD


पहुर से औरंगाबाद और पनचक्की 



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5 जनवरी 2020 

    अजंता की गुफाएँ देखने के बाद हम लोग महाराष्ट्र परिवहन की एक बस द्वारा पहुर के लिए रवाना हुए। इस बस में अत्यधिक भीड़ थी इसलिए मुझे बैठने के लिए सीट नहीं मिल सकी परन्तु अपने सहयात्रियों को मैंने आराम से अलग अलग सीटों पर बैठा दिया। पहुर पहुंचकर बस अपने स्टैंड पर खड़ी हो गई, यहाँ से पहुर रेलवे स्टेशन की दूरी 2 किमी थी और यह बस रेलवे स्टेशन होते हुए ही जलगाँव की ओर जा रही थी। मैंने इस बस के कंडक्टर और ड्राइवर महोदय से विनती की, कि हमें रेलवे स्टेशन के नजदीक उतार दें, परन्तु उन्होंने हमारा अनुरोध स्वीकार नहीं किया और हमें बस स्टैंड पर ही उतार दिया। हम पैदल ही रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चले।