पर्वतराज हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों पर साक्षात् ईश्वर का वास माना जाता रहा है, इसलिए हिमालय देवभूमि कहलाता है। हिमालय के उत्तराखंड राज्य में हिन्दुओं के मुख्य तीर्थ स्थल चार धाम स्थित हैं जिनमें श्री बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी, गंगोत्री और यमुनोत्री हैं। इनके अलावा यहाँ हर कोस पर किसी न किसी देवता का मंदिर भी स्थित है। श्री केदारनाथ जी भारतवर्ष के मुख्य बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं जिनका दिव्य मंदिर हिमालय की केदार नामक ऊँची चोटी पर स्थित है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के मंदिर के बारे में विख्यात है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था जो पर्वत की 11750 फुट की ऊँचाई पर स्थित है।
पुराणों के अनुसार केदार मतलब महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग जिसके बारे में प्रचलित है कि पांडव जब भगवान शिव को खोजते हुए केदारघाटी में पहुंचे तब भगवान शिव उन्हें केदारखंड में आते देख गुप्तकाशी में जाकर अंतर्ध्यान हो गए और कुछ दूर जाकर भैंसे का रूप धारणकर विचरण करने लगे, क्योंकि भगवान शिव अपने कुल का सर्वनाश करने वाले पांडवों को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों को जब आकाशवाणी द्वारा इस प्रकरण का ज्ञान हुआ और उन्होंने भगवान शिव को महिष के रूप में पहचान लिया और उनके पीछे पीछे आने लगे तब भैंसारूप धारी भगवान शिव भूमिगत होने के लिए एक दलदली धरती में धँसने लगे परन्तु महान बलशाली भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली, अब भगवान तो धरती में समाहित हो ही चुके थे, धरती के ऊपर तो भगवान का शेष धड़ ही रह गया जो बाद में शिला बनकर ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा। कहते हैं भगवान् शिव का धरती में समाहित सिर केदारघाटी से कोसों मील दूर पूर्व दिशा में हिमालय के घाटियों में ही प्रकट हुआ जिसे आज नेपाल की राजधानी काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ के रूप में पूजा जाता है।
श्री केदारनाथ मंदिर की ऊँचाई 80 फुट है जो एक बड़े चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है, मंदिर को देखकर अनायास ही आश्चर्य होता है कि प्राचीनकाल में जब यांत्रिक वस्तुओं का अभाव था, तब इतने बड़े और मजबूत जोड़ वाले शिलाखंडों से कैसे इस मंदिर का निर्माण किया गया होगा ? आधुनिक मंदिर का निर्माण जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने यहाँ कराया था जो आज भी बेजोड़ स्थापित खड़ा है। कहते हैं केदारनाथ का मंदिर छः महीने केदारघाटी में बर्फ से दबा रहता है। शून्य से भी नीचे तापमान होने पर भी इस मंदिर की दीवारों पर कोई फर्क देखने को नहीं मिलता और सबसे बड़ा उदाहरण सन 2013 में आई भीषण त्रासदी में जब केदारघाटी में सबकुछ तहस नहस हो गया तब भी भगवान केदार का यह मंदिर सुरक्षित रहा। चमत्कारिक रूप से मन्दाकिनी की बाढ़ में बहकर एक बड़ी शिला मंदिर के पीछे आकर रूक गई जिसे आज भीमशिला कहा जाता है और जिसे आपदा के समय केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा का कारण माना जाने लगा और इसी वजह से केदारनाथ मंदिर पर दर्शन के आये हुए भक्तगण इस शिला को भी पूरी आस्था और विश्वास के साथ पूजते हैं।
केदारनाथ मंदिर के अंदर चारों ओर दीवारों पर द्रोपदी सहित पांचों पांडवों की मूर्तियां बनी हुई हैं। बीच में भगवान केदार का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग अनगढ़ रूप में विध्यमान है जिसपर भक्तगण घी का लेप लगाते हैं और जल, पुष्प और बिल्बपत्र अर्पित करते हैं। मंदिर के बाहर ही नंदी की विशाल मूर्ति बनी हुई है जो भगवान शिव की सवारी के रूप में जगतविख्यात हैं। केदारनाथ मंदिर से थोड़ी ऊपर पहाड़ी पर एक मंदिर दिखाई देता है जो भैरव नाथ जी का मंदिर कहलाता है। दीपावली के बाद केदारनाथ जी के कपाट अगले छः माह के लिए बंद हो जाते हैं और उसके कुछ समय पश्चात ही भैरवनाथ जी के भी। सर्दियों के दिनों में जब यहाँ बर्फ पड़ने लगती है तब केदारनाथ जी की डोली सोनप्रयाग से आगे गुप्तकाशी के नजदीक उखीमठ में ले जाई जाती है और सर्दिओं में भगवान् उखीमठ में ही अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
मैं सुबह ही लिंचोली से केदारनाथ जी के लिए प्रस्थान कर चुका था, यह अंतिम और कठिन चढ़ाई भरा पड़ाव है जिसके बाद हम साक्षात अपने प्रभु के दरबार में पहुँच जाते हैं। रास्ते में फिर से मुझे बड़ी बड़ी दो - तीन हिमनदियों को पार करना पड़ा। कुछ ही देर में मैं बेस कैंप तक पहुँच गया। अब प्रकृति का शानदार रूप मेरे सामने था, जैसे जैसे आज सूर्यदेव उदित हो रहे थे उनकी किरणें बर्फीले पहाड़ों की छोटी पर चमकने लगी थीं, केदारघाटी में अँधेरा धीरे धीरे छंट रहा था और सूर्यदेव का प्रकाश एक नई सुबह की ताजगी लेकर प्रकट हो रहा था, अब सर्दी में भी थोड़ी थोड़ी राहत सी आने लगी थी। आधी रात को आराम करने के कारण अब मेरे कदम फिर से आगे बढ़ने को बिलकुल भी तैयार नहीं थे परन्तु अपने भगवान से मिलने की लालसा क़दमों को उनकी मनमानी करने से रोक रही थी और हिम्मत मेरा थककर भी साथ दे रही थी।
धरती से बादलों तक सैर करके आने के बाद प्रकृति का जो शानदार नजारा मैं इस वक़्त देख रहा था उसका वर्णन शब्दों में करना मुश्किल है। कल कल करती हुई बहती मन्दाकिनी नदी और चारों तरफ खड़े ये ऊँचे ऊँचे पहाड़ मन को मोह लेते हैं और जैसे जैसे सूर्य का प्रकाश केदारघाटी में प्रवेश कर रहा था वो तो सचमुच ऐसा लग रहा था जैसे अँधेरा प्रकाश से डरकर भाग रह हो सफ़ेद बर्फ से जमे हुए ये पहाड़ चाँदी की तरह चमकने लगे थे।वस्तुतः बाबा केदारनाथ के धाम में आकर मन को साक्षात् स्वर्ग जैसी अनुभूति प्राप्त होती है। जैसे जैसे दिन निकलता जाता है और मौसम साफ़ होता है तो हेलीकॉप्टर की सेवा भी शुरू हो जाती है इन हैलीकॉप्टर को देखकर मेरे मन एक विचार आया कि भला ये हैलीकॉप्टर वाले क्या जाने कि क्या है केदारनाथ। बस अपनी गाडी से उतरे और हैलीकॉप्टर में बैठकर 10 मिनट में केदारबाबा के मंदिर पहुँच गए, और फिर वापस दर्शन करके अपनी गाडी तक पहुँच गए।
इस बीच इन इन्हें गौरीकुंड के दर्शन हुए, ना इन्होने बाबा तक पहुँचाने वाली कठिन चढ़ाई का अनुभव किया।और नहीं चढ़ाई के दौरान एक भी बार बाबा का नाम लिया। बाबा का नाम लेकर मिलने वाली एक अजीब सी शक्ति और स्फूर्ति से भी ये वंचित रह जाते हैं। ना इन्हें पैदल मार्ग में दिखने वाले शानदार ऊँचे ऊँचे झरने दिखाई देते हैं और ना ही ये हिमनदियों को पार करने का लुफ्त उठा पाते हैं। रास्ते में आई दुकानों पर ऊंचाई के साथ साथ बढ़ने वाले मूल्यों का भी इन्हें आभास नहीं होता। मन्दाकिनी के बहने की वो जोरदार आवाज इनके हैलीकॉप्टर की आवाज के बीच सुनाई नहीं दे पाती है। दूर दुनिया और भारतवर्ष के अलग अलग स्थानों से आने वाले लोगों से मिलना और उन्हें देखना केवल पैदल वालों के लिए ही संभव होता है हैलीकॉप्टर वालों के लिए नहीं। जब इंसान पैदल चढ़ाई शुरू करता है तो जो जोश और बाबा के मंदिर तक पहुँचाने का जो जूनून उसके अंदर होता है वो हैलीकॉप्टर वाले के अंदर नहीं होता।
पहाड़ के किनारे किनारे और सुरम्य प्राकृतिक वातावरण के बीच केदारनाथ की यात्रा का जो आनंद पैदल करने में आता है वो हैलीकॉप्टर में कदापि नहीं आ सकता। फिर ना जाने क्यों लोग हेलीकॉप्टर की बुकिंग के लिए सिस्टम पर नजरें टिकाये बैठे रहते हैं और अपनी बैंक में पड़े रुपयों से दुश्मनी कर बैठते हैं। ना जाने क्यों...
मैं बस कुछ ही आगे बढ़ा था तो मेरे सामने स्वागत करता हुआ बाबा केदारनाथ धाम का बोर्ड दिखाई दिया जिसे देखकर मन को बहुत ख़ुशी हुई कि आखिर मैंने अपनी मंजिल का सफर पूरा किया। यहाँ मैंने देखा कि बाबा के मंदिर तक दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की लम्बी कतार लगी हुई थी। मैं भी कतार में लग गया था काफी देर लगे रहने के बाद जब मैं कुछ आगे बढ़ा तो मुझे एक नदी मन्दाकिनी में मिलती हुई दिखाई दी मतलब ये संगम स्थान था जहाँ कुछ श्रद्धालु स्नान कर रहे थे। मैं कल भी नहीं नहाया था, और बहती हुई नदी को देखकर मेरा मन नहाने को व्याकुल हो उठा। साफी मेरे पास डंडे दे बंधी थी ही। अपने सामने वाले लाइन में लगे भाई को बोलकर मैं नहाने चला गया।
नदी के पानी वेग काफी अत्यधिक था और अत्यंत ठंडा भी था। नदी किनारे पक्के घाट बने हुए हैं जिनपर बैठकर में इस बर्फीले पानी में नहाने लगा। नहाने से पहले मुझे इस बर्फीले पानी में नहाने हिम्मत नहीं हो रही थी परन्तु जब बाबा का नाम लेकर जब में नहाने लगा तो मैं नहाता ही रहा। सर्दी और ठंडा पानी कहाँ थे मुझे पता ही नहीं था। केदारघाटी में स्नान करने के पश्चात सूर्य को जल अर्पण करके मैं फॉर लाइन में आ लगा। नहाने के बाद थकान बहुत काम हो गई थी और एक नई स्फूर्ति और ताजगी सी शरीर में महसूस होने लगी थी।
सुबह से शाम तक लाइन में लगे रहने के बाद आख़िरकार मुझे भी बाबा के मंदिर में प्रवेश करने सौभाग्य प्राप्त हुआ और मैंने जी भरकर बाबा के मंदिर के दर्शन किये और साक्षात् केदारनाथ बाबा के दर्शन किये थे। बाबा के दर्शन करने के पश्चात मन अत्यंत ही शांत हो गया, अब चित्त में एक अजीब से स्फूर्ति जागृत सी होने लगी थी।दर्शन करने के पश्चात मैंने बाहर विराजमान नंदी जी महाराज के दर्शन किये और मंदिर के पीछे जाकर भीमशिला को भी प्रणाम किया। भैरवनाथ बाबा के दर्शन मैंने दूर से ही हथजोड़कर कर लिए थे क्योंकि शरीर में अब उनतक पहुँचने की हिम्मत नहीं थी और मुझे शीघ्र से शीघ्र माँ के पास भी पहुंचना था। हालांकि मुझे भूख अवश्य लगी थी। एक भंडारे में जाकर मैंने भोजन ग्रहण किया और भीमबली की और प्रस्थान किया। रात दस बजे तक मैं माँ के पास भीमबली में था जहाँ मेरे अन्य सहयात्री भी मुझे मिल गए मतलब विष्णु भाई, त्रिपाठी जी और अंकित जो आज सुबह दस बजे ही माँ के पास आ गए थे और आराम भी कर चुके थे।
अदभुत आनंद का अहसास हुआ|
ReplyDeleteभैया बड़े कष्ट उठाये यात्रा मैं पर भोलेनाथ ने पूरी करवा ही दी जय भोलेनाथ
ReplyDeleteजय श्री केदारनाथ महादेव प्रभु आपकी सदा ही जय हो जय हो जय हो।
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