UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
खजुराहो के आसपास के दर्शनीय स्थल
विश्व धरोहर के रूप खजुराहो पूर्ण रूप से पर्यटन स्थल तो है ही, इसके आसपास के दर्शनीय स्थल भी पर्यटकों को खजुराहो में रुकने के लिए बाध्य करने में कम नहीं हैं। खजुराहो के निकट अनेकों ऐसे स्थल हैं जो यहाँ आने वाले सैलानियों को हर तरह के रोमांच से अवगत कराते हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है -
- रानेह जल प्रपात
- केन घड़ियाल अभ्यारण्य
- पांडव जलप्रपात
- पन्ना टाइगर रिज़र्व
- कूटनी बाँध
- छतरपुर के राजमहल
- मस्तानी का महल
खजुराहो के पूर्वी समूह के मंदिर देखने के बाद मैं और कुमार खजुराहो से लगभग 20 किमी दूर, रानेह जलप्रपात को देखने के लिए निकल पड़े। मुख्य रास्ते को छोड़कर आज हम इस किराये की प्लेज़र को लेकर बुंदेलखंड के दूरगामी ग्रामों में से होकर गुजर रहे थे। रास्ते के मनोहारी दृश्यों को देखने में एक अलग ही आनंद आ रहा था। कुछ समय बाद जब गाँव का संकीर्ण रास्ता समाप्त हो गया और रास्ते की जगह खेतों की ओर जाने वाली छोटी छोटी पगडंडियों ने ले ली तो कुमार के मन में शंका उत्पन्न होने लगी। उसने मुझसे कहा कि हम रास्ता भटक चुके हैं और मुझे नहीं लगता कि आगे कोई रास्ता रानेह जलप्रपात की ओर जायेगा, परन्तु मुझे अपने गूगल मैप पर पूरा भरोसा था जो अब भी हमें आगे बढ़ने का इशारा देते हुए रास्ता दिखाता चल रहा था।
काफी देर बाद जब हम एक गाँव को पार करके पगडंडियों को भी खो बैठे तो अब मेरे मन में भी शंका उत्पन्न होने लगी क्योंकि रास्ता और पगडंडियां लगभग समाप्त चुकी थीं और अब हमारी गाडी खेतों में होकर गुजर रही थी जो कि कई बार चलते चलते स्लिप होकर गिर भी जाती थी। रास्ता तो अब कहीं हमें दिखाई नहीं दे रहा था, रास्ता पूछने के लिए दूर दूर तक कोई मानव भी हमें दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु गूगल अब भी हमें रास्ता दिखाते हुए आगे बढ़ने पर विवश करने पर लगा हुआ था और गूगल की बात मानने के सिवा हमारे पास कोई रास्ता भी नहीं था। हम आगे बढ़ते रहे और आखिरकार हम खेतों में से होकर मुख्य रास्ते तक पहुँच ही गए।
अच्छी हालत में बना यह रास्ता खजुराहो से पन्ना की ओर जाने वाला मुख्य मार्ग था जिसपर केन घड़ियाल अभ्यारण्य और उससे आगे पन्ना टाइगर रिज़र्व की सीमा शुरू हो जाती है, हालांकि एक्का दुक्का वाहन हमें इस रोड पर आते जाते दिखाई दे रहे थे अन्यथा चहुंओर सिवाय जंगल के कुछ नहीं दीखता था। कुछ समय बाद हम रानेह जलप्रपात अथवा केन घड़ियाल अभ्यारण्य के मुख्य द्वार पर पहुंचे। यहाँ से आगे जाने के लिए प्रवेश शुल्क अदा करना पड़ता है। कुमार ने दो प्रवेश टिकट ले लीं और जंगल में घूमने के लिए एक गाइड भी बुक कर लिया जो अपनी बाइक पर हमसे आगे आगे चल रहा था।
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रास्ते में अद्भुत दृश्य |
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पगडंडियां |
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बुकिंग ऑफिस |
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अभ्यारण्य प्रवेश मार्ग और गेट |
केन घड़ियाल अभ्यारण्य
आज हम पन्ना टाइगर रिज़र्व के एक भाग केन घड़ियाल अभ्यारण्य में थे जहाँ चारों ओर जंगल ही जंगल था। केन नदी थोड़ी दूरी पर अत्यंत तेज आवाज करती हुई बड़ी ही गहराई के साथ बह रही थी जो अभी हमारी नज़रों से काफो दूर थी। जंगल के पॉइंटों से होते हुए गाइड हमें अंत में उस जगह ले गया जहाँ से केन नदी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। सचमुच हम शायद इस जगह को बिना गाइड के नहीं खोज पाते। यहाँ केन नदी काफी चौड़ाई में खुले क्षेत्रफल में बहती है जिसके बीच बीच में बनी हुई शिलाओँ पर घड़ियालों को आराम फरमाते और धुप सेंकते हुए देखा जा सकता है। हालांकि अभी सर्दियाँ पूर्ण रूप से शुरू नहीं हुईं थी इसलिए यहाँ हमें कोई घड़ियाल नजर नहीं आया।
हमारे गाइड ने काफी देर तक अपनी निकोन की दूरबीन से घड़ियालों को देखने की कोशिश की किन्तु इस मौसम में कोई भी घड़ियाल नदी से बाहर नहीं था। यहाँ थोड़ी दूरी पर एक वाच टावर भी बना हुआ था जिसपर चढ़कर मैंने केन नदी और आसपास के जंगल के विहंगम दृश्य को देखा। गाइड ने हमें बताया यह वाच टावर जंगल की आग को देखने के लिए बनाया गया है ताकि दूर से उठते हुए धुंएँ को देखकर वाच टावर पर चढ़कर यह पता लगाया जा सके कि आग कहाँ लगी हुई है।
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जंगल के अंदर एक और चेकपोस्ट |
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केन अभ्यारण्य का रास्ता |
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केन नदी का प्रथम दर्शन |
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वॉच टॉवर |
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केन नदी और नौका विहार की तरफ जाती हुई सीढ़ियां |
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गाइड |
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इन्हीं शिलाओं पर सर्दियों में घड़ियाल मिलते हैं |
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केन के उसपार |
500 साल पुरानी गोंडवाना की विशाल दीवार
घड़ियाल न दिखने की निराशा लेकर हम वहाँ ले वापस लौटे तो हमारे गाइड ने हमारे मन की मंशा को समझ लिया और उसने हमसे कहा कि क्या हुआ जो घड़ियाल नहीं देखे, आइये मैं आपको एक ऐतिहासिक जगह दिखाकर लाता हूँ जिसका शायद ही आपने नाम सुना हो और थोड़ी देर बाद वह हमें जंगल में बनी एक प्राचीन दीवार के पास लेकर आया जिसके पास एक बोर्ड पर लिखा था 500 साल पुरानी गोंडवाना की विशाल दीवार। यह प्राचीन दीवार जंगल और नदी के मध्य बनी हुई है। दीवार के एक तरफ अगर जंगल है तो दूसरी तरफ गहराई में बहती केन नदी। यह दीवार काफी बड़े और विशाल पत्थरों को यहाँ लाकर एक क्रम में बनाई गई है जिसकी चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि उस पर एक बस आराम से चल सकती है।
गाइड ने हमें बताया कि इस दीवार का निर्माण शिकार करने के उद्देश्य से गोंडवाना के किसी शासक ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। उस समय जब कोई भी जानवर नदी का पानी पीने उसके किनारे आता था तो दीवार के नजदीक घात लगाकर बैठे राजा और उसके सैनिक उसे मारकर दीवार के दूसरी तरफ ले आते थे जिससे दूसरे जानवरों के आक्रमण का खतरा नहीं रहता था क्योंकि इस ऊँची दीवार को पार करना सचमुच नामुनकिन था। हम दीवार से उतर कर नदी वाले हिस्से की तरफ भी गए जहाँ से जानवर का शिकार किया जाता था। यह जगह सचमुच बहुत ही खतरनाक और भयभीत कर देने वाली है।
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दीवार के नजदीक बैठा कुमार |
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गोंडवाना की प्राचीन दीवार |
रानेह जल प्रपात
गोंडवाना की दीवार को देखने के बाद हम रानेह जलप्रपात के पास पहुंचे। दोपहर का समय हो चला था और हमें भूख और प्यास भी लग रही थी। यहाँ बनी जंगल की कैंटीन से कुमार ने तीन स्प्राइट कोल्ड्रिंक ली जो मैंने, कुमार ने और गाइड पीकर अपना रुख जलप्रपात की ओर किया। हमने अब गाइड को यहीं रूकने को कहा और हम दोनों अकेले नदी की तरफ बढ़ चले। हालांकि जाते जाते गाइड ने हमें सावधान रहने को सचेत भी किया। हम जलप्रपात के व्युपोइन्ट पर पहुंचे और केन नदी की घाटियों और उसके ऊपर से नीचे गिरते हुए जल के वेग को देखा जो तेज आवाज के साथ एक प्रपात के रूप में दिखाई दे रहा था। नदी का पहाड़ से नीचे गहराई में गिरने वाला ये जल ही रानेह जलप्रपात कहलाता है। थोड़ी बहुत देर रुकने के बाद और गाइड को अकेला छोड़कर हम जंगल से बाहर आ गए।
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कैंटीन में पन्ना टाइगर रिज़र्व की हैट के साथ |
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सुसाइड पॉइंट पर कुमार |
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आप भी आइये। आपका स्वागत है। |
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केन नदी का दृश्य |
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वॉटरफॉल व्यू पॉइंट |
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केन नदी पहाड़ से गिरते हुए |
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रानेह वॉटर फॉल |
पांडव जलप्रपात की ओर अधूरा सफर
जंगल से बाहर निकल कर हम उसी प्रवेश द्वार पर आ गए जहाँ से टिकट लेकर हमने जंगल में प्रवेश किया था। यह एंट्री गेट खजुराहो - पन्ना मार्ग पर स्थित था अतः यहाँ से आगे रास्ता पन्ना की ओर जा रहा था और यहाँ लगे एक बोर्ड पर पांडव फॉल की दूरी 25 किमी भी दर्शा रहा था को कि एक मुख्य आकर्षण केंद्र था। हालांकि कुमार दूरी को देखकर जाने का इच्छुक नहीं था किन्तु मैं पांडवफॉल को भी अपनी लिस्ट से बाहर करना चाहता था एयर अब हम बढ़ चले पांडव फॉल की तरफ। मैं पांडव फॉल की तरफ बढ़ तो रहा था परन्तु न तो मेरा दोस्त दिल से इस सफर मेरे साथ था, ना रास्ता इस वक़्त अच्छा था और समय भी बड़ी तेजी से गुजरता ही जा रहा था। करीब 5 किमी आगे आने बाद मैंने अपना इरादा त्याग दिया।
पांडवफॉल अभी भी यहाँ से 20 किमी दूर था, दोपहर हो चुकी थी और अब सूरज धीरे धीरे पश्चिम दिशा में अपना डेरा जमा चुका था। पांडव फॉल का यह रास्ता भी कच्चा और गड्डे युक्त था और हमारे पास जो गाडी थी वह इस रास्ते पर चलने हेतु पर्याप्त नहीं थी। भूख और प्यास भी जोरों से लगी थी और दूर दूर तक कोई दुकान या ढाबा यहाँ नजर नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने वापस लौटना ही उचित समझा और 5 किमी दूर वहीँ प्रवेशद्वार के आकर हमने एक दुकान से पानी को बोतल खरीदी। आज दो अक्टूबर था यानी गांधी जयंती का दिन था। कुमार आगरा से ही जाम की बोतल लेकर चला था इसलिए खजुराहो लौटते समय हमने एक छोटी सी दुकान पर बैठकर भोजन का प्रबंध किया और जाम बनाकर आज के दिन का लुफ्त उठाया। यह पल हमारी इस यात्रा का ही नहीं बल्कि जिंदगी का यादगार पल बन गया।
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पन्ना रोड पर ललिता दिव्याश्रम |
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हमारा मुख्य पॉइंट |
कूटनी बाँध की तरफ
हम खजुराहो से राजनगर की तरफ कूटनी बाँध के लिए रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद हम एक विशाल जलाशय के किनारे थे जो देखने में किसी समुद्र के किनारे से कम नहीं लग रहा था। यह विशाल जलाशय कूटनी बाँध कहलाता है जो मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के भूभाग को सिंचाई और जलापूर्ति हेतु बनाया गया है। यह किस नदी के जल को रोककर बनाया गया है यह हमें नहीं पता था किन्तु इस विशाल जलाशय को देखकर हमारा मन बहुत प्रसन्न हो गया और हम कुछदेर यहाँ रुकने के बाद वापस खजुराहो की तरफ रवाना हो गए।
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कानपुर रोड |
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कूटनी बाँध |
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थका हुआ कुमार |
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तरोताज़ा सुधीर |
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कूटनी बाँध का दृश्य |
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समुद्र जैसा कुटनी बाँध |
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कूटनी बांध का एकमात्र रिसोर्ट |
खजुराहो से वापसी
अब सूरज धीरे धीरे ढलने लगा था और अभी हमने खजुराहो में केवल पूर्वी समूह के मंदिर ही देखे थे, बाकी खजुराहो की मुख्य जगहें तो देखना अभी बाकी थी। गाडी वाले बिलाल भाई फोन भी हमारे पास आ चुका था कि समय गुजरता ही जा रहा है जरा जल्दी आ जाओ वर्ना जिन्हें देखने यहाँ आये हो उन्हीं से वंचित रह जाओगे। उनका मतलब खजुराहो के पश्चिमी समूह के मंदिरों से था जो शाम को पांच बजे बंद हो जाते हैं और उसके बाद आज ही हमारा लौटने का रिजर्वेशन भी खजुराहो एक्सप्रेस में था जिससे हम सुबह यहाँ आये थे। इसलिए मैंने सबसे पहले जल्दी जल्दी में दक्षिणी समूह के मंदिरों को देखा जिसमें हम जैन मंदिरों की तरफ नहीं जा पाए।
दक्षिणी मंदिर देखने के बाद हम खजुराहो के चौसठ योगिनी मंदिर पहुंचे। यहाँ से कुमार अकेला ही बिलाल भाई की दुकान पर चला गया और मैं गाडी लेकर लालगुंवा के महादेव मंदिर की ओर जिसे मैं चाहकर भी नहीं ढूंढ पाया। बिलाल भाई की दुकान पर आकर हमने गाडी बिलाल भाई को जमा की और हम पश्चिमी समूह के मंदिर देखने चले गए जो बिलाल भाई की दुकान के नजदीक ही थे। मंदिर देखकर लौटे तो समय ज्यादा हो चुका था और रेलवे स्टेशन अभी यहाँ से 8 किमी दूर था। बिलाल भाई अपनी बाइक पर लेकर हमें स्टेशन छोड़ने आये ताकि हमारी ट्रेन ना निकल जाये। बिलाल भाई की ऐसी उदारता देखकर वह मेरे अच्छे इंसानों की लिस्ट में आ गए और फिर हमने उनके साथ सेल्फी ली।
स्टेशन के बाहर बने ढाबे से खाना खाकर मैं और कुमार ट्रेन में अपनी अपनी सीटों पर आ गए और ट्रेन हमें वापस लेकर फिर अपनी मंजिल की और रवाना हो चली।
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खजुराहो रेलवे स्टेशन |
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कुमार, बिलाल भाई और मैं |
इति शुभम
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