औरंगाबाद से शिरडी रेल यात्रा
5 - 6 जनवरी 2020 इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।
श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद ऑटो वाले भाई ने हमें शाम को औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। अब हमारी यात्रा की अगली मंजिल शिरडी की तरफ थी जिसके लिए हमारा रिजर्वेशन औरंगाबाद पर रात को ढाई बजे आने वाली पैसेंजर ट्रेन में था जो सुबह 6 बजे के करीब हमें शिरडी के नजदीकी रेलवे स्टेशन कोपरगाँव उतार देगी।
अभी ढ़ाई बजने में बहुत वक़्त था, इसलिए स्टेशन के क्लॉक रूम पर रखे अपने बैगों को लेकर हम वेटिंग रूम पहुंचे। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम बहुत ही शानदार और साफ़ सुथरा था, अधिकतर यात्री यहाँ बेंचों पर बैठकर अपनी अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने यहाँ एक कोने में अपनी दरी और चटाई बिछाकर अपना बिस्तर लगाया और थोड़ी देर के लिए हम यहाँ आराम करने लेट गए।
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रात के साढ़े आठ बज चुके थे, पूरे दिन की थकान के कारण हमने थोड़ी देर आराम तो कर लिया था परन्तु अब कदम आगे बढ़ने में असमर्थ से नजर आ रहे थे। मेरे पैर में पिछली साल चोट लग गई थी जिसकी कसक मुझे अब महसूस सी होने भी लगी थी और मेरे पैर में काफी सूजन भी आ चुकी थी। वक़्त अब भूख का भी था क्योंकि शरीर कितना भी थका हो भूखे पेट नींद नहीं आती इसलिए हमने खाना खाने जाने का विचार बनाया।
इस रेलवे स्टेशन के रिफ्रेशमेंट रूम पर सुनह हम खाना खा ही चुके थे जिसकी गुणवत्ता बहुत ही बेकार थी इसलिए अब हमने बाहर ही खाना खाने जाने का विचार बनाया। कल्पना और साधना को वेटिंग रूम में ही छोड़कर मैं और भरत खाने की तलाश में स्टेशन के बाहर बने बाजार पहुंचे।
औरंगाबाद में अधिकतर जनसँख्या मुस्लिमों की ही है इसलिए यहाँ अधिकतर होटल और ढ़ाबे मांसाहारी थे और हम शुद्ध शाकाहारी इंसान हैं इसलिए आज हमने तंदूरी रोटी को ही महत्त्व दिया और उसकी तलाश करते हुए हम शुद्ध शाकाहारी भोजनालय की तलाश करने लगे।
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मेरे पैरों में भयंकर दर्द और शरीर में थकान थी मगर फिर भी अनजाने शहर की गलियों में हमें घूमने में आनंद आ रहा था, मैं थोड़ा सा ही आगे बढ़ा था कि मुझे अंग्रेजी जाम की दुकान दिख गई। हालांकि अपने सहयात्रियों के कारण मैंने अपनी इस पूरी यात्रा में कहीं भी जाम का सेवन नहीं किया था परन्तु अब टूटते शरीर की थकान और पैर के दर्द का बहाना मानकर मेरे कदम अंग्रेजी दुकान की तरफ बढ़ चले और एक जाम की शीशी ने मेरी इस यात्रा को और औरंगाबाद की इस शाम को और भी खुशनुमा बना दिया था। हालाँकि भरत जी मेरे साथ थे परन्तु उन्होंने इसका सेवन नहीं किया।
जाम लगाने के बाद जैसे मुझमें एक नई ताजगी ने जन्म ले लिया था, मेरे शरीर की थकान कहाँ गायब हो गई मुझे नहीं पता था हालांकि पैर में दर्द अभी भी था परन्तु उसका आभास होना मुझे बंद हो गया था। मैंने होटल और ढाबे ढूँढ़ने का विचार त्याग दिया और भरत एक ढाबे से अपने बच्चों और साधना के लिए तब तक भोजन ले आये थे। मैं भरत जी के साथ स्टेशन पहुंचा और कल्पना को लेकर वापस एक बड़े रेस्टोरेंट में आकर हमने भोजन किया। बेशक मैंने जाम पी रखा था परन्तु भरत जी के अलावा इसका आभास मैंने किसी को नहीं होने दिया। खाना खाने के बाद हम वेटिंग रूम में ट्रेन आने के समय तक थोड़ी थोड़ी नींद ले चुके थे।
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रात को जब सर्दी बढ़ चली थी हम अपने अपने कम्बल ओढ़े प्लेटफॉर्म 1 से 2 पर पहुंचे। ढ़ाई बजने में अभी वक़्त था इसलिए थोड़ी देर इस सर्दी के मौसम के बीच हमने ट्रेन आने का इंतज़ार किया और जब रात तीन बजे ट्रेन आई तो अपनी अपनी सीटों पर कब्जा किया। इस पूरी यात्रा में हमारी तीन रातें इसी तरह खराब हुई जब हम पूरी रात ठीक से नहीं सो सके और ट्रेनों की टाइमिंग के हिसाब से हमें आधी रात को जागना पड़ा और यात्रा करनी पड़ी फिर चाहे वो पाचोरा से मनमाड की यात्रा हो, या मनमाड से औरंगाबाद की अथवा औरंगाबाद से अब ये शिरडी की यात्रा हो। मैं इस यात्रा में साधना के बच्चों के हौंसले की दाद देता हूँ कि इस यात्रा में उन्होंने मेरे भरपूर सहयोग किया और कहीं भी वे इस यात्रा के दौरान परेशान होकर भी दुखी नहीं हुए।
सुबह ठीक सात बजे ट्रेन ने हमें कोपरगाँव स्टेशन पर उतार दिया। यह पैसेंजर ट्रेन यहाँ से आगे दौंड तक जा रही थी। आज हमारी इस यात्रा की आखिरी मंजिल शिरडी थी इसके बाद आज ही हमारा रिजर्वेशन लौटने के लिए कर्नाटका एक्सप्रेस में था जो भुसावल से कन्फर्म था परन्तु हमें यह ट्रेन कोपरगाँव से ही पकड़नी थी जिसका समय आज दोपहर डेढ़ से बजे के आसपास था। जिसका मतलब था हमें शिरडी से दर्शन करके एक बजे तक यहाँ हर हाल में पहुँचना ही था।
कोपरगाँव के वेटिंगरूम में हम सब नाहा धोकर तैयार ही हुए थे कि सिकंदराबाद से साईंनगर शिरडी जाने वाली ट्रेन का एनाउंस होने लगा। मैंने अभीतक साईंनगर शिरडी स्टेशन नहीं देखा था इसलिए मैंने इसी ट्रेन से शिरडी जाने का विचार बनाया और भरत जी को टिकट लाने के लिए बोल दिया। अपना अपना सामान लेकर हम प्लेटफार्म दो पर पहुंचे और इस ट्रेन के एक रिजर्वेशन कोच में चढ़ गए जो लगभग खाली ही पड़ा हुआ था।
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कोपरगाँव, मनमाड़ से पुणे रेलवे लाइन पर स्थित है और इससे आगे पुणतांबा नामक स्टेशन पड़ता है जिससे एक रेल लाइन साईंनगर शिरडी के लिए जाती है। हम जब सन 2009 और 2011 में शिरडी आये थे तब ये लाइन नहीं थी इसका निर्माण नवनिर्मित था जिसका उद्देश्य साईं भक्तों को सीधे शिरडी पहुँचाना है। आज हम भी इसी लाइन से शिरडी जा रहे थे। पुणतांबा के बाद ट्रेन दाई तरफ मुड़ती हुई शिरडी की तरफ बढ़ चली और कुछ समय बाद साईंनगर शिरडी पहुंची।
इस स्टेशन से शिरडी की दूरी दो किमी के आसपास है इसलिए यहाँ ऑटो वाले ट्रेन आते ही सवारियों पर टूट पड़ते हैं। हम भी ऐसे ही एक ऑटो वाले भाई की बातों में आ गए और प्लेटफॉर्म पर ही वह हमारा सामान लेकर ऑटो की तरफ बढ़ चला। हम जैसे ही स्टेशन से बाहर निकले तो पता चला की साईंबाबा मंदिर ट्रस्ट की तरफ से साईंभक्तों को मंदिर तक ले जाने के लिए यहाँ निःशुल्क बस की सेवा भी उपलब्ध थी। यह जानकर हमें थोड़ा सा मलाल हुआ परन्तु फिर हमने ऑटो वालों की रोजी रोटी की तरफ भी ध्यान दिया और निःशुल्क बस सेवा का ख्याल अपने अंदर से निकाल दिया।
अगले भाग में जारी। ....
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WELCOME TO AURANGABAD |
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AURANGABAD RAILWAY STATION |
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औरंगाबाद की शान |
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औरंगाबाद स्टेशन के बाहर रखा स्टीम इंजन |
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एक रेस्टोरेंट में मैं और कल्पना |
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औरंगाबाद के वेटिंगरूम में मैं और मेरा भांजा गोलू |
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कोपरगाँव रेलवे स्टेशन |
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साईंनगर शिरडी की तरफ रेल यात्रा |
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पुणतांबा रेलवे स्टेशन |
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WELCOME TO PUNTAMBA JUNCTION |
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WELCOME TO SAINAGAR SHIRDI |
अगली यात्रा :- शिरडी और घर वापसी
इस यात्रा के अन्य भाग निम्न प्रकार हैं।
- मुंबई 2020 - नए साल की सैर
- कान्हेरी गुफाएँ
- मुंबई से पहुर रेल यात्रा
- अजंता की गुफाएँ
- अजंता से औरंगाबाद रेल यात्रा
- बीबी का मक़बरा
- दौलताबाद का किला
- औरंगजेब का मक़बरा
- कैलाश मंदिर - एलोरा गुफाएँ
- श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 2020
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