श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 2020
5 जनवरी 2020 इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।
एलोरा से थोड़ा सा आगे ही श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मैं पहले भी एकबार माँ के साथ यहाँ आ चुका हूँ और आज दूसरी बार अपनी पत्नी को लेकर आया हूँ। ऑटो से उतरते ही मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर पूजा सामग्री की दुकानें लाइन से बनी हुई हैं। हमने सबसे पहली दुकान से ही पूजा सामग्री ले ली और जब थोड़ा सा आगे बढे तो पता चला सबसे शुरुआती दुकानदार अंदर वाले दुकानदारों की अपेक्षा काफी महँगा लगाकर सामान बेचते हैं इनमें अधिकतर सब महिलाएं ही थीं। मैंने मंदिर से लौटकर उस दुकानदार महिला को अपनी भाषा में अच्छी खासी सुनाई जिससे हमारे बाद आने वाले अन्य यात्रियों से वो इसप्रकार बेईमानी से सामान महँगा लगाकर न बेचे, और फिर भी बेचे तो वह उसका पाप ही होगा।
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औरंगाबाद के वेलूर में स्थित श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में राजा कृष्णदेव राय ने कराया था और बाद में 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन होता है जिसे देखने दूर दूर से अनेकों यात्री यहाँ आते हैं और भगवान भोलेनाथ से अपनी मनोकामना पूर्ण होने का फल पाते हैं।
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इस मंदिर में मोबाइल, पर्स, बेल्ट इत्यादि ले जाना वर्जित है और साथ ही यहाँ पुरुषों के लिए पूजा करने का तरीका भी अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग है। मंदिर के गर्भ गृह में पुरुष अपनी शर्ट और बनियान के बिना ही प्रवेश कर सकते हैं अर्थात भगवान शिव् के ज्योतिर्लिंग सम्मुख पुरषों को अर्द्ध नग्नशरीर के साथ ही पूजा करनी होती है तभी उनकी पूजा का फल उन्हें मिलता है। मैं पिछली बार यहाँ पूजा कर चूका था इसलिए इसबार मुझे छोड़कर बाकी सभी लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए अंदर गए।
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श्री घृष्णेश्वर जी का मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है इसी मंदिर के समीप शिवालय भी स्थित है जिसका निर्माण भी महारानी अहिल्याबाई ने ही कराया था। श्री घृष्णेश्वर को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। एक इसी नाम से ज्योतिर्लिंग राजस्थान के शिवाड़ में भी स्थित है और वह भी ऐतिहसिककालीन मंदिर है। परन्तु 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा मान्यता के वाल वेलूर स्थित घृष्णेश्वर मंदिर की ही है परन्तु आप दोनों में से जहाँ भी दर्शन करने जायेंगे, फल आपको बराबर ही मिलेगा। आस्था मंदिर में नहीं केवल ईश्वर में होनी चाहिए और ईश्वर को पाने इन मंदिरों तक आना हमारी श्रद्धा को दर्शाता है।
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मंदिर के नजदीक एक मकबरा |
अगली यात्रा :- औरंगाबाद से साईंनगर शिरडी रेल यात्रा ।
इस यात्रा के अन्य भाग निम्न प्रकार हैं।
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