लाफा और चैतुरगढ़ किले की एक यात्रा
मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 5, यात्रा दिनाँक - 11 अगस्त 2021
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पाली पहुँचने के बाद मैंने एक दुकान से कोकाकोला की किनली की एक पानी की बोतल खरीदी और यहीं पास में खड़े एक चाट वाले से समोसे और कचौड़ी की मिक्स चाट बनवाकर आज के दोपहर का भोजन किया। मैं इस समय चैतुरगढ़ मार्ग पर था। पाली अंतिम बड़ा क़स्बा था और इसके बाद का सफर छत्तीसगढ़ के जंगल और पहाड़ों के बीच से गुजरकर होना था। मैंने चाट वाले से आगे किसी पेट्रोल पंप के होने के बारे में पूछा तो उसने स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि आगे कोई पेट्रोल पंप नहीं है। अगर चैतुरगढ़ जा रहे हो तो यहीं पाली से ही पेट्रोल भरवाकर जाओ क्योंकि आगे घना जंगल है और रास्ते भी पहाड़ी हैं। वहां आपको कुछ भी नहीं मिलेगा। पाली से चैतुरगढ़ जाने के लिए एक मात्र विकल्प अपना साधन ही है। पाली से चैतुरगढ़ जाने के लिए कोई साधन नहीं मिलता है।
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चैतुरगढ़, छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है और यह उच्च पर्वतीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण अत्यंत दुर्गम भी है। पाली से 25 किमी दूर लाफा नामक स्थान है और इससे आगे 30 किमी दूर चैतुरगढ़ का किला स्थित है। मैकाल पर्वत श्रेणी में स्थित चैतुरगढ़, समुद्र तल से लगभग 3060 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। चैतुरगढ़ जाने का मार्ग घने जंगलों के बीच पर्वतीय मार्ग जिन्हें घाट भी कहा जाता है, से होकर गुजरता है। जिस पर्वत पर चैतुरगढ़ का किला स्थित है वह पर्वत मैकाल पर्वत के उच्चतम शिखरों में से एक है और यह स्थान दिव्य जड़ी बूटियों, औषधीय वृक्षों, गुप्त गुफाओं, पर्वतों और झरनों के मध्य स्थित है इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहा जाता है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में भी यहाँ का तापमान 30 डिग्री सेग्री से अधिक नहीं होता है।
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चैतुरगढ़ किले को लाफागढ़ के नाम भी जाना जाता है। इस किले का निर्माण राजा पृथ्वीदेव ने करवाया था, इसके निर्माण की तिथि को लेकर इतिहासकारों में अभी काफी मतभेद हैं। यह किला मैकाल पर्वत श्रेणी के एक उच्चतम शिखर पर स्थित है जिसकी प्राचीरें पूर्णतः प्राकृतिक हैं और कहीं कहीं इन प्राचीरों को उच्च बनाने के लिए दीवारों का निर्माण भी किया गया है। चैतुरगढ़ किले को छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़ों में से एक माना जाता है। किले में प्रवेश के चार द्वार हैं जिनमें सबसे मुख्य सिंहद्वार है जिसके समीप ऐतिहासिक महिषासुर मर्दिनी का सुन्दर मंदिर स्थापित है। इस मंदिर का जीर्णोंद्धार सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय शासक मल्ल देव ने करवाया था तथा इसके पश्चात 1100 वीं शताब्दी में जाजल्लदेव ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया।
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चैतुरगढ़ किले में सबसे मुख्य महिषासुर मर्दिनी का मंदिर दर्शनीय है, इसके अलावा इस मंदिर से 2 किमी दूर शंकरखोल नामक एक प्राकृतिक गुफा है जहाँ भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। शंकरखोल के समीप ही किले का दूसरा मुख्य द्वार मेनका द्वार के नाम से जाना जाता है जहाँ किले के महलों के भग्नावेश आज भी देखने को मिलते हैं। इस किले के प्रांगण में एक हैलीपैड भी बना हुआ है। यहाँ काफी मात्रा में लोग पिकनिक मनाने और प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने के लिए परिवार सहित यहाँ आते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। किले के प्रांगण में तीन तालाब भी हैं और श्रृंगी नामक एक झरना भी दर्शनीय है। यहाँ आने का सबसे उत्तम समय सुबह से दोपहर का बेस्ट रहता है।
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चाट खाने के बाद मैंने अपनी रेंटल बाइक एवेंजर में पेट्रोल की मात्रा को चेक किया। मुझे एवेंजर के माइलेज पर पूर्ण भरोशा था इसलिए बिना पेट्रोल डलवाये मैं 25 किमी की एक छोटी से दूरी समझ कर चैतुरगढ़ की ओर रवाना हो गया। पाली की सीमा से बाहर आते ही जंगलों का दौर शुरू हो गया और मुझे छत्तीसगढ़ पर्यटन सरकार का बोर्ड दिखाई दिया जिसपर लिखा था - चैतुरगढ़ वन्यजीव क्षेत्र में आपका हार्दिक स्वागत है। रास्ता बहुत ही शानदार था, चारोंओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा सा पड़ा था। रास्ते में आने वाले छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक गाँव भी देखने में कम सुन्दर नहीं लगते हैं। शहरों की भागदौड़ से दूर यह स्थान अत्यंत ही मनोरम स्थान है।
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कुछ ही समय बाद मुझे वह पर्वत दिखाई देने लगा जिसपर चैतुरगढ़ का किला स्थित था। लाफा नामक गाँव में पहुँचने के बाद घाटों का सिलसिला शुरू हो जाता है। तेन्दु के बड़े बड़े वृक्षों के बीच गोल घुमावदार रास्तों पर मैं एवेंजर को दौड़ाये जा रहा था। यहाँ बहुत दूर दूर तक कोई मानव दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए अब मन में संदेह और डर ने अपना घर सा बना लिया था। इसके अलावा बाइक में पेट्रोल ख़त्म होने का डर भी मन में व्याप्त हो चुका था क्योंकि मेरे पास समय बहुत कम था और मुझे यहाँ से अभी रतनपुर भी पहुंचना था किन्तु मैं जैसे जैसे ऊपर चढ़ता जा रहा था ऐसा लगता था जैसे चैतुरगढ़ मुझसे उतना ही दूर होता जा रहा है।
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जंगलो में अकेले यात्रा करने के दौरान तेज सरसराहट की सी आवाज भी कानों में उत्पीड़न पैदा कर रही थी इसके अलावा रास्ते में बहुत सेर बाद जब भी कोई मनुष्य दिखाई दे जाता तो मन को बहुत ख़ुशी होती थी। गाड़ी इन घुमावदार रास्तों से होकर पहाड़ पर बस चढ़ती जा रही थी किन्तु चैतुरगढ़ अभी दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहा था। इन पहाड़ी और जंगली रास्तों को देखकर मुझे अपने उन घुमक्क्ड साथियों की याद आने लगी जो हिमाचल और उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ों में अत्यधिक ऊंचाई तक पैदल अकेले यात्रा करते हैं सिर्फ प्रकृति की एक खूबसूरत छटा को देखने के लिए, जबकि वहां ऐतिहासिक जैसी कोई जगह ही नहीं होती।
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मैं ऐतिहासिक स्थलों का प्रेमी हूँ और मेरी यात्रायें भी केवल ऐसे ऐतिहासिक स्थानों को अपना लक्ष्य बनाकर की जाती हैं इसलिए मैं हिमाचल और उत्तराखंड के दुर्गम स्थलों से आज भी बचा हुआ हूँ। परन्तु आज की इस यात्रा ने मुझे एहसास करा दिया था कि मेरे वह समस्त पर्वतीय घुमक्कड़ भाई बहिन कैसे उन पहाड़ों को चुनौती देकर अपने लक्ष्य तक पहुँचते होंगे। इनके जज्बे और हौंसले को मैं अपने दिल से सैल्यूट करता हूँ। कुछ ही समय बाद मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ से बाइक की सीमा समाप्त हो जाती है और अब चोटी तक पहुँचने का पैदल मार्ग शुरू हो जाता है।
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यहाँ पुरातत्व विभाग द्वारा एक लोहे का गेट बना है जिस पर ताला जड़ा है अतः कोई भी वाहन इस गेट से आगे नहीं जा सकता। मंदिर जाने वाले भक्तों के लिए यहाँ कुछ प्रसाद की दुकानें भी बनी हुईं हैं, ऐसी ही एक दुकान पर मैंने अपनी बाइक खड़ी की और मंदिर के लिए चढ़ाई प्रारम्भ कर दी। यह अत्यंत ही खड़ी और घुमावदार चढ़ाई है जिसकी दूरी लगभग 1 किमी है और इस एक किमी में ही हमें हमारी शारीरिक दक्षता का पता चल जाता है। मेरी शारीरिक दक्षता इन स्थानों के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है क्योंकि ऊंचाई वाले स्थानों पर सर्वप्रथम मेरे कान काम करना बंद कर देते हैं और थोड़ी देर बाद मेरी धड़कने अपना कार्य तेजी से शुरू कर देती हैं।
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कदम आगे बढ़ने का नाम नहीं लेते और मन मंजिल की ओर ही आकर्षित रहता है और मन की बात सुनते हुए मैं शरीर की सुनना बंद कर देता हूँ अतः अपनी मंजिल तक पहुँच जाता हूँ। सर्वप्रथम मुझे चैतुरगढ़ किले के प्रथम और मुख्यद्वार - सिंहद्वार के दर्शन हुए। इसी सिंहद्वार से प्रवेश कर मैं चैतुरगढ़ के प्रांगण में पहुँचा और सर्वप्रथम यहाँ हनुमान और शनिदेव जी के दर्शन किये। इसके पश्चात मैं महिषासुर मर्दिनी के मंदिर पहुँचा और माता के दर्शन कर स्वयं को कृतार्थ किया। मंदिर ऐतिहासिक है और मेरी ऐतिहासिक मंदिरों की एक खोज नामक श्रृंखला का एक भाग है। यहाँ चारों ओर बहुत शान्ति और स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण था। पर्यटकों के बैठने के लिए यहाँ सरकार ने समुचित व्यवस्था की है। बिना समय गंवाएं मैं यहाँ थोड़ी देर रूककर यहाँ से वापस हो चला।
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WELCOME TO CHAITURGARH |
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CHAITURGARH ROAD |
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A VILLAGE NEAR CHAITURGARH |
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FIRST VIEW OF MOUNTAIN |
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CHAITURGARH ROAD |
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ENTRY GATE OF CHAITURGARH HILL FORT |
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MY RENTEL BIKE |
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FOOT WAY OF CHAITURGARH |
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VIEW OF MAIKAL HILL RANGE |
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MAIN ENTRY GATE OF CHAITURGARH FORT - SINHDWAR |
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SINHDWAR |
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MAHISHASUR MARDINI TEMPLE |
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SHANIDEV TEMPLE - CHAITURGARH |
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HANUMAN TEMPLE AT CHAITURGARH |
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CHAITURGARH FORT WALL |
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MAHISHASUR MARDINI TEMPLE |
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MAHISHASUR MARDINI TEMPLE
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MAHISHASUR MARDINI TEMPLE
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JAI MATA DI |
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PUBLIC REST HOUSE |
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RUINS OF CHAITURGARH FORT |
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A SHOP ON CHAITURGARH FOOT WAY |
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JAI BHOLENATH |
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A WOMEN AT CHAITURGARH |
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CHAITURGARH MARKET |
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RETURN TO BILASPUR |
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BAGDARA VILLAGE NEAR CHAITURGARH |
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VIEW OF CHAITURGARH FORT HILL |
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LAFA VILLAGE |
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CHAITURGARH HILL |
अगली यात्रा - प्राचीन राजधानी रतनपुर
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चैतुरगढ़ के कुछ वीडियो हमने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किये हैं, देखने के लिए कृपया लिंक पर क्लिक कीजिये 👇
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