Saturday, February 6, 2021

Trip With Jain sab

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से हाथरस बाइक यात्रा 

रसखान जी की समाधी पर 

NOV 2020,

सहयात्री - रूपक जैन साब 

     आज नवम्बर के महीने की आखिरी तारीख थी मतलब 30 नवम्बर और कल के बाद इस साल का आखिरी माह और शेष रह जायेगा। आज की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी आज मेरे भोपाल वाले मित्र रूपक जैन अपनी आगरा की चम्बल सफारी की यात्रा पूरी कर मथुरा लौट रहे थे। एक लम्बे समय के बाद आज हमारी मुलाकात होनी थी बस सुबह से यही सोचकर कि जैन साब के साथ मुझे कहाँ कहाँ जाना है, अपने सारे काम समाप्त किये। ऑफिस से भी मैंने आज की छुट्टी ले ली थी क्योंकि आज का सारा दिन मुझे जैन साब के साथ घूमने में जो गुजारना था। आज हम कहाँ जाने वाले थे इसका कोई निश्चित नहीं था हालाँकि जैन साब ने मुझसे फोन पर हाथरस घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, मगर हाथरस में ऐसा क्या था जिसे देखने हम वहाँ जाएंगे। 

     अभी रूपक जैन जी आगरा में हैं कुमार के पास और उसके साथ वह मेहताब बाग़ देखने गए हैं जो ताजमहल के विपरीत दिशा में है। नदी के उसपार से ताजमहल को देखने के लिए अनेकों लोग मेहताब बाग़ जाते हैं, अनेकों फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रहती है। मैंने भी जैन साब को मथुरा में दिखाने के लिए गोकुल को चिन्हित किया जो ब्रज में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। गोकुल जाने के इरादे को दिल में लेकर मैं मथुरा के टाउनशिप चौराहे पर पहुँचा और अपने एक मित्र की दुकान पर बैठकर मैं जैन साब का आने का इंतज़ार करने लगा। जैनसाब अभी आगरा से चले नहीं थे, कुमार अपनी स्कूटी पर उन्हें ISBT तक लेकर आया और बस में बैठाकर उसने मुझे फोन कर दिया। इसके बाद मैंने अपनी लोकेशन जैन साब को भेज दी और उन्होंने अपनी लोकेशन मुझे भेज दी। इसप्रकार अब मुझे अपने मोबाइल में ही पता चल रहा था कि वह कहाँ तक पहुँच चुके हैं। 


मैं, रूपक जैन और गोकुल यात्रा 

     कुछ ही समय बाद आगरा फोर्ट डिपो ने उन्हें टाउनशिप, मतलब मेरे पास पहुँचा दिया। बस से उतरते ही जैन साब की नज़रें मुझे तलाश कर रही थी और मैं दुकान से उन्हें देख रहा था। काफी लम्बे समय बाद आज जैन साब को देखकर मैं भी ख़ुशी से भर गया और उनके नजदीक जाते ही उनके सीने से लग गया। जैन साब भी मुझसे मिलकर काफी भावुक हो गए और आज के दिन का लुफ्त उठाने लिए अब हम दोनों ही तैयार थे। जैन साब का बैग मैंने अपने दुकानदार मित्र की दुकान पर ही रखवा दिया और बाइक लेकर हम गोकुल की तरफ रवाना हो गए। 10 - 12 साल बाद आज जैनसाब गोकुल में पधारे थे, सबसे पहले हमने गोकुलनाथ जी के दर्शन किये और इसके बाद ब्रह्माण्ड घाट की तरफ रवाना हो गए। 

    यमुना नदी के किनारे गोकुल से लगभग 3 किमी दूर ब्रह्माण्ड घाट बहुत ही रमणीय स्थान है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में समस्त ब्रह्माण्ड के दर्शन कराये थे। ब्रज विकास फाउंडेशन ने इस घाट का जीर्णोद्धार करवाया है और यह स्थान अब पर्यटन दृष्टि के हिसाब से बहुत ही शानदार है। घाट के किनारे ही ब्रह्माण्ड बिहारी का मंदिर है और घाट के किनारे लगे कदम्ब के वृक्ष इसकी शोभा को और बढ़ा देते हैं। थोड़ी देर यहाँ रुकने के बाद हम यहाँ से रवाना हो गए। मैं जैन साब की हार्दिक इच्छा को समझ गया था इसलिए अब मैंने अपनी बाइक का रुख हाथरस की तरफ कर दिया। 

गोकुलनाथ जी के मंदिर में  



यमुना दर्शन 


ब्रह्माण्ड घाट पर 

ब्रह्माण्ड बिहारी जी का मंदिर 

कदम्ब वृक्ष के साथ 

ग्राम आयराखेड़ा और जैन साब 

      हाथरस जाने से पूर्व हम राया पहुंचे जो कि मेरा जन्म स्थान भी है, यहाँ से थोड़ी दूर मेरी ननिहाल है आयराखेड़ा, जिसके बारे में पहले भी कई पोस्ट लिख चुका हूँ। इसलिए सर्वप्रथम मैं और जैन साब आयराखेड़ा की तरफ रवाना हुए। यह मेरी माँ का गाँव है जहाँ अब मेरे मामा - मामी रहते हैं। आसपास के सभी ग्रामों के बीच आयराखेड़ा सबसे बड़ा ग्राम है। गाँव के बीचोंबीच एक ऊँचे टीले पर श्री खेरे बाबा का मंदिर स्थित है जो यहाँ के लोकदेवता हैं और आयराखेड़ा ही नहीं बल्कि इसके आसपास के समस्त गाँवों में बहुत ही पूजनीय हैं। श्री खेरे बाबा के मंदिर में प्राचीन काल की श्री बद्री विशाल जी की मूर्ति भी स्थापित है इसके अलावा अन्य देवी देवताओं के भी इस मंदिर परिसर में दर्शन होते हैं। इसीकारण यह ग्राम लोगों की श्रद्धा का केंद्र है और वह इस ग्राम की परिक्रमा भी करते हैं। 

    मेरे मामा और मामी जी जैन साब से मिलकर काफी प्रशन्न हुए और हों भी क्यों ना, भोपाल जैसे सुदूर शहर से कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति उनसे मिलने इनके गाँव जो आया है। मामी जी ने जैन साब को चाय बिस्किट के अलावा चूल्हे में भुजी हुई अपने ही खेत की शकरकंदी भी खिलवाई जो जैन साब को काफी पसंद आई। यहाँ थोड़ी देर समय गुजारने के बाद हम आगे रवाना हो गए जहाँ गाँव से निकलते ही बाइक की पेट्रोल समाप्त हो गई, आज इत्तेफ़ाक़ से मेरा मौसेरा भाई गोपाल भी हमें यहाँ मिल गया जिसने बाइक की पेट्रोल की व्यवस्था की और मैंने उसे भी जैन साब से मिलवाया और इसके अलावा मैंने अपने मामाजी के लड़के हरेंद्र को भी यहीं बुला लिया था। इन दोनों से मिलने के बाद हम हाथरस की तरफ रवाना  हो गए। 

हनुमान बगीची पर 

आयराखेड़ा में मामा जी के साथ 

किशोर मामा जी के साथ 

आयराखेड़ा से प्रस्थान और मामी जी से विदा लेते हुए 

दो बड़े घुमक्क्ड़ों की मुलाकात , जैनसाब के साथ गोपाल उर्फ़ गजेंद्र उपाध्याय 



 मैं, रूपक जैन और हाथरस शहर 

    हाथरस रोड पर पहुँचते ही गाडी में पेट्रोल डलवाया जिसका भुगतान मेरे लाख मना करने के बाबजूद भी जैन साब ने ही किया। यह स्थान सोनई था और इसके बाद जिला मथुरा की सीमा समाप्त हो गई और हम जिला हाथरस में प्रवेश कर गए। चूँकि पर्यटन की दृष्टि से हाथरस में कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु ब्रिटिशकाल के दौरान हाथरस के बाजार महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। यहाँ उस समय बड़ी बड़ी मिल हुआ करती थीं जिनमें दाल की मिलें मुख्य थीं। अंग्रेजों ने यहाँ से माल ढुलाई के लिए हाथरस किला के नाम से एक बड़ा टर्मिनल रेलवे स्टेशन भी बनवाया जो आज भी यहाँ स्थित है परन्तु मिलें समाप्त हो जाने की वजह से उसका महत्त्व भी समाप्त हो गया है। अब यहाँ केवल हाथरस के बाजार ही बचे हैं जिन्हें देखने ही जैन साब यहाँ आये हैं। 

    हाथरस की हींग बहुत ही प्रसिद्ध है जिसकी खुशबु दूर दूर के शहरों में भी अपनी महक देती है। जैनसाब बाइक से उतरकर पैदल ही हाथरस का बाजार घूमने निकल पड़े। हाथरस की चाट गली की चाट खाकर जैन साब का मन प्रशन्न हो गया और इसके बाद हम यहाँ की प्रसिद्ध रबड़ी की दुकान पर गए और यहाँ की रबड़ी भी खाई। काफी समय यहाँ गुजारने के बाद जब सूर्य देवता भी अस्त होने की कगार पर थे तो मैंने यहाँ से 10 किमी दूर अपने पैतृक गाँव धौरपुर जाने की इच्छा प्रकट की। जैन साब को तो केवल घूमना ही था इसलिए उन्होंने भी तुरंत हाँ कर दी और हम हाथरस से हाथरस जंक्शन की तरफ रवाना हो गए। 

हाथरस के छोले 

हाथरस में चाटगली की  चाट 


हाथरस में एक मार्ग 



हन्नो लाला की प्रसिद्ध रबड़ी 




  रूपक जैन और ग्राम धौरपुर 

     हाथरस शहर से पूर्व की ओर हाथरस जंक्शन नामक रेलवे स्टेशन है जो दिल्ली से हावड़ा मुख्य मार्ग पर अलीगढ के नजदीक पड़ता है। इसी स्टेशन के नाम पर कस्बे का नाम भी हाथरस जंक्शन है। यह अपने आप में एक ऐसा स्थान है जहाँ एक साथ दो अलग अलग नाम से अलग अलग रेलवे जोन के रेलवे स्टेशन हैं जिनमें आपस में कोई कनेक्टिविटी नहीं है। एक तो उत्तर मध्य रेलवे का हाथरस जंक्शन है ही इसके विपरीत पूर्व उत्तर रेलवे का हाथरस रोड के नाम से स्टेशन है जो इस रेलवे लाइन के ऊपर बना है। यह रेलवे लाइन मथुरा से कासगंज, बरेली, कानपुर के लिए जाती है। यहीं से थोड़ी दूर लगभग 1 किमी दूर मेरा गाँव धौरपुर स्थित है। 

     धौरपुर गाँव प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है। खेतों के किनारे से एक छोटी नहर गुजरती है जिसे बंबा कहते हैं। इसके किनारे दोनों तरफ लगे बड़े बड़े आम के पेड़ गाँव की शोभा को और बढ़ा देते हैं। आज जैन साब गाँव के खेतों के बीच बनी मेड़ों से होकर गुजरे। यहाँ एक तरफ दिल्ली से हावड़ा जाने वाली रेल लाइन भी है जिसपर थोड़ी थोड़ी देर बाद कोई ना कोई ट्रेन गुजरती रहती है। शाम का समय चुका है, दोनों वक़्त मिल चुके हैं, मेरी चाची, जैन साब के लिए चाय के साथ नमकीन बिस्किट और मिठाई लेकर आई परन्तु मैं तो जानता हूँ कि इस वक़्त जैन साब कुछ भी नहीं खाते, क्योंकि यह समय ईश्वर की आराधना का समय जो होता है। इसलिए जैन साब ने उनका सम्मान रखने के लिए केवल चाय पी। इसके बाद हमने चाचा - चाची जी विदा ली और हम मथुरा के लिए रवाना हो चले। 

धौरपुर ग्राम में बम्बा के किनारे 


अपने खेत की सैर 

धौरपुर में घर का आँगन 

चारा मशीन चलाते जैन साब 

 चाचा जी के साथ जैनसाब 

चाचा - चाची जी विदा और धौरपुर से प्रस्थान 

हाथरस जंक्शन स्टेशन को निहारते जैन साब 

देखा हम यहाँ भी पहुँच गए बिना ट्रेन के 

मैं, रूपक जैन और मुरसान में एक शाम 

    धौरपुर और हाथरस से निकलने के बाद हम हाथरस के मुरसान कस्बे में पहुँचे। दिन ढल चुका था और अब रास्ते पर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित था। अब हमें भूख भी लग रही थी और मथुरा अभी दूर था। आज मेरी बहिन  के देवर की शादी थी जिनकी बारात मुरसान आई थी, हम भी इसवक्त मुरसान में ही थे और मुझे बहनोई साब का निमंत्रण भी स्वीकारना था इसलिए मैं और जैन साब इस शादी समारोह में शामिल होने पहुँचे। बारात आ चुकी थी और लोग प्रतिभोज ग्रहण कर रहे थे।

     जैनसाब के लिए यह किस्मत की ही बात थी कि उन्हें उनके शहर उनके राज्य से इतनी दूर यात्रा के दौरान ब्रज भूमि की एक शादी समारोह में सम्मिलित होने का मौका मिला और उन्होंने यहाँ शामिल होकर इस विवाह की शोभा को और बढ़ाया। यहाँ जैनसाब को मैंने अपने तीसरे छोटे मौसेरे भाई दिलीप से मिलवाया इसके अलावा उनका परिचय अपने बहनोई साब केसी त्रिवेदी जी से भी करवाया और अपने दोनों छोटे छोटे भांजों यश और गौरव से भी। इसके बाद बहिन के ससुर जी से विदा लेकर हम रात्रि में ही मथुरा  के लिए रवाना हो गए।

मेरी छोटी बहिन के बच्चे वर्षा, यश और गौरव 

दिलीप उपाध्याय मेरा भाई 

मेरे बहनोई साब केसी त्रिवेदी और  जैनसाब 



मैरिज होम के बाहर 


मैं, रूपक जैन और मथुरा निवास 

    रात को जैन साब मथुरा में मेरे ही घर रुके और सुबह माँ से मिलकर मुझे ऑफिस छोड़ते हुए बाइक लेकर अपनी मथुरा वृन्दावन की यात्रा पर निकल गए। शाम को मैं उन्हें मथुरा स्टेशन लेकर गया और फिर से आने का वादा करके जैन साब अपने शहर भोपाल को रवाना  हो गए। न जाने क्यों उनसे  जुदा होने के बाद मेरी आँखें स्वतः  ही भर आती हैं, गैर होते हुए भी एक वर्ष की मुलाकात में उन्होंने मुझे इतना अपना बना लिया है जैसे लगता है कि इनके साथ मेरा कोई पूर्व जन्म का रिश्ता हो। वैसे मैं जैन साब को बड़े भाई कहकर सम्बोधित करता हूँ और वह भी मुझे छोटे भाई की तरह ही प्यार करते हैं। जैन साब से विदा लेकर और उनसे मिलने की पुनः उम्मीद लेकर मैं घर आ गया।     

 



घर और मेरी पत्नी कल्पना से विदा लेते हुए 

अपने घर की याद  मोबाइल में लेते हुए 

मुझसे विदा लेते हुए जैन साब और मथुरा स्टेशन  

• इति शुभम •


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