Saturday, July 17, 2021

BHARHUT STUP : MADHYA PRADESH 2021


भरहुत स्तूप और उसके अवशेष 




मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 2      यात्रा  दिनाँक - 10 Jul 2021 
इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

मैहर धाम से अब रवाना होने का वक़्त था, मैहर मंदिर के दर्शन करने के पश्चात मैं मंदिर से नीचे उतर आया और एक ऑटो से बस स्टैंड पहुंचा। सतना के नजदीक चौमुखनाथ और भूमरा के ऐतिहासिक मंदिर हैं। चौमुखनाथ का मंदिर वाकाटक शासकों की पूर्ववर्ती राजधानी नचना कुठार में स्थित हैं। मेरा इस स्थान को देखने का बड़ा ही मन था। यह स्थान पन्ना और सतना के मध्य कहीं स्थित था। चौमुखनाथ का मंदिर बड़ा ही भव्य मंदिर है, मैं जानता था कि इस मंदिर की यात्रा, फेसबुक पर हमारे परम मित्र मुकेश पांडेय चन्दन जी कर आये हैं, इसलिए मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया और यहाँ तक पहुँचने का मार्ग जाना। उन्होंने मुझे मार्ग तो बतला दिया किन्तु इस मंदिर तक पहुँचने के लिए मुझे आज पूरा दिन लगाना पड़ता इसलिए इस मंदिर को भविष्य पर छोड़ मैं भरहुत स्तूप के लिए बस में बैठ गया। 


मैहर के बाद उंचेहरा नामक एक क़स्बा पड़ता है। गूगल मैप के अनुसार यहाँ से भी एक रास्ता भूमरा होते हुए नचना कुठार के लिए गया है। परन्तु यहाँ के स्थानीय लोगों ने बताया कि यह मार्ग पहाड़ी मार्ग है, भूमरा और चौमुखनाथ  के मंदिर यहाँ की अपेक्षा ऊँचे पहाड़ पर स्थित हैं। उंचेहरा के बस स्टैंड पर ही मुझे यह जानकारी भी प्राप्त हो गई कि इस मार्ग पर दो बसें भी चलती हैं जो क्रमशः दोपहर 2 बजे और 3 बजे उंचेहरा आती हैं और वापस लौट जाती हैं, यह बसें उंचेहरा से सलेहा के बीच चलती हैं जो नचना कुठार के नजदीक पड़ता है। मैं आज मंदिरों पर जाकर अपना। समय बर्बाद नहीं करना चाहता था क्योंकि आज शामतक मुझे रीवा पहुँचना था और वहाँ से अपनी अगली यात्रा जारी रखनी थी। 

उंचेहरा के बाद एक रेलवे फाटक को पार करके बस ने मुझे भरहुत मोड़ पर उतार दिया। भरहुत मोड़, सतना से मैहर वाले मार्ग पर स्थित है और सतना के नजदीक है। मैं भरहुत मोड़ पर उतर गया, भयानक गर्मी के बीच बस से उतर कर मुझे यहाँ थोड़ी सी राहत मिली। यहाँ का हराभरा वातावरण देखकर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। एक दुकान पर अपना बैग टिकाकर मैं कुछ देर यहाँ बैठा रहा और उसी दुकानदार से भरहुत के बारे में जानकारी प्राप्त की। इस दुकानदार से पूर्व मैं जिस बस से उतरा था, उसी बस से मेरे साथ भरहुत के नजदीक गाँव में रहने वाला एक लड़का भी उतरा था। उसने मुझे बताया था कि भरहुत स्तूप यहाँ से 5 किमी दूर है और स्तूप के सभी अवशेष एक पहाड़ पर मौजूद हैं और उस पहाड़ तक पहुँचने के लिए कोई मार्ग नहीं बना है। कँटीली झाड़ियों  और जंगलों के बीच से होकर जाना पड़ता है। 

उस लड़के की बातों ने मेरे मन में काफी निराशा भर दी किन्तु मैं तो यात्री हूँ और रास्तों पर चलना मेरा काम है, मंजिल तक तो वंशी वाला पहुंचा ही देता है। भरहुत स्तूप की सड़क मेरे सामने थी, गूगल के अनुसार रास्ता भी ठीकठाक था, स्तूप तक जाने के लिए अच्छी सड़क बनी हुई थी बस आवश्यकता थी तो किसी साधन की, जिससे भरहुत घूमकर आसानी यहाँ वापस आया जा सके। मैं काफी देर तक इसी दुकान पर बैठा रहा, मुझे कोई साधन भरहुत जाने के लिए नहीं मिल रहा था। दुकान से उठकर मैं आसपास भी घूमता रहा। मुझे घूमते हुए देख एक साईकिल वाले दुकानदार ने यहाँ घूमने का कारण जानना चाहा। मैंने उसे बताया कि मैं मथुरा से आया हूँ और मुझे अब भरहुत स्तूप देखने जाना है। 

उसने भरहुत स्तूप के बारे में मुझे काफी जानकारी दी। उसने बताया कि स्तूप के अवशेष तो पहाड़ से नीचे ही हैं, पहाड़ पर कुछ भी खास नहीं है। पुरातत्व विभाग वाले अधिकारीयों की गाड़ियां ही भरहुत स्तूप जाती रहती हैं तभी एक टैक्टर आया और उस साईकिल वाले ने मुझे उस टैक्टर में बैठने को कहा और बोला यह आपको स्तूप से थोड़ा सा पहले ही उतार देगा। असमंजस की स्थिति में, मैं कोई फैंसला नहीं कर पाया। मेरे कदम टैक्टर की ओर बढे ही थे कि इसी टैक्टर में मैंने उस लड़के को भी बैठते देखा जो मेरे साथ बस में आया था और फिर उसकी बात याद आई कि आप यहाँ से चले तो जाओगे किन्तु स्तूप देखने के बाद आपको पांच किमी पैदल ही आना पड़ेगा। 

मैं ऐसा रिस्क उठाना नहीं चाहता था, क्योंकि जब यहाँ से ही वहां तक जाने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है तो भला लौटने में मुझे कौन मिलेगा। ऐसा सोचकर मैं टैक्टर में नहीं बैठा और एकबार पुनः उसी दुकान पर आकर बैठ गया। अब इस मोड़ पर सभी जान चुके थे कि मैं यात्री हूँ और भरहुत स्तूप देखने की लालसा लिए ही यहाँ आया हूँ। वो साईकिल वाला दुकानदार भरहुत की तरफ जाने वाले बाइक सवारों से पूछता था कि क्या वह भरहुत तक जा रहे हैं, इन्हीं में से से बाइक सवार ऐसा मिल गया जो भरहुत के नजदीक मतरी गाँव तक जा रहा था। साईकिल वाले ने मुझे आवाज लगाई और बाइक पर बैठने को कहा। लौटने की फ़िक्र को छोड़कर मैं भरहुत जाने के लिए इस बाइक पर सवार हो गया। 

यह बाइक सवार अमित कुमार लोधी था जो भरहुत के समीप मतरी नामक गाँव में रहता है। मेरी बातों और यहाँ आने के उद्देश्य को जानकार वह बहुत खुश हुआ और हम दोनों के बीच अच्छी मित्रता हो गई। वह अपनी बाइक से मुझे ना केवल भरहुत स्तूप तक लेकर गया बल्कि मेरे साथ एक दोस्त के तौर पर भरहुत स्तूप दिखाने भी गया। अमित का साथ पाकर मुझे थोड़ी सी हिम्मत मिली और इस वियावान क्षेत्र में अकेलापन और डर अब मुझसे कोसों दूर हो चले थे। अमित के साथ मैंने भरहुत स्तूप की पूरी जानकारी की और यहाँ विराजित प्राचीन काल की हनुमान प्रतिमा के दर्शन भी किये। अब यहाँ केवल भरहुत स्तूप के अवशेष ही शेष थे। एक गोलाकार संरचना में इसके अवशेष आज भी दिखाई देते हैं। 

भरहुत स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा ईंटों से कराया गया था परन्तु इसकी पाषाण वेदिकाओं और तोरणों का निर्माण शुंगकाल के वात्सीपुत्र धनभूति द्वारा पूर्ण हुआ अतः यह स्तूप पूर्णरूप से शुंगकालीन माना जाता है। इस स्तूप की खोज सन 1873 ई. में तत्कालीन पुरातत्ववेत्ता सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। उन्होंने इस स्तूप की खंडित वेदिकाओं और तोरणों को यहाँ से जाकर कलकत्ता के संग्रहालय में सुरक्षित रखवाया। आज भी कलकत्ता के संग्रहालय में भरहुत स्तूप की वेदिका और तोरण द्वार सुरक्षित हैं और दर्शनीय हैं। मोर्योत्तर काल में  भरहुत स्तूप शुंगकाल का सबसे प्राचीन स्तूप है। 

भरहुत मोड़ पर बने द्वार पर लिखा था कि यहाँ बौद्धकालीन विश्वविद्यालय के अवशेष हैं, जिसका विवरण मुझे अभी तक किसी पुस्तक में जानने को नहीं मिला है परन्तु अनुमान के हिसाब से भरहुत स्तूप के ठीक बराबर में एक ऊँचा पहाड़ है जिसपर कुछ प्राचीनकाल के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनकी भरहुत स्तूप से कोई समानता नहीं है। हो सकता है यह अवशेष स्तूप के निर्माण के बाद यहाँ बाद में बने उसी बौद्ध विद्यालय के हों। समय और परिस्थिति को देखते हुए मैं इस पहाड़ के ऊपर तो नहीं गया किन्तु अमित ने मुझे बताया था कि इस पहाड़ के ऊपर 26 जनवरी और 15 अगस्त को तिरंगा फहराया जाता है, काफी स्कूलों के बच्चे उस समय इस पहाड़ पर आते हैं। इससे साफ़ जाहिर होता है कि पहाड़ के ऊपर बौद्धकालीन विश्वविद्यालय के अवशेष ही होंगें। 

पुरातत्व विभाग ने इस स्थान को संरक्षित करने के लिए काफी सराहनीय कदम उठाये हैं। बेशक अवशेष मात्र  यह स्थान हमें हमारी प्राचीन धरोहर की याद दिलाता है और शुंगकालीन इतिहास को समझने में सहायता करता है। अपनी प्राचीनता के चलते भरहुत स्तूप आज पर्यटकों की नजरों में एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। जो भी पर्यटक यहाँ आता है उसे यहाँ कोई स्तूप तो दिखाई नहीं देता किन्तु स्तूप के अवशेषों को देखकर ही वह इसकी प्राचीनता और भव्यता की कल्पना कर सकते हैं और मैं गर्व से कहता हूँ कि जो भी भरहुत स्तूप देखने आता होगा वह मन में निराशा लेकर कभी नहीं लौटता होगा। 

स्तूप देखने के बाद मैं और अमित यहाँ से वापस चल दिये। स्तूप से थोड़ी ही दूरी पर भरहुत नामक गाँव भी स्थित है जिसके नाम पर ही इसे भरहुत स्तूप कहा जाता है। अमित ने मुझे वहीँ वापस छोड़ा जहाँ से वह मुझे लेकर आया था, रास्ते में उसने मुझे अपना गाँव भी दिखाया था। अमित से मिलकर मुझे बहुत कुछ अपनेपन जैसा लगा, मानो इस अकेली यात्रा में स्वयं ईश्वर ने एक मित्र को मुझे भरहुत घुमाने के लिए भेज दिया हो। अमित से अगली बार आने का वादा करके मैं सतना की बस पकड़कर सतना के लिए रवाना हो गया। 

भरहुत मोड़ 

भरहुत द्वार 

भरहुत की तरफ 

भरहुत स्तूप जाने वाला रास्ता 

भरहुत स्तूप द्वार 

ASI की ऑफिस - भरहुत स्तूप 

भरहुत स्तूप का इतिहास और जानकारी 


भरहुत स्तूप तक ले जाता अमित 

स्तूप के आसपास ऐसे ही नीम के पेड़ हैं 

हनुमान जी के प्रथम दर्शन और साथ ही स्तुप के भी 

भरहुत स्तूप 


प्राचीनकाल के भरहुत वाले हनुमान जी 

भरहुत स्तूप के अवशेष 

बहुत गर्मी थी रे बाबा 

यहाँ आकर थोड़ी राहत मिली 

भरहुत स्तूप के अवशेष 



भरहुत स्तूप 

कुछ चित्र कैमरे की नजर से ... 

जय बजरंग बली 

भरहुत का प्राचीनतम स्तूप 

अवशेष मात्र प्राचीन भरहुत स्तूप 


स्तूप से थोड़ी दूरी पर प्राचीन कुंआ 

भरहुत स्तूप के समकालीन कुँआ 

ASI द्वारा सुरक्षित भरहुत स्तूप 


भरहुत स्तूप और इसके पीछे भरहुत पहाड़ 

इसी पहाड़ पर बौद्धकालीन विश्वविधालय के अवशेष मिलते हैं। 

इस यात्रा मेरा सहयात्री - अमित 


पर्यटन स्थल - भरहुत स्तूप 

आपका प्रिय घुमक्कड़ - सुधीर उपाध्याय 

लौटना भी है और स्तूप से मन भी नहीं भरा है अभी 


अंततः भरहुत स्तूप से रवानगी 

अगली यात्रा - चन्द्रेह मंदिर, जिला - सीधी, म. प्र.  

THANKS FOR YOUR VISIT 
🙏

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