UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 3
मैंगलोर से तिरुवनंतपुरम - केरला रेल यात्रा
28 JUN 2023
केरल, भारत देश का एक छोटा और सुन्दर प्रदेश है। भारत के अन्य प्रांतों की अपेक्षा यहाँ के लोग अत्यंत बुद्धिमान, पढ़े लिखे और उद्यमी होते हैं। यहाँ की साक्षरता का स्तर हमेशा से ही उच्च रहा है। सम्पूर्ण केरल प्रदेश में नदियां, नारियल और खजूर के वृक्ष, इलायची एवं अन्य मसालों की खेती के साथ साथ पर्वतीय क्षेत्रों में चाय के बागान भी देखने को मिलते हैं। ओणम यहाँ का प्रमुख त्यौहार है एवं मलयालम यहाँ की प्रमुख भाषा है।
1 नवंबर 1956 को त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार के सम्पूर्ण भूभाग को मिलाकर केरल राज्य का गठन किया गया था। इससे पूर्व केरल राज्य में केवल त्रावणकोर और कोचीन के भूभाग को शामिल किया गया था, मालाबार के तटीय क्षेत्र को इसमें बाद में शामिल किया गया था क्योंकि मालाबार उस समय मद्रास प्रोविन्स का एक भाग था और 1956 में एक एक्ट के तहत यह केरला का एक भाग बन गया। प्राचीन समय में यहाँ चेरों का शासन था।
रात्रि में मंगलौर पहुँचने के बाद हमारी कोंकण की रेल यात्रा समाप्त हो गई। ट्रेन मध्य रात्रि के आसपास मंगलौर पहुंची थी और मंगलौर से चलकर, कर्नाटक की सीमा से निकलकर अब यह अपने अंतिम प्रदेश केरला में चल रही थी। चूँकि यह रात्रि का समय था इसलिए हमारी यह यात्रा नींद के समय पूरी हुई। अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा ट्रैन एर्नाकुलम से भी आगे आ चुकी है और जल्द ही यह केरला के कायकुलम रेलवे स्टेशन पहुंची।
नारियल के वृक्षों से आच्छादित इस प्रदेश को प्रकृति ने अपने अनुपम उपहारों से सुसज्जित किया है। केले और कटहल के वृक्ष भी यहाँ बहुतायत मात्रा में देखने को मिलते हैं। एक स्टेशन आया करूनागपल्ली।
ट्रेन अपने समय से काफी विलम्ब से चल रही थी इसलिए हमारी आज की तिरुवनंतपुरम घूमने की योजना विफल होती दिख रही थी। इसके अलावा हमें इस ट्रेन में बैठे बैठे 48 घंटे से ज्यादा का समय हो गया था और अब हम इस रेल यात्रा से ऊबने लगे थे किन्तु पहलीबार केरला देखने का उत्साह अभी भी बरक़रार था।
केरल को नदियों का देश कहा जाता है, यहाँ अनेकों नदियां हैं जिसमें सबसे मुख्य यहाँ की पेरियार नदी है जिसमें विश्व प्रसिद्ध सर्पाकार नौका दौड़ का कार्यक्रम भी आयोजित होता है। हमारी इस यात्रा में ट्रेन अनेकों नदियों के ऊपर से होकर गुजर रही थी इसलिए आज मैंने सचमुच देख लिया और मन लिया कि केरला को यूँ ही नदियों का देश नहीं कहा जाता।
अगला स्टेशन कोल्लम जंक्शन था, यहाँ से एक लाइन तेनकासी जंक्शन के लिए जाती है, और यह भी ऊँचे ऊँचे पर्वतों और जंगलों को पार करती हुई गुजरती है। इस रेल लाइन को भी मैंने अपनी यात्रा सूची में दर्ज कर लिया। कोल्लम जंक्शन पर ट्रैन लगभग खाली हो चुकी थी और दिन बढ़ता ही जा रहा था, तिरुवनंतपुरम अभी भी दूर था।
जल्द ही ट्रेन वर्कला शिवगिरि स्टेशन पर खड़ी हो गई, यहाँ मौसम बेहद शानदार था, धीमी धीमी बारिश हो रही थी। प्लेटफार्म भी काफी साफ़ सुथरा था, केरला ने सचमुच भारतीय स्वच्छता अभियान में अपना सम्पूर्ण योगदान दिया है। मुझे यह यहाँ स्पष्ट देखने को मिल रहा था, यहाँ सडकों के साथ साथ रेल पटरियों की सफाई पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
जल्द ही हम कोच्चुवेली स्टेशन पहुंचे। यह नाम बहुत जाना पहचाना लगता है क्योंकि इस स्टेशन से भी अधिकतर ट्रेनें उत्तर भारत आती हैं। मैंने मैप में इसकी लोकेशन देखी तो पता चला हम तिरुवनंतपुरम के नजदीक पहुँच चुके हैं, मन में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई।
लेकिन ये कुछ ही समय के लिए थी क्योंकि थोड़ी देर चलने के बाद यह फिर से आगे जाकर एक स्थान पर रुक गई और तकरीबन एक घंटे तक खड़ी रही। उसके पश्चात कहीं जाकर हम तिरुवनंतपुरम स्टेशन पहुंचे। यहाँ आकर हमारी मथुरा से तिरुवनंतपुरम की रेल यात्रा समाप्त हो गई।
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KAYANKULAM RAILWAY STATION |
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KALPANA UPADHYAY |
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VARKALA SHIVGIRI RAILWAY STATION |
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SUDHIR UPADHYAY AT VARKALA |
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KOCHUVELI RAILWAY STATION |
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सोहन भाई के साथ एक सेल्फी |
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सोहन भाई के फोन से |
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सोहन भाई की माँ और कल्पना |
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तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन |
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