रतनपुर के ऐतिहासिक मंदिर और किला
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लाफा चैतुरगढ़ की यात्रा करने के बाद, मैंने एवेंजर बाइक का रुख रतनपुर की ओर कर दिया। रतनपुर, छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानियों में से एक है और इसे कल्चुरी शासकों की खूबसूरत राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। आज भी यहाँ कल्चुरी राजाओं की राजधानी के अवशेष, किले के खंडहरों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा समय समय पर विभिन्न शासकों ने यहाँ और इसके आसपास के प्रदेशों ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण भी कराया। इन्हीं में से महामाया देवी का विशाल मंदिर रतनपुर में आज भी पूजनीय है और इसके आसपास स्थित ऐतिहासिक मंदिर, रतनपुर के ऐतिहासिक होने का बख़ान करते हैं।
पाली से रतनपुर 35 किमी के आसपास था और यह मार्ग भी राष्ट्रीय राजमार्ग था किन्तु इस मार्ग के विकास का कार्य जोरों पर था इसलिए थोड़ी बहुत परेशानी भी मुझे यहाँ उठानी पड़ी। बाइक की पेट्रोल अब तक मेरा साथ दे रही थी किन्तु इसका साथ कब समाप्त जाये, इसमें अब कोई संदेह नहीं बचा था। इसलिए मैंने थोड़ा आगे जाकर अपनी किनली की पानी की बोतल में पचास रूपये का पेट्रोल लेकर अपने बैग में रख लिया। कोरबा से बिलासपुर जाने वाला यह राष्ट्रीय राजमार्ग बेहद शानदार जगहों से होकर गुजरता है और खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं।
रतनपुर पहुँचने से पूर्व ही बाइक की पेट्रोल ने अपना साथ छोड़ दिया, अतः मैंने पानी की बोतल में रखी पेट्रोल बाइक में डाली और निर्विरोध अपने सफर को कायम रखा। कुछ आगे जाने पर रतनपुर का प्राचीन किला आ चुका था। बाइक को किले के बाहर खड़ा करके मैं इस ऐतिहासिक किले को देखने के लिए निकल पड़ा। चारों तरफ से प्राकृतिक खाइयों से घिरा यह किला एक बहुत बड़े प्रांगण में बना हुआ था। अब इस किले के प्राचीन खंडहर ही यहाँ दर्शनीय हैं। कल्चुरी राजवंश की राजधानी रहा यह किला एक समय में बहुत खूबसूरत हुआ करता था जिसका अनुमान यहाँ के खंडहरों की अवस्था और बनाबट को देखकर लगाया जा सकता है।
दशवीं शताब्दी में कल्चुरी नरेश रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर नगर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया। इससे पूर्व इनकी राजधानी तुम्माण में थी जहाँ आज भी प्राचीन राजधानी के अवशेष देखे जा सकते हैं। रतनपुर के किले में भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर अति दर्शनीय है। राजा रत्नदेव के बारे में प्रचलित है कि इन्होने रतनपुर स्थापना इसप्रकार की थी कि यह देखने में कुबेर की अलकापुरी के समान प्रतीत होती है। अनेकों तालाबों, मंदिर और देवालयों निर्माण यहाँ कराया गया और इसके साथ ही फलदार वृक्षों और आम्रवन का निर्माण भी हुआ। अतः रतनपुर कल्चुरीवंश की राजधानियों में सबसे सुन्दर और विकसित राजधानी थी।
किले को देखने के बाद मैं यहाँ स्थित प्राचीन देवालयों को देखने के लिए निकल पड़ा। मुख्य बाजार में सप्तघोड़ों के से निर्मित विशाल द्वार दिखाई दिया जिसके अंदर प्रवेश करने के बाद पुनः एक और विशाल द्वार दिखाई दिया जिसपर भगवान् शिव के मुख की विशाल आकृति बनी हुई थी और इसमें प्रवेश करने के बाद हिन्दू बाजार दिखाई देने लगा। यह स्थान रतनपुर का ही नहीं बल्कि समस्त भारतभूमि का विशाल तीर्थस्थान था जो कि महामाया मंदिर के नाम से प्रख्यात है और आज भी पूजनीय है। हजारों लाखों भक्त दूर दूर से माता के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं।
इस मंदिर का निर्माणकाल भी दसवीं शताब्दी का है। और आज भी यह भारतीय हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण श्रद्धा का केंद्र है। महामाया मंदिर को रतनपुर वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ प्रशासन के द्वारा यहाँ अनेक विकास कार्य कराये गए हैं। भक्तों के ठहरने और बैठने हेतु उचित व्यवस्था का प्रबंध किया गया है। महामाया देवी का समूचे क्षेत्र में बहुत नाम प्रख्यात है और काफी दूर दूर से भक्त अपनी मनोकामना लेकर माता के इस मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं और माता उनकी मनोकामना को पूर्ण करती हैं।
यहाँ भक्तों के लिए हरप्रकार की उचित व्यवस्था है और यह अत्यंत साफसुथरा देवीय स्थान है। महामाया मंदिर के उत्तर में कई ऐतिहासिक मंदिरों की श्रृंखला दिखलाई देती है। यह मंदिर पूर्णतः दर्शनों हेतु सुरक्षा की दृष्टि से पुरातत्व विभाग द्वारा बंद किये हुए हैं। बस इन्हें बाहर से ही देखने की अनुमति है। इनमे त्रिमंजिला भगवान शिव का प्राचीन शिवालय भी है जो देखने में अपनी बनाबट से सभी मंदिरों से अलग प्रतीत होता है क्योंकि इसके प्रत्येक भाग को अलग अलग समय पर निर्मित कराया गया था। इसी के ठीक सामने माता महालक्ष्मी का भी मंदिर है जो अब एक ओर झुका हुआ सा प्रतीत होता है किन्तु दूसरी दिशा से देखने पर यह एकदम सीधा दिखाई देता है।
इसके अलावा यहाँ और भी अन्य प्राचीन देवालयों के अवशेष हैं जिनमें अब कोई मूर्ति दिखाई नहीं देती किन्तु हजारों वर्षों से यह प्राचीन देवालय आज भी अपनी यथा स्थिति में ज्यों के त्यों खड़े हैं।
काफी देर यहाँ रुकने के बाद मैं इस ऐतिहासिक नगरी से बिलासपुर की तरफ रवाना हो चला। रतनपुर के बाहर सीमा पर भैरव नाथ जी का भी प्राचीन मंदिर दर्शनीय है। यहाँ कुछ देर रुकने के बाद मैं आगे बढ़ा ही था कि बाइक में डली पचास रूपये की पेट्रोल भी समाप्त हो गई। थोड़ी बहुत दूर तक मैं बाइक को पैदल लेकर गया और फिर एक पेट्रोल पंप से पेट्रोल लेकर शाम होने तक मैं सही साढ़े छ बजे बाइक वाली ऑफिस पर पहुँच गया। पूरे निरीक्षण के बाद बाइक जमा हो गई और मैं रेलवे स्टेशन पहुँच गया।
रात को ग्यारह बजे के आसपास सारनाथ स्पेशल ट्रेन से मैं कटनी के लिए रवाना हो गया।
रतनपुर से बिलासपुर की दूरी लगभग 25 किमी के आसपास है और यहाँ आने के लिए बिलासपुर से निरंतर बसें मिलती रहती हैं।
प्राचीन किला रतनपुर |
किले का प्रवेश द्वार - रतनपुर |
किले का दूसरा मुख्य द्वार - रतनपुर |
मुख्य द्वार के नजदीक कारीगरी - रतनपुर |
महालक्ष्मी देवी की खंडित प्रतिमा - रतनपुर |
रतनपुर किला |
रतनपुर किला |
प्राचीन देवालय - रतनपुर किला |
प्राचीन खंडहर और तालाब - रतनपुर किला |
किले का दक्षिणी भाग - रतनपुर |
दक्षिण द्वार - रतनपुर किला |
रतनपुर किला |
रतनपुर किला |
किले के नजदीक तालाब |
दक्षिण द्वार और गुप्त द्वार - रतनपुर किला |
ऐतिहासिक रामटेकरी मंदिर का एक दृश्य रतनपुर किले के अंदर से |
प्राचीन देवालय - रतनपुर किला |
हनुमान मंदिर - रतनपुर किला |
किले के महलों के अवशेष - रतनपुर |
स्नानागार - रतनपुर किला |
जगन्नाथ मंदिर - रतनपुर किला |
लक्ष्मीनारायण मंदिर - रतनपुर |
प्राचीन वट वृक्ष - रतनपुर किला |
रतनपुर किला |
रतनपुर किला |
महामाया मंदिर - रतनपुर
मंदिर का प्रवेश द्वार |
महामाया मंदिर बाजार |
बाहरी द्वार - महामाया मंदिर, रतनपुर |
महामाया मंदिर - रतनपुर |
महामाया मंदिर - रतनपुर |
महामाया मंदिर - रतनपुर |
प्राचीन शिवालय - रतनपुर |
महालक्ष्मी मंदिर - रतनपुर |
महालक्ष्मी मंदिर - रतनपुर |
झुका हुआ महालक्ष्मी मंदिर - रतनपुर |
माता महामाया देवी - रतनपुर वाली |
प्राचीन भैरोंनाथ मंदिर - रतनपुर |
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