UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
मथुरा से नागपुर और नागभीड़ रेल यात्रा
आज मैं फिर से एक साल बाद अपनी दक्षिण यात्रा पर रवाना हुआ, इस बार मेरी यह यात्रा विदर्भ की ओर थी। महाराष्ट्र राज्य में नागपुर, चंद्रपुर, गोंदिया, अमरावती, यवतमाल और अकोला के आसपास का क्षेत्र भारत का विदर्भ प्रान्त कहलाता है और इसबार मेरी यात्रा लगभग इन्ही जिलों में पूरी होनी थी। इसबार मेरी यात्रा का उद्देश्य सिर्फ रेल यात्रा पर आधारित था, जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख में नैरो गेज रेलवे लाइन्स का वर्णन किया था जिनमे तीन नैरो गेज लाइन ऐसी थीं जो आज भी महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में पूर्ण रूप से सुचारु हैं। मुझे इन्ही तीनों रेलवे लाइन पर यात्रा करनी है और यही मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी है।
मेरा नागपुर तक के लिए रिजर्वेशन तेलंगाना एक्सप्रेस में कन्फर्म था, इसलिए मैं सही समय से ऑफिस से घर पहुँच गया और पदोष में रहने वाले पवन भाई मुझे मेरी बाइक से रेलवे स्टेशन तक छोड़ गए। कुछ ही देर में ट्रैन भी आ गई और मैं अपनी निर्धारित सीट पर पहुंचा। तेलंगाना एक्सप्रेस का नाम पहले आंध्र प्रदेश एक्स था। यह नई दिल्ली से हैदराबाद तक अपनी सेवा देती है और एक शानदार सुपरफास्ट ट्रेन है जो इटारसी नहीं रूकती है। जब आंध्र प्रदेश में से अलग होकर तेलंगाना नामक नया राज्य बना तो इसकी हैदराबाद इसकी प्रमुख और स्थाई राजधानी बना। अब जब हैदराबाद तेलंगाना में है तो इस ट्रैन से इसका पुराण नाम भी चीन लिया गया और इसे AP की जगह तेलंगाना कहा जाने लगा। परन्तु अधिकतर जगहों पर इसे आज भी AP ही कहा जाता है।
ट्रेन का नागपुर पहुँचने का समय सुबह 9 बजे के आसपास था और मुझे नागपुर से थोड़ी दूर स्थित इतवारी स्टेशन से अपनी नैरो गेज पैसेंजर यात्रा शुरू करनी थी जो इतवारी से नागभीड के लिए सुबह 10 :40 पर चल देती है। मुझे लगा था कि मैं बड़े आराम से इस ट्रैन को पकड़ लूंगा परन्तु मेरा यह ख्वाब तब टूट गया जब तेलंगाना एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से आधा घंटा देरी से नागपुर पहुँची। मैं शीघ्र ही स्टेशन से बाहर आया और करीब तीन ऑटो बदलकर इतवारी पहुँचा। छोटी नेरोगेज वाली ट्रैन मेरी आँखों के सामने ही छूट गई। मैं जब तक प्लेटफॉर्म पर पहुँचा तब तक इस ट्रेन का आखिरी कोच भी इतवारी का प्लेटफार्म छोड़ चूका था।
बिना देर किये मैं वापस बस स्टैंड पहुंचा और एक प्राइवेट बस में मैंने उमरेड़ की एक टिकट ली, मुझे लगा था की ट्रैन के उमरेड़ पहुँचने से पहले यह बस मुझे वहां पहुंचा देगी परन्तु जब मोबाइल में पता चला कि ट्रैन उमरेड से भी निकल चुकी है और बस अभी उमरेड पहुँचने वाली है तो मैं इस बस में से नहीं उतरा और आगे भिवापुर तक के लिए बैठा ही रहा। भिवापुर के रास्ते में मुझे ट्रेन बस के बराबर जाती हुई दिखाई दी और ट्रेन के पहुँचने से पहले ही मैं भिवापुर पहुँच गया। भिवापुर स्टेशन सड़क के नजदीक ही था। जब मैं यहाँ पहुँचा तो मुझे एक अलग ही ख़ुशी मिली कि आखिरकार जिस मंजिल के लिए चला था वहां के लिए पहुँच ही गया बेशक मुझे रास्ते बदलने पड़े।
भिवापुर एक छोटा स्टेशन है परन्तु इस रेल लाइन का बड़ा स्टेशन है। स्टेशन पर गर्मागरम समोसे बिक रहे थे, सबसे पहले नल से हाथ मुँह धोकर मैंने एक चाय और समोसे लिए, यह मेरा आजका पहला सुबह का नाश्ता था। अभी ट्रैन स्टेशन पर नहीं आई थी परन्तु घर से मेरी माँ का फोन अवश्य आ गया। माँ को मैंने बताया कि मैं नागपुर से आगे आ गया हूँ तो उन्हें मेरी लगी चिंता भी समाप्त हो गई। कुछ ही समय में जोरदार सीटी देती हुई ट्रेन भी स्टेशन पहुँच गई। ये वही ट्रेन थी जो इतवारी स्टेशन पर मुझसे छूट गई थी जिसे मैंने यहाँ आकर आखिर पकड़ ही लिया। तभी दूसरी तरफ यानी नागभीड़ की तरफ से भी एक और ट्रैन आ गई दोनों में आपस में भिवापुर पर क्रॉस हुआ और दोनों ट्रेनें अपने अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गई।
मथुरा को आंखों से दूर जाते दुख क्यो हो रहा था वापस भी तो यही आना था ना...ग़ज़ब का जुनून और एडवेंचर ट्रैन छूट गयी फिर छूट गयी लेकिन पकड़ ली और घूम भी लिए...जुनून के बिना घुमक़्क़डी में मजा नही आता...आपका जिनूं देखकर बहुत अच्छा लगा बढ़िया पोस्ट बढ़िया शुरुआत और आगे की यात्रा का अब wait रहेगा...
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