चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 2
पिछले भाग से जारी। ......
उसकी नजर पहाड़ चढ़ती एक चींटी पर पड़ी जो बार बार चढ़ने का प्रयास करती और असफल होकर गिर पड़ती, चींटी ने यह प्रयास तब तक किया जब तक वह पहाड़ पर नहीं चढ़ गई। छोटी सी चींटी की इस कार्यविधि और उसके आत्मविश्वास को देखकर बाबर के मन में आई निराशा दूर हो गई और उसे चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग भी सूझ गया। उसने एक ही रात में अपने मार्ग में बाधा बनी पहाड़ी को काट कर रास्ता बनाने का आदेश अपनी सेना को दिया और उसकी सेना ने एक ही रात में पहाड़ी को काटकर चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग बना लिया।
अगली सुबह बाबर ने अपनी सेना सहित चंदेरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। मेदिनीराय के नेतृत्व में राजपूतों ने अपार वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु वे परास्त हुए, चंदेरी के मुख्य दरवाजे पर भयंकर मारकाट हुई, असंख्य निर्दोषों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया जिसके बाद इस दरवाजे जो खुनी दरवाजा कहा जाने लगा।
अगली सुबह बाबर ने अपनी सेना सहित चंदेरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। मेदिनीराय के नेतृत्व में राजपूतों ने अपार वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु वे परास्त हुए, चंदेरी के मुख्य दरवाजे पर भयंकर मारकाट हुई, असंख्य निर्दोषों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया जिसके बाद इस दरवाजे जो खुनी दरवाजा कहा जाने लगा।
दुर्ग ने अंदर की हिन्दू स्त्रियाँ अपनी आबरू बचाने के लिए जौहर की आग में कूंद गई जिसकी राख आज भी चंदेरी के दुर्ग के अंदर बने उस कुंड में मिलती है जहाँ इन वीरांगनाओं ने जौहर किया था।इस प्रकार 29 जनवरी 1528 को चंदेरी के दुर्ग पर एक फिर विदेशियों का झंडा लहराने लगा। इस युद्ध में भीषण नरसंहार हुआ अनुमानतः इस युद्ध के पश्चात चार - पाँच हजार लोगो के सिर काट दिए गए। चंदेरी नगर को तहस नहस करने के बाद बाबर वापस दिल्ली लौट गया और चंदेरी अब मुग़ल साम्राज्य का एक प्रमुख अंग बन गई।
12. चंदेरी का हथकरधा उद्योग और चंदेरी साड़ियाँ
वर्तमान ने चंदेरी हथकरधा उद्योग के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, यहाँ की बनी साड़ियाँ चंदेरी साड़ी के नाम से जानी जाती हैं जो अपनी कढ़ाई और बुनाई के कारण चिकन, बनारसी साड़ी और सिल्क साड़ियों की ही भाँति प्रसिद्ध हैं। चंदेरी के अधिकतर घरों में हथकरधा और कढ़ाई बुनाई का कार्य कुशलता पूर्वक किया जाता है। यहाँ बने एक सरकारी हब में जब ऑटो वाले लतीफ़ भाई हमें लेकर गए तब हमने यहाँ चंदेरी की साड़ियां बनते हुए देखी।
सोने और चाँदी के महीन तारों से बनी साड़ी देखकर मैं हैरान रह गया जिसकी कीमत 50000/- के लगभग थी और इससे भी अधिक कीमत की साड़ियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं। चंदेरी की इस कला को देखते हुए ही भारतीय फ़िल्म उद्योग बॉलीवुड के यहाँ दस्तक दी और वरूण धवन व अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म सुई धागा की यहाँ शूटिंग की गई।
13. चंदेरी दुर्ग का सती स्थल
चन्देरी का दुर्ग समुद्र तल से 78 मीटर ऊँचे के पहाड़ पर स्थित है। लतीफ़ भाई अपने ऑटो को किले तक चढ़कर लेकर गए। किले के बाहर ऑटो खड़ा कर वह हमें किला दिखाने अंदर लेकर गए। किले के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले हमारी नजर एक मंदिर नुमा स्थल पर पड़ी। यह सती स्थल है जिसके ठीक पीछे स्थित कुंड में ही यहाँ बाबर के आक्रमण के समय हजारों राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया था ( अपने जीते जी अपने शरीर को आग के हवाले कर देना ही जौहर कहलाता है ) भारतभूमि की ऐसी वीरांगनाओं के बलिदान की गाथा कहता यह सती स्थल आज हर सैलानी को सहज ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है।
14. संगीत सम्राट बैजू बावरा की मज़ार
सती स्थल से थोड़ा आगे ही तानसेन के समकालीन संगीत सम्राट बैजू बावरा की मजार स्थित है। बैजू बावरा का मुख्य नाम पंडित बैजनाथ था जिनका जन्म सन 1542 में चंदेरी में हुआ था। पंडित बैजनाथ की बचपन से ही संगीत और गायन में विशेष रूचि थी। तानसेन के साथ बैजनाथ जी ने भी अपनी संगीत शिक्षा का अध्ययन गुरु स्वामी हरिदास जी से प्राप्त किया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद तानसेन आगरा में सम्राट अकबर के दरबार में उनके नवरत्नों में शामिल हुए और प. बैजनाथ ग्वालियर नरेश के दरबार में नियुक्त हुए।
युवावस्था के दौरान अपने ही नगर की कलावती नामक स्त्री से वे प्रेम करने लगे। संगीत और गायन के साथ साथ वह कलावती के प्रेम में पागल से हो गए जिसकारण उन्हें बैजू बावरा कहा जाने लगा जो कालान्तर में इतिहास का एक मुख्य पात्र बनकर रह गया। बैजू बावरा के नाम से बॉलीवुड में बहुत समय पहले एक फिल्म का निर्माण भी हो चुका है जो आज भी बहुत से लोगों की पसंद बनी हुई है, इस फिल्म में उनके द्वारा गाये जाने वाले मल्हार का अच्छा संगीत दिया गया है। पंडित बैजनाथ की मजार को प्रणाम कर हम आगे बढ़ चले।
15. चंदेरी दुर्ग का खूनी दरवाज़ा
अब हम चंदेरी दुर्ग के उस मुख्य दरवाजे पर पहुंचें जिसे खूनी दरवाजे के नाम से जाना जाता है। बाबर के आक्रमण के समय इसी दरवाजे पर भयंकर रक्तपात और नरसंहार हुआ था, इस दरवाजे से रक्त की धाराएं बहकर नीचे जाती रही इसकारण इस दरवाजे को खूनी दरवाजे के नाम से जाना जाता है। यह चंदेरी किले का मुख्य प्रवेश द्वार है जहाँ से खड़े होकर चंदेरी नगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यहीं से दूर कटी घाटी भी दिखलाई पड़ती है जिसे एक रात में काटकर बाबर की सेना ने इस किले पर आक्रमण किया था।
खूनी दरवाजा देखने के बाद हम किले के अन्य भागों की तरफ बढ़ चले थे। किले की विशाल दीवार के साथ साथ चलते हुए मुझे आभास हुआ कि एक समय में इस दीवार पर सैनिकों की तैनाती रहती होगी। जैन साब, लतीफ़ भाई के साथ बातों में मशगूल थे और उन्होंने मुझे किले को पूर्ण रूप से जानने और फोटो खींचने के लिए अकेला छोड़ दिया था। मैं और जैन साब यहाँ किले में बनी एक ऐतिहासिक मस्जिद प्रांगण में पहुंचे जो खिलजियों के समय की बनी प्रतीत होती है।
16. चंदेरी दुर्ग और नौखण्डा महल
इसी के ठीक सामने किले का मुख्य महल है जिसे नौखण्डा महल कहा जाता है इसका निर्माण बुंदेला राजा दुर्जन सिंह ने कराया था जो पुरातत्व विभाग के संरक्षण और देख रेख की वजह से आज भी अच्छी हालत में है। चंदेरी के दुर्ग तक पहुँचने के लिए मुख्यतः तीन मार्ग हैं जिनमें से मुख्य मार्ग सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है जहाँ अपने किसी भी निजी वाहन से सुगमता पूर्वक पहुंचा जा सकता है। दूसरा मार्ग सीढ़ियों द्वारा पैदल मार्ग है जो किले की तलहटी में स्थित माँ जोगेश्वरी देवी के मंदिर से ऊपर आती हैं और तीसरा मार्ग है किले का पिछला और मुख्य दरवाजा जिसे खूनी दरवाजा भी कहते हैं।
इस किले का प्रांगण काफी बड़ा है और इसकी चारदीवारी आज भी बहुत ही मजबूत बनी हुई है। अनेकों हरे भरे वृक्ष इस किले के प्रांगण में खड़े हुए हैं जिनमें सबसे मुख्य इमली का वृक्ष है जो ऐतिहासिक कालीन वृक्ष प्रतीत होता है। काफी देर इस किले में घूमने के बाद मैं, जैनसाब और लतीफ़ भाई वापस अगली मंजिल की तरफ रवाना हो गए।
17. चंदेरी दुर्ग और प्रतिहार राजवंश
चंदेरी के दुर्ग के निर्माण को लेकर अनेकों वृतांत सुनने और पढ़ने के लिए मिलते हैं इन्हीं में से एक वृतांत है प्रतिहार राजवंश का, जब चंदेरी के दुर्ग को कीर्ति दुर्ग के नाम से भी जाना जाता था। 11वीं शताब्दी में राजपूत युग के दौरान प्रतिहार राजवंश में सातवीं पीढ़ी में कीर्तिवर्मा नामक एक वीर शासक हुए जिन्होंने चंदेरी के दुर्ग का निर्माण कराया और इस नगर को बसाया। इससे पहले चंदेरी को महाभारत काल में चेदि राज्य के नाम से जाना जाता था जिसका प्रमुख शासक शिशुपाल था जो भगवान श्री कृष्ण का फुफेरा भाई था। यह चंदेरी वर्तमान चंदेरी से उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित बूढ़ी चंदेरी से जाना जाता है जिससे मिले अनेकों अवशेष आज भी वर्तमान चंदेरी में स्थित पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं।
18. माँ जोगेश्वरी देवी मंदिर, चंदेरी
किले से लौटकर लतीफ़ मामू हमें माँ जोगेश्वरी देवी के मंदिर पर ले गए जहाँ सन 2018 में आई फिल्म स्त्री की शूटिंग हुई थी और एक मंदिर पर मेला लगते हुए दिखाया गया था। यह वही मंदिर है। इस मंदिर के बाहर एक बहुत बड़ा कुंड है और कुछ सीढ़ियां ऊपर चढ़कर माँ जोगेश्वरी का प्राचीन मंदिर है जो चंदेरी के लोगों की कुल देवी हैं और यहाँ के निवासियों की उनमें विशेष आस्था है। चंदेरी दुर्ग के पहाड़ की तलहटी में बसा यह स्थान बहुत ही रमणीक है और प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है। जैन साब और लतीफ़ मामू मंदिर के बाहर ही खड़े रहे और मैं शीघ्र ही दर्शन करके वापस आ गया।
19. चौबीसी दिगम्बर जैन मंदिर, चंदेरी
अब लतीफ़ मामू का ऑटो चंदेरी की छोटी छोटी गलियों में दौड़ने लगा था। जैनसाब, लतीफ़ मामू को अपनी बातों से बड़ा खुश रखते थे और उनमें हरपल नया नया जोश भरते रहते थे। थोड़ी देर बाद लतीफ़ मामू का ऑटो एक जैन मंदिर के पास पहुंचा। इसे चौबीसी दिगंबर जैन मंदिर कहा जाता है, यहाँ जैन धर्म के प्रवर्तकों के छोटे छोटे चौबीस मंदिर बने हुए हैं। जैनसाब जुते मोज़े उतारकर और हाथ पैर धोकर मंदिर में दर्शन करने गए।
मुझे जैन मंदिर देखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी अतः मैं बाहर ही खड़ा रह गया किन्तु मैं सभी धर्मों का विशेष आदर करता हूँ इसलिए मैंने भी जुते मोज़े उतारकर भगवान महावीर स्वामी के इस पवित्र मंदिर को प्रणाम किया। इस मंदिर तक पहुँचने का रास्ता जगह जगह चंदेरी के घरों पर लिखा हुआ है जिससे भक्तों को मंदिर तक पहुँचने में कोई परेशानी न हो और यही लिखा हुआ रास्ता स्त्री फिल्म में कई बार दर्शाया गया है।
20. राजा महल और राजा की बावड़ी
जैन मंदिर के ठीक सामने एक पुराने महल के अवशेष दिखाई देते हैं यह राजा महल के नाम से जाना जाता है जिसका निर्माण बुंदेला राजा दुर्जन सिंह ने करवाया था। इसके अलावा यहाँ उन्होंने एक बावड़ी का निर्माण भी कराया जिसे राजा की बावड़ी कहा जाता है। यह महल फ़िलहाल आम पर्यटकों के प्रवेश हेतु बंद है इसलिए हम इस महल को बाहर से ही देखकर आगे बढ़ गए। इसके बारे में लतीफ़ मामू ने बताया था कि इसमें रहस्य मयी सुरंग भी है जो किले के अंदर जाकर निकलती है। इस महल में फिल्म स्त्री के अधिकांश दृश्य फिल्माए गए थे जिनमें सबसे मुख्य छत का सीन था जहाँ राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर से मिलता है और उसे उसके स्त्री होने पर संदेह होता है।
21. श्री नर्सिंह मंदिर
चंदेरी की गलियों में ही एक सिनेमाघर भी बना हुआ है जो फैमिली सिनेमा के नाम से जाना जाता है। इसी के ठीक बराबर में भगवान नर्सिंह का मंदिर भी है जो इस समय बंद था। इस मंदिर का निर्माण भी 16 वीं शताब्दी में बुन्देल राजा दुर्जन सिंह ने करवाया था। इस मंदिर की तीन मंजिला ईमारत बहुत ही देखने में बहुत ही भव्य लगती है और इस मंदिर की दीवारों पर हो रखी चित्रकारी इसे और भी सुन्दर बना देती है। इस मंदिर के सामने भी स्त्री फिल्म के अनेकों दृश्य फिल्माए गए थे।
22. ऊँट खार
इससे आगे चलने पर हम ऊँट खार पहुंचे। यह प्राचीन काल में ऊँटों के बांधने का स्थान था, ऊँट की उंचाई के हिसाब से ही इस ऊँटखार का निर्माण किया गया है। यह स्थान जैन साब को बहुत ही पसंद आया था। इस स्थान से चंदेरी के दुर्ग का विहँगम दृश्य दिखलाई पड़ता है। ऊँटखार में अलग अलग आठ मेहराब बने हैं जिनमें वस्तुतः अलग अलग ऊँटों को खड़ा रखा जाता होगा। यह ऊँट चंदेरी के शासकों की सेना का एक हिस्सा हुआ करते थे और जरुरत पड़ने पर इन्हें शासकों द्वारा प्रयोग किया जाता होगा। ऊँटखार देखने के बाद हम और आगे बढे। वैसे चंदेरी में प्राचीन महलों और इमारतों की कोई कमी नहीं है। अगर जैन साब ने ऑटो द्वारा चंदेरी घूमने का विचार ना किया होता तो शायद हम एक दिन में चंदेरी कभी नहीं घूम पाते।
23. पुरानी कचहरी
ऊँटखार से थोड़ा आगे पुरानी कचहरी के नाम से एक ऐतिहासिक महल दिखलाई दिया। यह चंदेरी का पुराना न्यायालय था जहाँ चंदेरी के छोटे बड़े फैसले लिए जाते थे। ऐतिहासिक रूप से इसका निर्माण भी बुंदेला राजाओं ने अपनी हवेली के रूप में करवाया था। काफी समय तक इसको कचहरी के रूप में प्रयोग करने के बाद अब इसे बंद कर दिया गया है और अब यह पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। पुरानी कचहरी से थोड़ा आगे एक गेटबंद मैदान में कुछ प्राचीन अवशेष दिखाई देते हैं जो पुरातत्व विभाग के अनुसार चकले की खिड़की और खारी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध हैं। बाकी चंदेरी अब अगले भाग में घूमेंगे।
चंदेरी में अभी बहुत कुछ है जानिए अगले भाग में। ......
1. चंदेरी का हथकरधा उद्योग और चंदेरी साड़ियाँ
हथकरधा उद्योग का सरकारी हब का प्रवेश द्वार |
साड़ियाँ बनाने वाली हैंडलूम मशीनें |
चंदेरी साड़ी |
चन्देरी की साड़ियाँ |
2. चंदेरी दुर्ग का सती स्थल
चन्देरी दुर्ग में प्रवेश |
सती स्थल - चन्देरी |
सती स्थल - चंदेरी |
सती स्थल - चंदेरी |
सती स्थल - चंदेरी |
जौहर कुंड - चंदेरी दुर्ग |
3. संगीत सम्राट बैजू बावरा की मज़ार
संगीत सम्राट बैजू बावरा की मज़ार |
बैजू बावरा की मजार और सती स्थल |
4. चंदेरी दुर्ग का खूनी दरवाज़ा
खूनी दरवाज़ा की तरफ |
लतीफ़ मामू और रूपक जैन साब |
खूनी दरवाज़ा - चंदेरी दुर्ग |
खूनी दरवाज़ा - चंदेरी दुर्ग |
चंदेरी दुर्ग की विशाल दीवार |
खूनी दरवाजा के ऊपर गणेश जी विराजमान हैं |
खुनी दरवाजा के निकट के वृक्ष |
खूनी दरवाजा - चंदेरी दुर्ग |
5. चंदेरी दुर्ग और नौखण्डा महल
चंदेरी दुर्ग |
चंदेरी दुर्ग |
चंदेरी दुर्ग और मेरे सहयात्री |
चंदेरी दुर्ग |
चंदेरी दुर्ग |
चंदेरी दुर्ग |
इमली का पेड़ और पुरानी मस्जिद - चंदेरी दुर्ग |
मस्जिद में जैनसाब |
किले से बादलमहल का एक दृश्य |
दूर दिखाई देती कटी घाटी - चंदेरी दुर्ग |
रूपक जैन जी - एक बड़े घुमक्कड़ |
ये मैं हूँ - सुधीर उपाध्याय |
नौखण्डा महल - चंदेरी दुर्ग |
नौखण्डा महल - चंदेरी दुर्ग |
नौखण्डा महल - चंदेरी दुर्ग |
नौखण्डा महल - चंदेरी दुर्ग |
नौखण्डा महल - चंदेरी दुर्ग |
6. माँ जोगेश्वरी देवी मंदिर, चंदेरी
7. श्री नर्सिंह मंदिर
8. श्री चौबीसी दिगम्बर जैन मंदिर
9. राजा महल और राजा की बावड़ी
10. ऊँट खार
11. पुरानी कचहरी
12. चकले की खिड़की और खारी बावड़ी
THANK YOU
thanks for sharing your experience aboutchanderi
ReplyDeleteThanks for sharing your experience about Chanderi
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