UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
मथुरा जं. से पुणे जं. - गोवा एक्सप्रेस से एक सफर
अगस्त का महीना मेरे प्रिय महीनों में से एक है, इसलिए नहीं कि यह मेरा जन्मदिन का माह है बल्कि इसलिए कि यह एक मानसूनी महीना है, एक ख़ूबसूरती सी दिखाई देती है इस माह में। सूर्यदेव का लुकाछिपी का खेल और इंद्रधनुष के दर्शन, मन को काफी लुभाते हैं। इस मानसूनी महीने में यात्रा करने का एक अपना ही मज़ा है, कुछ दिन पहले मथुरा से नजदीक भरतपुर जिले की शानदार मानसूनी यात्रा मैंने अपनी एवेंजर बाइक से की थी पर यह एक छोटी सी यात्रा थी। मेरा मन इस माह में कहीं दूर जाना चाहता था पर कहाँ ये समझ नहीं आ रहा था।
परंतु मेरी माँ मेरी सारी परेशानियों का हल निकाल ही लेती हैं। माँ की बारह ज्योतिर्लिंग की यात्रा और मेरा मुम्बई देखने का सपना अब इस मानसूनी यात्रा में ही पूरा होना था। इसलिए यात्रा का प्रोग्राम बनकर तैयार हो गया, यात्रा का नाम था सह्याद्री की ओर। मतलब मथुरा से पुणे, पुणे से भीमाशंकर, भीमाशंकर से त्रयम्बकेश्वर नाशिक, नाशिक से घुश्मेश्वर, औरंगाबाद और फिर अंत में मुम्बई।
मैंने मथुरा से पुणे के लिए गोवा एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवाया और अपने जन्मदिन यानी 5 अगस्त को मैं और माँ सह्याद्रि की ओर निकल लिए। परंतु ये क्या स्टेशन पहुँच कर मुझे याद आया कि मेरा आधार कार्ड तो घर पर ही रह गया था। बिना किसी पहचान पत्र के हम बिना टिकट ही माने जायेंगे। मेरी बाइक स्टेशन के बाहर स्टैंड पर ही खड़ी थी, मैंने गोवा एक्सप्रेस का टाइम देखा तो निर्धारित समय से पंद्रह मिनट लेट चल रही थी, यानी मेरे पास आधार कार्ड लाने के लिए सिर्फ पंद्रह मिनट बचे थे।
मेरा घर स्टेशन से चार किमी दूर था यानि मुझे बाइक से पांच मिनट में घर पहुँचना था और पाँच मिनट में वापस भी आना था। मैंने ऐसा ही किया मैं घर गया आधार कार्ड लेकर वापस आया, जैसे ही मैं बाइक स्टैंड पर खड़ी कर रहा था गोवा एक्सप्रेस का आने का अनाउंसमेंट शुरू हो गया।
अब मथुरा जँ. के प्लेटफॉर्म न. 1 पर हम भी थे और गोवा एक्सप्रेस भी। मुझे समय से पहुँचते देखकर माँ की चिंता भी खत्म हो गई क्योंकि उन्हें गोवा तो दिखाई दे रही थी पर मैं नहीं। अपनी सीट पर पहुँच कर हमने देखा तो यहाँ पहले से ही कोई बैठा हुआ था, मुझे अपनी सीट से किसी को उठाना अच्छा नहीं लगता पर माँ को इसमें कोई संकोच नहीं होता अगर हमारी सीट रिज़र्व है तो माँ फ़ौरन ही सीट पर बैठी हुई सवारी को कहीं और बैठने का सुझाव दे देती हैं।
वो इसलिए क्योंकि जब माँ पिताजी के पास पर रेलवे यात्रा करती थी तो स्टाफ के नाते कहीं भी बैठ जाती थी और जिनकी वो सीट रिज़र्व होती थी वो फ़ौरन ही माँ को हटने के लिए मजबूर कर देते थे, अब रेलवे ने स्टाफ के लिए तो ट्रैन में कोई सीट अलग से नहीं बनाई होती, घंटे दो घंटे के सफर में भी लोग ऐसा रिएक्ट करते थे जैसे उन्होंने हमेशा के लिए वो सीट खरीद ली हो।अब गोवा एक्सप्रेस की सीट हमने भी खरीद ली थी फिर माँ क्यों किसी को अपनी सीट पर बर्दाश्त करें।
आगरा, ग्वालियर, झाँसी, भोपाल, खंडवा, इटारसी आदि स्टेशन से होकर अंत में ट्रेन मनमाड़ पहुंची। यहाँ से यह डीजल इंजन के साथ मुंबई वाली लाइन को छोड़कर पुणे वाली लाइन से होकर जाती है। इसी रुट पर अपने यहाँ से कर्नाटक और झेलम एक्सप्रेस भी गुजरती हैं। इसके अलावा मैसूर और कोल्हापुर वाली स्वर्णजयंती एक्सप्रेस भी। इस लाइन पर मैं पहले भी यात्रा कर चुका था जब हम लोग शिरडी घूमने आये थे। किन्तु तब केवल हम कोपरगाँव तक आये थे क्योंकि शिरडी का सबसे नजदीकी स्टेशन कोपरगाँव ही है। अब तो शिरडी तक भी रेलवे लाइन बिछने लगी है और शिरडी नाम से स्टेशन भी बन रहा है। कोपरगाँव के बाद बेलापुर, अहमदनगर होती हुई ट्रेन डोने जंक्शन पहुंची। यहाँ से पुणे के लिए लाइन अलग हो जाती है।
शाम तलक हम पुणे पहुँच गए थे। मानसून का महीना था इसलिए यहाँ भी हमारा स्वागत जोरदार बरसात ने किया।
इस यात्रा के अन्य भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक कीजिये 👇
- गोवा एक्सप्रेस से एक सफर - मथुरा से पुणे
- पुणे की एक शाम और शनिवार वाड़ा
- भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
- त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
- घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग और एलोरा की गुफाएं
- मैं, माँ और मुंबई की एक सैर
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