केदारनाथ यात्रा 2019 - मथुरा से हरिद्वार रेल यात्रा
वक़्त बस गुजरता ही जा रहा था और मैं अभी भी हरिद्वार से ऊपर पहाड़ों में अपने आराध्यों के दर्शन करने नहीं जा पाया था। मेरे अन्य घुमक्क्ड़ साथियों ने उत्तराखंड का चप्पा चप्पा छान रखा था और मैं अभी सिर्फ हरिद्वार और ऋषिकेश तक ही सीमित था, कारण था कि मैं पहली बार वहां अकेला नहीं जा सकता था, मेरे साथ मेरी माँ अधिकांशतः मेरी सहयात्री रही हैं और उनके साथ मैंने 12 ज्योतिर्लिंग पूरे करने का प्रण लिया है जिसमे से दस ज्योतिर्लिंग हम कर चुके हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल और कठिन यात्रा जिस ज्योतिर्लिंग की मुझे लगती थी वो श्री बाबा केदारनाथ जी थे क्योंकि यहाँ अधिकतर पैदल और ऊँचाई सहित ट्रैकिंग है, जो मुझे माँ के लिए पर्याप्त नहीं लग रही थी किन्तु जब प्रण लिया है तो जाना तो पड़ेगा ही अगर बाबा नहीं भी बुलाएँगे तो भी हम जायेंगे। बस ऐसा ही सोचकर मैंने एक गलत महीना यात्रा के लिए निश्चित किया और ये महीना जून था।
श्री केदारनाथ जी की यात्रा की सुनकर मेरे साथ मेरे कुछ साथी भी मेरे सहयात्री के रूप में मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो गए जिनमे एक
गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी हैं जिनके साथ मैं पिछली बार कालिंजर किला गया था और दुसरे भाई आचार्य
श्री विष्णु शरण भारद्वाज जी हैं जो मेरी माँ के गाँव आयराखेड़ा के रहने वाले हैं और एक पूज्य भागवताचार्य हैं। विष्णु भैया के साथ उनके एक मित्र और भी हैं जिनका नाम अंकित है वो भी इसी गॉँव के रहने वाले हैं। 31 मई 2019 को मैं माँ को लेकर मथुरा जंक्शन पहुँचा। त्रिपाठी जी यहाँ सुबह ही बाँदा से सम्पर्क क्रांति से आ चुके थे और वेटिंग रूम में नहा धोकर तैयार थे। विष्णु भाई अपने सहयात्री अंकित जी के साथ ट्रेन के आने से पूर्व ही गाँव से मथुरा स्टेशन पहुँच गए और अब कुल मिलकर हम पाँच लोग बाबा श्री केदारनाथ की यात्रा के लिए मथुरा जंक्शन पर हरिद्वार जाने वाली ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे।
कुछ ही समय में अपने निर्धारित समय पर हरिद्वार जाने वाली उज्जैनी एक्सप्रेस भी आ गई, हमारी अधिकांशतः सीटें वेटिंग में थीं जो अब कन्फर्म हो चुकी थीं और अलग अलग कोचों में हमने अपनी अपनी सीट अधिग्रहित की। त्रिपाठी जी रात का सफर तय करके आये थे इसलिए उन्हें ऊपर वाली सीट अपने लिए पर्याप्त लगी और वो उस पर जाकर सो गए। मथुरा से चलकर कुछ समय बाद ट्रैन फरीदाबाद पहुंची और उसके बाद निजामुद्दीन।
आज मेरठ और सहारनपुर में किसी नौकरी के लिए परीक्षाएँ आयोजित की गईं थीं इसलिए दिल्ली से इस ट्रैन में अधिकतर लड़के सवार हो गए थे और ट्रैन देखने में ओवरलोड लग रही थी परन्तु ट्रैन तो ट्रैन है कितने भी भर जाओ उसके लोड पर कोई फर्क नहीं पड़ता। दिल्ली के बाद भीड़ की रही कसी कसर गाजियाबाद ने पूरी कर दी। अब तो ट्रैन के रिजर्वेशन कोच में सीट से बाथरूम तक जाने की जगह नहीं बची थी।
गाजियाबाद निकलने के बाद ट्रेन मेरठ आकर रुकी। गर्मियों के दिन थे, ट्रेन में भीड़ भी बेशुमार थी और हवा का नामोनिशान नहीं था। ट्रेन के पँखे फिरकनी की तरह घूमते हुए नजर तो आ रहे थे किन्तु उनमें से हवा भी आती है इसका आभास तक नहीं हो रहा था। पानी की किल्लत पूरी ट्रेन में सुनाई पड़ रही थी जैसे ही ट्रेन किसी स्टेशन पर आकर रूकती थी ट्रेन की खिड़कियों में से पानी की खाली बोतलें दिखाई देने लगती थीं, और बस एक नजर किसी भी खिड़की की तरफ जाती थी तो उस खिड़की में पानी की खाली बोतल लिए बैठी सवारियां की आँखों में दो घूँट पानी मिल जाने की आस साफ़ साफ़ नजर आती थी।
इसलिए मैं ट्रैन के पायदान पर यात्रा करता और जैसे ही ट्रेन किसी स्टेशन पर आकर रूकती मैं फट से बोतलें इकट्ठी करके पानी के नल पर जाकर भरने लग जाता। अभी दो ही बोतल भर पाती थीं कि ट्रैन में लगे इंजन की आवाज शुरू हो जाती थी और हम फिर पानी को छोड़कर ट्रेन के पायदान पर आकर खड़े हो जाते थे। मेरठ के बाद मुजफ्फरनगर में अवश्य पानी देने वालों का सेवादल दिखाई दिया जो ट्रैन की खिड़की पर जा जा कर लोगों की बोतलें भरते और उन्हें पानी की किल्लत से छुटकारा देते। हरिद्वार तक यही क्रम जारी भी रहा।
आखिरकार शाम को हम अपनी प्रथम मंजिल हरिद्वार पहुँचे। ट्रेन से उतरते ही सभी ने राहत की साँस ली, क्योंकि ट्रेन से उतरते ही एक पल को ऐसा लगा कि जैसे किसी बंदीगृह से आजाद हुए हों। हरिद्वार के रेलवे स्टेशन पर नलों से आने वाला पानी अत्यंत ही मीठा और ठंडा होता है, पीने के बाद जन्मों जन्मों की प्यास बुझ गई। हरिद्वार का अर्थ ही है ईश्वर का द्वार। यानि कि गर ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो हरिद्वार आना पड़ेगा और फिर यहाँ से ऊपर ऊँचे ऊँचे पहाड़ों में साक्षात् ईश्वर ही विराजमान हैं।
केदारनाथ जी में भगवान शिव का वास है इसलिए शिव के भक्त इसे हरद्वार भी कहते हैं और श्री बद्रीनाथ में साक्षात् भगवान श्री हरि ( विष्णु ) का वास है इसलिये ये हरिद्वार कहलाता है। माँ गंगा यहाँ पहाड़ों से निकलकर धरती (मैदान) में आती है और भगवान् के धाम को जाने वाले लोग गंगा में स्नान कर अपनी आगे की यात्रा पूरी करते हैं।
स्टेशन से निकलने के बाद हमने रात में ठहरने हेतु एक धर्मशाला तलाश की और आखिरकार दूसरी मंजिल पर ही सही हमें ठहरने के लिए एक धर्मशाला में कमरा मिल गया। अपना सामान यहाँ रखकर और आवश्यक सामान लेकर हम सब शाम को गंगा जी के घाट पर पहुंचे। विलम्ब हो जाने की वजह से हम गंगा आरती नहीं देख पाए किन्तु शाम के समय हरि की पैड़ी का वो अद्भुत दृश्य जिसका विवरण शब्दों में कर पाना मुश्किल होता है। इसका साक्षात् आभास तो उसे ही हो सकता है जो यहाँ एक बार होकर आया हो।
इंसान को जीवन में बार बार नहीं तो कम से कम एक बार तो अवश्य आना चाहिए और महसूस करना चाहिए अपनी संस्कृति और अपनी आस्था को। गंगा एक मात्र नदी नहीं है, यह हमारी आस्था है। गंगा के किनारे आकर स्वतः ही हमें हमारे पूर्वजों का आभास होने लगता है हमें एहसास होता है कि हम हिन्दू हैं और हमें गर्व होता है कि हम भारत के लोग हैं जिसने हमें गंगा जैसी नदी और हरिद्वार जैसा शहर दिया है।
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मथुरा स्टेशन पर में सहयात्री मेरी माँ, बीच में विष्णु भैया और त्रिपाठी जी |
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इस तस्वीर में मैं और अंकित भी दिखाई दे रहे हैं। |
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फरीदाबाद पर |
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हजरत निजामुद्दीन |
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सहारनपुर रेलवे स्टेशन |
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लक्सर केबिन, हरिद्वार की तरफ |
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पथरी रेलवे स्टेशन |
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उज्जैनी एक्सप्रेस पथरी स्टेशन पर |
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एक गाँव स्वागत करता हुआ |
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हरिद्वार और सहयात्री |
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हरिद्वार रेलवे स्टेशन |
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माँ और हरिद्वार |
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विष्णु भाई और अंकित गंगा स्नान करते हुए |
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जय माँ गंगा |
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मनसा देवी की एक झलक |
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हर हर गंगे, जय माँ गंगे |
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मैं और विष्णु भाई |
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सभी सहयात्री और ध्यान करती हुई माँ |
केदारनाथ जी अभी दूर हैं इसलिए यात्रा जारी रहेगी
अगले भाग में .....
धन्यवाद
श्री केदारनाथ यात्रा के अन्य भाग
Bahut sunder
ReplyDeleteजी धन्यवाद
DeleteJab Bhi Main aapki Man Ko dekhta hun unke Darshan ki Abhilasha Ho Jaati Hai
ReplyDeleteगर ऐसा है तो आप मथुरा आ जाइये, ब्रज घूमिये और माँ के दर्शन भी कर लीजिए। आपसे मिलकर माँ को भी बहुत ख़ुशी होगी।
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