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चंदेरी - एक ऐतिहासिक शहर, भाग - 3
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अब हम चंदेरी शहर से बाहर आ चुके थे। चंदेरी से कटी घाटी जाने वाले मार्ग पर एक बार फिर हम एक जैन मंदिर पहुंचे। यह जैन अतिशय क्षेत्र श्री खंदारगिरी कहलाता है जो पहाड़ की तलहटी में बसा, हरे भरे पेड़ पौधों के साथ एक शांत एवं स्वच्छ वातावरण से परिपूर्ण स्थान है। यहाँ जैन धर्म के चौबीसबें और आखिरी प्रवर्तक भगवान महावीर स्वामी का दिव्य मंदिर है और साथ ही पहाड़ की तलहटी में ही चट्टान काटकर उकेरी गई उनकी बहुत बड़ी मूर्ति दर्शनीय है। इसके अलावा यहाँ पहाड़ की तलहटी में और भी ऐसे अन्य मंदिर स्थापित हैं। जैन धर्म का एक स्तम्भ भी यहाँ स्थित है जिसपर महावीर स्वामी से जुडी उनकी जीवन चक्र की घटनाएं चित्रों के माध्यम से उल्लेखित हैं।
खंदारगिरि के दर्शन करने के बाद अब लतीफ़ मामू बड़े जोश के साथ कटी घाटी की तरफ बढ़ते जा रहे थे। आधा दिन भी गुजर चुका था और अब शाम की बेला शुरू हो चुकी थी। कुछ ही समय में हम अब उस ऐतिहासिक कटी घाटी पर पहुंचे जिसे मुग़ल सम्राट बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण करने के उद्देश्य से प्रवेश करने हेतु एक ही रात में बनबाया था किन्तु यहाँ लगा इस घाटी का ऐतिहासिक बोर्ड तो कुछ और ही कहानी कहता है जिसमें बताया गया है कि इसका निर्माण 1490 में मालवा के सुल्तान ग्यासबेग के संरक्षण में जिमन खां द्वारा कराया गया जिसकी पुष्टि इस द्वार के दोनों ओर लगे मेहरावों के शिलालेखों से होती है।
निर्माण किसी ने भी कराया हो किन्तु आज यह चंदेरी का दक्षिणी द्वार, कटी घाटी के नाम से चंदेरी का मुख्य पर्यटन और ऐतिहासिक स्थान है जिसे बिना देखे चंदेरी की यात्रा पूरी ही नहीं लगती। चंदेरी घूमने अगर आना है तो कटी घाटी देखे बिना कतई नहीं जाना है। इसी कटी घाटी पर बॉलीवुड फिल्म स्त्री के आखिरी दृश्य को भी फिल्माया गया था जब श्रद्धा कपूर यहाँ से बस द्वारा चंदेरी से वापस लौटती हैं। कुल मिलकर कटी घाटी एक शानदार स्थान है, यहाँ से चंदेरी का दुर्ग का अद्भुत दृश्य दिखलाई देता है। चंदेरी निवासी और आज के हमारे सारथी लतीफ़ मामू ने भी हमें यहीं बताया कि कटी घाटी का निर्माण बाबर ने ही करवाया था।
कटी घाटी के बाद लतीफ़ मामू का ऑटो अब सीधे चंदेरी पुरातत्व संग्रहालय के बाहर जाकर ही रुका। हालांकि अब मुझे काफी भूख भी लग आई थी किन्तु समयभाव और दूसरा खाने का कुछ अच्छा ना दिखने के कारण मैं और रूपक जैन साब ने कुछ भी नहीं खाया। हम चंदेरी के संग्रहालय में पहुंचे, यहाँ कैमरे से फोटो लेना वर्जित था इसलिए मोबाइल के कैमरे का ही प्रयोग करना पड़ा। वैसे मैं जिस किसी यात्रा में जाता हूँ कैमरे और मोबाइल दोनों के ही कैमरे का भरपूर प्रयोग करता हूँ। इस संग्रहालय में अधिकांश ऐसी मूर्तियां थीं जो बूढ़ी चंदेरी से मिली थीं। महाभारतकालीन शासक शिशुपाल की राजधानी बूढी चंदेरी में ही थी जो यहाँ से 7 किमी दूर है और वहां अब केवल प्राचीन खंडहर और उनके प्राचीन अवशेष ही शेष हैं। चंदेरी का संग्रहालय बहुत ही साफ़ सुथरा और खूबसूरत बना हुआ है।
संग्रहालय देखने के बाद हम अब चंदेरी से कुछ दूर स्थित कौशक महल पहुंचे। यह चंदेरी से थोड़ी दूर अफ़ग़ान शैली में बनी ऐतिहासिक ईमारत है जिसका निर्माण मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी प्रथम ने करवाया था। यह करीब 4 मंजिल ऊँची ईमारत है जिसका निर्माण बहुत ही खूबसूरती के साथ हर तरफ से एक सा कराया गया है। कहते हैं सुल्तान इसे 7 मंजिल तक बनाना चाहता था किन्तु किसी कारण उसका यह ख़्वाब अधूरा ही रह गया। मेरे मित्र रूपक जैन जी को यह स्थान बहुत पसंद आया। अब शाम नजदीक थी और हमें सात बजे वाली आखिरी बस भी पकड़नी थी इसलिए अब लतीफ़ मामू बिना देर किये हमें चंदेरी की सबसे खूबसूरत और शानदार जगह ले चले।
यह स्थान चंदेरी के बाजार में स्थित बादल महल है जिसे देखने के लिए टिकट लेकर मैं और रूपक जैन जी अंदर गए। रूपक जैन जी व्यावहारिक इंसान हैं और वह अपनी बातों से अंजानो को भी अपना बना लेते हैं ऐसा ही कुछ मुझे यहाँ भी देखने को मिला। बादलमहल जालीदार मेहराबों से निर्मित खूबसूरत ईमारत है, इसका निर्माण किसने कराया इसका हमें पता नहीं चला। परन्तु हरे भरे शानदार दिखने वाले घास के मैदान और फूलों के पौधों से सुशोभित यह बहुत ही अच्छा स्थान है।
बादल महल देखने के बाद इसके ठीक सामने पुरानी जामा मस्जिद भी है, जिसे देखने के लिए लतीफ़ मामू ने हमसे से बार बार कहा किन्तु समय पर्याप्त ना होने के कारण हम इसके अंदर नहीं गए और बाहर से ही इसे देखकर हम आगे बढ़ गए। यहाँ चंदेरी के हस्तकरधा उद्योग से सम्बंधित कुछ जानकारी करने के लिए रूपक जैन जी यहाँ के व्यापारियों से भी मिले और इसके बाद हम चंदेरी के दिल्ली गेट पहुंचे। यह चंदेरी का प्राचीन दरवाजा है जो कुछ समय पहले स्त्री फिल्म में भी दिखाया गया था। यहाँ से हम बस स्टैंड पहुंचे, आखिरी बस साढ़े सात बजे चलेगी और अभी छः बजे थे इसलिए हमने किसी प्राइवेट वाहन से ललितपुर पहुंचना उचित समझा इसलिए हम चंदेरी से ललितपुर वाले मार्ग पर प्राइवेट वाहन का इंतज़ार करने लगे।
काफी समय तक इंतज़ार करने के बाद भी हमें कोई भी वाहन ललितपुर के लिए नहीं मिला, शाम ढल चुकी थी और चंदेरी का किला अब अँधेरे में डूब चूका था जो हमें दूर पहाड़ पर नजर आ रहा था। आख़िरकार वही साढ़े सात बजे वाली बस आई और उससे हम ललितपुर पहुंचे हुए वहां से एक ऑटो द्वारा रेलवे स्टेशन। रूपक जैन जी की ट्रेन अभी दो घंटे देरी से चल रही थी किन्तु मेरी ट्रेन के आने में अब ज्यादा समय नहीं बचा था। चंदेरी घूमने के बाद अब हमको थकान और भूख भी लग रही थी इसलिए मैं अपना बैग लेने स्टेशन चला गया और रूपक जैन जी भोजन की तलाश में।
उन्होंने एक शानदार होटल पर खाने का आर्डर दिया और दो से तीन तरह की डिश बनाकर मुझे पेट भरकर भोजन कराया और स्वयं भी किया। भोजन करने के बाद जैसे ही हम स्टेशन के नजदीक पहुंचे तो पता चला कि मेरी ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुँच चुकी थी यह बीफोर आ गई थी किन्तु चलेगी अपने टाइम से ही। बड़े भाई रूपक जैन साब से विदा लेकर मैं अपनी ट्रेन में पहुँच गया और मेरे जाने के 1 घंटे बाद रूपक जैन साब भी अपनी ट्रेन द्वारा अपने भोपाल को रवाना हो गए।
II यात्रा सम्पूर्ण II
कटी घाटी, चंदेरी |
हमारे आज के सारथी - लतीफ़ मियाँ |
कटी घाटी से चंदेरी दुर्ग का विहंगम दृश्य |
एक मक़बरा |
बस के इंतज़ार में रूपक जैन साब |
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सुंदर विवरण। मैंने भी चन्देरी की यात्रा की थी
ReplyDelete। मेरी पोस्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
https://www.parveendua.com/2018/10/chanderi-history.html
THANKS FOR YOUR VISIT SIR,
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