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घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
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त्रयंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के पश्चात् मैं, माँ को साथ नाशिक रोड स्टेशन आ गया । अब मेरा प्लान माँ को घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करवाना था। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले से 25 किमी दूर एलोरा गुफाओं के पास वेरुल में स्थित है। मैंने मोबाइल में औरंगाबाद जाने वाली ट्रेन देखी। आज मुम्बई से काजीपेट के लिए एक नई ट्रेन शुरू हुई थी, जिसका उद्घाटन मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्टेशन पर हुआ। जब यह ट्रेन स्टेशन पर आई तो यह पूरी तरह खाली और फूलमालाओं से सजी हुई थी। मैं और माँ इसी ट्रेन से औरंगाबाद की तरफ बढ़ चले। मनमाड के बाद से रेलवे का दक्षिण मध्य जोन शुरू हो जाता है, इस रेलवे लाइन पर यात्रा करने का यह मेरा पहला मौका था। रास्ते में एक स्टेशन और भी मिला दौलताबाद । यहीं से मुझे एक गोल पहाड़ सा नजर आ रहा था, पता नहीं क्या था ।
दौलताबाद से ठीक अगला स्टेशन औरंगाबाद है, यहाँ का बीवी का मकबरा काफी प्रसिद्ध है। पहले मैंने इसे देखने का विचार बनाया परन्तु मंदिर पहले जाना है यह सोचकर सोचा लौटकर देखूंगा। मैंने स्टेशन के बाहर से एक ऑटो हायर किया और घुश्मेश्वर जी की तरफ निकल ळीय़े। मुझे ट्रेन में से जो गोल पहाड़ सा नजर आ रहा था, मैं इस वक़्त उसी गोल पहाड़ के पास था। यह दौलताबाद का किला था जिसे देवगिरि फोर्ट भी कहते हैं। तेरहवीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानान्तरण की थी परंतु दिल्ली को जनता को यहाँ के वातावरण का विपरीत प्रभाव पड़ा और इस कारण सुल्तान का यह प्रयास असफल रहा और भारतीय इतिहास में उसे एक पागल सुल्तान रूप में जाना गया। मैंने ऑटो रुकवाकर कुछ देर यह किला देखा और उसके बाद हम घुश्मेश्वर पहुंचे ।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का अन्य ज्योतिर्लिंग के हिसाब से एक अलग नियम है। यहाँ पुरुष बिना शर्ट और बनियान के ही मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं पता नहीं यह रूल भगवान की मर्जी से हैं या कमेटी से। खैर मंदिर में दर्शन करने के बाद यहाँ पास में ही एलोरा की विश्व विख्यात गुफाएँ हैं । शाम हो चली थी पर फिर भी मैं दूर दूर की दो तीन गुफाएँ देख आया था, माँ बाहर ही ऑटो में बैठी थी, पहली बार इस यात्रा में मुझे अकेलेपन और सन्नाटे के कारण डर की अनुभूति हुई क्योंकि चारों तरफ घोर जंगल था और दूर दूर तक कोई इंसान नहीं था।आप दुनिया में कहीं भी घूमने जाइये पर जहाँ आपको दूर दूर तक किसी अपने जैसे इंसान न दिखाई दे तो डर लग्न लाजमी है। शाम हो चली थी अँधेरा होने में अब कुछ ही समय शेष था, एल्लोरा की गुफाओं का बंद होने का समय हो चला था इसलिए मैं दौड़कर बाहर आया और औरंगाबाद की तरफ निकल लिया।
MANMAD RAILWAY STATION |
MOM IN AURANGABAD RLY. STATION |
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