विष्णु वराह मंदिर और कच्छ - मच्छ की प्रतिमा - कारीतलाई
यात्रा दिनांक - 12 जुलाई 2021
सतयुग में जब हिरण्याक्ष नामक एक दैत्य पृथ्वी को पाताललोक के रसातल में ले गया तो भगवान विष्णु को वराह रूपी अवतार धारण करना पड़ा और हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को रसातल से बाहर लेकर आये। उनका यह अवतार वराह भगवान के रूप में पृथ्वी पर पूजा जाने लगा जो कालांतर में भी पूजनीय है। किन्तु पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य, भारतवर्ष में भगवान विष्णु का यह अवतार सबसे मुख्य और सबसे अधिक पूजनीय रहा।
अनेकों हिन्दू शासकों ने वराह भगवान को अपना ईष्ट देव चुना और वराहरूपी प्रतिमा को अपना राजचिन्ह। इसी समय में मध्य भारत में भगवान वराह की अनेक प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण भी कराया गया। इन्ही में से एक मंदिर मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड प्रान्त के छोटे से गाँव कारीतलाई में भी स्थित था जिसके अवशेष आज भी यहाँ देखने को मिलते हैं।
कारीतलाई, कटनी जिले में विजयराघवगढ़ से कुछ मील दूर स्थित है। कारीतलाई नामक गाँव से थोड़ा सा आगे वराह विष्णु की प्रतिमा खंडित मंदिर के अवशेषों पर आज भी अपनी अच्छी स्थिति में देखने को मिलती है। यह भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहाँ के खंडित अवशेषों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में कितना भव्य रहा होगा।
भगवान वराह की इस प्रतिमा के बारे में एक लोक किंवदंती प्रचलित है कि जब यहाँ के राजा ने इस वराह भगवान की प्रतिमा की यहाँ स्थापना की तो वक़्त के साथ इस प्रतिमा का आकार बढ़ने लगा। राजा ने जब इस रहस्य के कारण का पता लगाया तो प्रतिमा ने राजा को अपनी मंशा प्रकट की और कहा कि मेरी इस प्रतिमा का आकार तब तक बढ़ता रहेगा जब तक मुझे मैहर वाली शारदा के दर्शन नहीं हो जाते। राजा ने प्रतिमा के विशाल आकार को बढ़ने से रोकने के लिए इसके पेट में एक सोने की कील गाढ़ दी जिससे प्रतिमा का आकार बढ़ना बंद हो गया।
इस किंवदंती की सच्चाई का पता, इस प्रतिमा में लगी इस कील के निशान से भी चलता है तथा इसके अलावा इस प्रतिमा का मुख जिस दिशा में है ठीक उसी के सामने माता मैहर वाली देवी का मंदिर भी है जो यहाँ से नजर तो नहीं आता किन्तु अत्यधिक ऊँचाई के साथ मैहर का वह पर्वत जिस पर माता का भव्य मंदिर बना हुआ है, दिखाई देने अवश्य लगेगा। इसके अलावा जिस स्थान पर यह प्रतिमा स्थापित है उस स्थान पर बने भव्य मंदिर के अवशेष आज भी इस प्रतिमा के इर्द गिर्द बिखरे पड़े हैं जबकि वराह भगवान की यह प्रतिमा आज भी अपने मूल स्वरूप में व्यवस्थित खड़ी है।
कारीतलाई नामक यह ग्राम एक ऐतिहासिक ग्राम है, विष्णु वराह मंदिर के अलावा यहाँ और भी अन्य प्राचीन धरोहरें देखने को मिलती हैं जिनमें सबसे मुख्य आकर्षण का केंद्र यहाँ स्थित कच्छ और मच्छ की मूर्तियां हैं जिनकी स्थापना किसी समय राजा के महल के निकट हुई थी। आज यह प्राचीन दुर्लभ मूर्तियां इस ग्राम के सरकारी विद्यालय के बाहर विराजमान है। कच्छ और मच्छ की यह प्रतिमाएं भगवान विष्णु के कच्छप और मत्स्य अवतार का प्रतीक हैं परंतु यह विष्णु वराह मंदिर से इतनी दूर इस गाँव में कैसे स्थित हैं यह एक अज्ञात रहस्य है।
कारीतलाई गाँव के लोगों ने जब मुझे अपने गाँव में घूमते हुए देखा तो उन्होंने मुझसे यहाँ आने का कारण जानना चाहा। मैंने उन्हें बताया कि उनका यह गाँव एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक गाँव है जिसके बारे में भारत के ही नहीं बल्कि समस्त दुनिया के लोगों को पता होना चाहिए। मुझे ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करने और अपनी प्राचीन संस्कृति के बारे में जानने की बहुत रूचि है, इसी कारण मैं आपके गाँव में आया हूँ। उन्हें मेरी यह बात सुनकर बहुत खुशी हुई और उन्होंने मेरा बहुत आदर सत्कार किया। इसी गाँव में मेरी मुलाकात यहाँ के निवासी मनोज दीक्षित जी से हुई जिन्होंने मुझे इस गाँव के इतिहास के बारे में बहुत कुछ बताया।
कटनी के बस स्टैंड से कारीतलाई के लिए बस सेवा उपलब्ध रहती है। कटनी से हर एक घंटे बाद विजयराघवगढ़ होते हुए कारीतलाई के लिए सीधे बस मिल जाती है और वापसी के लिए भी कारीतलाई से हर घंटे बस मिलती रहती है। कुलमिलाकर कारीतलाई एक ऐतिहासिक ग्राम होने के साथ साथ मध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी है, यहाँ कम से कम एक बार तो अवश्य जाना चाहिए जिससे हमारे पूर्वज हिन्दू राजाओं के वजूद को उजागर किया जा सके।
कारीतलाई देखने के बाद मैं शाम को चार बजे तक कटनी पहुँच गया और बस स्टैंड से पैदल ही स्टेशन की तरफ रवाना हो गया। कटनी नदी को पार करने के बाद में कटनी शहर में प्रवेश कर गया और शहर को निहारते हुए ही स्टेशन की तरफ बढ़ता जा रहा था। कटनी शहर में यह मेरी दूसरी यात्रा थी, पिछली बार जब मैं यहाँ आया था तो माँ जालपा देवी के भव्य मंदिर के दर्शन किये और आज भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर और रथ के भव्य दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
कटनी, भारतीय रेलवे का मुख्य जंक्शन पॉइंट है, यहाँ से चार दिशाओं में जाने के लिए अलग अलग ट्रेनें मिलती हैं और इन ट्रेनों में बैठने के लिए अलग अलग रेलवे स्टेशन भी बने हुए हैं। फ़िलहाल मैं कटनी मुरवाड़ा स्टेशन की तरफ जा रहा हूँ जहाँ से शाम को पांच बजे मुझे मेरे शहर मथुरा के लिए ट्रैन मिलेगी जिसमें सुबह ही मैंने अपना रिजर्वेशन करवा लिया था जो अभी तक कन्फर्म नहीं हो पाया है। अब जल्द ही अगली यात्रा में आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए आप सभी को जय जय श्री राधे।
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गाँव में एक मंदिर |
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कारीतलाई गाँव |
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KARITALAI VILLAGE |
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KARITALAI VILLAGE
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खंडित जैन प्रतिमा |
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई |
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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विष्णु वराह प्रतिमा - कारीतलाई
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कच्छ मच्छ प्रतिमा - कारीतलाई |
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कच्छ मच्छ प्रतिमा - कारीतलाई |
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कच्छ मच्छ प्रतिमा - कारीतलाई |
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कारीतलाई गाँव की पानी की टंकी |
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कारीतलाई गाँव में मेरा दोस्त |
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मनोज दीक्षित भाई - कारीतलाई निवासी |
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KATNI JUNCTION |
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CLOCK TOWER - KATNI |
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KATNI BUS STAND |
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विजयराघवगढ़ में एक शक्तिपीठ धाम |
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KATNI RIVER BRIDGE |
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KATNI RIVER |
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JAGANNATH JI TEMPLE - KATNI |
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RATH YATRA - KATNI |
THANKS FOR TRIP
🙏
यूट्यूब पर इस मंदिर का वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक कीजिये 👇
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Translate it into English so those of us who can't read the Hindi script can understand it.
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